हिंदू धर्म के अतिरिक्त सनातन धर्म के ही अन्य अंग, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के अनुयायी भी दीपावली पर्व को बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं। जैन धर्म में दिवाली को भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं सिख समुदाय में इसे बंदी छोड़ दिवस के तौर पर मनाते हैं। दीपोत्सव पर्व हेतु शास्त्रोक्त मुहूर्त की यदि बात करें तो कार्तिक मास में अमावस्या के दिन प्रदोष काल होने पर महालक्ष्मी पूजन कर दीपावली मनाने का विधान है। यदि दो दिन तक अमावस्या तिथि प्रदोष काल का स्पर्श न करे तो दूसरे दिन दिवाली मनाने का विधान है। यह मत सबसे ज्यादा प्रचलित और मान्य है। इसके अतिरिक्त यदि अमावस्या तिथि का विलोपन हो जाए, यानी कि अगर अमावस्या तिथि ही न पड़े और चतुर्दशी के बाद सीधे प्रतिपदा आरम्भ हो जाए, तो ऐसे में पहले दिन चतुर्दशी तिथि को ही दिवाली मनाने का विधान है। दीपावली के दिन मुख्य रूप से मां लक्ष्मी एवं भगवान गणेश जी की पूजा का विधान है। लक्ष्मी गणेश पूजन प्रदोष काल अर्थात सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता है कि यदि स्थिर लग्न के समय पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में स्थिर हो जाती है। महानिशीथ काल के दौरान भी पूजन का विशेष महत्व है लेकिन यह समय तांत्रिको, पंडितों और साधकों के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। क्योंकि इसी काल में यन्त्र, मन्त्र आदि सिद्ध किए जाते हैं। महानिशीथ काल में मां काली की पूजा का विधान है। इस काल में उन्हीं लोगों को पूजा करनी चाहिए जिन्हें महानिशीथ काल के बारे में पूर्ण जानकारी हो। महानिशीथ काल में सिद्ध किए गए यंत्रो, रत्नों, या विभिन्न प्रकार की मालाओं हेतु आप हमसे संपर्क कर सकते हैं। इनका प्रयोग बहुत प्रभावशाली होता है।
सर्वसाधारण जनों हेतु दिवाली पर महालक्ष्मी पूजा का विशेष विधान है। इस दिन संध्या और रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं इसलिए दिवाली पर साफ-सफाई करके विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर पूजा भी की जाती है। पूजन के दौरान कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में वातावरण की शुद्धि और पवित्रता के लिए गंगाजल का छिड़काव करें। साथ ही घर के द्वार पर रंगोली और दीयों की एक शृंखला बनाएं। पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें। माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें साथ ही श्रीसूक्त द्वारा माता महालक्ष्मी की स्तुति करें। इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर की भी विधि विधान से पूजा करें। ध्यान रखें कि महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एकत्रित होकर ही करना चाहिए।महालक्ष्मी पूजन के बाद तिजोरी, बहीखाते और व्यापारिक उपकरणों की पूजा भी करें। पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई, वस्त्र आदि भेेंट करें। ब्राह्मणों को भोजन करवाकर फल मिष्टान्न एवं दक्षिणा प्रदान करें। दीपावली पर पूर्वजों का पूजन करें और धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के समय हाथ में उल्का धारण कर पितरों को मार्ग दिखाएं। यहां उल्का से तात्पर्य है कि दीपक जलाकर या अन्य माध्यम से अग्नि की रोशनी में पितरों को मार्ग दिखायें। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।दिवाली से पहले मध्य रात्रि में स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन आदि गाकर घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर होती है।सनातन हिंदू धर्म में प्रत्येक त्यौहार को मनाने के पीछे धार्मिक मान्यताओं सहित अनेक पौराणिक कथाएं भी जुड़ी होती हैं। दीपोत्सव महापर्व के सम्बंध में भी बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से दो प्रमुख हैं।
कार्तिक अमावस्या के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम चंद्र जी चौदह वर्ष का वनवास काटकर और लंकापति रावण का नाश करके अयोध्या लौटे थे। इस दिन भगवान श्री राम चंद्र जी के अयोध्या आगमन की प्रसन्नता में लोगों ने दीप जलाकर उत्सव मनाया था। मान्यता है कि तभी से दीपोत्सव प्रारम्भ हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस की आसुरी शक्तियों से देव मानव सन्त समाज सभी आतंकित थे। इस राक्षस ने मानवों की 16 हजार एक सौ स्त्रियों को बंदी बना लिया था। नरकासुर के बढ़ते अत्याचारों से त्रस्त देवता और साधु-संतों ने भगवान श्री कृष्ण से रक्षा हेतु याचना की। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवता व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई, साथ ही 16 हजार एक सौ स्त्रियों को कैद से मुक्त कराया। इसी खुशी में दूसरे दिन यानि कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
हिंदू धर्म में हर त्यौहार का ज्योतिष महत्व होता है। माना जाता है कि विभिन्न पर्व और त्यौहारों पर ग्रहों की दिशा और विशेष योग मानव समुदाय के लिए शुभ फलदायी होते हैं। हिंदू समाज में दिवाली का समय किसी भी कार्य के शुभारंभ और किसी वस्तु की खरीदी के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस विचार के पीछे ज्योतिषीय महत्व है। दरअसल दीपावली के आसपास सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा की यह स्थिति शुभ और उत्तम फल देने वाली होती है। तुला एक संतुलित भाव रखने वाली राशि है। यह राशि न्याय और अपक्षपात का प्रतिनिधित्व करती है। तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं, जो कि स्वयं सौहार्द, भाईचारे, आपसी सद्भाव और सम्मान के कारक हैं। इन गुणों की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में स्थित होना एक सुखद व शुभ संयोग होता है।हम आशा करते हैं कि दिवाली का त्यौहार आपके लिए मंगलमय हो। माता लक्ष्मी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे और आपके जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली आए। इसी के साथ वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
दिवाली पर कब करें लक्ष्मी पूजा?
मुहूर्त का नाम | समय | विशेषता | महत्व |
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प्रदोष काल | सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त | लक्ष्मी पूजन का सबसे उत्तम समय | स्थिर लग्न होने से पूजा का विशेष महत्व |
महानिशीथ काल | मध्य रात्रि के समय आने वाला मुहूर्त | माता काली के पूजन का विधान | तांत्रिक पूजा के लिए शुभ समय |
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