वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य आदि नवग्रहों द्वारा, जन्मकुंडली के द्वादश भावों में युतियां होने पर, या दृष्टि सम्बन्ध आदि स्थितियां होने पर अनेक शुभ अशुभ योगों का निर्माण होता है। जिनका मानव जीवन पर सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण योग है सन्तान योग, प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसके जीवन में उसको एक अच्छी और संस्कारी संतान की प्राप्ति हो। कुछ लोगों की तो यह इच्छा समय रहते पूरी हो जाती है और कुछ दम्पतियों को पूरे जीवन पर्यन्त प्रतीक्षा ही करनी पड़ती है। तथा कुछ व्यक्तियों को कुछ उपाय करने के पश्चात विलंब से संतान की प्राप्ति होती है। यह सब कुछ कुंडली में बनने वाले संतान योग पर ही निर्भर करता है कि आपको सन्तान की प्राप्ति कब और कैसे हो सकती है।
आपको सही समय पर संतान की प्राप्ति होगी या संतान प्राप्ति में विलंब और समस्या होगी अथवा आपको संतान प्राप्ति की संभावनाएं हैं भी या नहीं। यह सब कुछ जानने के लिए जन्म कुंडली में बनने वाले संतान योग और संतान से संबंधित ग्रहों और भावों का विश्लेषण करना पड़ता है तभी इस बारे में, निसन्तान दम्पतियों का समुचित मार्गदर्शन किया जा सकता है। आज इन्ही विषयों पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे। पूर्ण लाभ के लिए आप वीडियो को ध्यान पूर्वक पूरा अवश्य देखें, एवं साथ ही आपके अपने इस वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। लोककल्याण की भावना से वीडियो शेयर करना न भूलें।
निसंतान लोग संतान प्राप्ति के लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न करते हैं। या कुछ व्यक्ति कन्याओं के जन्म के बाद पुत्र प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं। अतः सर्वप्रथम जन्मकुंडली का विश्लेषण करवाना अतिआवश्यक होता है, क्योंकि कुंडली में ग्रह जनित कुछ विशेष स्थितियां होती हैं, जिनके आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति को संतान प्राप्ति को लेकर किस प्रकार के योग कुंडली में निर्मित हो रहे हैं। सामान्य रूप से कई बार यह देखने को मिलता है कि धन से गरीब व्यक्ति को अनेक संताने प्राप्त हो जाती हैं, और धन आदि समस्त सम्पदाओं के होते हुए भी व्यक्ति या तो सन्तान हीन रह जाता है, या केवल कन्या ही प्राप्त होती हैं।
बहुत समय तक डॉक्टरों द्वारा चिकित्सा करवाने पर, संतान प्राप्ति की आस लंबे समय तक रखने के पश्चात भी कई बार संतान प्राप्ति नहीं हो पाती तो ऐसे दम्पति बड़े विचलित हो जाते हैं। किंतु जहां प्रारब्धवशात संतान प्राप्ति होना अथवा ना होना कुंडली में उपस्थित योगों पर ही निर्भर करता है और ग्रह जनित बाधाएं संतान प्राप्ति में विलंब और परेशानी उत्पन्न करती हैं। वहीं आपकी कुंडली में ग्रहों की अच्छी स्थिति उचित समय पर अच्छी संतान प्रदान भी करती है।
वैवाहिक जीवन का मुख्य शुभ फल देखा जाए तो उत्तम संतान की प्राप्ति ही होती है। यही कारण है कि सनातन धर्म में जब विवाह से पूर्व जन्म कुंडली मिलान करवाते हैं तो उसमें दोनों के मध्य संतान होने की संभावना को भी ध्यान में रखा जाता है कि विवाह के उपरांत पति-पत्नी के मध्य उत्तम संबंधों के साथ-साथ संतान प्राप्ति की कितनी संभावनाएं बन रही हैं क्योंकि अनेक बार ऐसा देखा जाता है कि विवाह होने के बाद यदि संतान प्राप्ति नहीं होती तो उसकी वजह से शादीशुदा दंपत्ति के मध्य क्लेश और तनाव भी बढ़ जाता है।
इसके साथ ही एक अन्य पक्ष यह भी है कि आज सभी लोग आधुनिकता की दौड़ में भाग रहे हैं। इस कारण पति और पत्नी, दोनों अपने करियर के प्रति ज्यादा ध्यान देते हैं और आमतौर पर 30 वर्ष की आयु के आसपास विवाह के बारे में विचार करते हैं जबकि इतनी आयु के बाद स्त्री को गर्भधारण में समस्या होने की संभावना भी अधिक हो जाती है और उसकी वजह से संतान प्राप्ति गर्भधारण और संतान उत्पत्ति में भी कष्ट होने की संभावना अधिक होती है। आज के समय का असंतुलित आहार व्यवहार इन समस्याओं को और अधिक बढ़ा देता है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मपत्रिका, जीवन का मुख्य मानचित्र अथवा दर्पण होती है। यह हमें हमारे भूतकाल, हमारे वर्तमान और हमें भविष्य के बारे में जानकारी प्रदान करती है। इसी से जातक के जीवन में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं के बारे में जानकारी मिलती है। यही जन्मपत्रिका यह बता देती है कि किसी जातक को संतान सुख मिलेगा या नहीं मिलेगा और यदि मिलेगा भी तो किस प्रकार। अर्थात कुछ लोगों को सरलता से संतान प्राप्ति हो जाती है, कुछ को मेडिकल उपचार के बाद संतान प्राप्ति होती है, तो कुछ को वैदिक उपायों की सहायता लेनी पड़ती है।और कुछ को तो संतान के लिए केवल इंतजार ही करना पड़ता है। यह सभी कुछ कुंडली में विराजमान विभिन्न ग्रहों द्वारा निर्मित योगों के द्वारा संभव होता है और यह सब कुछ हमारे पूर्व जन्म के कर्मों से भी जुड़ा होता है क्योंकि ग्रह जैसी भी स्थिति का निर्माण कर रहे हैं, वह सब कुछ हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का ही परिणाम है।
जन्म कुंडली में संतान योग देखने के लिए पति और पत्नी दोनों की कुंडली का अध्ययन किया जाता है और दोनों की ही कुंडली में पंचम भाव और पंचम भाव के स्वामी की स्थिति विशेष रूप से विचारणीय होती है। यदि लग्न का स्वामी पंचम भाव में हो अथवा पंचम भाव का स्वामी लग्न भाव में हो या फिर पंचम भाव का स्वामी केंद्र त्रिकोण भाव में बैठा हो तो उत्तम संतान की प्राप्ति का योग बनाता है। हालांकि ग्रहों के माध्यम से पुत्र या पुत्री के बारे में भी पता चलता है किंतु वर्तमान समय में लोगों द्वारा किए जा रहे अनेक गलत कार्यों के प्रति सचेत रहते हुए और सामाजिक धारणाओं को ध्यान में रखते हुए हम यहां पर केवल संतान योग के बारे में चर्चा करेंगे क्योंकि हमारा यही मानना है कि जीवन में चाहे पुत्र मिले अथवा पुत्री, वह सब कुछ ईश्वर का आशीर्वाद है और वही हमारे कर्मों का परिणाम भी है, इसलिए हमें खुले दिल से अपनी संतान को स्वीकार करना चाहिए और उसका उचित मार्गदर्शन करते हुए उसका अच्छे से पालन पोषण करना चाहिए। यही हमारा उत्तरदायित्व भी है।
यदि कुंडली के पंचम भाव का स्वामी अर्थात पंचमेश कुंडली के छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो अथवा नीच राशिगत हो या शत्रु ग्रह की राशि में स्थित हो या फिर पंचम भाव पीड़ित अवस्था में हो और पंचम भाव का स्वामी भी पंचम भाव में पीड़ित अवस्था में हो तो संतान प्राप्ति होने की संभावना होने पर भी कष्ट पूर्वक संतान प्राप्ति होती है।
यदि नवम भाव का स्वामी लग्न भाव में विराजमान हो लेकिन पंचम भाव का स्वामी नीच राशिगत हो और पंचम भाव में केतु अथवा बुध ग्रह विराजमान हो तो मंत्र जाप आदि अनुष्ठान करने के उपरांत उचित चिकित्सा द्वारा संतान की प्राप्ति होती है।
यदि कुंडली के पंचम भाव में मिथुन राशि, कन्या राशि, मकर राशि, कुंभ राशि और मीन राशि में शनि देव विराजमान हों और बृहस्पति की दृष्टि भी पड़ रही हो या वह इनमें विराजमान हों तो ऐसे जातक को दत्तक संतान प्राप्त होने के योग बनते हैं।
यदि कुंडली में लग्न भाव का स्वामी मंगल के साथ संबंध बना रहा हो और कुंडली के पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित हो तो जातक को प्रथम संतान का कष्ट मिलने के योग बनते हैं।
यदि कुंडली में गुरु बृहस्पति द्वारा अधिष्ठित राशि से पंचम भाव तथा कुंडली में लग्न से पंचम भाव, दोनों भावों में पाप ग्रह स्थित हों और संतान की क्षमता से संबंधित कोई और योग ना बन रहा हो तो ऐसे जातक को संतान शोक मिल सकता है। लग्न भाव में गुलिक के स्थित होने और लग्नेश के नीच राशि में स्थित होने पर भी ऐसा ही फल मिल सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली के पंचम भाव में राहु विराजमान हों, उनके साथ कोई अशुभ फल देने वाला ग्रह हो तथा देव गुरु बृहस्पति नीच राशिगत हों तो व्यक्ति को संतान शोक मिलने की संभावना रहती है।
यदि इन ग्रह स्थितियों में पंचम भाव और पंचमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो काफी हद तक इन प्रभावों में कमी आ सकती है, इसलिए ऐसे सभी दंपति, जिन्हें संतान प्राप्ति की इच्छा है और संतान प्राप्ति में परेशानी हो रही है, उन्हें किसी योग्य ज्योतिषी द्वारा पति पत्नी दोनों की पत्रिकाओं का विश्लेषण अवश्य ही करवाना चाहिए और कुंडली में आ रही समस्याओं का समाधान जानकर उचित उपाय करने चाहिए। जहां आवश्यक हो, वहां ज्योतिषीय उपायों के साथ-साथ चिकित्सीय उपचार भी अवश्य करने चाहिए।
वैदिक ज्योतिष में संतान प्राप्ति के लिए स्त्री और पुरुष दोनों के अंदर प्रजनन क्षमता अच्छी होना अत्यंत आवश्यक है, तभी वह संतानोत्पत्ति में सक्षम हो सकते हैं। इसके लिए पुरुष का बीज स्फुट और स्त्री का क्षेत्र स्फुट जानना आवश्यक होता है। पुरुष के लिए बीज स्फुट जानने के लिए सूर्य स्पष्ट, शुक्र स्पष्ट तथा गुरु स्पष्ट अर्थात सूर्य, शुक्र और गुरु के भोगांश को जोड़ना चाहिए। उसके बाद प्राप्त राशि यदि 12 से अधिक है तो उसको 12 से भाग देना चाहिए। इस प्रकार जो शेष राशि होगी, वह उसका बीज होगा। यदि बीज और उसका नवांश दोनों ही विषम राशियां हैं तो पुरुष में संतान उत्पत्ति की पूर्ण क्षमता मानी जाती है। यदि कोई एक सम है और दूसरा विषम है तो मध्यम क्षमता माननी चाहिए लेकिन यदि दोनों ही सम हैं तो संतानोत्पत्ति में अक्षमता समझनी चाहिए।
पुरुष का बीज स्फुट जानने के बाद स्त्री का क्षेत्र स्फुट जाना चाहिए। इसके लिए स्त्री की कुंडली में चंद्र स्पष्ट, मंगल स्पष्ट और गुरु स्पष्ट को आधार मानकर पूर्वोक्त तरीके से गणना करनी चाहिए। यदि शेष राशि अर्थात क्षेत्र स्फुट दोनों ही सम राशि हो तो संतानोत्पत्ति की पूर्ण क्षमता मानी जाती है। यदि कोई एक सम और दूसरा विषम हो तो मध्यम क्षमता होती है तथा दोनों ही विषम हो तो संतानोत्पत्ति में अक्षमता समझना चाहिए।
यदि पुरुष का बीज स्फुट और स्त्री का क्षेत्र स्फुट संतानोत्पत्ति में अक्षमता जाहिर करता है और उन राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव भी है तो उपाय करने के बाद भी संतान होने की संभावना लगभग नगण्य होती है। ऐसी स्थिति में केवल ईश्वर भक्ति और उनकी कृपा ही संतान प्रदान कर सकती है। इसके विपरीत यदि बीज और क्षेत्र से अक्षमता जाहिर होती है लेकिन उन पर शुभ ग्रहों का प्रभाव है तो ग्रहों की शांति का उपाय करना चाहिए और औषधि से उपचार करवाना चाहिए। इससे संतान होने की संभावना बढ़ जाती है।
इसके अतिरिक्त पुरुष की कुंडली में शुक्र पुरुष के वीर्य का और स्त्री की कुंडली में मंगल उसके रज का कारक होता है। इन दोनों की स्थिति अनुकूल होने पर संतान प्राप्ति की संभावना अच्छी होती है। यदि इन दोनों में से स्त्री या पुरुष किसी एक अथवा दोनों में कोई समस्या हो तो चिकित्सीय परामर्श भी लेना चाहिए।
कुंडली का पंचम भाव संतान के बारे में बताता है अर्थात पंचम भाव से हम यह जान सकते हैं कि हमारे जीवन में संतान प्राप्ति को लेकर किस प्रकार की स्थिति निर्मित हो रही है। पंचम भाव हमारे पूर्व पुण्य का भाव भी होता है अर्थात पूर्व जन्म में किए गए शुभ कर्मों के द्वारा ही हमें संतान की प्राप्ति होती है। यदि हमने शुभ कर्म किए हैं तो हमें शुभ और अच्छी संतान की प्राप्ति होगी और यदि हमने अशुभ कर्म किए हैं तो हमारी संतान हमें कष्ट देने वाली हो सकती है, इसलिए मनुष्य को सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए ताकि उनको प्राप्त होने वाली संतान भी अच्छी हो और यदि उनके कर्म खराब होंगे तो ऐसी संतान मिलेगी, जो उन्हें जीवन में कष्ट देंगी या फिर संतान प्राप्ति के लिए संघर्ष करना होगा।
कुंडली में पंचम भाव और भावेश अर्थात पंचम भाव के स्वामी की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यही हमें संतान प्राप्ति के बारे में सूचित करती है। यदि कुंडली का पंचम भाव शुभ स्थिति में है अर्थात पंचम भाव पर किसी भी पाप ग्रह का प्रभाव नहीं है, वहां पर किसी शुभ ग्रह का प्रभाव है यानी कि कोई शुभ ग्रह पंचम भाव में विराजमान है या पंचम भाव को अपनी दृष्टि से देख रहा है तो यह स्थिति पंचम भाव को मजबूत बनाती है और संतान प्राप्ति के अच्छे योग बनाती है। इसके साथ ही यदि पंचम भाव का स्वामी भी मजबूत अवस्था में हो, शुभ ग्रहों के साथ हो अथवा शुभ ग्रहों द्वारा देखा जाता हो या उनसे किसी भी तरह का संबंध बनाता हो तो वह मजबूत स्थिति में माना जाता है और अशुभ ग्रहों से मुक्त हो तो वह प्रबल हो जाता है। ऐसी स्थिति में कुंडली में अच्छी संतान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं।
इसके विपरीत, यदि कुंडली का पंचम भाव कमजोर है, उसमें पाप ग्रह विराजमान है या पाप ग्रह से संबंध बन रहा है तो वह पंचम भाव को कमजोर कर देते हैं और पंचम भाव का स्वामी भी यदि अस्त है, नीच राशि अथवा पाप ग्रह के संबंध में है और पीड़ित है तो ऐसा होना संतान प्राप्ति में विलंब या संतान प्राप्ति के योग को नष्ट कर देता है। यदि किसी प्रकार कुंडली के अन्य योगों द्वारा संतान प्राप्ति की संभावना बन भी रही होती है तो उस जातक को संतान प्राप्ति के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है और संतान भी आगे जाकर कष्ट देने वाली हो जाती है, इसलिए संतान योग देखने के लिए सर्वप्रथम कुंडली के पंचम भाव और पंचम भाव के स्वामी की स्थिति का अवलोकन किया जाता है।
वैदिक ज्योतिष के अंतर्गत किसी भी कुंडली में नवग्रह का विशेष स्थान होता है और हर ग्रह किसी न किसी चीज का कारक होता है। उसी प्रकार संतान का कारक ग्रह देव गुरु बृहस्पति को माना जाता है। यदि कुंडली में देव गुरु बृहस्पति मजबूत और प्रबल स्थिति में विराजमान हैं तो जातक को अच्छी संतान प्राप्त करने में सहायता करते हैं। इसके विपरीत, बृहस्पति की अशुभ स्थिति और उनका कुंडली में कमजोर होना संतान प्राप्ति में बाधा दिलाने वाला होता है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि किसी भी जातक को कुंडली में उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए देव गुरु बृहस्पति की कृपा का प्राप्त होना अत्यंत आवश्यक है। इसके अभाव में व्यक्ति को संतान प्राप्ति में विलंब अथवा कष्ट का सामना करना पड़ सकता है और संतान होने में भी समस्या हो सकती है। यदि देव गुरु बृहस्पति की कृपा आपके ऊपर है तो आपको उत्तम संतान की प्राप्ति होगी और यदि देव गुरु बृहस्पति कुंडली में पंचम भाव अथवा भावेश से संबंध बना रहे हैं और वह शुभ स्थिति में हैं तो एक अच्छी संतान की प्राप्ति होने की संभावना बढ़ जाती है।
जैसा कि हम जानते हैं कि कुंडली में कोई भी घटना घटित होने के लिए ग्रह दशा का विशेष महत्व होता है। ठीक उसी प्रकार कुंडली में संतान प्राप्ति के लिए अनुकूल ग्रह की दशा प्राप्त होना भी अत्यंत आवश्यक है। उसके अभाव में संतान प्राप्ति में विलंब होता है। कुंडली में जब संतान प्राप्ति कारक ग्रह बृहस्पति की दशा आती है अथवा कुंडली के पंचम भाव के स्वामी की दशा प्राप्त होती है या उन ग्रहों की दशा प्राप्त होती है, जो पंचम भाव से संबंध बना रहे हों और शुभ ग्रह हों तो जातक को संतान प्राप्ति के योग बन जाते हैं। इसके विपरीत, यदि किसी ऐसे ग्रह की दशा चल रही है जो पंचम भाव पर अशुभ प्रभाव दे रहा है या पंचम भाव से संबंधित नहीं है तो उस दशा में जातक को संतान प्राप्ति के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इस प्रकार कुंडली में ग्रह दशा का विशेष महत्व है क्योंकि अनुकूल ग्रह दशा समय पर मिलने से ही जातक को सही समय पर संतान की प्राप्ति हो पाती है और कुंडली में संतान योग फलित होता है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के गोचर को भी अत्यंत महत्व दिया जाता है क्योंकि जिस प्रकार कुंडली में किसी भी घटना के घटित होने में दशा की भूमिका होती है, उसी प्रकार अनुकूल गोचर भी आवश्यक है। मान लीजिए कि कुंडली में पंचम भाव के स्वामी की दशा चल रही है और वह अनुकूल स्थिति में है तो वह अपनी दशा में संतान प्राप्ति के योग बनाएगा और जातक के जीवन में संतान प्राप्ति के समाचार आने का समय हो सकता है लेकिन यदि उसी समय पर अशुभ गोचर चल रहा होगा तो वह इस समाचार को परेशानियों में बदल सकता है। यानी कि यदि कोई स्त्री अनुकूल दशा में गर्भवती हो गई है और गोचर अनुकूल नहीं है और अशुभ ग्रह प्रभाव डाल रहे हैं तो जातक को गर्भपात का सामना भी करना पड़ सकता है। इसके विपरीत, यदि अनुकूल दशा में अनुकूल गोचर प्राप्त हो रहा है तो जातक को बड़ी आसानी से एक अच्छी संतान प्राप्त हो जाती है और उसके कष्टों में भी कमी आती है।
यदि कुंडली में पंचम भाव के ऊपर पंचम मेष का गोचर हो रहा है तो संतान सुख की प्राप्ति का समय होता है। यदि देव गुरु बृहस्पति अपने गोचर काल में पंचम भाव, एकादश भाव, नवम भाव या लग्न भाव में प्रवेश करें तो भी संतान होने के शुभ समाचार मिलने की उम्मीद की जा सकती है। इसके अतिरिक्त जब गोचर काल में लग्न भाव का स्वामी, पंचम भाव का स्वामी तथा सप्तम भाव का स्वामी एक साथ ही युति कर रहे हों अर्थात एक ही राशि में गोचर करें तो भी संतान सुख प्राप्ति की संभावना बढ़ जाती है।
जन्म कुंडली का पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी अपनी उच्च राशि, स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि अथवा मित्र राशि में हो कर यदि जन्म कुंडली के लग्न भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव या नवम भाव में स्थित हो और अशुभ ग्रहों से युक्त ना हो तो उत्तम संतान सुख मिलता है।
जन्म कुंडली में बृहस्पति उत्तम स्थिति में हो और कुंडली का पंचमेश भी मजबूत अवस्था में हो तथा ये दोनों एक दूसरे को देखते हों या एक दूसरे से अच्छे संबंध बनाएं तो संतान सुख की प्राप्ति होती है।
यदि कुंडली के पंचम भाव में शुभ ग्रह विराजमान हो अथवा पंचम भाव का स्वामी वर्गोत्तम हो या पंचम भाव में ही विराजमान हो अथवा पूर्ण दृष्टि से पंचम भाव को देखता हो तो संतान सुख मिलता है।
यदि स्वराशि के बृहस्पति अथवा शुभ अंशों के बृहस्पति नवम भाव में बैठकर पंचम भाव को दृष्टि देते हो और पंचम भाव का स्वामी अच्छी अवस्था में हो तो संतान सुख की प्राप्ति की संभावना अधिक होती है।
यदि कुंडली का लग्न और पंचम भाव गुरु और शुक्र के वर्गों में स्थित हो और शुक्र और चंद्रमा से युक्त हो तो अच्छी संतान का सुख मिलता है।
यदि कुंडली में पंचम भाव पीड़ित अवस्था में हो अथवा श्रापित दोष से युक्त हो या फिर पितृदोष से युक्त हो तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है।
यदि पंचम भाव में सूर्य देव वृषभ राशि, सिंह राशि, कन्या राशि और वृश्चिक राशि में स्थित हों तथा कुंडली के अष्टम भाव में शनि देव विराजमान हों और लग्न में मंगल विराजित हो तो संतान सुख में विलंब हो सकता है।
यदि पंचम भाव पर मंगल की दृष्टि हो अथवा राहु का प्रभाव हो तो संतान सुख में विलंब और कष्ट हो सकता है।
यदि कुंडली के सप्तम भाव में लग्न भाव का स्वामी और नवम भाव का स्वामी युति करें तो संतान सुख की प्राप्ति होती है।
यदि कुंडली के एकादश भाव में बुध, शुक्र अथवा बली चंद्रमा शुभ स्थिति में हो और वह पंचम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखें तो उत्तम संतान सुख होता है।
यदि कुंडली के पंचम भाव में केतु विराजमान हो तो भी संतान सुख मिल सकता है।
यदि कुंडली के नवम भाव में बृहस्पति अथवा शुक्र ग्रह पंचमेश के साथ विराजमान हों तो अच्छी संतान मिलती है।
इन ग्रहों की स्थिति के अतिरिक्त कुंडली में अच्छा शुक्र गर्भधारण में मदद करता है तो वहीं शिशु के स्वास्थ्य की रक्षा का धर्म देव गुरु बृहस्पति निभाते हैं और इसलिए देव गुरु बृहस्पति का लग्न अथवा भाग्य स्थान में बैठना अत्यंत शुभ परिणाम प्रदान करता है।
बृहस्पति के अतिरिक्त यदि शुक्र ग्रह भी पंचम भाव में विराजमान हो या पंचम भाव से संबंध बना रहे हों तो उनकी दशा भी संतान प्राप्ति में उत्तम परिणाम प्रदान करती है।
यदि जातक की कुंडली में पंचम भाव पर मंगल अथवा राहु की दृष्टि पड़ रही हो तो यह दृष्टि संतान को हानि पहुंचाने वाली मानी जाती है और उन ग्रहों की दशा आने पर संतान को समस्या होने की स्थिति बनती है। अगले वीडियो में हम सन्तान सुख प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करने वाले ग्रह योगों के बारे में चर्चा करेंगे, आप अधिक जानकारी के लिए चैनल को सब्सक्राइब कर वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट भी अवश्य करें। ताकि नेक्स्ट वीडियो का नोटिफिकेशन आपको प्राप्त हो सके। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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