अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
भगवान श्री कृष्ण अपने परम प्रिय सखा अर्जुन को महाभारत युद्ध से पूर्व श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश देते हुए कहते हैं कि अर्जुन! जो अनन्य भक्त, निष्काम भाव से निरन्तर केवल मेरी ही उपासना में रत रहते हैं, निरन्तर मुझमें ही स्थित उन परमार्थ ज्ञानियों का योगक्षेम मैं स्वयं वहन करता हूँ। और इसी दिव्य श्लोक से प्रेरणा ग्रहण कर सम्भवतः भारतीय जीवन बीमा निगम निरन्तर इतने वर्षों से अपने ग्राहकों की सेवा भी कर रहा है। जो लोग बीमा आदि करवाते हैं उन्हें बीमा करवाने के हानि लाभ की जानकारी अच्छे से होती है, किन्तु यह समझना अति आवश्यक है कि जिस वाक्य के आश्रय को लेकर एक बीमा कंपनी निरन्तर सेवा कार्य में रत रहकर योगक्षेम का वहन कर रही है, उस वाक्य को जिस परमपिता परमेश्वर ने स्वयं अपने श्री मुख से कहा है क्या निरन्तर उनका चिंतन करने से, पूजन करने से क्या वह हमारे योगक्षेम का वहन नहीं करेंगे? अवश्य ही करेंगे। किन्तु कब? जब कि हम समय समय पर उन परमात्मा के स्मरण पूजन चिंतन आदि किश्तों को भरेंगे। बिना किसी आर्थिक व्यय किए यह सब कर्म सहज रूप से करके हम धर्म रूपी किश्तों को भर सकते हैं। और इस मानव जीवन के परम लाभ को प्राप्त कर सकते हैं।
कोई भी जिज्ञासु ज्योतिषी के पास सदैव जानने की ही जिज्ञासा को लेकर आता है। चाहे वह भविष्य जानने की जिज्ञासा हो या जीवन में घटने वाली शुभ अशुभ घटनाओं के कारण। यही सब तो जानना चाहते हैं न सभी लोग ? और ज्योतिषी जो कुछ भी जिज्ञासु जनों को बताते हैं, जिस किसी भी आधार पर बताते हैं, उन सभी आधारों के मूलाधार भगवान श्री कृष्ण ही हैं। क्योंकि गीता में भगवान स्वयं कहते हैं कि,
ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते ।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम् ॥
भावार्थ यह है कि भगवान ही ज्योतिषियों के ज्ञान की वह ज्योति हैं जिस ज्ञान के प्रकाश से जिज्ञासु जनों के अज्ञान का अंधकार दूर हो जाता है। और वही परमात्मा समस्त प्राणिमात्र के हृदय में विशेष रूप से स्थित है।
हृदि सर्वस्य विष्ठितम्।
अब एक बार वेद भगवान की ओर भी दृष्टि करें। वेद भगवान कहते हैं कि,
चित्रन्देवानामुदगादनीक.......
अर्थात, समस्त प्राणी मात्र की जीवन ज्योति, आत्मा स्वरूप में भगवान सूर्य नारायण ही व्याप्त हैं।
तभी तो वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवग्रहों में भगवान सूर्य को राजा की पदवी प्रदान की गई है। यह सदैव स्मरण रखें, की श्री हरि विष्णु, एवं भगवान सूर्य, दोनों एक ही हैं। तभी तो दोनों को ही नारायण कहकर पुकारा जाता है। एक श्री हरि नारायण और दूसरे श्री सूर्य नारायण। सूर्य ही आत्मा के कारक ग्रह कहे जाते हैं। और इसीलिए ही आत्मा को परमात्मा कहा जाता है। किसी भी देहधारी के स्थूल शरीर में यदि सभी अंग स्वस्थ हों और केवल आत्मतत्व न् हो तो उस देह को मृत देह कहा जाता है। तभी तो आत्मरक्षा की प्रधानता स्वीकार की जाती है। और यदि ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो समस्त ग्रहों में भगवान सूर्य यदि आपकी जन्मकुंडली में सुदृढ़ हैं तो आपको जीवन में धर्म अर्थ काम मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति सहजता से ही हो जाएगी। अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह भगवान सूर्य के आशीर्वाद को प्राप्त करने का प्रयत्न करें। हर एक देवता को प्रसन्न करने के अलग अलग नियम या पूजा पद्धतियां होती हैं। किसी देवता को कोई वस्तु प्रिय है तो किसी को कोई। सभी की अपनी अपनी पसंद हैं। कहा भी गया है की,
नमस्कार: प्रियो भानु: जलधाराप्रियो शिव: ।
अलंकारप्रियो विष्णु: गणपति: मोदकप्रिय: ॥अर्थात जिस प्रकार भगवान शिव को जलधारा परम् प्रिय है, श्री हरि विष्णु को श्रृंगार अत्यंत प्रिय है, और प्रथम पूज्य गणपति जी को मोदक अति प्रिय हैं, ठीक उसी प्रकार भगवान सूर्य को नमस्कार परमप्रिय है। अतः भगवान सूर्य नारायण को यदि प्रसन्न करना चाहते हैं, भगवान सूर्य की यदि जीवन में कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो भगवान सूर्य को प्रतिदिन, जितनी बार हो सके प्रणाम करें। यह एक सबसे सरल सुगम उपाय है। भगवान सूर्य नारायण को प्रणाम करने मात्र से ही उनकी दिव्य कृपा शक्ति प्रत्यक्ष दृष्टि गोचर होती है। अब थोड़ी सी चर्चा इस विषय पर करेंगे कि भगवान सूर्य नारायण को प्रणाम करने की सही विधि क्या है? सर्वप्रथम बात करेंगे समय की। वैसे तो पूरे दिन भर में कभी भी आप भगवान सूर्य को प्रणाम कर सकते हैं, किन्तु यदि श्रेष्ठ समय की बात करें तो सूर्य नमस्कार हेतु अरुणोदय काल श्रेष्ठतम समय है। अरूणोदय काल वह समय होता है जब ब्रह्ममुहूर्त के उपरांत भगवान सूर्य उदय होते हैं। उस समय भगवान की आभा लाल रंग की दिखाई देती है। ठीक उस समय भगवान को नमस्कार करना श्रेष्ठ होता है। और सही विधि विधान की यदि बात करें तो ब्रह्ममुहूर्त में उठकर, शौच मज्जन स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर आचमन प्राणायाम तिलक आदि करके सर्वप्रथम भगवान सूर्य को तांबे के पात्र में जल भरकर, पूर्वाभिमुख होकर धर्म अर्थ काम और मोक्षपद की प्राप्ति हेतु चार बार अर्घ्य प्रदान करें। साथ में प्रत्येक बार अर्घ्य देते समय यह श्लोक अवश्य उच्चारण करें।
एहि सूर्य! सहस्त्रांशो! तेजो राशे! जगत्पते!
अनुकम्प्यं मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर!
इसके बाद ज्ञान मुद्रा में दोनों हाथों को भगवान सूर्य की ओर करके उपस्थान करें। सम्भव हो तो साथ में यह वेद मन्त्र भी बोलें।
चित्रन्देवानामुदगादनीक
इसके पश्चात चढाए हुए अर्घ्य जल को अपनी अनामिका उंगली से अपने नेत्रों पर लगाते हुए पुनः यह वेद मन्त्र बोल सकते हैं।
ॐ तत्चक्षुरदेव हितं
अर्थात समस्त देवताओं में प्रतिष्ठित, जगत के नेत्र स्वरूप, दिव्य तेजोमय भगवान आदित्य, आपकी कृपा से सौ वर्षों तक हमारी नेत्र ज्योति बनी रहे, सौ वर्षों तक सुख पूर्वक हम जीवन यापन करें, सौ वर्षों तक श्रवण शक्ति से सम्पन्न रहें, सौ वर्षों तक मधुर वाणी से युक्त रहें, एवं सौ वर्षों तक दैन्य भाव से रहित रहें।
अब भगवान सूर्य नारायण को प्रणाम करें।
यहां प्रणाम को ठीक से समझ लें। एक तो साधारण प्रणाम होता है कि दोनों हाथ जोड़े और प्रणाम कर दिया। किन्तु भगवान सूर्य नारायण को प्रणाम करने की विधि भी अत्यंत विशिष्ट है। जिसे सूर्य नमस्कार के नाम से जाना जाता है। यह योग में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि केवल सूर्य नमस्कार करने मात्र से ही मानव शरीर के समस्त अंगों का योग हो जाता है।
अतः सूर्य नमस्कार विधिवत रूप से प्रतिदिन बारह बार अवश्य करना चाहिए। और प्रत्येक बार यह श्लोक अवश्य बोलें।
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्रयं नोपजायते।।
अर्थात, भगवान सूर्य नारायण को जो कोई भी व्यक्ति प्रतिदिन नमस्कार करता है, उसे हजारों जन्मों तक दरिद्रता नहीं होती। अब आप समझ चुके होंगे कि भगवान सूर्य को प्रतिदिन नमस्कार रूपी क़िस्त जमा करने मात्र से ही एक हजार जन्मों तक का बीमा हो जाता है। साथ ही सूर्य नमस्कार करने से निरोगी काया प्राप्त होती है, जिसे की प्रथम सुख कहा गया है। सूर्य नमस्कार करने मात्र से ही नव ग्रहों के अशुभ प्रभाव क्षीण हो जाते हैं। सभी ग्रह शुभ फल प्रदान करने लगते हैं। क्योंकि सूर्य नमस्कार करने वाले व्यक्ति का योगक्षेम स्वयं नारायण वहन करते हैं। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार
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