पूर्व के वीडियो में हमने जन्मकुंडली में उपस्थित सन्तान प्राप्ति के लिए सहायक एवं योगकारक शुभ ग्रहों के बारे में विस्तार से चर्चा की थी, आज उसी विषय को आगे बढाते हुए सन्तान सुख में बाधा उत्पन्न करने वाले ग्रहों के बारे में भी विचार करेंगे। आप पूर्ण जानकारी के लिए वीडियो को ध्यान पूर्वक पूरा अवश्य देखें, एवं साथ ही ज्योतिष शास्त्र सहित सनातन धर्म के अनेकों विषयों की शास्त्र सम्मत जानकारी के लिए आपके अपने इस वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर, नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
जहाँ कुछ विशेष ग्रह योग जन्म कुंडली में संतान सुख की प्राप्ति करवाते हैं वहीं कुछ ऐसे ग्रह योग भी होते हैं जो संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करते हैं। इन्हें ध्यान से समझें। यदि पंचम भाव का स्वामी अष्टम भाव में नीच राशिगत हो और पंचम भाव पर पाप ग्रहों का अधिक प्रभाव हो तो संतान प्राप्ति में बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि पंचम भाव और छठे भाव के स्वामियों के मध्य राशि परिवर्तन हो तो कई बार गर्भपात की संभावना भी हो सकती है। पंचम भाव पर राहु और शनि की संयुक्त दृष्टि होने से संतान सुख की कमी होती है या फिर मृत संतान भी हो सकती है। पंचम भाव में सूर्य का प्रभाव होना या सूर्य का स्थित होना संतान सुख में कमी करता है। हालांकि सूर्य ग्रह के उपाय करने के बाद एक संतान की प्राप्ति संभव हो सकती है। यदि पंचम भाव में शनि और राहु एक साथ विराजमान हों तो श्रापित दोष का निर्माण होता है, जो पूर्व जन्म के कर्मों के कारण संतानहीनता देता है। यदि कुंडली के पंचम भाव में शनि और मंगल विराजमान हों तो संतान प्राप्ति में बाधा होती है। यदि कुंडली के लग्न भाव, पंचम भाव व सप्तम भाव से सूर्य, बुध और शनि का संबंध हो तो संतान बाधा उत्पन्न होती है। यदि मंगल की दृष्टि पंचम भाव पर हो तो संतान की हानि या फिर कष्ट पूर्ण संतान मिलती है। अधिकांशत: इस स्थिति में ऑपरेशन के बाद ही संतान का जन्म होता है। यदि मंगल उस कुंडली के लिए शुभ है तो संतान प्राप्ति हो जाती है, अन्यथा संतान होने में समस्या आती है। यदि कुंडली के द्वादश भाव में पंचम भाव का स्वामी और देव गुरु बृहस्पति युति कर रहे हों तथा कुंडली के अष्टम भाव का स्वामी और मंगल पंचम भाव में विराजमान हो तो संतान सुख की कमी होती है। यदि कुंडली के पंचम भाव पर राहु और मंगल का संयुक्त प्रभाव हो तो सर्प दोष बन जाता है और संतान होने में बाधा उत्पन्न होती है। यदि पंचम भाव का संबंध सूर्य और शनि से हो जाए अथवा राहु या केतु से दृष्टि संबंध हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आ जाती है। यदि अष्टकवर्ग पद्धति में बृहस्पति के अष्टक वर्ग में बृहस्पति से पंचम भाव शुभ बिंदुओं से रहित हो तो संतान होने में बाधा उत्पन्न होती है और संतान सुख की कमी होती है। यदि कुंडली में शुक्र ग्रह, बुध, शनि या राहु के साथ स्थित हो और पंचम भाव तथा सप्तम भाव में अशुभ ग्रहों का प्रभाव अधिक हो तो शुक्र की पीड़ित अवस्था से वीर्य दोष उत्पन्न हो जाता है और पुरुष संतानोत्पत्ति में सक्षम नहीं हो पाता है।
यदि कुंडली के सप्तम भाव का स्वामी पीड़ित अवस्था में हो और कमजोर हो तथा पंचम भाव में विराजमान हो तो भी संतान सुख में कमी हो सकती है। कारकोभावनाशाय सिद्धांत के अनुसार यदि संतान कारक बृहस्पति पंचम भाव में ही स्थित हों और उन पर अशुभ ग्रहों का अधिक प्रभाव हो तो भी संतान प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है।
यदि कुंडली का लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश और देव गुरु बृहस्पति, ये सभी ग्रह कमजोर और बल हीन अवस्था में हों तो संतान सुख में कमी करते हैं। कुंडली के लग्न भाव और चंद्रमा से पंचम भाव तथा बृहस्पति से भी पंचम भाव यदि पीड़ित अवस्था में हों या पाप कर्तरी में हों तो संतान बाधा आती है। यदि वृषभ, सिंह, कन्या अथवा वृश्चिक राशियों में से कोई राशि पंचम भाव में हो और कोई अशुभ योग बन रहा हो तो संतान प्राप्ति में विलंब होता है या समस्या आती है क्योंकि ये अल्पसुत राशियां कहलाती हैं। यदि कुंडली के लग्न भाव, चंद्र राशि और गुरु अधिष्ठित राशि से पंचम भाव पर पाप ग्रहों का अधिक प्रभाव हो तो भी संतानहीनता हो सकती है।
अब आपको जन्म कुंडली में संतान योग को मजबूत बनाने के कुछ सहज उपाय बताते हैं, जिनके प्रयोग से आप लाभ अर्जित कर सकते हैं। यदि आपकी कुंडली में संतान योग कमजोर है या आपको संतान प्राप्ति में समस्या आ रही है तो आपको कुछ विशेष उपाय करने चाहिए, जिससे आप के जीवन में संतान की वृद्धि हो और आप संतान प्राप्त कर पाने में भी सफल हो जाएं।
सर्वप्रथम कुंडली के पंचम भाव के स्वामी को मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए। कुंडली में बृहस्पति की स्थिति को देखकर उनसे संबंधित उपाय करने चाहिए ताकि देव गुरु बृहस्पति की कृपा प्राप्त हो सके और संतान प्राप्ति का सुखद अनुभव मिले।
संतान की कामना रखने वाले दंपत्ति को अपने कमरे में भगवान बाल कृष्ण का चित्र अवश्य लगाना चाहिए और लड्डूगोपाल की पूजा करनी चाहिए ताकि अधिक से अधिक समय आपका ध्यान उन पर रहे और प्रतिदिन उन्हें मक्खन मिश्री का भोग लगाकर स्वयं उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण भी करना चाहिए। साथ में पति – पत्नी को प्रतिदिन संतान गोपाल मंत्र का निश्चित संख्या में जप भी करना चाहिए। यदि आप चाहें तो आप संतान गोपाल मंत्र ”ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः” का संपूर्ण अनुष्ठान हमारे द्वारा भी संपन्न करा सकते हैं।
पूर्णमासी का व्रत रखने से भी ईश्वर कृपा से संतान प्राप्ति की संभावना बनती है।
देव गुरु बृहस्पति संतान के मुख्य कारक होने के कारण उनका मंत्र जाप करना भी संतान प्राप्ति में सहायक होता है। यदि कुंडली के लिए बृहस्पति अशुभ हैं तो ऐसी स्थिति में गुरु पूजन शुभ फलदायी हो जाता है।
संतान प्राप्ति के लिए आपको बृहस्पतिवार के दिन किसी मंदिर, विद्यालय अथवा बगीचे में केले के वृक्ष को लगाना चाहिए और नियमित रूप से उसकी पूजा करनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त पीपल वृक्ष को लगाना भी वंश वृद्धि का कारण बनता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति पीपल वृक्ष को लगाता है और उस को पालता है, उसके वंश का कभी नाश नहीं होता है। यदि कुंडली में पितृदोष का निर्माण हो रहा हो, जिसकी वजह से संतान बाधा आ रही है तो पितृदोष की शांति के लिए गया में पितृ तर्पण कराएं अथवा पितृ गायत्री मंत्र का जाप कराएं या प्रतिदिन अपने घर में हरिवंश पुराण का पाठ करें या विद्वान ब्राह्मण द्वारा करवाएं। संतान की कामना से प्रदोष व्रत करना भी लाभदायक रहता है। अतः कम से कम 11 प्रदोष व्रत रखने चाहिए तथा भगवान शिव का गाय के दूध से रुद्राभिषेक संतान प्राप्ति के उद्देश्य से करना चाहिए। प्रत्येक अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करें और चावल की खीर बनाकर पितरों के निमित्त मंदिर में लेकर जाएं। इसके अतिरिक्त पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं तथा कौवे, चींटी आदि को दाना डालें। यदि कुंडली में कोई विशेष ग्रह संतान प्राप्ति में बाधा बन रहा है तो उसके लिए भी कुछ विशेष उपाय किए जाने चाहिए। यदि कुंडली में सूर्य के कारण संतान बाधा हो रही है तो पितृदोष की शांति कराएं या पितृ गायत्री का जाप कराएं। साथ ही सूर्य के बीज मंत्र का जाप करवाकर सूर्य की शांति कराएं। सूर्य की पीड़ा पितरों की पीड़ा या उनका श्राप हो सकती है। साथ ही रविवार के दिन बेल, लाल चंदन, लाल पुष्प और गुड़ तथा तांबे का दान करना चाहिए।
यदि चंद्रमा संतान प्राप्ति में बाधा बन रहे हैं तो रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग जाकर दर्शन करने चाहिए अथवा गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। चंद्रमा की पीड़ा माता के श्राप या मां दुर्गा के कुपित हो जाने के कारण हो सकती है। इसको दूर करने के लिए चंद्रमा के बीज मंत्र का जाप कराएं। चंद्रमा की शांति कराएं। सोमवार का व्रत रखें और सोमवार के दिन सफेद वस्त्र, दूध, दही, चांदी, आदि का दान करें।
यदि मंगल ग्रह के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आती है तो मंगल ग्रह की शांति कराएं और मंगल के बीज मंत्र का जाप कराएं। मंगल ग्रह की बाधा भाई के श्राप के कारण हो सकती है। इसके अतिरिक्त मंगलवार के दिन लाल फूल, गुड़, शक्कर, लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन, सिंदूर, लाल चंदन या मसूर की दाल का दान करना चाहिए।
यदि कुंडली में बुध ग्रह की पीड़ा संतान प्राप्ति में बाधा बन रही है तो इसे दूर करने के लिए बुध ग्रह के बीज मंत्र का जाप करना अथवा विष्णु पुराण का विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। बुध ग्रह की पीड़ा मौसी, बुआ अथवा मामा के श्राप के कारण हो सकती है। बुधवार के दिन कपूर, काँसे का बर्तन, साबुत मूंग, खांड, हरे रंग के वस्त्र और फल का दान करना चाहिए तथा तुलसी के पौधे के नीचे संध्या समय में दीपक जलाना चाहिए।
यदि संतान कारक होकर भी कुंडली में देव गुरु बृहस्पति कमजोर अवस्था में हैं या उनकी वजह से भी संतान योग में बाधा उत्पन्न हो रही है तो इसे ब्राह्मण का श्राप या गुरु का श्राप माना जा सकता है। इसको दूर करने के लिए बृहस्पति के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। बृहस्पतिवार के दिन पीपल और केले के वृक्ष को जल चढ़ाना चाहिए तथा देसी घी, हल्दी, बेसन या चने की दाल, पीले रंगों के वस्त्र और स्वर्ण का दान करना चाहिए। किसी विद्वान ब्राह्मण अथवा विद्यार्थी की मदद करनी चाहिए।
यदि कुंडली में शुक्र ग्रह संतान प्राप्ति में बाधक है तो शुक्र ग्रह के बीज मंत्र का जाप करना चाहिए। शुक्रवार के दिन महिला साध्वी या महिला पुजारी को श्रृंगार की सामग्री भेंट करनी चाहिए। शुक्र ग्रह की पीड़ा स्त्री श्राप या कुलदेवी के श्राप के कारण हो सकती है। शुक्रवार को ही आटा, चावल, दही, मिश्री, सफेद चंदन, इत्र और सफ़ेद वस्त्रों का दान करना चाहिए।
यदि कुंडली में शनि ग्रह संतान प्राप्ति में बाधक हैं तो पीपल का पेड़ लगाना चाहिए और शनि ग्रह के बीज मंत्र का जाप करवाकर शनि ग्रह की शांति करानी चाहिए। इसके अतिरिक्त शनिवार के दिन नीले पुष्प, काले तिल, साबुत उड़द, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, कंबल, काले रंग के वस्त्र, आदि का दान करना चाहिए।
यदि राहु ग्रह के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है तो शनिवार के दिन काले उड़द, तिल, लोहा, सतनजा, नारियल, आदि का दान करें। इसके साथ ही आप नीले वस्त्र या फिर रांगे की गोली का भी दान कर सकते हैं। मछलियों को चारा भी डाला जा सकता है। राहु ग्रह की शांति कराएं। राहु के कारण सर्प दोष बन सकता है या सर्प श्राप भी हो सकता है, इसलिए नाग पंचमी के दिन सर्पों की पूजा करें और अमावस्या अथवा सोमवार के दिन शिवलिंग पर चांदी का नाग नागिन का जोड़ा चढ़ाएं।
यदि केतु ग्रह संतान प्राप्ति में बाधा बन रहा है तो उसकी शांति के लिए केतु के बीज मंत्र का जाप करें अथवा करवाएं तथा ब्राह्मणों को आदर पूर्वक भोजन कराएं और सतनजा व नारियल का दान करें। किसी भी प्रकार के उपाय करने से पूर्व किसी भी विद्वान ज्योतिषी को पति पत्नी दोनों की जन्मकुंडली दिखाकर, उचित मार्गदर्शन अवश्य ही प्राप्त कर लें। क्योंकि सही आवश्यक उपाय करने से भी आप अपने जीवन में संतान योग को मजबूत बना सकते हैं।
कुंडली में संतान योग के बारे में जानने के लिए केवल जन्म लग्न ही नहीं, चंद्र लग्न और सूर्य लग्न से पंचम भाव का विचार भी किया जाता है, तथा संतान के कारक ग्रह बृहस्पति से भी पंचम भाव का अवलोकन संतान सुख के बारे में जानकारी प्रदान करता है।जन्म कुंडली के अतिरिक्त नवमांश कुंडली और विशेष रूप से सप्तमांश कुंडली का अध्ययन किया जाता है क्योंकि यही संतान सुख के बारे में जानकारी प्रदान करती है। पति और पत्नी दोनों की ही कुंडली में इन सभी बातों का अवलोकन किया जाना अनिवार्य है। पंचम भाव के अतिरिक्त प्रथम संतान पंचम भाव से, द्वितीय संतान के लिए उससे तीसरा भाव अर्थात सप्तम भाव, तीसरी संतान के लिए नवम भाव और इसी प्रकार आगे की संतान का विचार किया जा सकता है।
हम आपको यही सलाह देते हैं कि आपको किसी विद्वान ज्योतिषी से अपनी जन्म पत्रिका का अवलोकन करवाना चाहिए क्योंकि वही बता सकते हैं कि आपकी कुंडली में किन ग्रहों और किन कारणों से या किन पाप कर्मों के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आ रही है और बाधा कारक ग्रहों का जाप, दान, हवन, पूजन, आदि शुभ कृत्यों द्वारा संतान प्राप्ति का प्रयास किया जा सकता है। आप सभी जानते हैं कि महाराज दशरथ ने पुत्र कामेष्टि यज्ञ संपन्न कराया था जिसके परिणामस्वरूप ही उन्हें श्री राम,
लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न जैसे चार सुकुमार पुत्रों का पिता बनने का सुख मिला था। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार
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