वैदिक ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली के छठे भाव को रोग का भाव माना गया है एवं इसके अधिपति ग्रह जिसे 'षष्ठेश' कहा जाता है, रोग का अधिपति ग्रह माना गया है। यदि किसी जातक पर 'षष्ठेश' की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो वह व्यक्ति निश्चित ही षष्टेश से सम्बंधित रोग से पीड़ित होगा। जन्मपत्रिका में 'षष्ठेश' रोग का पक्का कारक होता है। अत: यदि कोई जातक जन्मपत्रिका के अनुसार 'षष्ठेश' की महादशा या अंतर्दशा भोग रहा है तो वह अवश्य ही रोग से पीड़ित हो जाएगा। यदि 'षष्ठेश' जन्मपत्रिका के किसी शुभ या लाभ भाव में स्थित हो तो ऐसे में रोगग्रस्त होने की संभावना और भी अधिक बढ़ जाती है। ऐसा जातक शीघ्र रोग से मुक्त भी नहीं हो पाता। आज हम लग्न के अनुसार जन्मपत्रिका के षष्ठ भाव और उसके स्वामी 'षष्ठेश कौन होते हैं यह जानेंगे। आप अपनी जन्मकुंडली में यह स्वयं भी देख सकते हैं कि आपका लग्न कौन सा है, और लग्न के अनुसार आपका षष्ठ भाव कौन सा है और षष्ठ भाव का स्वामी अर्थात षष्ठेश कौन है। यदि आप इस जानकारी को वीडियो के माध्यम से प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे यूट्यूब चैनल वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका स्वागत है। साथ ही वैदिक ज्योतिष शास्त्र एवं सनातन धर्म की अनेकों जानकारियां प्राप्त करने के लिए वैदिक ऐस्ट्रो केयर यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबा कर ऑल सेलेक्ट करना ना भूले।
अब जानते है मेष से मीन राशि पर्यंत लग्न के अनुसार 'षष्ठेश' कौन से ग्रह होते हैं जिनकी महादशा, अंतर्दशा व प्रत्यंतर दशा में व्यक्ति को स्वास्थ्य के प्रति अत्यंत सावधान रहना चाहिए। षष्ठेश को ही मारकेश ग्रह भी कहते हैं। जन्मकुंडली का प्रथम भाव लग्न कहलाता है। इस भाव में एक से लेकर बारह तक की जो भी संख्या लिखी हो, उसी संख्या वाली राशि लग्न कहलाती है। जैसे संख्या एक लिखी हो तो मेष लग्न होगा। दो लिखा हो तो वृष, तीन लिखा हो तो मिथुन, चार लिखा हो तो कर्क, पांच लिखा हो तो सिंह, छः लिखा हो तो कन्या , सात लिखा हो तो तुला लग्न, आठ लिखा हो तो वृश्चिक, नौ लिखा हो तो धनु लग्न, दस लिखा हो तो मकर, ग्यारह लिखा हो तो कुम्भ, और बारह लिखा हो तो मीन लग्न होता है। प्रत्येक जातक की जन्म कुंडली में जन्म लग्न से तृतीय और अष्टम स्थान आयु का भाव माना जाता है, तथा द्वितीय व सप्तम स्थान को मारक स्थान कहा जाता है।कभी कभी षष्ठेश व्ययेश एवं अष्टमेश की दशा अन्तर्दशा भी मारक हो जाती है। परस्पर षष्ठेश एवं अष्टमेश की दशा अन्तर्दशाएं तथा मारक की अन्तर्द्शा शुभ नहीं होती है। अतः पापग्रहों की दशायें भी अनिष्टकारक हो जाती हैं। अतः अपने लग्न के अनुसार समझें कि कौन सा ग्रह मारकेश होता है और कौन सा ग्रह षष्ठेश होता है।
यदि मेष लग्न की कुंडली है तो शुक्र व मंगल 'मारकेश' ग्रह होंगे और बुध ग्रह 'षष्ठेश' होगा। वृषभ लग्न के जातकों के लिए बुध व मंगल 'मारकेश' एवं शुक्र ग्रह 'षष्ठेश' होता है। मिथुन लग्न के जातकों के लिए चंद्र व गुरु 'मारकेश' एवं मंगल ग्रह 'षष्ठेश' होता है। कर्क लग्न के जातकों के लिए सूर्य व शनि 'मारकेश' एवं गुरु 'षष्ठेश' होता है। यदि सिंह लग्न हो तो जातकों के लिए बुध व शनि 'मारकेश' एवं शनि 'षष्ठेश' होता है। कन्या लग्न के जातकों के लिए शुक्र व गुरु 'मारकेश' एवं शनि 'षष्ठेश' होता है।यदि तुला लग्न हो तो ऐसे जातकों के लिए मंगल 'मारकेश' एवं गुरु 'षष्ठेश' होता है। वृश्चिक लग्न के जातकों के लिए गुरु व शुक्र 'मारकेश' एवं मंगल 'षष्ठेश' होता है। यदि जातक का धनु लग्न हो तो शनि व बुध 'मारकेश' एवं शुक्र 'षष्ठेश' होता है। मकर लग्न के जातकों के लिए शनि व चंद्र 'मारकेश' एवं बुध 'षष्ठेश' होता है। यदि कुंभ लग्न हो तो गुरु व सूर्य 'मारकेश' एवं चंद्र 'षष्ठेश' होता है। और मीन लग्न के जातकों के लिए मंगल व बुध 'मारकेश' एवं सूर्य 'षष्ठेश' होता है। अक्सर देखा जाता है कि जातक को रोग भी षष्ठेश ग्रह से सम्बंधित ही लगता है। अतः इस विषय पर आगामी वीडियो में चर्चा करेंगे। अपनी जन्म कुंडली का सशुल्क विश्लेषण करवा कर ग्रह योगों की जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।
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