रविवार, 27 मार्च 2022

अथार्गलास्तोत्रम्

अथार्गलास्तोत्रम् 
ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः , श्रीमहालक्ष्मीर्देवता , श्रीजगदम्बाप्रीतये सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥ 
ॐ नमश्चण्डिकायै ॥ 
मार्कण्डेय उवाच 
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी । 
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥ १ ॥
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि । 
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ २ ॥ मधुकैटभविद्रावि विधातृवरदे नमः । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ३ ॥
महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ४ ॥ रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ५ ॥ 
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ६ ॥
वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ७ ॥ अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ८ ॥ 
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ९ ॥ स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां, चण्डिके व्याधिनाशिनि । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १० ॥ 
चण्डिके सततं ये त्वा मर्चयन्तीह भक्तितः । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ११ ॥ 
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १२ ॥
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १३ ॥ 
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम् । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १४ ॥ 
सुरासुर शिरोरत्न निघृष्टचरणेऽम्बिके । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १५ ॥ विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १६ ॥ प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १७ ॥ 
चतुर्भुजे चतुर्वक्त्र संस्तुते परमेश्वरि । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १८ ॥
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १ ९ ॥ हिमाचलसुतानाथ संस्तुते परमेश्वरि । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २० ॥ 
इन्द्राणीपतिसद्भाव पूजिते परमेश्वरि । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २१ ॥ 
देवी प्रचण्डदोर्दण्ड दैत्यदर्पविनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २२ ॥  
देवी भक्तजनोद्दाम दत्तानन्दोदयेऽम्बिके । 
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २३ ॥ 
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् । 
तारिणीं दुर्गसंसार सागरस्य कुलोद्भवाम् ॥ २४ ॥ 
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः । 
स तु सप्तशतीसंख्या वरमाप्नोति सम्पदाम् ॥ ॐ ॥ २५ ॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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