भक्तराज हनुमान जी को एक ऐसे देवता के रूप में जाना जाता है, जो भक्तों के सभी दुखों को हर कर उन्हें सभी प्रकार के भय और डर से मुक्त करते हैं। सामान्य रूप से प्रत्येक सनातनी व्यक्ति उपस्थित भय से मुक्ति पाने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करता है। और हनुमान चालीसा लगभग सभी को याद भी होती है। क्योंकि हनुमान चालीसा का महत्व को सभी लोग भलीभांति जानते हैं। आज हम हनुमानजी की कृपा प्राप्त करने के एक ऐसे साधन के बारे में बात करेंगे, जिसे जानते तो लगभग सभी हैं, किन्तु प्रयोग बहुत कम लोग करते हैं, वह है बजरंग बाण। बजरंग बाण की पाठ विधि क्या है? कब करना चाहिए? किसे करना चाहिए? इसे सिद्ध कैसे किया जाता है? बजरंग बाण पाठ के लाभ क्या हैं? आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बजरंग बाण से जुड़े सभी महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।यदि आप इस जानकारी को वीडियो के माध्यम से प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे यूट्यूब चैनल वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका स्वागत है। साथ ही वैदिक ज्योतिष शास्त्र एवं सनातन धर्म की अनेकों जानकारियां प्राप्त करने के लिए वैदिक ऐस्ट्रो केयर यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबा कर ऑल सेलेक्ट करना ना भूले।
बजरंग बाण को हनुमान जी की आराधना कर उनका आशीर्वाद पाने का सबसे अचूक उपाय माना जाता है। बजरंग बली प्रभु श्री राम के परम् भक्त हैं, इसलिए बजरंग बाण में मुख्य रूप से भगवान् राम की सौगंध दी गयी है। अतः भगवान राम की भक्ति करते हुए जब बजरंग बाण के पाठ के माध्यम से हनुमानजी को राम जी की सौगंध दी जाती है तो वह व्यक्ति के सभी कार्यों को अवश्य ही पूरा कर देते हैं, बजरंग बाण की इन पंक्तियों के अनुसार-
भूत प्रेत पिशाच निसाचर।अग्नि बेताल काल मारी मर।
इन्हें मारु,तोहिं सपथ राम की।राखु नाथ मर्याद नाम की।
जनक सुता हरि दास कहावौ।ताकी सपथ विलम्ब न लावौ।
उठु उठु चलु तोहिं राम दोहाई।पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
किंतु साधक को यह विशेष रूप से ध्यान रखना है कि किसी भी रूप में, किसी अमंगल कार्य के लिए बजरंग बाण का पाठ ना करें, अन्यथा इसके दुष्परिणाम के भागी स्वयं होंगे।
यदि पाठ विधि की बात करें तो सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान ध्यान से निवृत होकर, लाल रंग के वस्त्र धारण कर, किसी शुद्ध स्थान पर लकड़ी की चौकी पर पञ्चाङ्ग वेदी बनाकर, भगवान श्री राम जी के दरबार का एक चित्र लगाकर, हनुमान जी की एक मूर्ति स्थापित करें। फिर स्वयं कुशा से बने आसन पर बैठकर सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा करें। फिर भगवान श्री राम और सीता जी का ध्यान करते हुए उनका पूजन करें। ततपश्चात हनुमान जी का ध्यान करते हुए उनकी शक्तियों का स्मरण करते हुए, हनुमानजी की विधिवत षोडशोपचार या पंचोपचार पूजन कर बजरंग बाण के पाठ का संकल्प लें। यहां ध्यान रखें कि जितने भी पाठ करने हों, उतने पाठ का ही संकल्प लें। फिर एकाग्रचित्त होकर पाठ करें। पाठ करते समय शब्दों के उच्चारण की शुद्धता का विशेष रूप से ध्यान रखें। पाठ के उपरांत भगवान् श्री राम जी का कीर्तन करें और अंत में हनुमान चालीसा का पाठ कर आरती करें। बूंदी और फलों का भोग लगाएं, सभी को प्रसाद वितरित करने के बाद स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।
पृथक पृथक कार्यों के लिए बजरंग बाण के पाठ की विधि में कुछ सामान्य से परिवर्तन किए जाते हैं। किसी भी कामना की पूर्ति के लिए 41 दिन तक, पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए, बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए।
◆ यदि विवाहित जीवन में कोई समस्या आ रही है, तो केले के पौधे के नीचे हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित कर, उसके सामने बैठकर बजरंग बाण का पाठ करने से शीघ्र लाभ मिलता है।
◆ यदि जन्मकुंडली में किसी प्रकार के ग्रह दोष उपस्थित हैं तो नियमित रूप से सूर्योदय से पूर्व उठकर, हनुमानजी के सामने घी का दीपक जलाकर, बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए। इससे ग्रहजनित दोष दूर होते हैं।
◆ किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी से मुक्ति पाने के लिए प्रतिदिन राहुकाल में हनुमान जी को 21 पान के पत्तों की माला चढ़ाकर, बजरंग बाण के 21 पाठ करें। इस प्रयोग से अवश्य लाभ मिलता है।
◆ यदि आप कार्यक्षेत्र में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना कर रहे हैं, तो आपको मंगलवार के दिन विशेष रूप से व्रत रखकर हनुमान जी की पूजा अर्चना करने के बाद बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए। इस दिन हनुमान जी को एक नारियल अवश्य चढ़ाएं। कार्यक्षेत्र में उन्नति होगी।
◆ वास्तुदोष के कारण जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अतः वास्तुदोष शांति करवाकर घर में पंचमुखी हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करके प्रतिदिन सुबह शाम बजरंग बाण का पाठ करें। इससे वास्तुदोष दूर हो जाते हैं।
◆ यदि जन्मकुंडली में मांगलिक दोष के कारण कार्य ना बन रहे हों तो प्रत्येक मंगलवार को संकल्प लेकर बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए, इससे मांगलिक दोष का निवारण हो जाता है। साथ ही राहु और केतु की महादशा होने पर भी बजरंग बाण का पाठ लाभप्रद होता है।
यह अवश्य ही ध्यान रखें कि किसी को नीचा दिखाने की कामना या किसी को हानि पंहुचाने की कामना को लेकर, कभी भी बजरंग बाण का पाठ ना करें।
एवं साथ ही किसी भी अनैतिक कार्य को सिद्ध करने या विवाद की स्थिति में विजय पाने के लिए इसका पाठ ना करें। हालांकि बजरंग बाण विशेष प्रभावी और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होता है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि किसी भी निरर्थक कार्य के लिए बजरंग बाण का पाठ कर लाभ प्राप्त किया जाए। यदि भक्ति भाव से नियमित रूप से इसका पाठ सच्ची श्रद्धा के साथ किया जाए तो यह एक ऐसा कल्पवृक्ष है जो स्वयं ही सभी आवश्यकताओं को पूर्ण कर देता है। बस आवश्यकता होती है इसे सिद्ध करने की। बजरंग बाण को सिद्ध करने के लिए मंगलवार की मध्यरात्रि को सबसे पहले पूर्व दिशा में एक चौकी स्थापित कर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछा दें और एक भोजपत्र पर लालचन्दन या अष्टगंध से हनुमान यंत्र बनाकर, “ऊं हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्” मंत्र लिख कर, प्रतिष्ठित कर चौकी पर रख दें। इसके बाद चौकी के दायीं तरफ घी का दिया जला कर रख दें और कुशा के आसन पर बैठकर, लालरंग के वस्त्र धारण कर, बजरंग बाण के ग्यारह बार पाठ करें। इसके बाद कागज पर लिखे मंत्र को उठाकर घर में बने मंदिर में रख दें और प्रतिदिन उसकी पूजा करें। इस प्रयोग को 41 मंगलवार करने पर यह सिद्ध हो जाता है।
" दोहा "
"निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।"
"तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥"
"चौपाई"
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महासुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु महि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाई लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा।।
बाग़ उजारि सिन्धु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा।।
अक्षयकुमार को मारि संहारा। लूम लपेट लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर में भई।।
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होय दुख हरहु निपाता।।
जै गिरिधर जै जै सुखसागर। सुर समूह समरथ भटनागर।।
ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहिंं मारु बज्र की कीले।।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो।।
ऊँकार हुंकार प्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा।।
सत्य होहु हरि शपथ पाय के। रामदूत धरु मारु जाय के।।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत हौं दास तुम्हारा।।
वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पांय परों कर ज़ोरि मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
जय अंजनिकुमार बलवन्ता। शंकरसुवन वीर हनुमन्ता।।
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बेताल काल मारी मर।।
इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की।।
जनकसुता हरिदास कहावौ। ताकी शपथ विलम्ब न लावो।।
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा।।
चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं।।
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई। पांय परों कर ज़ोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपत चलंता। ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।।
ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल। ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो।।
यह बजरंग बाण जेहि मारै। ताहि कहो फिर कौन उबारै।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
यह बजरंग बाण जो जापै। ताते भूत प्रेत सब काँपै।।
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहै कलेशा।।
"दोहा"
" प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान। "
" तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान।। "
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