रविवार, 5 फ़रवरी 2023

मृत संजीवनी स्तोत्र

मृत संजीवन कवच भगवान् श्री राम जी के गुरु, वसिष्ठ ऋषि द्वारा रचित, भगवान् शिव की वाणी है। इस स्तोत्र में भगवान् शिव के भिन्न - भिन्न स्वरूपों द्वारा, समस्त दिशाओं से स्वयं की रक्षा करने की विनती है । अपने शरीर के समस्त अंगों के साथ - साथ पुत्र - पत्नी आदि पारिवारिक सदस्यों की रक्षा करने की भी प्रार्थना है । मरणासन्न व्यक्ति को काल के गाल से यह स्तोत्र ही बचा सकता है । 

एवमाराध्य गौरीशं 
देवं मृत्युञ्जयेश्वरम्।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना 
कवचं प्रजपेत् सदा।।१।।

सारात्सारतरं पुण्यं 
गुह्यात्गुह्यतरं शुभम्।
महादेवस्य कवचं 
मृतसञ्जीवनामकम्।।२।।

समाहितमना भूत्वा 
शृणुश्व कवचं शुभम्।
शृत्वैतद्दिव्य कवचं 
रहस्यं कुरु सर्वदा।।३।।

वराभयकरो यज्वा 
सर्वदेवनिषेवित:।
मृत्युञ्जयो महादेव: 
प्राच्यां मां पातु सर्वदा।।४।।

दधान: शक्तिमभयां 
त्रिमुखं षड्भुज: प्रभु:।
सदाशिवोऽग्निरूपी 
मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा।।५।।

अष्टादशभुजोपेतो 
दण्डाभयकरो विभु:।
यमरूपी महादेवो 
दक्षिणस्यां सदावतु।।६।।

खड्गाभयकरो धीरो 
रक्षोगणनिषेवित:।
रक्षोरूपी महेशो मां 
नैऋत्यां सर्वदावतु।।७।।

पाशाभयभुज: सर्व
रत्नाकरनिषेवित:।
वरूणात्मा महादेव: 
पश्चिमे मां सदावतु।।८।।

गदाभयकर: प्राण
नायक: सर्वदागति:।
वायव्यां वारुतात्मा मां 
शङ्कर: पातु सर्वदा।।९।।

शङ्खाभयकरस्थो मां 
नायक: परमेश्वर:।
सर्वात्मान्तरदिग्भागे 
पातु मां शङ्कर: प्रभु:।।१०।।

शूलाभयकर: सर्व
विद्यानामाधिनायक:।
ईशानात्मा तथैशान्यां 
पातु मां परमेश्वर:।।११।।

ऊर्ध्वभागे ब्रह्मरूपी 
विश्वात्माऽथ: सदावतु।
शिरो मे शङ्कर: पातु 
ललाटं चन्द्रशेखर:।।१२।।

भ्रूमध्ये सर्वलोकेश
स्त्रिनेत्रो लोचनेऽवतु।।
भ्रूयुग्मं गिरिश: पातु 
कर्णौ पातु महेश्वर:।।१३।।

नासिकां मे महादेव 
ओष्ठौ पातु वृषध्वज:।
जिव्हां मे दक्षिणामूर्ति
र्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु।।१४।।

मृत्युञ्जयो मुखं पातु 
कण्ठं मे नागभूषण:।
पिनाकि मत्करौ पातु 
त्रिशूलि हृदयं मम।।१५।।

पञ्चवक्त्र: स्तनौ पातु 
उदरं जगदीश्वर:।
नाभिं पातु विरूपाक्ष: 
पार्श्वो मे पार्वतिपति:।।१६।।

कटिद्वयं गिरिशौ मे 
पृष्ठं मे प्रमथाधिप:।
गुह्यं महेश्वर: पातु 
ममोरु पातु भैरव:।।१७।।

जानुनी मे जगद्धर्ता 
जङ्घे मे जगदंबिका।
पादौ मे सततं पातु 
लोकवन्द्य: सदाशिव:।।१८।।

गिरिश: पातु मे भार्या 
भव: पातु सुतान्मम।
मृत्युञ्जयो ममायुष्यं 
चित्तं मे गणनायक:।।१९।।

सर्वाङ्गं मे सदा पातु 
कालकाल: सदाशिव:।
एतत्ते कवचं पुण्यं 
देवतानांच दुर्लभम्।।२०।।

मृतसञ्जीवनं नाम्ना 
महादेवेन कीर्तितम्।
सहस्त्रावर्तनं चास्य 
पुरश्चरणमीरितम्।।२१।।

य: पठेच्छृणुयानित्यं 
श्रावयेत्सु समाहित:।
सकालमृत्यु निर्जित्य 
सदायुष्यं समश्नुते।।२२।।

हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा 
मृतं सञ्जीवयत्यसौ।
आधयोव्याधयस्तस्य 
न भवन्ति कदाचन।।२३।।

कालमृत्युमपि प्राप्त
मसौ जयति सर्वदा।
अणिमादिगुणैश्वर्यं 
लभते मानवोत्तम:।।२४।।

युद्धारम्भे पठित्वेदम्
अष्टाविंशतिवारकम।
युद्धमध्ये स्थित: शत्रु: 
सद्य: सर्वैर्न दृश्यते।।२५।।

न ब्रह्मादिनी चास्त्राणि 
क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै।
विजयं लभते देव
युद्धमध्येऽपि सर्वदा।।२६।।

प्रातरूत्थाय सततं 
य: पठेत्कवचं शुभम्।
अक्षय्यं लभते सौख्यम्
इहलोके परत्र च।।२७।।

सर्वव्याधिविनिर्मुक्त: 
सर्वरोगविवर्जित:।
अजरामरणो भूत्वा 
सदा षोडशवार्षिक:।।२८।।

विचरत्यखिलान् लोकान् 
प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान्।
तस्मादिदं महागोप्यं 
कवचं समुदाहृतम्।।२९।।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना 
दैवतैरपि दुर्लभम्।।30।।

इति वसिष्ठकृतं मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्।।

जो व्यकि इस दिव्य स्तोत्र का पाठ स्वयं करता है या फिर इस कवच को सुनता या सुनाता है , उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती । इस कवच की एक हजार आवृत्ति पाठ को पुरश्चरण कहा गया है, अतः जो साधक इसका एक हज़ार बार पाठ कर लेता है , या ब्राह्मणों द्वारा करवाता है, उसके लिये यह कवच सिद्ध हो जाता है। नित्य भगवान् शिव का पूजन करके प्रातःकाल इसका पाठ सभी कामनाओं को पूरा कर देता है । यदि आपने स्तोत्र पूरा सुन लिया है तो कृपया कमेंट में हर हर महादेव लिखना ना भूलें। एवं साथ ही यदि स्तोत्र अच्छा लगा हो तो नीचे रेड बटन दबाकर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
https://youtu.be/d8f0rC7eSfI

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें