शनिवार, 5 सितंबर 2020

अनंत चतुर्दशी

नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। हमारा भारत देश व्रतों और त्योहारों का देश है। यहां प्रतिदिन कोई न कोई व्रत अथवा त्योहार किसी न किसी रूप में अवश्य मनाया ही जाता है। प्रत्येक व्रत और त्योहार का धार्मिक एवं लौकिक दृष्टि से अपना अलग अलग महत्व है। व्रत त्योहारों की इसी श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण नाम है अनंत चतुर्दशी व्रत का।
अतः आज हम अनंत चतुर्दशी व्रत के बारे में महत्वपूर्ण चर्चा करेंगे। आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। आगे बढ़ने से पूर्व वीडियो को लाइक करना न भूलें।
अनंत चतुर्दशी व्रत का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है, इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है। भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनंत भगवान अर्थात भगवान विष्णु के विराट स्वरूप की पूजा की जाती है। एवं अनंत भगवान का विधिवत पूजन करने के उपरांत अपनी दाहिनी भुजा पर अनंत सूत्र बांधा जाता है। यह अनंत सूत्र कपास या रेशम के शुद्ध धागे से निर्मित होते हैं और इस अनंत सूत्र में चौदह गाँठें होती हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है इसलिए इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है। भारत के कई राज्यों में यह पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान कई जगहों पर धार्मिक झांकियॉं भी निकाली जाती है।
यह व्रत भाद्रपद मासमें शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त तक व्याप्त होनी आवश्यक है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के बाद दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान है। इस व्रत की पूजा और मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।
अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करने का विधान है। यह पूजा दोपहर के समय की जाती है। आइये इस व्रत की पूजन विधि पर भी प्रसङ्गवश चर्चा करते हैं 

सूर्योदय से पूर्व जगकर इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि नित्यकर्म करने के बाद सर्वप्रथम भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करें। साथ ही आचमन आदि के उपरांत व्रत का संकल्प लें और पूजा स्थल पर एक चौकी में पीले रंग का सूती वस्त्र बिछाकर उस पर रोली या चावल से अष्टदल निर्मित कर विधिवत कलश स्थापना करें।

कलश के ऊपर रखे पूर्णपात्र पर अनंत भगवान की स्थापना करें। आप सुपारी या फिर नारियल गोले को पीले वस्त्र पर लपेटकर भी स्थापित कर सकते हैं। या आप चाहें तो भगवान विष्णु की कोई मूर्ति या चित्र भी लगा सकते हैं।

इसके बाद सूती कलावे के एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र तैयार करें, इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए। इसे भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखें।

अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से विधिवत पूजा करें और  साथ ही इस मंत्र का एक माला अर्थात एक सौ आठ बार जप करें।

अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

पूजन के उपरांत अनंत सूत्र को पुरुष वर्ग अपनी दाहिनी भुजा में एवं महिलाएं बाईं भुजा में बांध लें। इसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और फिर सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई थी। यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता है। अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः,मह जन, तप, सत्य, की रचना की थी। इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है। भारत के कई राज्यों में इस व्रत का प्रचलन है। इस दिन भगवान विष्णु की कथाओं का श्रवण अवश्य करना चाहिए। आइए हम सब भी अनंत चतुर्दशी व्रत की कथा श्रवण करें।

महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित पंचम वेद कहे जाने वाले महाभारत की एक कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था। इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा। इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए। एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे। भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं। युधिष्ठिर की बात सुनकर भगवान ने कहा आप सभी भाई द्रोपदी सहित भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें।

इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं? इनके बारे में हमें बताएं। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन: उन्हें हस्तिनापुर का राज-पाट मिला।

हमारे समस्त सम्मानित श्रोताओं को अनंत चतुर्दशी व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं।

वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है। नमस्कार।

https://youtu.be/9yoPfA3WEbo

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें