संस्कृत में एक बहुत ही प्रचलित सूक्ति है, यस्य बुद्धिर्बलं तस्य निर्बुद्धेस्तु कुतो बलम् ॥ अर्थात : बलवान वही है, जिसके पास बुद्धि-बल है। देखिए, शक्ति दो प्रकार की होती है। शारीरिक शक्ति, और बौद्धिक शक्ति। बलवान लोग भी तब सफल होते हैं जब उनके पास बुद्धि होती है। बुद्धि के बिना बलवान भी असफल हो जाता है। अतः बौद्धिक शक्ति शारीरिक शक्ति से उत्तम है। यदि कोई मनुष्य विशालकाय, बलवान, परंतु बुद्धिहीन हो तो वह सर्वत्र तिरस्कृत ही होता है। वह कभी प्रगति नहीं कर पाता। एक बुद्धिमान व्यक्ति स्वयं को आगे बढ़ाता है और सभी चीजें प्राप्त करता है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रन्थ के अनुसार, कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध में पांडवों ने अपनी बुद्धि के बल पर ही कौरवों को पराजित कर दिया था।
आज भी बौद्धिक शक्ति के महत्व को देखा और समझा जा सकता है। बुद्धि के बल पर ही इस संसार में विज्ञान ने इतनी प्रगति की है। विज्ञान की कई खोजें बुद्धि की शक्ति को प्रदर्शित करती हैं। बुद्धि के बल से विशाल साम्राज्य भी वश में हो जाते हैं। आचार्य चाणक्य का उदाहरण सर्वविदित है। उन्होंने अपनी बुद्धि के बल से ही नन्द के विशाल साम्राज्य को भी नष्ट कर दिया था।
नमस्कार। आपके अपने इस वैदिक एस्ट्रो केयर यूट्यूब चैनल पर मैं आचार्य हिमांशु अपने सभी दर्शकों का एक बार पुनः अभिवादन करते हुए, एक नए महत्वपूर्ण विषय के साथ स्वागत करता हूँ। अक्सर देखने को मिलता है कि जन्म से ही सभी को समान रूप से बुद्धि प्राप्त नहीं होती। हर व्यक्ति की स्मरण शक्ति कहें या समझ, अलग अलग होती है। व्यक्ति बुद्धिमान हो, तो यह परमात्मा की कृपा है। किंतु यदि स्मरण शक्ति क्षीण हो, अथवा समझ की कमी हो तो ऐसे व्यक्ति प्रज्ञावर्धन स्तोत्रमंत्र के द्वारा लाभ अर्जित कर सकते हैं। प्रज्ञावर्धन स्तोत्र पाठ से बुद्धि में सुधार, ज्ञान में वृद्धि तथा परीक्षाओं में उत्तम परिणामों की प्राप्ति होती है। यह प्रज्ञावर्धन स्तोत्र रूद्रयामलतन्त्र में स्वयं कार्त्तिकेय द्वारा कहा गया है। इसका प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में, स्नान आदि नित्यकर्म करने के उपरांत पाठ करना चाहिए। इसके अतिरिक्त यदि कोई बच्चा किसी भी कारणवश बोल नहीं पाता है, या मंदबुद्धि है तो उस बच्चे के मां-पिता को उस बच्चे के नाम से संकल्प लेकर, ब्राह्मणों द्वारा ग्यारह सौ पाठ प्रज्ञा वर्धन स्तोत्र के विधिवत शुभ मुहूर्त में करवाने चाहिए। इस पाठ के प्रभाव से शीघ्र ही लाभ प्राप्त होता है। अतः अवश्य प्रयोग करना चाहिए।
ॐ अस्य श्री प्रज्ञावर्धन स्तोत्रमंत्रस्य सनत्कुमार ऋषि:, स्वामी कार्तिकेयो देवता, अनुष्टुप् छंद:, मम सकल विद्या सिध्यर्थं जपे विनियोग:।।
योगीश्वरो महासेनः कार्त्तिकेयोऽग्निनन्दनः ।
स्कन्दः कुमारः सेनानीः स्वामीशंकरसम्भवम् ॥
गांगेयस्ताम्रचूड़श्च ब्रह्मचारी शिखिध्वजः ।
तारकारिरुमापुत्रः क्रौञ्चारिश्च षडाननः ॥
शब्दब्रह्मसमुद्रश्च सिद्धः सारस्वतो गुहः ।
सनत्कुमारो भगवान् भोगमोक्षफलप्रदः ॥
शरजन्मा गणाधीशः पूर्वजो मुक्तिमार्गकृत् ।
सर्वागमप्रणेता च वाञ्छितार्थप्रदर्शनः ॥
अष्टाविंशतिनामानि मदियानीति यः पठेत् ।
प्रत्यूषे श्रद्धया युक्तो मूकोवाचस्पतिर्भवेत् ॥
महामन्त्रमयानीति मम नामानुकीर्तनम् ।
महाप्रज्ञामवाप्नोति नात्र कार्याः विचारणा ॥
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे स्वामी कार्तिकेय विरचित
प्रज्ञावर्धन स्तोत्रं सम्पूर्णम् !
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