ज्योतिष शास्त्र में राहु ग्रह को मायावी ग्रह कहा जाता है। देखा जाए तो आम जनमानस में सर्वाधिक भय शनि देव के उपरांत राहु ग्रह का ही होता है, और हो भी क्यों न, शनिदेव तो न्यायाधीश हैं मनुष्यों के द्वारा किए गए शुभ अशुभ कर्मों के आधार पर ही फल प्रदान करते हैं, किंतु राहु एक मायावी छाया ग्रह है, जो व्यक्ति की जन्मकुंडली में अशुभ अवस्था में होने पर व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, मानसिक रूप से बहुत ही बुरा प्रभाव प्रदान करता है। राहु ग्रह के प्रभाव एवं उपायों के बारे में विस्तार से जानने के लिए आप यह आर्टिकल पूरा पढ़ें।
किसी भी जातक की जन्मपत्रिका में राहु ग्रह की अशुभ स्थिति के कारण लगभग जीवन का प्रत्येक क्षेत्र प्रभावित होता है। यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जातक की आयु, अथवा जातक का कार्यक्षेत्र क्या है। अर्थात जातक विद्यार्थी है, या आजीविका के लिए कार्यरत। अविवाहित है या विवाहित। राहु के कारण व्यक्ति को जीवन के हर एक क्षेत्र में अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं, जैसे- सर्वप्रथम नौकरी व व्यवसाय, अर्थात आजीविका में बाधा। राहु की अशुभ अवस्था सर्वप्रथम आजीविका को ही प्रभावित करती है। व्यक्ति योग्य होने पर भी आजीविका का निर्वहन नहीं कर पाता, फिर चाहे वह नौकरी में हो या व्यवसाय में। साथ ही अशुभ राहु मानसिक तनाव व अशांति देता है। इसके प्रभाव में व्यक्ति नकारात्मक बहुत सोचता है, और इसी कारण बहुत अशांत रहता है। रात को नींद नहीं आती। या सपने बहुत और पूरी रात लगातार आते हैं। यदि विद्यार्थी है तो बार बार परीक्षा में असफलता प्राप्त होती है। किसी भी कार्य में मन नहीं लगता। एकाग्रता की कमी हो जाती है। व्यक्ति बेबुनियाद ख्यालों में ही उलझे रहता है। बिना आवश्यक कारण के भी धन व्यय होता है और व्यक्ति समझ ही नहीं पाता। आय सीमित हो जाती है। अधिकतर राहु से प्रभावित व्यक्ति बिना सोचे समझे कार्य कर, हानि उठाता है। ऐसे व्यक्ति की नशा आदि अनैतिक कार्य करने वाले दुर्जनों व दुष्टों से मित्रता हो जाती है। वैवाहिक जीवन में भी पति-पत्नी के बीच में तनाव व पुरुषों का नीच स्त्रियों से सम्बन्ध एवं स्त्रियों का अन्य पुरुषों से सम्बन्ध बन जाता है। अशुभ राहु के प्रभाव से व्यक्ति को पेट और आंतों से सम्बंधित रोग हो जाते हैं। जो कार्य आसानी से बन जाने चाहिए उनमें भी रुकावटें आती हैं। अशुभ राहु से प्रभावित अनेक व्यक्तियों को पुलिस व कानूनी परेशानियां तथा न्यायालय से दण्ड भी भोगना पड़ता है। घर परिवार में भौतिक सुखों की कमी हो जाती है। धन, चरित्र, स्वास्थ्य हर प्रकार से हानि ही होती है। राहु के प्रभाव में आकर ही व्यक्ति, वैदिक पूजा पद्धति को छोड़कर, ब्लैक मैजिक, टोना टोटका आदि में अपना समय और धन नष्ट करता है। अधिकतर बनावटी बातों वाले धोखेबाज लोगों को अपना साथी मित्र बनाता है। गुप्त विद्याओं में रूची दिखाकर, चमत्कार की आशा से गलत राह पर चलता है। राहु ग्रह से प्रभावित व्यक्ति अपने जीवन साथी को हमेशा सन्देह की दृष्टि से देखता है, और यही राहु तलाक के योग भी बनाता है। यदि अशुभ राहु की महादशा व्यक्ति के जीवन में प्रारंभ से ही हो तो, छोटी अवस्था में ही जातक वीर्य को समाप्त कर यौन रोगी भी हो जाता है। राहु और सूर्य की युति सूर्यग्रहण योग बनाकर पितृदोष को दर्शाती है। राहु के साथ चन्द्र ग्रह की युति होते से चंद्रग्रहण योग या चिंता योग का निर्माण होता है। मंगल ग्रह के साथ मिलकर राहु अंगारक योग बनाता है।
राहू की अपनी कोई राशी नहीं है वह कुंडली के किसी भी भाव में, जिस ग्रह के साथ भी युति करता है, वहा दो प्रकार से कार्य करता है। पहला- उस ग्रह की सारी शक्ति ही समाप्त कर देता है। दूसरा - उस भाव से सम्बंधित फल प्रदान करने लगता है। राहु अत्यधिक संघर्ष के बाद ही सफलता देता है। यदि राहु ग्रह की महादशा, अंतर्दशा, या गोचर की अवस्था में राहु शांति के लिए सही समय पर वैदिक उपाय कर लिए जाएं तो यह अनेकों शुभ फल भी प्रदान करता है। राहु के शुभ होने पर व्यक्ति को कीर्ति, सम्मान, राज वैभव व बौद्धिक उपलब्धता प्राप्त होती हैं । मिथुन, कन्या, तुला, मकर और मीन राशियाँ राहु की मित्र राशि है तथा कर्क और सिंह शत्रु राशियां है। राहु ग्रह शुक्र के साथ राजस तथा सूर्य एवं चन्द्र के साथ शत्रुता का व्यवहार करता है। बुध, शुक्र, गुरू को राहु न तो अपना मित्र मानता है और नहीं उनसे किसी प्रकार की शत्रुता ही रखता है। जन्मपत्रिका में राहु अपने स्थान से पाँचवे, सातवे, नवे स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता हैं।
जन्मकुंडली के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, सप्तम, नवम, दशम तथा एकादश भाव में राहु की स्थिति शुभ नहीं मानी जाती हैं। धनु राशि का राहु, नीच का कहलाता है और अशुभ फल देता हैं। यदि राहु श्रेष्ट भाव का स्वामी होकर सूर्य के साथ बैठा हो अथवा शुक्र व बुध के साथ बैठा हो तो अशुभ फल ही देता हैं। सिंह राशिस्थ अथवा सूर्य से दृष्ट राहु हमेशा अशुभ होता हैं। यदि किसी भी व्यक्ति की जन्म कुण्डली में राहु की अशुभ स्थिति हो तो राहु कृत पीड़ा के निवारणार्थ राहु-शांति के उपाय अवश्य ही करवाने चाहिए। यदि आपके जीवन में भी बताई गई कम से कम पांच या सात समस्याएं मिलती जुलती हैं तो आप भी अशुभ राहु के प्रभाव में हो सकते हैं। अतः किसी अच्छे वैदिक ज्योतिषी से अपनी जन्म कुंडली का पूर्ण विश्लेषण करवाकर, उपाय अवश्य करें। बिना जन्म कुंडली दिखाए कुछ गिने चुने उपाय जीवन बरबाद कर सकते हैं। क्योंकि हर कुंडली में ग्रह की स्थिती अलग अलग होती है। अक्सर देखा जाता है कि व्यक्ति सस्ते व सरल उपाय के चक्कर में बहुत से ज्योतिषियों को आजमाता रहता है। और जो जैसा बोल दे वैसा चल पड़ता है। हर तरह के उपाय करता है पर इससे स्थिती बनती कम, बिगड़ती अधिक है। ऐसा इसलिए होता है क्योकि अशुभ ग्रह के अधिक से अधिक चार प्रकार के उपाय ही फल देते हैं। जिसमें की मन्त्र जप, औषधि स्नान, दान, और हवन ही मुख्य हैं। ग्रह शान्ति के लिए किए जाने वाले टोने टोटके ग्रह के अशुभ प्रभाव को ही बढाते हैं। बार बार कुंडली दिखाकर अलग अलग प्रकार के उपाय भी नहीं करने चाहिए। यह ठीक वैसे ही है जैसे आप अपने रोग को ठीक करने की दवा लेते हैं। जितनी खुराक हो अगर उतनी लेंगे तो रोग में सुधार होगा। यदि डबल डोज लेंगे तो रोग के साथ और भी समस्याएं होंगी। जब तक व्यक्ति जन्मकुंडली का विश्लेषण नहीं करवाता तब तक उसे ग्रहों की शुभ या अशुभ स्थिति का फल सामान्य रूप से अवश्य मिलता ही रहता है, लेकिन यदि व्यक्ति जन्म कुंडली का विश्लेषण करवाने के उपरांत भी ग्रहों की शांति के उपाय नहीं करवाते हैं तो ग्रहों के अशुभ फलों में वृद्धि भी हो जाती है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुछ स्थितियों में राहु केतु व शनि द्वारा ऐसे दोष भी निर्मित होते हैं जिनमें न तो उपाय लगते हैं न ही पूजा पाठ। इसलिए उपाय हमेशा कुंडली दिखाकर ही किए जाऐं तो आप अपने जीवन में बेहतर लाभ अर्जित कर सकते हैं। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें