शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

पुरुषोत्तमा एकादशी व्रत की सम्पूर्ण जानकारी

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सौर वर्ष और चान्द्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष वैदिक ज्योतिष शास्त्र की पंचांग परम्परा में एक चान्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी मास को मलमास , अधिक मास, या पुरुषोत्तम मास कहते हैं।

पुरुषोत्तम मास इस वर्ष 18 सितम्बर 2020 शुक्रवार से प्रारम्भ होकर 16 अक्टूबर 2020 शुक्रवार को समाप्त होगा। इस मास को मल मास  या मलिन मास के नाम से जाना जाता है, नाम के अनुरूप ही पूर्व में इस मास को अत्यधिक अशुभ माना जाता था, किन्तु भक्त शिरोमणि प्रह्लाद की रक्षा एवं दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध करने के लिए, भगवान नारायण के आवेशावतार भगवान नृसिंह का प्राकट्य इसी मास में हुआ था। तभी से भगवान नृसिंह ने इस मास को अपना नाम देकर कहा है कि अब मैं इस मास का स्वामी हो गया हूं , अतः इस मास को मैं अपना नाम देता हूँ, तभी से इस मास का नाम पुरुषोत्तम मास पड़ गया। पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली, वैष्णव भक्तों के परम प्रिय व्रत एकादशी को पुरुषोत्तमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। अतः आज हम पुरुषोत्तमा एकादशी व्रत के विषय पर चर्चा करेंगे।

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अधिक मास,के शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथियों को पुरुषोत्तमा एकादशी कहा जाता है।जो कि इस वर्ष आश्विन अधिकमास शुक्लपक्ष में 27 सितम्बर 2020 रविवार को है। तथा आश्विन अधिकमास कृष्णपक्ष में  13 अक्टूबर 2020 मंगलवार को है। इस एकादशी को कमला या पद्मिनी एकादशी भी कहते हैं।वैदिक ज्योतिष शास्त्र की पञ्चाङ्ग परम्परा के अनुसार पुरुषोत्तमा एकादशी का व्रत जो महीना अधिक हो जाता है उस पर निर्भर करता है। अतः पुरुषोत्तमा एकादशी का उपवास करने के लिए कोई चन्द्र मास तय नहीं है। 

पुरुषोत्तम मास में जप तप व्रत दान का अपना विशिष्ट महत्व है। क्योंकि शास्त्रों में इस माह में किए गए जप तप व्रत दान आदि का फल,  अनन्त गुणा बताया गया है। सर्वप्रथम तो यह पूरा माह ही स्वयं भगवान के प्रतिरूप में उपस्थित है, तभी तो इस माह को पुरुषोत्तम मास कहते हैं। और साथ में भगवान नारायण के सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का इस माह में होना,भगवद्भक्तों के लिए किसी शुभ अवसर से कम नहीं है। अतः भुक्ति मुक्ति की कामना रखने वाले समस्त सनातनियों को इस दिन नियम पूर्वक व्रत अवश्य धारण करना चाहिए। प्रत्येक एकादशी व्रत के नियमों की तरह ही पुरुषोत्तमा एकादशी के व्रत नियम भी दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाते हैं। व्रती को चाहिए कि वह दशमी तिथि को सन्ध्या समय फल दूध इत्यादि फलाहार ही ग्रहण करे। एकादशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व जगकर, शौच, स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, भगवान नारायण का ध्यान करे। ततपश्चात भगवान सूर्य को तांबे के पात्र में शुद्ध जल भरकर, रोली अक्षत, पुष्प मिलाकर, पूर्वाभिमुख होकर चतुर्विध पुरुषार्थों की प्राप्ति हेतु चार बार अर्घ्य प्रदान करे। फिर अपनी नित्य पूजा के उपरांत पुरुषोत्तमा एकादशी व्रत का संकल्प लें। साथ ही एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर, उस पर रोली या चन्दन से अष्टदल का निर्माण कर, विधिवत कलश स्थापना करें। कलश के ऊपर रखे गए पूर्णपात्र में भगवान विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम भगवान को स्थापित करें। भगवान विष्णु की पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से पूजन करें। पूरे दिन निराहार रहकर व्रत करें, एवं सन्ध्या समय पुनः भगवान का पूजन कर व्रत कथा अवश्य श्रवण करें। आरती उतारने के उपरांत भगवान को भोग लगाएं। इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि में किया जाता है। अतः द्वादशी तिथि में पुनः भगवान का पूजन कर, ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। एवं यथा शक्ति दान दक्षिणा देकर स्वयं भी व्रत का पारण करें।

आइये हम सब भी भाव से पुरुषोत्तमा एकादशी व्रत की कथा को श्रवण करें।

त्रेयायुग में महिष्मती पुरी के राजा थे कृतवीर्य। वे हैहय नामक राजा के वंश थे। कृतवीर्य की एक हजार ​पत्नियां थीं, लेकिन उनमें से किसी से भी कोई संतान न थी। अतः उनके बाद महिष्मती पुरी का शासन संभालने वाला कोई न था। इसको लेकर राजा सदैव चिंतित रहते थे। उन्होंने अनेकों प्रकार के उपाय कर लिए लेकिन कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ। अंत में सन्तान प्राप्ति की कामना से राजा कृतवीर्य ने तपस्या करने का निर्णय लिया। उनके साथ उनकी एक पत्नी पद्मिनी भी वन जाने के लिए तैयार हो गईं। राजा ने अपना पदभार मंत्री को सौंप दिया और योगी का वेश धारण कर अपनी धर्म पत्नी पद्मिनी के साथ गंधमादन पर्वत पर तप करने निकल पड़े।

कहा जाता है कि पद्मिनी और कृतवीर्य ने 10 हजार वर्ष तक तप किया,किन्तु फिर भी उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई। कहते हैं कि जब पुण्य पुंज के प्रताप से भाग्योदय होता है, तो जीवन में सन्मार्ग दिखाने हेतु सन्त का आगमन होता है। महाराज कृतवीर्य एवं रानी पद्मिनी के तप के फल रूप में, उनके मार्गदर्शन हेतु मां अनुसुया ने रानी पद्मिनी को पुरुषोत्तम मास के माहात्म्य के बारे में बताया। 

पद्मिनी! जिस प्रकार किसान सही समय जानकर ही खेत में बीजारोपण करता है, और एक बीज बोने के परिणाम स्वरूप उसे अनेकों फल प्राप्त होते हैं, ठीक उसी प्रकार जप तप व्रत भी यदि शुभ मुहूर्त में विधिविधान पूर्वक किया जाए तो उसका फल अवश्य प्राप्त होता है। पुरुषोत्तम मास में किए जाने वाले व्रत पूजा दान का अनन्त गुणा फल प्राप्त होता है। अतः तुम राजन कृतवीर्य के साथ मिलकर श्रद्धा भाव से पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि, को व्रत करो। इस एक दिन के व्रत के फलस्वरूप आपको अनंत गुणा फल प्राप्त होगा। और इस व्रत फल के प्रभाव से आपको महाप्रतापी पुत्र की प्राप्ति होगी।

महारानी पद्मिनी ने माता अनुसुया को प्रणाम किया, और अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधि विधान पूर्वक व्रत धारण किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। समय आने पर महारानी पद्मिनी के गर्भ से एक दिव्य बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम कार्तवीर्य रखा गया। कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से भी जाना गया। कालान्तर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिसने रावण को भी बंदी बना लिया था। महाराज युधिष्ठिर को पुरुषोत्तमा एकादशी की यह दिव्य कथा सुनाते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, कि युधिष्ठिर, पुरुषोत्तमा एकादशी व्रत को विधिविधान से धारण कर इस कथा का जो भी भक्त ध्यान पूर्वक श्रवण करते हैं, उनकी समस्त लौकिक मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं, और वह भगवद्भक्त अंत में भगवान नारायण के नित्य वैकुंठ में निवास करते हैं।

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Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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