नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। सनातन धर्म में अनेक व्रत त्योहार हैं। त्यौहारों की सृंखला में एक प्रमुख त्योहार मकर सक्रांति है। मकर सक्रांति पर्व को यदि आंग्ल वर्ष की दृष्टि से देखा जाए तो यह वर्ष का प्रथम त्योहार है। और वैदिक ज्योतिष शास्त्र की पञ्चाङ्ग परम्परा की दृष्टि से तो मकर सक्रांति के अनेकों महत्व हैं। आज हम मकर सक्रांति पर्व के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। आप चर्चा में अंत तक बने रहें, और साथ ही कमेंट के माध्यम से अपने विचार भी अवश्य रखें। आगे बढ़ने से पूर्व वीडियो को लाइक कर चैनल को सब्सक्राइब करना न् भूलें। मकर सक्रांति सनातनी हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है। भगवान सूर्य नारायण जब मकर राशि में संचार करते हैं तब मकर सक्रांति पर्व मनाया जाता है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में संचार करना ही संक्रांति कहलाती है। यह पर्व जनवरी माह के चौदहवें या पंद्रहवें दिन ही पड़ता है। इस दिन ग्रहों के राजा कहे जाने वाले जगत की आत्मा के कारक ग्रह भगवान सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
सम्पूर्ण भारत वर्ष में इस पर्व को अनेक नामों से जाना जाता है, जैसे तमिलनाडु में इसे पोंगल उत्सव के रूप में मनाते हैं। जबकि कर्नाटक, केरल और आंध्रप्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर सक्रांति पर्व को कहीं कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह एक भ्रांति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है, किन्तु वास्तव में मकर सक्रांति उत्तरायण से भिन्न है।
अनेकता में एकता भारत देश की यह मुख्य विशेषता है, मकर सक्रांति पर्व को भी देश के अलग अलग भागों में अलग अलग नामों के साथ अलग अलग विधि से मनाया जाता है। विभिन्न प्रांतों में इस त्यौहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं। इस दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के उपरांत घी और कम्बल का दान करने की परम्परा है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि इस श्लोक से स्पष्ठ होता है-
- माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
- स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
- इसके साथ ही इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। विशेष रूप से मकर सक्रांति के दिन गौ माता के सींगो को धोकर जल एक शुद्ध पात्र में लेकर स्नान के जल में मिलाकर स्नान करना चाहिए। फिर श्वेत वस्त्र धारण कर बालेन्दु, अर्थात, द्वितीया के चंद्रमा का गन्धाक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि से पूजन कर ब्राह्मणों को क्षीर एवं घृत मिश्रित खिचड़ी का भोजन करवाना चाहिए। साथ ही वस्त्र मिष्टान्न एवं दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए। ऐसा करने से समस्त प्रकार के रोगों की निवृत्ति और आरोग्यता की प्राप्ति होती है।
- हमारे समस्त सम्मानित दर्शकों सहित समस्त सनातन धर्मावलंबियों को मकर सक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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