शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

असाध्य रोगों से मुक्ति पाने के महाउपाय

नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र की यह विशालता है कि इसके द्वारा मानव जीवन के सभी अस्पष्ट पहलुओं को भी प्रकाशित किया जा सकता है। जन्म पत्रिका के अलग अलग द्वादश भावों को क्रमशः देह द्रव्य पराक्रम सुख सुत शत्रु कलत्र मृति भाग्य राज्यपद लाभ और व्यय कहा जाता है और इन बारह भावों से ही जातकों के जीवन के अनेक विषयों के बारे में विचार किया जाता है।जन्मपत्रिका के द्वादश भावों में एक प्रमुख भाव षष्ठ भाव है। काल पुरुष की कुंडली में यह स्थान कन्या राशि का होता है। षष्ठ भाव को शत्रु भाव कहा जाता है। इस भाव से जातक के जीवन में होने वाले रोगों, एवं ऋण के बारे में प्रमुखता से विचार किया जाता है। आज हम मानव जीवन के सबसे बड़े कष्ट, असाध्य रोगों की निवृत्ति के लिए किए जाने वाले कुछ श्रेष्ठ वैदिक उपायों के बारे में बात करेंगे। आप वीडियो को ध्यान पूर्वक अंत तक अवश्य देखें, एवं साथ ही वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो का नोटिफिकेशन प्राप्त करने हेतु वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। प्रथम सुख निरोगी काया, किसी भी व्यक्ति के पास धन संपत्ति, भूमि, व्यवसाय, परिवार आदि सभी सम्पन्नता हो, और स्वयं का स्वास्थ्य यदि रोगग्रस्त हो तो उसके लिए अन्य सभी सुखों का कोई विशेष महत्व नहीं रह जाता। तभी तो स्वस्थ निरोगी काया को ही प्रथम सुख कहा गया है। रोग ग्रस्त होने के अनेकों कारण हो सकते हैं, जैसे - अनियमित दिनचर्या, अशुद्ध भोजन, धूम्रपान मद्यपान या अत्यधिक भोगवृत्ति, आदि। यह सब दृश्य कारण हैं। किंतु कुछ अदृश्य कारण भी सम्भव हैं। आपने देखा होगा कि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार का नशा आदि नहीं करता, फिर भी रोगग्रस्त हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की जन्मकुंडली का यदि सही विश्लेषण किया जाए तो आप समझेंगे की जब जब कोई पाप ग्रह गोचर काल में जन्मपत्रिका के षष्ठ भाव में उपस्थित होगा, तब तब ऐसा जातक अकारण भी रोग या ऋण से अवश्य पीड़ित होगा। इसे विधि का विधान कहें या संचित कर्म फल, किन्तु जातक की जन्मकुंडली में षष्ठ भाव यदि पाप ग्रहों से युत हो तो जीवन रोग और ऋण से प्रताड़ित ही रहता है। ऐसे में व्यक्ति को चाहिए कि सर्वप्रथम अपनी दिनचर्या को नियमित कर योग ध्यान का आश्रय ग्रहण करें। किन्तु बहुत बार अनेक साधन अपनाने के पश्चात भी यदि रोग है क्या यही समझ में ही नहीं आ रहा हो, या फिर उचित उपचार लेने के उपरांत भी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई रहे, तो कुछ श्रेष्ठ वैदिक उपाय अवश्य ही प्रयोग कर लेने चाहिए। यहां कुछ लोगों को यह भी शंका रहती है कि क्या वास्तव में मन्त्र प्रयोग से स्वास्थ्य समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है?  हम अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर यह बात कह सकते हैं कि केवल स्वास्थ्य समस्या ही नहीं, अपितु मानव जीवन में समुपस्थित कोई भी ऐसी समस्या नहीं है जिसका निवारण मन्त्र शक्ति से न किया जा सके। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस एक अमूल्य निधि है। मानस में ही एक चौपाई के माध्यम से तुलसीदास जी मन्त्र शक्ति का महत्व लिखते हैं - 
मन्त्र महोदधि विषय व्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के।। अर्थात काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर आदि विषयों के सर्प की पकड़ में फंसकर किए गए पापकर्मों के फलस्वरूप यदि विधाता ने आपकी मस्तिष्क रेखा में रोग ऋण हानि दुःख दारिद्र्य आदि लिख भी दिया है तो, मन्त्र जाप से निर्मित महोदधि, अर्थात समुद्र में वह सब मिटा देने का सामर्थ्य है। यहां विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बात यह है कि मन्त्र जाप के द्वारा मन्त्रों का समुद्र निर्मित किया जाए। यह आपने भी अनेक बार देखा होगा कि किसी भी प्रकार से दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति की, या किसी असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति की जीवन रक्षा हेतु महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जाप विधि विधान पूर्वक पूर्ण किया जाता है। यहां जप संख्या का अपना विशेष महत्व है। मन्त्र महोदधि। तभी उपस्थित संकट से मुक्ति सम्भव होती है। कर्मकाण्ड विषय अति विशाल है। अनुभव के आधार पर बहुत से विद्वान एक ही समस्या के अनेक समाधान बता सकते हैं। किंतु असाध्य रोगों की मुक्ति के लिए कुछ समाधान सर्वमान्य हैं। हम उन्ही के बारे में यहां जानकारी देंगे। सर्वप्रथम उपाय महामृत्युंजय मंत्र का सवालाख जाप है। यह अनुष्ठान 7 ब्राह्मणों का वरण कर 11 दिन में पूर्ण होता है। प्रतिदिन पञ्चाङ्ग पूजन के उपरांत मृत्यंजय भगवान शिव का रुद्राष्टाध्यायी पाठ करते हुए, गिलोय के रस द्वारा अभिषेक पूजन किया जाता है। निर्धारित मन्त्र संख्या पूर्ण होने पर, मन्त्र जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, एवं तर्पण का दशांश मार्जन अवश्य करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र के अनेक प्रकार हैं। किंतु समस्त विद्वानों द्वारा एकमत से ग्राह्य मन्त्र इस प्रकार है। ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भुव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ :  स्व: भुव भू: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।
इस दिव्य मन्त्र का सविधि प्रयोग करने से कोई भी असाध्य रोग क्यों न हो वह मृत्यंजय भगवान शिव के कृपा प्रसाद से अवश्य ही दूर हो जाता है। 
द्वितीय प्रयोग है शक्ति की उपासना। किसी भी प्रकार के असाध्य रोगों की निवृत्ति की कामना से यह एक सिद्ध प्रयोग है। इसमें दुर्गा सप्तशती का पाठ रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान्।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥

इस मंत्र से सम्पुटित कर किया जाता है। दुर्गा पाठ के अनेक रूप हैं, जैसे नवचण्डी, शतचण्डी, सहस्र चण्डी, लक्षचण्डी, कोटिचण्डी आदि। पाठ संख्या के अनुसार यज्ञ निर्धारित होता है। असाध्य रोगों की निवृत्ति के लिए शतचण्डी पाठ का विधान प्रचलित है। इसमें मुख्य मन्त्र से सम्पुटित दुर्गा सप्तशती के सौ पाठ किए जाते हैं। अक्षमता की अवस्था में नवचण्डी पाठ भी किया जा सकता है। अर्थात नौ सम्पुटित पाठ करने पर भी अवश्य लाभ प्राप्त होता है। साथ ही रामचरित मानस का सम्पुटित अखण्ड पाठ भी असाध्य रोगों की निवृत्ति में पूर्ण प्रभावी है। भगवान श्री राम एवं हनुमानजी की विधिवत पूजा अर्चना करने के उपरांत रामचरित मानस का पाठ, राम कृपा नाशहि सब रोगा | जो एहि भाँति बनहि संयोगा || इस चौपाई से सम्पुटित कर करना चाहिए। पाठ पूर्ण होने के उपरांत इसी चौपाई से हवन भी करना चाहिए। यह सभी प्रयोग सात्विक वैदिक प्रयोग हैं, यदि आप सात्विक तंत्र प्रयोग करना चाहते हैं तो रोग निवृत्ति हेतु त्रैलोक्य विजयी अपराजिता मन्त्र प्रयोग कर सकते हैं। इसकी सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप हमारे चैनल पर मां दुर्गा मन्त्र अपराजिता स्तोत्र नाम से पूर्व प्रकाशित वीडियो अवश्य देखें। इस संसार में कोई भी समस्या ऐसी नहीं है जिसे दूर करने की क्षमता परमात्मा के पास ना हो। बस आवश्यकता है परमात्मा के प्रति हमारे दृढ़ विश्वास की। ईश्वर के प्रति अपना विश्वास दृढ़ करने के उपरांत यदि आप समस्याओं के निवारणार्थ कोई भी प्रयोग करें, ईश्वर कृपा से आपका मनोरथ सफल अवश्य होगा। जनकल्याणार्थ वीडियो को लाइक कर फॉरवर्ड करना न् भूलें। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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