मन्त्र महोदधि विषय व्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के।। अर्थात काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर आदि विषयों के सर्प की पकड़ में फंसकर किए गए पापकर्मों के फलस्वरूप यदि विधाता ने आपकी मस्तिष्क रेखा में रोग ऋण हानि दुःख दारिद्र्य आदि लिख भी दिया है तो, मन्त्र जाप से निर्मित महोदधि, अर्थात समुद्र में वह सब मिटा देने का सामर्थ्य है। यहां विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बात यह है कि मन्त्र जाप के द्वारा मन्त्रों का समुद्र निर्मित किया जाए। यह आपने भी अनेक बार देखा होगा कि किसी भी प्रकार से दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति की, या किसी असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति की जीवन रक्षा हेतु महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जाप विधि विधान पूर्वक पूर्ण किया जाता है। यहां जप संख्या का अपना विशेष महत्व है। मन्त्र महोदधि। तभी उपस्थित संकट से मुक्ति सम्भव होती है। कर्मकाण्ड विषय अति विशाल है। अनुभव के आधार पर बहुत से विद्वान एक ही समस्या के अनेक समाधान बता सकते हैं। किंतु असाध्य रोगों की मुक्ति के लिए कुछ समाधान सर्वमान्य हैं। हम उन्ही के बारे में यहां जानकारी देंगे। सर्वप्रथम उपाय महामृत्युंजय मंत्र का सवालाख जाप है। यह अनुष्ठान 7 ब्राह्मणों का वरण कर 11 दिन में पूर्ण होता है। प्रतिदिन पञ्चाङ्ग पूजन के उपरांत मृत्यंजय भगवान शिव का रुद्राष्टाध्यायी पाठ करते हुए, गिलोय के रस द्वारा अभिषेक पूजन किया जाता है। निर्धारित मन्त्र संख्या पूर्ण होने पर, मन्त्र जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, एवं तर्पण का दशांश मार्जन अवश्य करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र के अनेक प्रकार हैं। किंतु समस्त विद्वानों द्वारा एकमत से ग्राह्य मन्त्र इस प्रकार है। ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भुव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ : स्व: भुव भू: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।
इस दिव्य मन्त्र का सविधि प्रयोग करने से कोई भी असाध्य रोग क्यों न हो वह मृत्यंजय भगवान शिव के कृपा प्रसाद से अवश्य ही दूर हो जाता है।
द्वितीय प्रयोग है शक्ति की उपासना। किसी भी प्रकार के असाध्य रोगों की निवृत्ति की कामना से यह एक सिद्ध प्रयोग है। इसमें दुर्गा सप्तशती का पाठ रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥
इस मंत्र से सम्पुटित कर किया जाता है। दुर्गा पाठ के अनेक रूप हैं, जैसे नवचण्डी, शतचण्डी, सहस्र चण्डी, लक्षचण्डी, कोटिचण्डी आदि। पाठ संख्या के अनुसार यज्ञ निर्धारित होता है। असाध्य रोगों की निवृत्ति के लिए शतचण्डी पाठ का विधान प्रचलित है। इसमें मुख्य मन्त्र से सम्पुटित दुर्गा सप्तशती के सौ पाठ किए जाते हैं। अक्षमता की अवस्था में नवचण्डी पाठ भी किया जा सकता है। अर्थात नौ सम्पुटित पाठ करने पर भी अवश्य लाभ प्राप्त होता है। साथ ही रामचरित मानस का सम्पुटित अखण्ड पाठ भी असाध्य रोगों की निवृत्ति में पूर्ण प्रभावी है। भगवान श्री राम एवं हनुमानजी की विधिवत पूजा अर्चना करने के उपरांत रामचरित मानस का पाठ, राम कृपा नाशहि सब रोगा | जो एहि भाँति बनहि संयोगा || इस चौपाई से सम्पुटित कर करना चाहिए। पाठ पूर्ण होने के उपरांत इसी चौपाई से हवन भी करना चाहिए। यह सभी प्रयोग सात्विक वैदिक प्रयोग हैं, यदि आप सात्विक तंत्र प्रयोग करना चाहते हैं तो रोग निवृत्ति हेतु त्रैलोक्य विजयी अपराजिता मन्त्र प्रयोग कर सकते हैं। इसकी सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप हमारे चैनल पर मां दुर्गा मन्त्र अपराजिता स्तोत्र नाम से पूर्व प्रकाशित वीडियो अवश्य देखें। इस संसार में कोई भी समस्या ऐसी नहीं है जिसे दूर करने की क्षमता परमात्मा के पास ना हो। बस आवश्यकता है परमात्मा के प्रति हमारे दृढ़ विश्वास की। ईश्वर के प्रति अपना विश्वास दृढ़ करने के उपरांत यदि आप समस्याओं के निवारणार्थ कोई भी प्रयोग करें, ईश्वर कृपा से आपका मनोरथ सफल अवश्य होगा। जनकल्याणार्थ वीडियो को लाइक कर फॉरवर्ड करना न् भूलें। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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