रविवार, 2 मई 2021

नक्षत्र: विवाह और नामकरण में नक्षत्रों का महत्व और जीवन पर प्रभाव

नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र में जितना महत्व सूर्य आदि नौ ग्रहों का है उतना ही महत्व नक्षत्रों का भी है। 
नक्षत्र क्या और कितने प्रकार के होते हैं? उनकी विशेषताएं क्या होती हैं? वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों का इतना महत्व क्यों हैं? और मुहूर्त नामकरण और गुण मिलान में नक्षत्रों की क्या उपादेयता है? आज इन सभी विषयों पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे। सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप वीडियो को पूरा अवश्य देखें, और साथ ही वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें। 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार 27 नक्षत्र दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियां हैं। जिनका विवाह चन्द्रमा के साथ हुआ था। चंद्रमा इन सभी में सबसे अधिक प्रेम रोहिणी से करते थे। ऐसे में कुछ ही समय में चंद्रमा को रानी रोहिणी के साथ समय व्यतीत करना सबसे अधिक अच्छा लगने लगा। रोहिणी नक्षत्र में ही चंद्रमा को उच्च का माना जाता है। इस बात से अप्रसन्न चंद्रमा की अन्य 26 पत्नियों ने अपने पिता दक्ष प्रजापति से चंद्रमा की शिकायत कर दी, जिसके बाद राजा दक्ष ने बार-बार चंद्रमा को समझाया और उनसे अनुरोध किया कि, वह अपनी सभी 27 पत्नियों को समान रूप से प्रेम करें, लेकिन चंद्रमा का प्रेम रानी रोहिणी की ओर ही अधिक रहा। 
जब बहुत बार समझाने पर भी चंद्रमा ने राजा दक्ष की बात नहीं मानी तो क्रोध में आकर दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को श्राप दे दिया। राजा के श्राप से चंद्रमा क्षय रोग से ग्रसित हो गए और उनका तेज क्षीण होने लगा। धीरे-धीरे समय के साथ साथ उनका तेज बिल्कुल ही समाप्त हो गया, जिससे पृथ्वी की गति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा। ऐसी स्थिति में सभी ऋषि-मुनि देवता व्याकुल होकर पितामह ब्रह्मा जी की शरण में गए। देवताओं सहित ब्रह्मा जी ने दक्ष प्रजापति से चन्द्रमा को दिए गए श्राप को वापस लेने के लिए अनुरोध किया गया। 
देवताओं ने राजा को वचन दिया कि, एक बार यदि आप चंद्रमा को दिया गया श्राप वापस ले लेते हैं तो, चंद्रमा अपनी सभी पत्नियों के साथ एक समान समय बिताएंगे और सभी को एक समान प्रेम करेंगे। इस विषय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अलग है। यहाँ यह ध्यान रखें कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह प्रसंग लिया गया है। अतः दक्ष प्रजापति के श्राप से ही चंद्रमा की स्थिति में बदलाव देखने को मिलते हैं। एक माह में दो पक्ष होते हैं, उनमें से शुक्ल पक्ष में चंद्रमा वरदान के प्रभाव से निखरता है तो वहीं, कृष्ण पक्ष में राजा दक्ष के श्राप से चंद्रमा क्षीण होता है। देवताओं के वरदान से चंद्रमा शुक्ल पक्ष में अपने तेज पर होता है और कृष्ण पक्ष में चंद्रमा धूमिल नजर आता है, दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो या पौराणिक किन्तु चंद्रमा 1 महीने की अवधि में सभी 27 नक्षत्रों के माध्यम से अपने चक्र को पूरा करता है, जिससे कभी पूर्णिमा की स्थिति बनती है तो कभी अमावस्या की और इसी दौरान चंद्रमा का आकार बढ़ता और कम होता नजर आता है।

सामान्य भाषा में समझें तो नक्षत्र शब्द दो अक्षरों से मिलकर बन रहा है, पहला नक्शा जिसका अर्थ होता है मानचित्र या मैप, और दूसरा तारा। ऐसे में इन दोनों शब्द को जोड़ने पर बनता है नक्षत्र जिसका भावार्थ है तारों का मानचित्र। आसमान में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं, और वैदिक ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। चंद्रमा अपनी कक्षा पर चलता हुआ पृथ्वी की एक परिक्रमा को लगभग 27 दिन में पूरा करता है। ऐसे में माना जाता है कि चंद्रमा प्रतिदिन लगभग एक नक्षत्र की यात्रा करता है। ज्योतिष शास्त्र में सबसे सटीक और सही भविष्यवाणी करने के लिए नक्षत्रों का ही उपयोग किया जाता है। इन नक्षत्रों को विभिन्न प्रकार के वर्गों के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है जैसे, इनकी मूलभूत विशेषताएँ, इन की प्राथमिक प्रेरणा, धर्म-मोक्ष इत्यादि।

सनातन धर्म में बालक के जन्म के समय ग्रहों की चाल और नक्षत्र की गणना के आधार पर निर्मित जन्मपत्रिका का ही विश्लेषण किया जाता है। क्योंकि प्रत्येक जातक का व्यक्तित्व नक्षत्रों पर ही आधारित होता है क्योंकि आपके पूरे जीवन में नक्षत्रों की चाल आपके जन्म, व्यक्तित्व, आपकी शक्ति और कमज़ोरियों से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्रदान करने की क्षमता रखती हैं।
आपका जन्म नक्षत्र क्या होता है? दरअसल आपके जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में स्थित होता है उसे ही आपका जन्म नक्षत्र माना जाता है।
हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार बताया जाता है कि, ऋषि-मुनियों ने पृथ्वी को प्रभावित करने वाले आकाश को बारह हिस्सों में विभाजित किया है। और इन्हीं 12 हिस्सों को अलग-अलग राशियों के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इसके बाद इसके और सूक्ष्म अध्ययन के लिए इसे 27 अन्य भागों में बांट दिया गया, जिसे हम नक्षत्र कहते हैं। राशि बड़ी होती है और नक्षत्र छोटे, प्रत्येक नक्षत्र को भी चार चरणों में विभाजित किया गया है। अतः एक राशि के अंदर लगभग सवा दो नक्षत्र आते हैं। 
एक व्यक्ति की जन्म कुंडली में विभिन्न ग्रहों को अलग-अलग राशियों में रखा जाता है। इन ग्रहों को विभिन्न नक्षत्रों में भी तदनुसार रखा जाता है। राशि के भीतर नक्षत्र में ग्रह के साथ या उससे जुड़ा एक महत्व माना गया है। इन 27 नक्षत्रों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। 
पहला शुभ नक्षत्र इसे देव-गण भी माना जाता है। इस श्रेणी में आने वाले नक्षत्रों को देव-दूत माना जाता है, और वह भगवान की तरह सूक्ष्म और परिष्कृत होते हैं। 
इसके बाद दूसरी श्रेणी आती है मनुष्य गण की, जिसे मध्यम नक्षत्र माना जाता है। इस श्रेणी में आने वाले नक्षत्र इंसानों की ही तरह माने जाते हैं और इंसानों की ही तरह काम करते हैं। 
अंतिम और तीसरी श्रेणी होती है राक्षस गण, जिन्हें अशुभ नक्षत्र भी माना जाता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक राक्षस तो नहीं होते हैं, लेकिन उनके अंदर कुछ हद तक बुरी और विध्वंसक प्रवृत्ति अवश्य होती है।
पहला नक्षत्र है अश्विनी नक्षत्र जो देव-गण के अंतर्गत आता है। इस नक्षत्र में 3 तारे एक साथ चमकते हुए अश्व के मुंह की तरह प्रतीत होते हैं। अश्विनी नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक सुंदर होते हैं, उन्हें अच्छी तरह से तैयार होना बेहद पसंद होता है, साथ ही स्वभाव में वह शांत होते हैं और आमतौर पर उन्हें आभूषण और दवा/चिकित्सा का शौक होता है। 
दूसरा नक्षत्र है भरिणी नक्षत्र यह मनुष्य-गण के अंतर्गत आता है। भरणी नक्षत्र की आकृति गर्भ की तरह प्रतीत होती है। इस नक्षत्र में भी प्रमुख रूप से तीन सितारे होते हैं। भरणी नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक अपने जीवन के प्रति बेहद उत्साहित होते हैं। इसके अलावा उन्हें उनके जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है और यह कभी भी झूठ नहीं बोलते हैं।
तीसरा नक्षत्र है कृत्तिका नक्षत्र इसका राक्षस-गण होता है। कृत्तिका नक्षत्र एक घोड़े की नाल के आकार में सात सितारों का एक नक्षत्र होता है। कृत्तिका नक्षत्र में पैदा हुए जातक जन्म-जात स्वाभिमानी होते हैं। इसके साथ ही उन्हें जीवन में शक्ति या सत्ता में रहने की हमेशा भूख रहती है। शारीरिक रूप से मजबूत और स्वास्थ्य सदैव उत्तम रहता है। हालाँकि इनके अंदर गुस्सा बेहद होता है। 
चौथा है रोहिणी नक्षत्र। इसका मनुष्य-गण है।
रोहिणी नक्षत्र बैलगाड़ी के आकार में होता है। रोहिणी नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक सुंदर होते हैं। आकर्षक व्यक्तित्व के धनी इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग ईमानदार, सच्चे, बेहद ही उदार स्वभाव के और चरित्रवान होते हैं। 
पांचवा है मृगशिरा नक्षत्र यह देव-गण के अंतर्गत आता है। मृगशिरा नक्षत्र हिरण के चेहरे के आकार में होता है और इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग स्वभाव से अंतर्मुखी होते हैं। यह साधारण जीवन जीने में विश्वास रखते हैं और इन्हें आर्थिक पक्ष के लिहाज से कभी परेशानियां नहीं झेलनी पड़ती हैं। धन इनके पास आराम से आता है, लेकिन आमतौर पर इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग डरपोक होते हैं और हीन भावना से ग्रस्त माने जाते हैं। 
छठा है आर्द्रा नक्षत्र । यह मनुष्य-गण के अंतर्गत है।
आर्द्रा नक्षत्र एक रत्न के आकार में होता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक बेहद ही भावनात्मक होते हैं, लेकिन ईमानदार और भरोसेमंद बिल्कुल भी नहीं होते हैं। इसके अलावा यह हमेशा स्वाभिमानी इनके अंदर गुस्सा बहुत होता है और यह हमेशा आत्म केंद्रित ही नजर आते हैं। 
सातवां है पुनर्वसु नक्षत्र। इसका देव-गण है।
पुनर्वसु नक्षत्र तरकश की तरह प्रतीत होता है। महाभारत वन पर्व के अनुसार पुनर्वसु नक्षत्र में ही भगवान राम का जन्म हुआ था। पुनर्वसु का अर्थ होता है पुनः शुभ। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक स्वभाव से विनम्र और चपल होते हैं। इसके साथ ही वह बेहद ही चतुर और व्यापारिक सौदेबाजी में पक्के होते हैं।
आठवां है पुष्य नक्षत्र यह भी देव-गण के अंतर्गत है।
पुष्य नक्षत्र एक चक्र या पहिये की तरह नजर आता है। इसे सबसे पवित्र सितारा माना गया है और इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक परम सत्य के चाहने वाले होते हैं। साथ ही यह ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होते हैं। यूं तो उनके पास एक संतुलित और शांत दिमाग होता है लेकिन अपने दृष्टिकोण में अक्सर वे डरपोक और सतर्क माने जाते हैं।
आश्लेषा नक्षत्र नौवां नक्षत्र होता है। यह नक्षत्र सुदर्शन चक्र के आकार में होता है। सुदर्शन चक्र जिसे दिव्य चक्र माना जाता है। आश्लेषा नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक खलनायक की तरह होते हैं और दूसरों को यातना देना इन्हें बेहद पसंद होता है। इसके अलावा स्वभाव से कपटी और स्वार्थी होते हैं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ इनका स्वभाव हंसमुख भी होता है और यह भोजन के प्रेमी होते हैं। 
दसवां है मघा नक्षत्र। जो कि राक्षस-गण के अंतर्गत है।
मघा नक्षत्र में कुल 5 तारे होते हैं। यह नक्षत्र एक घर के तरह दिखाई देता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग स्वाभिमानी होते हैं साथी इन्हें कड़ी मेहनत करने वाला नहीं माना जा सकता  है। हालांकि जीवन में सुख-समृद्धि इनके पास बेहद ही आसानी से आ जाती है और वह जीवन सुख-सुविधाओं और विलासिता से परिपूर्ण होकर जीते हैं। इन्हें खूबसूरत चीजें और फूल बहुत पसंद होते हैं। 
ग्यारहवां है पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र जिसका मनुष्य-गण है।
पूर्वा-फाल्गुनी नक्षत्र झूले की तरह प्रतीत होता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक स्वभाव से परोपकारी होते हैं और इनमें जन्म-जात सहानुभूति की भावना होती है। साथ ही इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग अच्छे व्यवसाई बनते हैं क्योंकि इनकी भाषण देने की शैली बेहद ही शानदार होती है। साथ ही किसी भी काम का परिणाम का इन्हें पूर्वाभास हो जाता है। 
बारहवां है उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र यह मनुष्य-गण के अंतर्गत आता है। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र बिस्तर या चारपाई के पिछले पाये की तरह प्रतीत होता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक स्वाभिमानी होने के साथ-साथ तुनक मिज़ाज के होते हैं। इसके अलावा स्वभाव से यह सच्चे, ईमानदार और बड़े दिलवाले होते हैं। हालांकि इन्हें अ-पर्याप्त भूख की शिकायत रहती है। 
तेरहवां है हस्त नक्षत्र यह देव-गण के अंतर्गत आता है।
हस्त नक्षत्र में कुल पांच सितारे होते हैं जो एक इंसान के हाथ की आकृति बनाते हैं। इस नक्षत्र में चंद्रमा के चलते इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक परोपकारी, कृतग्य और धर्मार्थ स्वभाव के होते हैं। इसके अलावा इस नक्षत्र के तहत जन्मे लोग लालची स्वभाव के भी होते हैं। इन्हें शराब और संगीत का शौक होता है। 
चौदहवां है चित्रा नक्षत्र, जो कि राक्षस-गण में है।
चित्रा नक्षत्र में मोती के आकार में दिखने वाला एक बेहद ही चमकीला सितारा होता है। यह नक्षत्र कन्या और तुला राशि तक फैली हुई है। चित्रा नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग की काया बेहद ही अच्छी होती है। सुडौल फिगर और आकर्षक विशेषताएँ और आँख इनकी प्रमुखता मानी जाती है। 
पन्द्रहवां है स्वाति नक्षत्र जिसका देव-गण है।
स्वाति नक्षत्र में सिर्फ एक सितारा होता है यह तलवार या मूंगा की तरह प्रतीत होता है। स्वाति नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग अपने परिष्कृत, प्रतिष्ठित और शिष्टाचार के लिए जाने जाते हैं। स्वभाव में थोड़े शर्मीले होते हैं और इनका आत्म नियंत्रण बेहद ही शानदार होता है। हालांकि वे जिद्दी स्वभाव के भी हो सकते हैं।
सोलहवां है विशाखा नक्षत्र इसका राक्षस-गण है।
विशाखा नक्षत्र पांच सितारों से मिलकर बना है और यह कुम्हार के चाक की तरह प्रतीत होता है। यह तुला और वृश्चिक राशि तक फैला हुआ है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातकों को हमेशा ईश्वर का भय रहता है साथ ही ये स्वभाव में बेहद ही ईमानदार होते हैं। कभी-कभी आक्रामक, ईर्ष्यालु और कंजूस और तुनक मिज़ाज भी हो सकते हैं।
सत्रहवां है अनुराधा नक्षत्र इसका देव-गण है।
अनुराधा नक्षत्र में कुल 4 सितारे होते हैं जो एक हल की पंक्ति या कमल की तरह प्रतीत होता है। चंद्रमा यहां विभाजन में लेकिन देवघर नक्षत्र में है। ऐसे में अनुराधा नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक शांत स्वभाव के सुंदर और ईश्वर भक्त होते हैं विदेशी भूमि में यह बेहद ही भाग्यशाली साबित होते हैं।
अठारहवाँ है ज्येष्ठा नक्षत्र यह राक्षस-गण के अंतर्गत आता है।
ज्येष्ठा नक्षत्र एक लटकते हुए झुमके या छाते की तरह प्रतीत होता है। इसमें तीन प्रमुख सितारे होते हैं। ज्येष्ठा नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक विपरीतलिंगी के जातकों के लिहाज से बेहद ही आकर्षक साबित होते हैं। साथ ही इन्हें दान-पुण्य इत्यादि करना बेहद पसंद होता है।
उन्नीसवां है मूल नक्षत्र इसका राक्षस-गण है।
मूल नक्षत्र में शेर के आकार के 11 तारे होते हैं। मूल नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक अपने विचारों और ख्यालातों में दृढ़ होते हैं। इसके अलावा स्वभाव से यह बेहद ही चतुर चालाक होते हैं और करीबी रिश्तेदारों से दूरी बना कर रखना इन्हें पसंद होता है।
बीसवां है पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र यह मनुष्य-गण के अंतर्गत आता है।
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में कुल 4 सितारे होते हैं जो हाथी दांत, पंखे या डलिया की तरह दिखाई देते हैं। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक आत्मा स्वाभिमानी होने के साथ-साथ बेहद ही उदार स्वभाव,  दयालु और धर्मार्थ स्वभाव के होते हैं।
इक्कीसवां है उत्तराषाढ़ा नक्षत्र इसका मनुष्य-गण है।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में कुल 3 सितारे होते हैं जो हाथी दाँत या छोटी चारपाई की तरह प्रतीत होते हैं। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातकों का शारीरिक संरचना बेहद ही शानदार होती है। लंबी नाक और शानदार विशेषताएँ इनके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देती हैं। इन्हें अच्छा भोजन, कोमल और दयालु स्वभाव बेहद ही पसंद होता है।
बाइसवां है श्रवण नक्षत्र इसका देव-गण है।
श्रवण नक्षत्र में तीन तारे होते हैं। चंद्रमा इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातकों को अत्यधिक बुद्धि और महान नेक-दिल बनाता है। साथ ही इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातकों का स्वभाव बेहद ही विनम्र और गरिमा पूर्ण होता है। 
तेइसवां है धनिष्ठा नक्षत्र यह भी राक्षस-गण के अंतर्गत आता है। धनिष्ठा नक्षत्र ड्रम के आकार का होता है और इसमें चार तारे होते हैं। धनिष्ठा नक्षत्र में पैदा हुए लोग बेहद ही महत्वाकांक्षी और स्वतंत्र स्वभाव के होते हैं। इसके अलावा इनमें वीरता और साहस कूट-कूट कर भरी होती है।
चौबीसवाँ है शतभिषा नक्षत्र इसका राक्षस-गण है।
शतभिषा नक्षत्र में यूँ तो सौ तारे होते हैं लेकिन देखा केवल एक को ही जा सकता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक गुणी और बेहद ही सच्चे होते हैं और आमतौर पर इन्हें सभी लोग प्यार करते हैं। 
पच्चीसवां है पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र इसका मनुष्य-गण होता है। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र केवल दो सितारों से मिलकर बना है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक खुद को कम आंकते हैं। अक्सर उदास रहने वाले इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक स्वभाव से ईर्ष्यालु और लालची होते हैं।
छब्बीसवाँ है उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र इसका मनुष्य-गण होता है।उत्तराभाद्रपद नक्षत्र दो सितारों से मिलकर बना है और इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातक कला और विज्ञान के शौकीन होते हैं। आमतौर पर यह धर्मार्थ और दयालु स्वभाव के होते हैं।
सत्ताईसवाँ है रेवती नक्षत्र यह देव-गण के अंतर्गत आता है। 32 सितारों से मिलकर बना रेवती नक्षत्र एक ढोल या मछली के जोड़े की तरह प्रतीत होता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए जातकों की शारीरिक संरचना बेहद ही अच्छी होती है और इन्हें मजबूत और आकर्षक शरीर का वरदान प्राप्त होता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग कूटनीतिक रूप से भी चतुर होते हैं साथ ही इनके पास शिष्टाचार, शिक्षा और धन परिपूर्ण रहता है।
किसी भी मुहूर्त का चयन भी नक्षत्रों के आधार पर ही होता है।
मृगशिरा, अनुराधा और रेवती नक्षत्र वित्त, सीखने, समाजीकरण, कामुक सुख, इवेंट बिज़नेस, नए वस्त्र और परिधान पहनने, शादी के उद्देश्य, कलात्मक चीजों, कृषि और यात्राओं के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं।
अश्विनी, पुष्य और हस्त नक्षत्र किसी भी तरह के खेल के लिए अच्छे माने गए हैं इसके अतिरिक्त विलासिता का आनंद लेना, नए उद्योग कार्यालय का उद्घाटन करना, कौशल मजदूर, चिकित्सा उपचार, सामाजिकता, कुछ भी खरीदना या बेचना, किसी भी पूजा या आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए, ऋण देने और प्राप्त करने के लिए या नई यात्राएँ शुरू करने के लिए भी उत्तम माना गया है।
आर्द्रा, आश्लेषा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र युद्ध में सफलता प्राप्त करने के लिए, आत्माओं को बुलाने के लिए, विरह/अलगाव के लिए,  विनाश के कार्य करने और गठबंधन तोड़ने के लिए उपयुक्त हैं।
पुनर्वसु,  स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा और शतभिषा चर नक्षत्र माने गए हैं। ये नक्षत्र छोटी यात्राओं के लिए लाभदायक माने गए हैं इसके साथ ही कन्वेक्शन, बागवानी, किसी यात्रा में जाना या समाजीकरण और कुछ भी ऐसा काम  जो छोटे समय के के लिए हो, इन नक्षत्रों में किया जाना चाहिए।
भरिणी, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा और पूर्वाभाद्रपद ये नक्षत्र बुराईयों के लिए, जैसे किसी को धोखा देने या टकराव के लिए उपयुक्त हैं। ये नक्षत्र लड़ाई, आग लगाने, या विनाश के किसी भी कार्य के लिए दुश्मनों के विनाश के लिए भी उपयोगी हैं। कृत्तिका और विशाखा मिश्रित नक्षत्र हैं और दैनिक मजदूरी और पेशेवर जिम्मेदारियों के लिए अच्छे माने गए हैं।
हिन्दू धर्म में नवजात बालक का नामकरण संस्कार एक प्रमुख संस्कार है। इस संस्कार के अंतर्गत जातक का नाम भी जन्म नक्षत्र के आधार पर ही रखा जाता है। अर्थात जिस नक्षत्र के जिस चरण में बालक का जन्म हुआ है उसी नक्षत्र के नामाक्षर के आधार पर ही बालक का नाम रखा जाता है।
उदाहरण के तौर पर समझें तो मान लीजिये किसी बच्चे का जन्म अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, तो ऐसे में बच्चे का नाम “चू” अक्षर से रखा जायेगा। ऐसे ही दूसरे चरण में हुआ है तो बच्चे का नाम “चे” अक्षर से रखा जायेगा क्योंकि अश्विनी नक्षत्र के चार चरणों के चार अक्षर क्रमशः चू चे चो ला हैं। इसी से आप समझ सकते हैं कि सनातन परंपरा में नाम अक्षर हेतु नक्षत्रों का क्या महत्व है। 
नक्षत्रों से ही पंचक काल का भी निर्माण होता है।
पंचक का अर्थ होता है पांच दिन। प्रत्येक चंद्र माह में, पांच दिनों की एक ऐसी अवधि होती है जब चंद्रमा कुंभ राशि से होकर पांच नक्षत्रों, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्रों के ऊपर से गुजरता है। इस अवधि को पंचक कहा जाता है। किसी भी शुभ समारोह जैसे विवाह आदि को आयोजित करने के लिए इस अवधि को अच्छा नहीं माना जाता है।
प्रत्येक नक्षत्र का अलग अलग स्वभाव होता है और उनके फल भी अलग अलग होते हैं। कुछ नक्षत्र कोमल होते हैं कुछ कठोर और कुछ उग्र होते हैं। उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को ही मूल नक्षत्र या गंडमूल नक्षत्र कहा जाता है। इस प्रकार हमारे पास गण्ड मूल नक्षत्र आश्लेषा मघा, ज्येष्ठा मूल, रेवती और अश्विनी हैं। माना जाता है कि, जब किसी शिशु का जन्म इन नक्षत्रों में होता है तो इससे बालक के स्वास्थ्य की स्थिति, या फिर उसकी माँ की स्थिति या परिवार की स्थिति संवेदनशील हो जाती है। इन नक्षत्रों के सबसे महत्वपूर्ण चरणों की बात करें तो, आश्लेषा नक्षत्र का चौथा चरण, ज्येष्ठा नक्षत्र का चौथा चरण और  रेवती नक्षत्र का चौथा चरण माना गया है। इसके अलावा मघा नक्षत्र का पहला चरण, मूल नक्षत्र का पहला चरण, और अश्विनी नक्षत्र का पहला चरण होता है। ये शिशु के जन्म के समय दोष का कारण बनते हैं, जिसे आमतौर पर गंड – मूल में जन्म कहा जाता है।

इन नक्षत्रों के अंतर्गत जन्म लेने वाले जातकों को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक समस्याओं से जूझना पड़ता है।  क्योंकि मूल नक्षत्र बहुत ही अशुभ फल देने वाले होते हैं। यदि शिशु का जन्म मूल नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है तो ये बच्चे के पिता के लिए हानिकारक सिद्ध होता है, और यदि दूसरे चरण में हुआ है तो ये माँ के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। अगर तीसरे चरण में हुआ है तो, इससे माता-पिता को धन हानि होती है। ऐसी स्थिति में नक्षत्रों के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए ग्रह शांति के लिए पूजा-पाठ इत्यादि अवश्य ही करवानी चाहिए।
इसके साथ ही विवाह हेतु अष्टकूट गुणों के मिलान के लिए वर वधु की जन्मकुंडली के आधार पर नक्षत्रों को देखते हुए ही नाड़ी दोष का विचार किया जाता है। 

एक विवाह को सुखी और संपन्न बनाने के लिए कम-से-कम 18 गुणों का मिलना आवश्यक होता है। यानि इससे 
अधिक गुण मिलें तो यह अच्छा माना जाता है, लेकिन इससे कम को कुंडली मिलान में अच्छा नहीं माना गया है। यदि लड़का और लड़की दोनों के नक्षत्र और गुण अनुकूल होते हैं तो उनका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है, लेकिन वहीं अगर दोनों के नक्षत्र प्रतिकूल होते हैं तो उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय और क्लेश भरा गुजरता है। एक बार नक्षत्र राशि में होने के बाद, गुण मिलान किया जा सकता है। देव गण नक्षत्र दोनों अन्य नक्षत्रों अर्थात मनुष्य और राक्षस गण नक्षत्रों के साथ तालमेल बैठा सकते हैं, हालाँकि मनुष्य और राक्षस गुण नक्षत्र कभी एक साथ तालमेल नहीं बिठा सकते हैं। इसे गण-महादोष कहा जाता है और अमूमन तौर पर मनुष्य गण और राक्षस गण के व्यक्तियों के बीच शादी ना किये जाने की सलाह दी जाती है।

निष्कर्ष 
नक्षत्र प्रतिदिन हमारे मन को प्रभावित करते हैं, क्योंकि चंद्रमा 1 महीने में रोजाना राशि चक्र के एक नक्षत्र से होकर गुजरता है। ऐसे में स्वाभाविक है इसका हमारे जीवन पर प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। हमारी जन्म नक्षत्रों का निश्चित स्वभाव और जन्म के समय उनमें स्थित ग्रह हमारी आत्मा का मार्गदर्शन करते हैं जो हमारे पूरे जीवन काल में हमारे विकास को प्रेरित करती है। अतः नक्षत्रों का सम्पूर्ण रूप से ज्ञान होने पर अनेक प्रकार की शारिरिक, मानसिक, आर्थिक समस्याओं से स्वयं को बचाया जा सकता है। क्योंकि समस्याओं का सही कारण ज्ञान होने पर उनसे बचने के सही उपाय करना भी सम्भव होता है।
वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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