नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। पावन श्रावण मास में जितना महत्व आशुतोष भगवान शिव के परमप्रिय सोमवार का है, उतना ही महत्व माँ गौरी के प्रिय मंगलवार का भी है। सोमवार को जहां भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत पूजन आदि किया जाता है, वहीं श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को मां गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए मंगलागौरी व्रत धारण किया जाता है। आज हम मंगलागौरी व्रत के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। मंगलागौरी व्रत की सम्पूर्ण शास्त्रसम्मत जानकारी के लिए आप वीडियो को पूरा अवश्य देखें, एवं साथ ही वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को व्रत धारण करके मां गौरी का पूजन किया जाता है। अतः इस व्रत को मङ्गलागौरी - व्रत कहते हैं। यह व्रत विवाहके उपरांत प्रत्येक स्त्रीको पाँच वर्षोंतक करना चाहिये। विवाहके बाद प्रथम श्रावणमें पीहरमें तथा अन्य चार वर्षों में पतिगृहमें यह व्रत किया जाता है। इस व्रत के विधान को ध्यान से समझें - प्रात : काल स्नानादि नित्यकर्मोंसे निवृत्त हो नवीन शुद्ध वस्त्र पहनकर रोलीका तिलक कर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख हो पवित्र आसनपर बैठकर अपने देश काल आदि का उच्चारण कर इस प्रकार संकल्प करना चाहिये। ' मम पुत्रपौत्रसौभाग्यवृद्धये श्रीमङ्गलागौरीप्रीत्यर्थं पञ्चवर्षपर्यन्तं मङ्गलागौरीव्रतमहं करिष्ये । ' -ऐसा संकल्प कर एक शुद्ध एवं पवित्र आसन, अथवा चौकी पर भगवती मङ्गलागौरीकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा करनी चाहिये। फिर उनके सम्मुख आटेसे बना एक बड़ा सा सोलह मुखवाला सोलह बत्तियोंसे युक्त दीपक घृतपूरित कर प्रज्वलित करना चाहिये । इसके बाद पवित्रीकरण , स्वस्तिवाचन और गणेशपूजन करे तथा यथाशक्ति यथासम्भव वरुण - कलशस्थापन एवं पूजन , नवग्रहपूजन तथा षोडशमातृकापूजन भी करनेकी विधि है । इसके बाद ' श्रीमङ्गलागौर्यै नमः ' इस नाम - मन्त्रसे मङ्गलागौरीका षोडशोपचारपूजन करना चाहिये । मङ्गलागौरीकी पूजामें सोलह प्रकारके पुष्प , सोलह मालाएँ , सोलह वृक्षके पत्ते , सोलह दूर्वादल , सोलह धतूरके पत्ते , सोलह प्रकारके अनाज तथा सोलह पान , सुपारी , इलायची , जीरा और धनिया भी चढ़ाये । मङ्गलागौरी के ध्यान का मन्त्र इस प्रकार है।कुंकुमागुरुलिप्ताङ्गां सर्वाभरणभूषिताम् ।
नीलकण्ठप्रियां गौरीं वन्देऽहं मङ्गलाह्वयाम् ॥
क्षमा - प्रार्थना तथा प्रणामके अनन्तर मङ्गलागौरीको विशेषार्घ्य प्रदान करना चाहिये । व्रत करनेवाली स्त्री ताँबेके पात्रमें जल , गन्ध , अक्षत , पुष्प , फल , दक्षिणा और नारियल रखकर ताँबेके पात्रको दाहिने हाथमें लेकर इस मन्त्रका उच्चारण कर विशेषार्घ्य दे।
पूजासम्पूर्णतार्थं तु गन्धपुष्पाक्षतैः सह ।
विशेषार्घ्य मया दत्तो मम सौभाग्यहेतवे ॥ '
श्रीमङ्गलागौर्यै नमः ' कहकर अर्घ्य दे और प्रणाम करे । पूजनके अनन्तर बाँसके पात्रमें सौभाग्यद्रव्यके साथ लड्डु , फल , वस्त्रके साथ ब्राह्मणको दान करना चाहिये तथा इन मन्त्रोंको पढ़ना चाहिये।
अन्नकञ्चुकिसंयुक्तं सवस्त्रफलदक्षिणम् ।
वायनं गौरि विप्राय ददामि प्रीतये तव ॥ सौभाग्यारोग्यकामानां सर्वसम्पत्समृद्धये । गौरीगिरीशतुष्टयर्थं वायनं ते ददाम्यहम् ॥
इसके बाद व्रती को अपनी सासजीके चरणस्पर्श कर उन्हें सोलह लड्डुओंका वायन देना चाहिये । फिर सोलह मुखवाले दीपकसे आरती करे । रात्रि - जागरण करे एवं प्रात : काल किसी तालाब या नदीमें गौरीका विसर्जन कर दे ।
इस व्रतकी कथा इस प्रकार है कुण्डिन नगरमें धर्मपाल नामक एक धनी सेठ रहते थे । उसकी पत्नी सती , साध्वी एवं पतिव्रता थी । परंतु उनके कोई पुत्र नहीं था । सब प्रकारके सुखोंसे समृद्ध होते हुए भी वे दम्पति बड़े दुःखी रहा करते थे । उनके यहाँ एक जटा - रुद्राक्षमालाधारी भिक्षुक प्रतिदिन आया करते थे । सेठानीने सोचा कि भिक्षुकको कुछ धन आदि दे दें , सम्भव है इसी पुण्यसे मुझे पुत्र प्राप्त हो जाय । ऐसा विचारकर पतिकी सम्मतिसे सेठानीने भिक्षुककी झोलीमें छिपाकर सोना डाल दिया । परंतु इसका परिणाम उलटा ही हुआ । भिक्षुक अपरिग्रहव्रती थे , उन्होंने अपना व्रत भंग जानकर सेठ - सेठानीको संतानहीनताका शाप दे डाला । फिर बहुत अनुनय - विनय करनेसे उन्हें गौरीकी कृपासे एक अल्पायु पुत्र प्राप्त हुआ । उसे गणेश जी ने सोलहवें वर्षमें सर्पदंशका शाप दे दिया था। परंतु उस बालकका विवाह ऐसी कन्यासे हुआ , जिसकी माताने मङ्गलागौरी - व्रत किया था । उस व्रतके प्रभावसे उत्पन्न कन्या विधवा नहीं हो सकती थी । अतः वह बालक शतायु हो गया । न तो उसे साँप ही डंस सका और न ही यमदूत सोलहवें वर्षमें उसके प्राण ले जा सके । इसलिये यह व्रत प्रत्येक नवविवाहिताको करना चाहिये । काशीमें इस व्रतको विशेष समारोहके साथ किया जाता है । इस व्रत की उद्यापन विधि को भी समझें। चार वर्ष श्रावणमासके सोलह या बीस मंगलवारोंका व्रत करनेके बाद इस व्रतका उद्यापन करना चाहिये ; क्योंकि बिना उद्यापनके व्रत निष्फल होता है । व्रत करते हुए जब पाँचवाँ वर्ष प्राप्त हो तब श्रावणमासके मंगलवारोंमेंसे किसी भी एक मंगलवारको उद्यापन करे । किसी श्रेष्ठ वैदिक आचार्यका वरण कर सर्वतोभद्रमण्डल बनाकर उसमें यथाविधि कलशकी स्थापना करे तथा कलशके ऊपर यथाशक्ति मङ्गलागौरीकी स्वर्णमूर्तिकी स्थापना करे । तदनन्तर गणेशादिस्मरणपूर्वक ' श्रीमङ्गलागौर्यै नमः ' इस नाम - मन्त्रसे गौरीकी यथोपलब्धोपचार पूजा कर सोलह दीपकसे आरती करे । मङ्गलागौरीको सभी सौभाग्यद्रव्योंको अर्पित करना चाहिये । दूसरे दिन आवाहित देवताओं हेतु हवन करवाये और सोलह सपत्नीक ब्राह्मणोंको पायस आदिका भोजन कराकर संतुष्ट करे । उत्तम वस्त्र तथा सौभाग्यपिटारीका दक्षिणाके साथ दान करे । इसी प्रकार अपनी सासजीके चरण - स्पर्शकर उन्हें भी चाँदीके एक बर्तन में सोलह लड्डू , आभूषण , वस्त्र तथा सुहागपिटारी दे । अन्तमें सबको भोजन कराकर स्वयं भी भोजन करे । इस प्रकार व्रतपूर्वक उद्यापन करनेसे वैधव्य दोष दूर होता है। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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