बुधवार, 19 जनवरी 2022

पीपल की पूजा करने से क्‍यों मिट जाता है शनि का प्रकोप?

नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। नवग्रहों में शनिदेव को न्यायाधीश कहा जाता है। व्यक्ति द्वारा किए गए शुभ अशुभ कर्मों का फल, शनिदेव ही प्रदान करते हैं। राजा को रंक और रंक को राजा, शनिदेव अपनी महादशा,  साढ़ेसाती, ढैया में बनाने का सामर्थ्य रखते हैं। तभी तो आमजनमानस शनिदेव से भयभीत ही रहता है। किन्तु यदि शनिदेव की महादशा या ढैया साढ़ेसाती चल रही है, और इसके प्रतिकूल परिणाम आपको मिल रहे हैं तो आज का यह वीडियो आपके लिए ही है। आज हम शनि देव की कृपा प्राप्त करने का सुगम साधन सहज उपाय आपको बताएंगे, जिससे आप अवश्य लाभान्वित होंगे। विषय की पूरी जानकारी के लिए आप वीडियो को पूरा अवश्य देखें, एवं साथ ही आपके अपने इस वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
शनिदेव की कुदृष्टि से बचने का एक श्रेष्ठ उपाय है पीपल वृक्ष का पूजन। यह एक बहुत ही सरल, सुगम, सहज उपाय है। इसके लिए प्रतिदिन प्रातःकाल पीपल वृक्ष की जड़ में एक लोटा जल चढ़ाना है, और साथ में पीपल वृक्ष की परिक्रमा करनी है। शाम के समय सरसों के तेल का एक दीपक पीपल वृक्ष के नीचे जलाकर फिर से हाथ जोड़कर परिक्रमा कर, शनिदेव से प्रार्थना करें। उपाय छोटा है,  किन्तु है बहुत प्रभावशाली। 
जब भी किसी जातक पर शनिदेव की महादशा चल रही होती है तो उसे पीपल की पूजा का उपाय सभी ज्योतिषियों द्वारा अवश्य बताया जाता है। कई बार मन में यह सवाल उठता है कि नवग्रहों में सबसे शक्तिशाली और क्रूर ग्रह शनि का प्रकोप मात्र पीपल वृक्ष की पूजा करने से कैसे शान्‍त हो जाता है। इस विषय पर एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार देवताओं ने असुरराज वृत्तासुर से पराजित होने पर भगवान विष्णु से वृत्तासुर के वध का उपाय पूछा। भगवान ने कहा कि यदि महर्षि दधीचि अपनी अस्थियां प्रदान करें तो उनकी अस्थियों द्वारा वज्र निर्माण कर देवराज इंद्र वज्र के द्वारा वृत्तासुर का वध कर सकते हैं। देवताओं द्वारा याचना करने पर महर्षि दधीचि ने अपने सम्पूर्ण शरीर पर लवण का लेप किया, और कामधेनु के चाटने पर योग बल से दधीचि ने अपने पंचभौतिक देह का त्याग कर दिया। ततपश्चात महर्षि दधीचि की अस्थियों द्वारा निर्मित वज्र से वृत्तासुर का अंत हुआ। 
दधीचि की मृत्यु के समय, उसकी पत्नी प्रातिथेयी गर्भवती थी । अपने पति की मृत्यु का समाचार सुनकर उन्होंने उदरविदारण कर अपना गर्भ बाहर निकाला तथा उसे पीपल वृक्ष के नीचे रखकर, अपनी संसार लीला समाप्त कर दी। देवी प्रातिथेयी के उस गर्भ का रक्षा पीपल वृक्ष ने की। धीरे धीरे वह बालक पीपल के पेड़ के फल खा कर तपस्या करते हुए बड़ा होने लगा।
एक दिन देव ऋषि नारद वहाँ से जा रहे थे । नारद जी को उस बच्चे पर दया आ गयी तो नारद जी ने उस बच्चे को पीपल वृक्ष में ही भगवान विष्णु की पूजा का विधान बताया।
अब वह बालक पीपल वृक्ष में भगवान विष्णु की पूजा करते हुए तपस्या करने लगा। एक दिन भगवान विष्णु ने आकर बालक को दर्शन दिये तथा भगवान ने कहा कि हे बालक मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूँ। आप कोई वरदान मांग लो।
बालक ने विष्णु भगवान से भक्ति और योग का वरदान मांगा। इस वरदान के प्रभाव से वह बालक बहुत बड़ा तपस्वी और योगी हो गया।
एक दिन बालक ने नारद जी से पूछा कि हे प्रभु हमारे परिवार की यह स्तिथि क्यो हुई। मेरे पिता ने असमय ही शरीर छोड़ दिया, मेरी माता जी ने भी मेरा त्याग कर दिया।  मुझे कृपा करके बताएं कि मेरे साथ यह सब क्यों हुआ? 
नारद जी बोले, बेटा आपका यह हाल शनि महाराज ने किया है। यह सुनकर वह योगी बालक अत्यंत क्रोधित हुआ, और अपने तपबल से शनिदेव को पदच्युत कर दिया। यह देखकर ब्रह्मा जी के साथ समस्त देवगण वहां उपस्थित हुए और उस योगी बालक को आशीर्वाद प्रदान किया। ब्रह्मा जी बोले, तपस्वी बालक, कालचक्र के प्रभाव से शनिदेव द्वारा आपको और आपके परिवार को कष्टों का सामना करना पड़ा। आपने अपनी तपस्या के बल पर शनिदेव को पदच्युत कर प्रतिशोध लिया है। अब अपने क्रोध का त्याग कर शनिदेव को पुनः ग्रहमंडल में स्थापित कीजिए। आपने पीपल वृक्ष के फल खाकर तपस्या की है। इसलिए आज से आपका नाम पिप्पलाद ऋषि के नाम से विख्यात होगा। आज से जो आपका स्मरण करते हुए पीपल वृक्ष की पूजा करेगा, जल चढ़ाएगा, परिक्रमा करेगा, दीपक जलाएगा, उसे शनि का प्रकोप कष्ट नहीं देगा। यह वचन समस्त देवताओं सहित ब्रह्मा जी की उपस्थिति में शनिदेव ने पिप्पलाद ऋषि को दिया था।
उस दिन से जो व्यक्ति, पिप्पलाद ऋषि का ध्यान करते हुए पीपल के वृक्ष की पूजा करता है उसको शनि की साढ़े साती , शनि की ढैया और शनि महादशा कष्ट कारी नहीं होती है। 
शनि की पूजा और व्रत एक वर्ष तक लगातार करना चाहिए। शनिदेव को तिल और सरसो का तेल बहुत प्रिय है अतः शनिवार को तेल का दान भी अवश्य करना चाहिए। ब्रह्मा जी द्वारा बताए इस पूजा विधान से शनिदेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
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आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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