सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक ऐसा दुर्लभ उपाय है जिसके पाठ के द्वारा कोई भी व्यक्ति पराम्बा देवी भगवती जगतजननी दुर्गा जी की कृपा सहज रूप से प्राप्त कर सकता है। इसके प्रभाव से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र और इसमें दिए गए मंत्र अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली हैं, क्योंकि इसमें बीज मन्त्रों का समावेश है। स्वयं भगवान शिव कहते हैं कि, कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्। अर्थात यदि आपके पास किन्हीं कारणों से संपूर्ण दुर्गा सप्तशती पाठ करने का सामर्थ्य ना हो तो केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करके भी आप पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ का फल प्राप्त कर सकते हैं।
यह दिव्य स्तोत्र, रुद्रयामल तंत्र के अंतर्गत गौरी तंत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के संवाद के द्वारा उत्पन्न हुआ है। यदि आप इस जानकारी को वीडियो के माध्यम से प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे यूट्यूब चैनल वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका स्वागत है। साथ ही वैदिक ज्योतिष शास्त्र एवं सनातन धर्म की अनेकों जानकारियां प्राप्त करने के लिए वैदिक ऐस्ट्रो केयर यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबा कर ऑल सेलेक्ट करना ना भूले।
कुंजिका अर्थात कुंजी का शाब्दिक अर्थ होता है चाबी। जिस प्रकार एक छोटी सी चाबी किसी भी बड़े से बड़े ताले को खोलने में सक्षम होती है। ठीक उसी प्रकार मन्त्र शक्ति को कुंजिका स्त्रोत्र पाठ के द्वारा जागृत किया जाता है। इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
मां भगवती दुर्गा जी की शक्तियों को भगवान शिव द्वारा कीलित किया गया है। और माता पार्वती के आग्रह करने पर स्वयं भगवान शिव ने ही मन्त्र शक्ति को जागृत करने के लिए चाबी के रूप में यह सिद्ध कुंजिका स्तोत्र प्रकट किया।
विशेष रूप से नवरात्रि या गुप्त नवरात्रि में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का नियमित रूप से 108 बार पाठ करना चाहिए।
इसके लिए ब्रह्ममुहूर्त में जागकर, शौच स्नान आदि से निवृत्त होकर, लाल रंग के वस्त्र धारण कर, लाल रंग के ही ऊनि आसन पर पूर्वाभिमुख होकर एकाग्रचित्त होकर, माता दुर्गा जी का पूजन करके, दीपक जलाकर, पाठ पूर्ण करना चाहिए। फिर माता दुर्गा जी की आरती कर, भोग लगाएं। अनुष्ठान सम्पन्न होने पर हवन अवश्य करना चाहिए। फिर 2 वर्ष से 9 वर्ष की आयु वाली 9 कन्याओं का पूजन कर उन्हें प्रेम से भोजन करवाकर, उचित दक्षिणा देकर, चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहिए।
कुंजिका स्तोत्र के पाठ करने मात्र से ही सभी मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। इस दिव्य स्तोत्र की सहायता से आप अपने जीवन से संबंधित सभी प्रकार की समस्याओं जैसे कि आपका स्वास्थ्य, आपका धन, आपके जीवन में समृद्धि और आपके जीवन साथी के साथ अच्छे संबंधों के लिए भी यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है। इसके साथ ही यह गृह क्लेश की स्थितियों को भी दूर करता है।
यह एक ऐसी अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली प्रार्थना है जो सहज रूप से फल देने में सक्षम है।
जब भी आप स्वयं को अत्यंत ही संकटों से घिरा हुआ पाएं या बहुत लंबे समय से लटका हुआ आपका कोई काम नहीं बन रहा हो तो, आपको मां भगवती की कृपा प्राप्त करनी चाहिए। और इसके लिए दुर्गा जी को समर्पित यह कुंजिका स्तोत्र सुगम और सर्वोत्तम साधन है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ :-
॥ अथ श्री सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
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