नमस्कार, वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। बुधादित्य योग के बारे में हमने पिछले वीडियो में विस्तार से चर्चा की। बुधादित्य योग होता क्या है, कैसे बनता है, कब प्रभावी होता है, किन जातकों को बुधादित्य योग का फल प्राप्त होता है आदि सभी विषयों पर हमने बात की। जन्मकुंडली के प्रत्येक भाव की अपनी अलग अलग विशेषताएं होती हैं। अतः आज हम लग्न भाव से लेकर द्वादश भाव पर्यन्त जन्मकुंडली के सभी बारह भावों में बनने वाले बुधादित्य योग का जातक के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, आप बने रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं साथ ही वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
जन्मकुंडली का प्रथम भाव होता है लग्न भाव। इसे देह या तनु भाव भी कहते हैं। प्रथम भाव के कारक सूर्य होते हैं। इस भाव से व्यक्ति की शारीरिक संरचना, रुप, रंग, ज्ञान, स्वभाव, बाल्यावस्था और आयु आदि का विचार किया जाता है। प्रथम भाव के स्वामी को लग्नेश कहा जाता है। लग्न भाव का स्वामी यदि क्रूर ग्रह भी हो, तो भी वह अच्छा फल प्रदान करता है। वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, यदि कुंडली के लग्न भाव में बुधादित्य योग हो तो मान-सम्मान तथा यश की प्राप्ति होती है। व्यक्ति चतुर तथा बुद्धिमान होता है। किंतु ऐसे जातक को बचपन से ही स्वास्थ्य के मामले में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। स्वभाव से वह क्षमाशील, उदार, साहसी व आत्मसम्मानी होता है। बुधादित्य योग बनने से व्यक्ति अपने करियर को लेकर गंभीर रहता है और अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए निरन्तर प्रयासरत रहता है। द्वितीय भाव को कुंटुंब भाव और धन भाव के नाम से जाना जाता है। यह भाव धन से संबंधित मामलों को दर्शाता है, जिसका हमारे दैनिक जीवन में बड़ा महत्व है। द्वितीय भाव परिवार, चेहरा, दाईं आँख, वाणी, भोजन, धन या आर्थिक और आशावादी दृष्टिकोण आदि को दर्शाता है। यह भाव ग्रहण करने, सीखने, भोजन और पेय, चल संपत्ति, पत्र व दस्तावेज का प्रतिनिधित्व करता है। यदि जन्मकुंडली के द्वितीय भाव में बुधादित्य योग हो तो ऐसे जातक को सुखी जीवन के साथ-साथ ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। यह जिज्ञासु प्रवृत्ति के होते हैं। जानकारी एकत्रित करना इन्हें पसन्द होता है। इसलिए अधिक से अधिक पुस्तकों का अध्ययन करने में समय व्यतीत करते हैं। वैवाहिक जीवन सुखमय व्यतीत होता है। व्यवसाय में भी यह सफलता प्राप्त करते हैं। द्वितीय भाव में यह योग बनने पर पुराने कर्जों से मुक्ति मिलती है। यह योग धन संपत्ति तथा कई अन्य प्रकार के शुभ फल इस भाव में प्रदान करता है।
जन्म कुंडली में तृतीय भाव को पराक्रम वीरता और साहस का भाव कहा जाता है। यह हमारी संवाद शैली और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले प्रयासों को दर्शाता है। किसी भी तरह के कार्य को करने की इच्छाशक्ति को भी इस भाव से देखा जाता है। यह भाव आपके छोटे भाई-बहनों से भी संबंधित होता है। यदि तृतीय भाव में बुधादित्य योग हो तो भाई-बहनों से अधिक स्नेह नहीं रहता है और रिश्तेदारों से भी कष्ट मिलता है। साथ ही ऐसे जातक भाग्योदय के कई अवसरों को खो देते हैं, किंतु नौकरी और व्यवसाय में अपने साहस से सफलता प्राप्त होती है। माता-पिता का पूर्ण सहयोग मिलता है और रचनात्मक कार्य करने की इच्छा जागृत होती है। सेना, पुलिस तथा राजनीति से संबंधित व्यक्ति को अच्छे पद की प्राप्ति होती है। पराक्रम भाव में यह योग होने पर शत्रुओं से मुक्ति मिलती है और बिना रूके इनके कार्य पूरे होते हैं।
जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव को प्रसन्नता या सुख का भाव कहा जाता है। यह भाव आपके निजी जीवन, घर में आपकी छवि, माता के साथ आपके संबंध, परिवार के अन्य सदस्यों के साथ आपके संबंध, आपकी सुख-सुविधाएँ और स्कूली व प्रारंभिक शिक्षा से संबंधित होता है। यदि चतुर्थ भाव में बुधादित्य योग हो तो ऐसा जातक विद्वानों और श्रेष्ठ लोगों के साथ रहना अधिक पसंद करता है। इस योग में व्यक्ति को अच्छी सफलता मिलती है लेकिन कुछ स्थितियों में कभी कभी यह कानूनी मामलों में अपराधी भी बना देता है। साथ ही माता के स्वास्थ्य को भी यह प्रभावित करता है। व्यक्ति को वाहन सुख, विदेश यात्रा, सरकारी सम्पत्ति से सुख, अपना घर आदि जीवन में यह योग प्रदान करता है। मित्रों एवं सहयोगियों का साथ एवं प्रेम मिलता है। इस योग से जीवनसाथी का भाग्य प्रबल हो जाता है।
जन्म कुंडली में पंचम भाव, मुख्य रूप से संतान और ज्ञान का भाव होता है। इसे सीखने के भाव के तौर पर भी देखा जाता है। यह भाव किसी भी बात को ग्रहण करने की मानसिक क्षमता को दर्शाता है कि, कैसे आप आसानी से किसी विषय के बारे में जान सकते हैं। पंचम भाव गुणात्मक संभावनाओं को भी प्रकट करता है। यह भाव जीवन में प्रेम को भी दर्शाता है। यदि पंचम भाव में बुधादित्य योग हो तो बहन और भाभी के साथ वैचारिक मतभेद देखने को मिलते हैं। यह योग अल्प संतान लेकिन गुणवान संतान प्रदान करता है जो जातक का नाम रौशन करता है। आध्यात्म और कलात्मक क्षेत्र में रुचि बढ़ती है। कार्यक्षेत्र में नेतृत्व और धार्मिक यात्राओं पर जाने का भी योग बनता है। इसके साथ ही उदर संबंधित रोगों का सामना करना पड़ता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली में षष्ठ भाव को रोग, ऋण और शत्रुओं के भाव के नाम से जाना जाता है। यह कुंडली का सबसे विरोधाभासी भाव होता है। यह भाव रोगों को जन्म देता है लेकिन वहीं स्वस्थ होने की शक्ति भी प्रदान करता है। इस भाव से लोन या कर्ज मिलता है वहीं यह भाव कर्ज को चुकाने की क्षमता भी देता है। षष्ठम भाव शत्रुओं को भी दर्शाता है लेकिन विरोधियों से लड़ने की ताकत और साहस भी प्रदान करता है। इस भाव को तपस्या का भाव भी कहा गया है। यह भाव त्याग और अलगाव को भी दर्शाता है। षष्ठ भाव में बुधादित्य योग हो तो विरोधियों के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन हर चुनौती से निपटने की शक्ति भी मिलती है और ऐसा जातक आत्मविश्वास से भरा रहता है। इस योग में माता पक्ष से लाभ मिलता है। मामा पक्ष से सहयोग कम ही मिलता है। व्यायाम योग आदि के माध्यम से बहुत धन तथा ख्याति भी अर्जित होती है। इनके पारिवारिक एवं दाम्पत्य जीवन में कुछ परेशानियां आ सकती हैं। गुप्त शत्रु होते हैं। एवं स्वास्थ्य समस्या हमेशा बनी रहती है।
जन्म कुंडली में सप्तम भाव व्यक्ति के वैवाहिक जीवन, जीवनसाथी तथा पार्टनर के विषय का बोध कराता है। यह नैतिक, अनैतिक रिश्ते को भी दर्शाता है। शास्त्रों में मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं। इनमें काम का संबंध सप्तम भाव से होता है। सातवां भाव व्यक्ति की सामाजिक छवि तथा कार्य व व्यवसाय संबंधित विदेश यात्रा को भी दिखाता है। कुंडली में सप्तम भाव केन्द्रीय भाव में आता है। इसलिए यह व्यक्ति के जीवन में निजी और कार्यक्षेत्र के बीच तालमेल बनाता है। यदि सप्तम भाव में बुधादित्य योग हो तो दांपत्य जीवन में परेशानियां आ सकती हैं, जिसकी वजह से वैवाहिक जीवन नीरस हो जाता है। जीवनसाथी से सहयोग कम मिलता है। साथ ही सप्तम भाव में यह योग यौन रोग को उत्पन्न करने वाला भी होता है। ऐसे जातक को डॉक्टरी और रत्न व्यवसाय में अच्छी सफलता मिलती है। शुभ ग्रहों की दृष्टि सप्तम भाव में बन रहे इस योग के परिणामों में भारी परिवर्तन करती है।
जन्म कुंडली में अष्टम भाव जातकों का आयु भाव कहलाता है। यह भाव जातकों की दीर्घायु अथवा जीवन की अवधि को बताता है। वैदिक ज्योतिष में इसे मृत्यु का भाव भी कहा जाता है। जहाँ प्रथम भाव व्यक्ति के देह धारण को दर्शाता है। वहीं अष्टम भाव व्यक्ति के देह त्यागने का बोध कराता है। जातक की कुंडली में अष्टम भाव से जीवन के अंत को दर्शाया जाता है। इसलिए इस भाव को अशुभ भाव भी कहते हैं। यदि अष्टम भाव में बुधादित्य योग हो तो जातक दुसरों के सहयोग के चक्कर में स्वयं उलझ जाता है। इस योग का व्यक्ति विदेशी मुद्रा में व्यापार में करता है और अच्छा व्यापारी बनता है। अष्टम भाव में इस योग के चलते दुर्घटनाओं का भय बना रहता है और किडनी, आमाशय में जलन और आंतों में विकार भी होता है। इस योग से जातक को वसीयत आदि के माध्यम से धन प्राप्त होता है और परा विज्ञान के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली का नवम भाव व्यक्ति के भाग्य को दर्शाता है। इसके साथ ही नवम भाव से व्यक्ति के धार्मिक दृष्टिकोण का पता भी चलता है। यह भाव जातकों के लिए बहुत ही शुभ होता है। इस भाव के अच्छा होने से जातक हर क्षेत्र में उन्नति करता है। यदि नवम भाव में बुधादित्य योग हो तो जातक को कई शुभ फल मिलते हैं। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है लेकिन यदि आप अपने पिता पर निर्भर हैं तो भाग्य साथ नहीं देता। भाग्य का पूर्ण साथ देने के लिए परिश्रम अवश्य करना पड़ता है, फिर आसानी से इनके सभी कार्य बन जाते हैं। धर्म-कर्म के कार्यों में भी यह बढ़चढ़ कर सम्मिलित होते हैं। किंतु नवम भाव में यह योग व्यक्ति को अंहकारी भी बना देता है।
ज्योतिष में दशम भाव को कर्म का भाव कहा जाता है। यह भाव व्यक्ति की उपलब्धि, ख़्याति, शक्ति, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, विश्वसनीयता, आचरण, महत्वाकांक्षा आदि को दर्शाता है। यदि दशम भाव में बुधादित्य योग हो तो
जातक, धन कमाने में चतुर, साहसी और संगीत प्रेमी होता है। नौकरी व व्यापार में अपार सफलता मिलती है। सरकारी नौकरी में आसानी से उच्च पद मिलता है। सामाजिक कार्य में हिस्सा लेने पर सम्मान दिलाता है और धीरे-धीरे व्यक्ति आसमान छू लेता है। संतान के मामले में यह चिंतित बनाता है। धार्मिक स्थान का निर्माण करवाने के कारण ख्याति का विस्तार होता है। क्योंकि धर्म के प्रति इनका अधिक झुकाव रहता है।
जन्म कुंडली में एकादश भाव आय और लाभ का भाव होता है। यह भाव व्यक्ति की कामना, आकांक्षा एवं इच्छापूर्ति को दर्शाता है। किसी व्यक्ति के द्वारा किए गए प्रयासों में उसे कितना लाभ प्राप्त होगा, यह ग्यारहवें भाव से देखा जाता है। यदि एकादश भाव में बुधादित्य योग बन रहा हो तो जातक को सरकार और प्रतिष्ठानों से धन की प्राप्ति होती है और जातक धन-धान्य से संपन्न रहता है। कला के क्षेत्र में रुझान बढ़ता है और ऐसा जातक संगीत प्रेमी बनाता है। ऐसा व्यक्ति रूपवान होता है लोक सेवा के लिए कार्य करता रहता है। इस योग से व्यक्ति की आय के कई स्रोत्र बनते हैं।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र में कुंडली के द्वादश भाव को व्यय एवं हानि का भाव कहा जाता है। यह अलगाव एवं अध्यात्म का भी भाव होता है। कुंडली में बारहवें भाव का संबंध स्वप्न एवं निद्रा से भी होता है। यदि जन्मकुंडली के द्वादश भाव में बुधादित्य योग हो तो इसे धन के मामले में अच्छा नहीं कहा जा सकता। इन्हें पारिवारिक विवाद का भी सामना करना पड़ता है। चाचा-ताऊ से मतभेद होते हैं और अचल संपत्ति उनके चंगुल में फंस जाती है। ऐसा जातक कई बार, जुआ सट्टा आदि आकस्मिक धन लाभ के व्यवसायों में फंसकर अपना सबकुछ लुटा देता है। यदि धन इधर-उधर से आता भी है तो भी आय से अधिक खर्च हो जाता है। इस योग के व्यक्ति को विदेशों में सफलता मिलती है। जैसा कि पूर्व के वीडियो में भी बताया था कि अन्य शुभ ग्रहों की दृष्टि, महादशा, अंतर्दशा एवं गोचर की स्थिति में कुछ वैदिक उपाय करवाकर जन्मकुंडली में उपस्थित शुभ योगों का पूर्ण फल प्राप्त किया जा सकता है, अतः जन्मकुंडली का पूर्ण विश्लेषण आवश्यक होता है। आप अपनी जन्म कुंडली का सशुल्क विश्लेषण करवाने हेतु स्क्रीन पर दिए गए नम्बरों के माध्यम से हमसे संपर्क कर सकते हैं। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार
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