शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र


।। अथ विनियोगः ।।

ॐ अस्य श्रीसिद्धिलक्ष्मीस्तोत्र मंत्रस्य । 
हिरण्यगर्भ ऋषिः । 
अनुष्टुप् छन्दः । 
सिद्धिलक्ष्मीर्देवता । 
मम समस्त दुःखक्लेशपीडा 
दारिद्र्यविनाशार्थं । 
सर्वलक्ष्मीप्रसन्नकरणार्थं । 
महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं च  । 
सिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रजपे विनियोगः ।।

।। अथ करन्यासः ।।

ॐ सिद्धिलक्ष्मी अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं विष्णुहृदये तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ क्लीं अमृतानन्दे मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ श्रीं दैत्यमालिनी अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ तं तेजःप्रकाशिनी कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ब्राह्मी वैष्णवी माहेश्वरी करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।।

।। हृदयादिन्यासः ।।
सिद्धिलक्ष्मी हृदयाय नमः ।
ॐ ह्रीं वैष्णवी शिरसे स्वाहा ।
ॐ क्लीं अमृतानन्दे शिखायै वौषट् ।
ॐ श्रीं दैत्यमालिनी कवचाय हुम् ।
ॐ तं तेजःप्रकाशिनी नेत्रद्वयाय वौषट् ।
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ब्राह्मीं वैष्णवीं फट् ।।

।। अथ ध्यानम् ।।

ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां 
षड्भुजां च चतुर्मुखाम् ।
त्रिनेत्रां च त्रिशूलां च 
पद्मचक्रगदाधराम् ।।१।।

पीताम्बरधरां देवीं 
नानालङ्कारभूषिताम् ।
तेजःपुञ्जधरां श्रेष्ठां 
ध्यायेद्‍बालकुमारिकाम् ।।२।।

।। अथ स्तोत्रम् ।।

ॐकारलक्ष्मीरूपेण 
विष्णोर्हृदयमव्ययम् ।
विष्णुमानन्दमध्यस्थं 
ह्रीङ्कारबीजरूपिणी ।।३।।

ॐ क्लीं अमृतानन्दभद्रे 
सद्य आनन्ददायिनी ।
श्रीं दैत्यभक्षरदां शक्‍ति
मालिनी शत्रुमर्दिनी ।।४।।

तेजःप्रकाशिनी देवी 
वरदा शुभकारिणी ।
ब्राह्मी च वैष्णवी भद्रा 
कालिका रक्‍तशाम्भवी ।।५।।

आकारब्रह्मरूपेण 
ॐकारं विष्णुमव्ययम् ।
सिद्धिलक्ष्मि परालक्ष्मि 
लक्ष्यलक्ष्मि नमोऽस्तुते ।।६।।

सूर्यकोटिप्रतीकाशं 
चन्द्रकोटिसमप्रभम् ।
तन्मध्ये निकरे सूक्ष्मं 
ब्रह्मरूपव्यवस्थितम् ।।७।।

ॐकारपरमानन्दं 
क्रियते सुखसम्पदा ।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये 
शिवे सर्वार्थसाधिके ।।८।।

प्रथमे त्र्यम्बका गौरी 
द्वितीये वैष्णवी तथा ।
तृतीये कमला प्रोक्‍ता 
चतुर्थे सुरसुन्दरी ॥ ९॥

पञ्चमे विष्णुपत्नी च 
षष्ठे च वैष्णवी तथा ।
सप्तमे च वरारोहा 
अष्टमे वरदायिनी ।।१०।।

नवमे खड्गत्रिशूला 
दशमे देवदेवता ।
एकादशे सिद्धिलक्ष्मी
र्द्वादशे ललितात्मिका ।।११।।

एतत्स्तोत्रं पठन्तस्त्वां 
स्तुवन्ति भुवि मानवाः ।
सर्वोपद्रवमुक्‍तास्ते 
नात्र कार्या विचारणा ।।१२।।

एकमासं द्विमासं वा 
त्रिमासं च चतुर्थकम् ।
पञ्चमासं च षण्मासं 
त्रिकालं यः पठेन्नरः ।।१३।।

ब्राह्मणाः क्लेशतो दुःख
दरिद्रा भयपीडिताः ।
जन्मान्तरसहस्त्रेषु 
मुच्यन्ते सर्वक्लेशतः ।।१४।।

अलक्ष्मीर्लभते लक्ष्मी
अपुत्रः पुत्रमुत्तमम् ।
धनं यशस्यमायुष्यं 
वह्निचौरभयेषु च ।।१५।।

शाकिनीभूतवेताल
सर्वव्याधिनिपातके ।
राजद्वारे महाघोरे 
सङ्ग्रामे रिपुसङ्कटे ।।१६।।

सभास्थाने च श्मशाने
कारागेहारिबन्धने ।
अशेषभयसम्प्राप्तौ 
सिद्धिलक्ष्मीं जपेन्नरः ।।१७।।

ईश्वरेण कृतं स्तोत्रं 
प्राणिनां हितकारणम! ।
स्तुवन्ति ब्राह्मणा नित्यं 
दारिद्र्यं न च वर्धते ।।१८।।

या श्रीः पद्मवने कदम्बशिखरे 
राजगृहे कुञ्जरे
श्वेते चाश्वयुते वृषे च युगले 
यज्ञे च यूपस्थिते ।
शङ्खे देवकुले नरेन्द्रभवनी 
गङ्गातटे गोकुले
सा श्रीस्तिष्ठतु सर्वदा मम गृहे 
भूयात्सदा निश्चला ।।१९।।

।। इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे ईश्वरविष्णुसंवादे दारिद्र्यनाशनं सिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

इस स्तोत्र का पाठ करनेवाला व्यक्ति सभी उपद्रवों से मुक्त हो जाता है । छः महीने तक तीनों संध्याओं में, अर्थात, प्रातः दोपहर एवं सांय, इसका पाठ करने वाला व्यक्ति, जन्म-जन्मान्तर के पापों से मुक्त होकर, अतुलनीय लक्ष्मी, पुत्र, यश-प्रतिष्ठा, धन-वैभव, आयु-ऐश्वर्य, को प्राप्त करता है। शुक्लपक्ष के किसी भी शुक्रवार को प्रातःकाल में शुद्धता पूर्वक,  स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, एक लकड़ी की चौकी पर एक लाल वस्त्र बिछाकर, उसके उपर सवा किलो सफ़ेद चावल से अष्टदल कमल बनायें । उस कमल के बीचो बीच श्रीयन्त्र की स्थापना करें । माता महालक्ष्मी का ध्यान करते हुये यन्त्र की पूजा धुप-दीप आदि से करें । पूजन के उपरान्त इस स्तोत्र का पूरी श्रद्धा से पाठ करने मात्र से ही व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। स्वयं असमर्थ होने पर श्रेष्ठ वैदिक ब्राह्मणों द्वारा इस स्तोत्र का अनुष्ठान शुभ मुहूर्त में करवाने से धन धान्य, व्यापार आदि में शीघ्र लाभ मिलता है। यदि आपने स्तोत्र पूरा सुन लिया है तो कृपया कमेंट में श्री महालक्ष्म्यै नमः लिखना ना भूलें। एवं साथ ही यदि स्तोत्र अच्छा लगा हो तो नीचे रेड बटन दबाकर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।

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Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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