नमस्कार, मैं आचार्य हिमांशु आप सभी पाठकों का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। मित्रों, भगवान शिव का परमप्रिय श्रावण मास प्रारंभ हो गया है। आप सभी सनातनी शिव भक्त भगवान शिव की कृपा प्राप्ति की कामना से अनेक विधियों द्वारा, रुद्राभिषेक, व्रत, पूजन अनुष्ठान के साथ साथ कांवड़ यात्रा आदि कर ही रहे हैं। तो आइये हम भी आज श्रावण के महत्व पर थोड़ा चर्चा करते हैं।
हमारे सनातन परंपरा में प्रत्येक शब्द का अर्थ बड़ा ही व्यापक होता है। हिंदी में महीनों के नाम आप सबको ज्ञात हैं। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, आदि। क्या आप जानते हैं कि महीनों के यह नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं? वैदिक ज्योतिष शास्त्र में सूक्ष्म विश्लेषण हेतु नक्षत्र गणना की जाती है। नक्षत्र का पूर्णिमा तिथि से संयोग ही मास का निर्माण करता है, जैसे जिस माह में चित्रा नक्षत्र पूर्णिमा तिथि को पड़ता है वही माह चैत्र कहलाता है। जिस माह में विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा तिथि को पड़ता है वही माह वैशाख कहलाता है। जिस माह में ज्येष्ठा नक्षत्र पूर्णिमा तिथि को पड़ता है वही माह ज्येष्ठ कहलाता है। जिस माह में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र पूर्णिमा तिथि को पड़ता है वही माह आषाढ़ कहलाता है। ठीक इसी प्रकार जिस माह में श्रवण नक्षत्र पूर्णिमा तिथि को पड़ता है वही माह श्रावण माह कहलाता है।
श्रवण नक्षत्र के कारण ही श्रावण है। अच्छा, श्रवण का शाब्दिक अर्थ क्या है ? सुनना । तो सर्वप्रथम विचार कीजिए कि सुनने योग्य क्या है। ऐसा तो नहीं है कि कोई भी आए मुंह उठा के, और कुछ भी सुना के चला जाए। जिस को सुनकर आपको ब्रह्मानंद की प्राप्ति हो, अथवा जिसे सुनने से आपका कल्याण हो वही सुनने योग्य है। बाकी तो कोई भी कुछ भी सुनाए, आपको ऐसा इस माह में कुछ भी नहीं सुनना है जिससे दुख, क्रोध, द्वेष, वैमनस्यता, आदि की वृद्धि हो। तो फिर सुनने योग्य क्या है, सुनने योग्य है श्रुति। श्रुति वेदों को कहा जाता है। श्रुति ही श्रवण योग्य है। इसीलिए तो श्रावण मास में श्रुति अर्थात वेद मन्त्रों को आचार्य ब्राह्मणों के मुख से सुनते हुए भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। शिव शब्द का अर्थ ही कल्याण है। अतः स्वयं भी, कल्याण की कामना से ॐ नमः शिवाय आदि शिव नामों का उच्चारण करते हुए भगवान का अभिषेक करते हैं। भगवान शिव एवं देवी पार्वती जी को जगत के माता पिता कहा जाता है। जगतः पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ ।।
हम जन्म लेने के साथ ही देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण से बंध जाते हैं। और एक साथ ही इन तीनों देव ऋषि और पितृ ऋण से मुक्त होने का यदि कोई सर्वश्रेष्ठ अवसर हमें प्राप्त होता है तो वह है यह श्रावण मास।
आप सब जानते हैं कि भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है। तो भैया, देवताओं के भी जो देवता हैं वो केवल एक लोटा जल चढ़ाने मात्र से ही प्रसन्न होकर भक्त को देव ऋण से मुक्त कर देते हैं। यदि ऋषि ऋण की बात करें तो सर्वश्रेष्ठ मन्त्र उपदेष्टा ऋषि भी भगवान शिव ही हैं। आप कहेंगे कैसे? तो मन्त्र जिन अक्षरों से बनाए जाते हैं उन चतुर्दश माहेश्वर सूत्रों,
अ ई उ ण, ऋ ल्र क, आदि अक्षर ब्रह्म की उतपत्ति भी
तो भगवान शिव के डमरू से ही हुई है। फिर पाणिनि आदि ने इन्ही अक्षरों से तो व्याकरण रचा है। अच्छा एक विशेष ध्यान देने वाली बात की समस्त विश्व में ऐसी कोई भी भाषा नहीं जिसका उच्चारण इन सूत्रों इन अक्षरों का त्याग करके किया जा सके। लिखने में भले ही आप बदलाव कर लें, किंतु बोलने में आप इन अक्षरों के अतिरिक्त कुछ भी अन्य प्रयोग कर ही नहीं सकते। यदि आप को इंग्लिश में अपना नाम बताना पड़े तो आप कहेंगे कि माय नेम इज हिमांशु। अब आपको माय बोलने के लिए म आ और य का उच्चारण करना ही पड़ा। अच्छा संस्कृत भाषा में आप अ को अ, म को म, य को य ही कहेंगे। किंतु इंग्लिश आदि भाषाओं में म के लिए तो एम लिखना पड़ेगा । उच्चारण में ए और म का प्रयोग ही करना पड़ेगा। बिना माहेश्वर सूत्रों के द्वारा निर्मित वर्णमाला के आप इस संसार की किसी भी भाषा को नहीं बोल सकते। ऐसी भाषा को प्रदान करने वाले ऋषि हमारे आराध्य भगवान शिव ही हैं। जो श्रावण माह में केवल ॐ नमः शिवाय, इस पंचाक्षर मन्त्र का उच्चारण करने मात्र से ही अपने भक्तों को ऋषि ऋण से भी मुक्त कर देते हैं।
अच्छा जब भी मातृ पितृ भक्त की बात आती है तो आपके मन में सर्वप्रथम किसका नाम स्मरण हो आता है? सही विचार कर रहे हो। श्रवण कुमार। सबसे बड़े मातृ पितृ भक्त हैं श्रवण कुमार जी। अपने अंधे माता पिता को कांवड़ में बिठा कर यात्रा करवाई थी ना उन्होंने। कथा सबको पता है। अपने अंधे माता पिता के लिए जल ही लेने तो गए थे श्रवण कुमार। आज भी लाखों की संख्या में श्रवण कुमार हरिद्वार गोमुख कांवड़ लेकर जगत के माता पिता भगवान शिव माता गौरा के लिए जल ही लेने तो गए हैं। यह कांवड़ यात्रा कर, जल को भगवान शिव एवं मां पार्वती को अर्पित करना, आज भी पितृ ऋण से मुक्त होने का सर्वश्रेष्ठ साधन है। सांसारिक माता पिता के देहत्याग के उपरांत उनकी तृप्ति हेतु जलांजलि ही तो दी जाती है। इसीलिए तो जगत के माता पिता शिव गौरा को जल अर्पण करने से पितृ ऋण से भी मुक्ति मिलती है। किन्तु बहुत बार माता पिता के लिए जल लेने गए श्रवण कुमार को दसरथ जी द्वारा शब्दभेदी बाण से मार दिया जाता है। ध्यान से समझें। दशरथ कौन है? हमारी पांच ज्ञानेन्द्रियाँ और पांच कर्मेन्द्रियां ही दशरथ हैं। कभी कभी हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ बुद्धि के कुतर्क बाण से आहत हो जाती हैं, तो कभी हमारी कर्मेन्द्रियाँ इच्छाशक्ति के बाण से असमर्थता को प्राप्त होती हैं। राजा दशरथ श्रवण को मारने हेतु शब्दभेदी बाण का ही प्रयोग करते हैं। शब्द का लक्ष्य ही श्रवण को भेदना होता है। शब्द ही सुना जाता है। बस ध्यान रहे कि सुनने योग्य क्या है। श्रवण क्या किया जाए श्रावण में। अच्छा आपको एक रहस्य और बताते हैं। लोक कल्याण की कामना से प्रथम बार श्रीमद्भागवत महापुराण कथा का आयोजन भी श्रावण मास में ही किया गया था। गौकर्ण जी महाराज द्वारा की गई कथा द्वारा जब धुंधकारी मुक्त हुआ तो समस्त श्रोताओं द्वारा अपनी मुक्ति हेतु पुनः कथा आयोजन के लिए गोकर्ण जी से प्रार्थना की गई। तो जन कल्याण की कामना से गोकर्ण जी ने ही सर्वप्रथम श्रीमद्भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन श्रावण मास में ही किया था। क्योंकि श्रावण ही श्रवण हेतु सर्वोत्तम मास है।
श्रावणे मासि गोकर्णः कथामूचे तथा पुनः ।।
श्रीमद्भागवत का मूल विषय ज्ञान वैराग्य से परिपूर्ण भक्ति ही तो है। और जब भक्ति की बात आती है तो नौ प्रकार की भक्ति शास्त्रों में बतलाई गयीं है,
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
श्रवण, कीर्तन , स्मरण, चरणसेवा, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य, और आत्मनिवेदन यह नौ प्रकार की भक्ति हैं। इन नवधा भक्ति में प्रथम स्थान श्रवण का ही है। और श्रवण भक्ति करने वाले सर्वश्रेष्ठ भक्त की यदि बात करें तो वह श्री परीक्षित महाराज ही हैं जिन्होंने श्रीमद्भागवत महापुराण कथा को सुनकर मोक्षपद प्राप्त किया था। श्रुति अर्थात वेद। और वेद वृक्ष का पका हुआ फल है श्रीमद्भागवत। इसीलिए विचार अवश्य कीजिए कि क्या श्रावण माह में वेद अथवा वेद वृक्ष के फल रूपी श्रीमद्भागवत महापुराण का श्रवण करना पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन नहीं है? यही कारण तो है कि जो व्यक्ति देहत्याग कर दे उसकी मुक्ति की कामना से, उसकी सन्तानों द्वारा श्रीमद्भागवत को ही श्रवण किया जाता है।
वेद अर्थात श्रुति, श्रुति से ही श्रावण, श्रावण से ही श्रवण। श्रवण ही मातृ पितृ भक्त। श्रवण अर्थात सुनना। माता पिता की जो सुने, अथवा माता पिता आदि पूर्वजों के लिए जो सुने वो श्रवण। पिता के वचन ही श्रुति, श्रुति अर्थात वेद। ये है श्रावण की महिमा। यह है श्रवण की महिमा । विचार अवश्य कीजिएगा ।
एक बार फिर से आप सभी पाठकों को श्रावण मास की मङ्गलमयी शुभकामनाएं, आपका मनोरथ पूर्ण हो। इसी कामना के साथ, नमस्कार
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