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मनुष्य की जन्मपत्रिका के जन्मांग चक्र को बारह खानों में विभाजित किया गया है, जिन्हें स्थान या भाव कहते हैं। जन्मांग चक्र के अष्टम स्थान से आयु का विचार किया जाता है और उस अष्टम स्थान से जो अष्टम स्थान अर्थात लग्न से तृतीय स्थान भी आयु स्थान होता है। इस प्रकार प्रत्येक कुंडली में लग्न से अष्टम स्थान और तृतीय स्थान आयु के स्थान होते हैं। इन स्थानों के व्यय स्थान अर्थात सप्तम और द्वितीय स्थान मृत्यु स्थान या मारक स्थान कहलाता है। यह विचार राशि अर्थात जहां चंद्रमा स्थित हो उस भाव को भी लग्न मानकर किया जाना चाहिए। उपर्युक्त मारक स्थानों के स्वामी अर्थात उन स्थानों में पड़े हुए क्रमांक वाली राशियों के अधिपति ग्रह मारकेश कहे जाते हैं। आज के वीडियो में हम मारकेश पर ही विस्तृत चर्चा करेंगे। अतः आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आयकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
लग्न स्थान अर्थात प्रथम भाव से शरीर का विचार किया जाता है। इस दृष्टि से लग्न के भी व्यय स्थान अर्थात बारहवें भाव को भी मारक कहा गया है। जातक के जन्म समय में पूर्वी क्षितिज में स्थित राशि के आधार पर लग्न का तथा उस समय उपस्थित नक्षत्र के आधार पर जन्म राशि का निर्धारण किया जाता है। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन राशियों के स्वामी क्रमश: मंगल, शुक्र, बुध, चंद्र, सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, शनि, गुरु होते हैं, जिनमें सूर्य, मंगल, शनि पाप ग्रह और गुरु तथा शुक्र शुभ माने जाते हैं, जबकि बुध पाप ग्रहों का सहचारी होने से या पापयुक्त होने से पापग्रह और बिना पापग्रहों के साथ-साथ के शुभ ग्रह होता है। इसी प्रकार चंद्रमा भी क्षीण होने पर पाप ग्रह और बलवान या पूर्व होने पर शुभ ग्रह है।दशा विचार की दृष्टि से बिना पापयुक्त शुभ ग्रह और पूर्ण चंद्र केंद्राधिपति (कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम स्थानों के स्वामी) होने पर पापप्रद हो जाते हैं। इसी प्रकार पापग्रह केंद्राधिपति होने पर शुभ हो जाते हैं। त्रिकोण स्थानों पंचम, नवम स्थानों के स्वामी सदैव शुभ ग्रह तीन, छह, ग्यारह स्थानों के स्वामी पाप ग्रह होते हैं। सूर्य और चंद्रमा को छोड़कर अष्टमेश पाप ग्रह होता है, किंतु यदि वह लग्नेश भी हो तो पाप ग्रह नहीं होता है। त्रिकोणेशों में पंचमेश विशेष बलवान होता है और केंद्रेशों में लग्न, चतुर्थ, सप्तम और दशम के स्वामी क्रमश: बलवान होते हैं। इस प्रकार मंगल और शुक्र अष्टमेश होने पर भी पाप ग्रह नहीं होते, सप्तम स्थान मारक, केंद्र स्थान है। अत: गुरु या शुक्र आदि सप्तम स्थान के स्वामी हों तो वह प्रबल मारक हो जाते हैं। इनसे कम बुध और चंद्र सबसे कम मारक होता है। शनि के मारक से संबद्ध मात्र होने से ही मारकत्व में प्रबलता आ जाती है।
तीनों मारक स्थानों में द्वितीयेश के साथ वाला पाप ग्रह सप्तमेशके साथ वाले पाप ग्रह से अधिक द्वितीय भाव में स्थित पाप ग्रह सप्तम भाव में स्थित पाप ग्रह से अधिक, किंतु सप्तमेश के साथ रहने वाले पाप ग्रह से कम इसी प्रकार द्वितीयेश सप्तमेश से अधिक किंतु सप्तमस्थ पाप ग्रह से कम होता है। इसके अतिरिक्त द्वादशेश और उसके साथ वाले पापग्रह षष्ठेश एवं एकादशेश भी कभी-कभी मारकेश होते हैं। इस प्रकार पाप ग्रह का मारकत्व सबसे कम तदनंतर षष्ठेश एवं एकदाशेश, तृतीयेश, अष्टमेश द्वादशस्य पाप ग्रह द्वादशेश, सप्तमेश द्वितीयेश सप्तमस्थ पाप ग्रह और द्वितीयस्थ पाप ग्रह फिर सप्तमेश के साथी पाप ग्रह तथा अंत में द्वितीयेश के साथ वाले पाप ग्रह क्रमश: बलवान होते हैं।मारकेश के द्वितीय भाव सप्तम भाव की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली हैं और इसके स्वामी से भी ज्यादा उसके साथ रहने वाला पापग्रह। स्वामी तो महत्वपूर्ण है ही, किंतु उसके साथी पाप ग्रहों का भी निर्णय विचार पूर्वक करना चाहिए। सामान्यतया यह समझा जाता है कि मारकेश जातक की मृत्यु के कारण होते हैं, किंतु मारकेश द्वारा सूचित मृत्यु यदि जातक की आयु हो तो मृत्यु तुल्य कष्ट के भी परिचायक होते हैं। चाहें तो शारीरिक या भयानक अपमान आदि के द्वारा मानसिक ही क्यों न हों। इसलिए मारकेश विचार के साथ-साथ जातक की आयु के संबंध में भी विचार कर लेना चाहिए। जैमिनीय मतानुसार चक्र का प्रयोग किया जा सकता है। यदि आयु विचार से आयु है तो मारकेश मारक नहीं होगा साथ ही जातक से संबद्ध पुत्र- पत्नी पिता आदि के जन्मांगों से भी जातक के संबंधानुसार उसकी आयु का विचार कर लेना चाहिए। इतना ही नहीं मारकेश ग्रह के बलाबल का भी विचार कर लेना चाहिए कि कौन सा ग्रह मारकेश के दोष का शमन कर सकता है जैसा कि कहा गया है कि राहु के दोष को बुध इन दोनों के दोष को शनि तथा राहु, बुध, शनि तीनों के दोषों का मंगल, मंगल समेत चारों के दोष को शुक्र, पांचों के दोष को गुरू, गुरू समेत छहों के दोष को चंद्रमा और सभी के दोष को उत्तरायण का सूर्य दूर करने में सहायक होता है। इस संदर्भ में ग्रहों की विफलता भी विचारणीय है। सूर्य के सहित चंद्र चतुर्थ भाव में बुध, पंचम में बृहस्पति, षष्ठ में शुक्र और द्वितीय में मंगल, सप्तम भाव में स्थित चंद्रमा विफल होता है।
कभी-कभी मारकेश न रहने पर भी अन्य ग्रहों की दशाएं भी मारक हो जाती हैं जैसे – केतु, शुक्र, मंगल, बुध की महादशा में जन्म लेने वालों के लिए क्रमश: मंगल,वृहस्पति और राहु की दशाएं मृत्यु कारक होती हैं। मारकेश के निवारण हेतु मारक ग्रह का दान, जप एवं आयुष्य कारक ग्रह के रत्न धारण महामृत्युंजय एवं चंडी के प्रयोग बताए गए हैं। ज्योतिष शास्त्र में कथितु आयु औसत आयु होती है जो सत्कर्म से बढ़ती है और दुष्कर्म से ह्रास को प्राप्त होती है। कृपा चाहे वह गुरु की हो या इष्ट की, ज्योतिषी और जातक दोनों को ही प्रभावित करने वाली होती है, इसलिए वह शास्त्रीय विचार से भी सर्वोपरि है।मारकेश की दशा आने से पहले ही विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए।
फलित ज्योतिष के अनुसार किसी भी जातक के जीवन में ‘मारकेश’ ग्रह की दशा के मध्य घटने वाली घटनाओं की सर्वाधिक सटीक एवं सत्य भविष्यवाणी की जा सकती है, क्योंकि मारकेश वह ग्रह होता है जिसका प्रभाव मनुष्य के जीवन में शत-प्रतिशत घटित होता है | यह दशा जीवन में कभी भी आये चाहे जीतनी बार आये, व्यक्ति के जीवन में अपनी घटनाओं से अमिट छाप छोड़ ही जाती हैं |
मारकेश अर्थात- मरणतुल्य कष्ट देने वाला वह ग्रह जिसे आपकी जन्मकुंडली में ‘मारक’ होने का अधिकार प्राप्त है, या यूं कहें कि आपको सन्मार्ग से भटकने से रोकने के लिए, सत्य एवं निष्पक्ष कार्य करवाने, और न करने पर ,प्रताड़ित करने का अधिकार प्राप्त है |
कुंडली में अलग-अलग लग्न में जन्म लेने वाले जातकों के ‘मारक’ अधिपति भी अलग-अलग होते हैं ! इनमे मेष लग्न के लिये मारकेश शुक्र, वृषभ लग्न के लिये मंगल, मिथुन लगन वाले जातकों के लिए गुरु, कर्क और सिंह राशि वाले जातकों के लिए शनि मारकेश हैं, कन्या लग्न के लिए गुरु, तुला के लिए मंगल, और बृश्चिक लग्न के लिए शुक्र मारकेश होते हैं, जबकि धनु लग्न के लिए बुध, मकर के लिए चंद्र, कुंभ के लिए सूर्य, और मीन लग्न के लिए बुध मारकेश नियुक्त किये गये हैं |
सूर्य जगत की आत्मा तथा चंद्रमा अमृत और मन हैं इसलिए इन्हें मारकेश होने का दोष नहीं लगता क्योंकि ये दोनों ही अपनी दशा-अंतर्दशा में अशुभता में कमी लाते हैं | मारकेश का विचार करते समय कुण्डली के सातवें भाव के अतिरिक्त, दूसरे, आठवें, और बारहवें भाव के स्वामियों और उनकी शुभता-अशुभता का भी विचार करना आवश्यक रहता है, सातवें भाव से आठवाँ द्वितीय भाव होता है जो धन-कुटुंब का भी होता है इसलिए इन भावों का भी सूक्ष्म विवेचन आवश्यक होता है।
मारकेश की दशा जातक को अनेक प्रकार की बीमारी, मानसिक परेशानी, वाहन दुर्घटना, दिल का दौरा, नई बीमारी का जन्म लेना, व्यापार में हानि, मित्रों और सम्बन्धियों से धोखा तथा अपयश जैसी परेशानियाँ आती हैं |
इसके अशुभ प्रभाव से बचने के लिए सरल और आसान तरीका है, कि कुंडली के सप्तम भाव में यदि पुरुष राशि हो तो शिव की तथा स्त्री हों तो शक्ति की आराधना करें । मारकेश से सम्बंधित ग्रह का चौगुना मंत्र,
या महामृत्युंजय जाप, एवं रुद्राभिषेक करना इस दशा की शांति के सरल उपाय हैं ! इसके अतिरिक्त जो भी ग्रह मारकेश हो उसी का ‘कवच’ पाठ करें, ध्यान रहे दशा आने से एक माह पहले ही आचरण में सुधार लायें और अपनी सुबिधा अनुसार स्वयं उपाय करें ।
अपने लग्न के अनुसार आप भी अपनी जन्मपत्रिका के मारकेश ग्रह की स्थिति को समझ सकते हैं।
मेष लग्न-
मेष लग्न के लिए शुक्र दूसरे एंव सातवें भाव का मालिक है, किन्तु फिर भी जातक के जीवन को समाप्त नहीं करेगा। यह गम्भीर व्याधियों को जन्म दे सकता है। मेष लग्न में शनि दशवें और ग्यारहवें भाव का अधिपति होकर भी अपनी दशा में मृत्यु तुल्य कष्ट देगा।
वृष-
वृष लग्न के लिए मंगल सातवें एंव बारहवें भाव का मालिक होता है जबकि बुध दूसरे एंव पांचवें भाव का अधिपति होता है। वृष लग्न में शुक्र, गुरू व चन्द्र मारक ग्रह माने जाते है।
मिथुन-
मिथुन लग्न में चन्द्र व गुरू दूसरे एंव सातवें भाव के अधिपति है। चन्द्रमा प्रतिकूल स्थिति में होने पर भी जातक का जीवन नष्ट नहीं करता है। मिथुन लग्न में बृहस्पति और सूर्य मारक बन जाते है।
कर्क-
कर्क लग्न में शनि सातवें भाव का मालिक होकर भी कर्क के लिए कष्टकारी नहीं होता है। सूर्य भी दूसरे भाव का होकर जीवन समाप्त नहीं करता है। लेकिन कर्क लग्न में शुक्र ग्रह मारकेश होता है।
सिंह-
सिंह लग्न में शनि सप्तमाधिपति होकर भी मारकेश नहीं होता है जबकि बुध दूसरे एंव ग्यारहवें भाव अधिपति होकर जीवन समाप्त करने की क्षमता रखता है।
कन्या-
कन्या लग्न के लिए सूर्य बारहवें भाव का मालिक होकर भी मृत्यु नहीं देता है। यदि द्वितीयेश शुक्र , सप्तमाधिपति गुरू तथा एकादश भाव का स्वामी पापक्रान्त हो तो मारक बनते है किन्तु इन तीनों में कौन सा ग्रह मृत्यु दे सकता है। इसका स्क्षूम विश्लेषण करना होगा।
तुला-
तुला लग्न में दूसरे और सातवें भाव का मालिक मंगल मारकेश नहीं होता है, परन्तु कष्टकारी पीड़ा जरूर देता है। इस लग्न में शुक्र और गुरू यदि पीडि़त हो तो मारकेश बन जाते है।
वृश्चिक-
वृश्चिक लग्न के लिए गुरू दूसरे भाव का मालिक होकर भी मारकेश नहीं होता है। यदि बुध निर्बल, पापक्रान्त हो अथवा अष्टम, द्वादश, या तृतीय भावगत होकर पापग्रहों से युक्त हो जाये तो मारकेश का रूप ले लेगा।
धनु-
धनु लग्न में शनि द्वितीयेश होने के उपरान्त भी मारकेश नहीं होता है। बुध भी सप्तमेश होकर भी मारकेश नहीं होता है। शुक्र निर्बल, पापक्रान्त एंव क्रूर ग्रहों के साथ स्थिति हो तो वह मारकेश अवश्य बन जायेगा।
मकर-
मकर लग्न में शनि द्वितीयेश होकर भी मारकेश नहीं होता है क्योंकि शनि लग्नेश भी है। सप्तमेश चन्द्रमा भी मारकेश नहीं होता है। मंगल एंव गुरू यदि पापी या अशुभ स्थिति में है तो मारकेश का फल देंगे।
कुम्भ-
कुम्भ लग्न में बृहस्पति द्वितीयेश होकर मारकेश है किन्तु शनि द्वादशेश होकर भी मारकेश नहीं है। मंगल और चन्द्रमा भी यदि पीडि़त है तो मृत्यु तुल्य कष्ट दे सकते है।
मीन-
मीन लग्न में मंगल द्वितीयेश होकर भी मारकेश नहीं होता है। मीन लग्न में शनि और बुध दोनों मारकेश सिद्ध होंगे। अष्टमेश सूर्य एंव षष्ठेश शुक्र यदि पापी है और अशुभ है तो मृत्यु तुल्य कष्ट दे सकते है।
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