शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

aja ekadashi 2020

नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है।

सनातनी वैष्णव भक्तों के धर्म अर्थ काम मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाले परम प्रिय व्रत एकादशी की महिमा से हमारे समस्त प्रिय श्रोता परिचित हैं। किंतु प्रसंगवश भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की एकादशी व्रत की जानकारी के लिए आज चर्चा करना प्रासंगिक ही है। यदि आप प्रथम बार वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल पर उपस्थित हुए हैं तो इस परिवार का सदस्य बनने हेतु चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो की जानकारी प्राप्त करने के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट करना न भूलें। क्योंकि समय समय पर हम इस चैनल के माध्यम से व्रत पर्वों के विधि विधान मुहूर्त सहित सम्पूर्ण जानकारी के साथ साथ साप्ताहिक, मासिक राशिफल एवं ग्रहों के गोचर के प्रभाव की पूर्ण जानकारी जनकल्याण हेतु प्रेषित करते हैं।

भद्र कहते हैं कल्याण के लिए। अर्थात भद्र शब्द का शाब्दिक अर्थ है कल्याण। और भाद्रपद का अर्थ है वह चरण , जिसके उपस्थित होने से ही जीव मात्र का कल्याण हो जाए। भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य हुआ था। अतः जिस माह में स्वयं भगवान ही प्रकट हुए हों वह माह भगवद्भक्तों का परम कल्याण करने वाला ही सिद्ध होगा। 

भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। जो कि इस वर्ष 15 अगस्त 2020 यानी कि शनिवार के दिन है।

ऐसी मान्यता है इस व्रत को धारण करने वालों को उनके द्वारा जीवन में किए गए समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

अजा एकादशी जिसे कामिका एकादशी भी कहते हैं, इस दिन विशेष रूप से श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सभी एकादशी व्रतों में से भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अजा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति का परम कल्याण होता है, साथ ही व्रती को सर्वश्रेष्ठ फलों की प्राप्ति भी होती है। 

अजा एकादशी के शुभ मुहूर्त की बात करें तो अजा एकादशी का व्रत 15 अगस्त को रखा जाएगा।। एवं अजा एकादशी व्रत का पारण मुहूर्त 16 अगस्त 2020 को प्रातः 5 बजकर 50 मिनट से  प्रातः 8 बजकर 28 मिनट तक है।

एकादशी व्रत हर महीने के दोंनो पक्षों में रखा जाने वाला व्रत है, जिसमें व्यक्ति को अपनी इंद्रियों, आहार, मन और व्यवहार पर संयम रखने की आवश्यकता होती है। अजा एकादशी का व्रत साल में आने वाली सभी एकादशी के व्रत से श्रेष्ठ माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति को उसके द्वारा जीवन भर में किए सभी पापों से मुक्ति मिलती है, और मृत्यु उपरांत परमलोक की प्राप्ति होती है। इस व्रत के महत्व के विषय में सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को बताया था। भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि जो भी व्यक्ति भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी को श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करेगा, उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होगी। 

अजा एकादशी व्रत के पौराणिक और धार्मिक महत्व के चलते प्राचीन समय से लेकर आज तक यह व्रत रखे जाने का विधान है। इस व्रत की महत्ता आप इसी बात से समझिए कि इस दिन से जुड़े कथा को केवल सुनने मात्र से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। अजा एकादशी के व्रत से व्यक्ति काम क्रोध लोभ मोह आदि समस्त विकारों से ऊपर उठकर धर्म के मार्ग का अनुसरण करने लगता है। 

प्रत्येक व्रत पर्व में कुछ करणीय और कुछ अकरणीय कर्म होते हैं।

वैसे तो हर एकादशी का व्रत बहुत महत्वपूर्ण होता है और उस दिन से जुड़े कुछ विशेष नियम होते हैं, जिनका व्रती को पालन करना होता है, लेकिन यदि आप अजा एकादशी का व्रत रखते हैं तो आपको विशेषतौर पर कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। जैसे

  • दशमी तिथि की रात को यानि एकादशी से एक दिन पहले मसूर की दाल खाने की मनाही होती है। ऐसा माना गया है कि अगर जातक व्रत से पहले मसूर की दाल का सेवन करे, तो उसे शुभ फलों की प्राप्ति नहीं होती है। 
  • अजा एकादशी व्रत वाले दिन शहद का सेवन या इस्तेमाल करना भी अशुभ माना गया है। ऐसा करने से आपके द्वारा रखा गया अजा एकादशी का व्रत सफल नहीं माना जाता है।
  • भगवान विष्णु की विशेष कृपा पाने के लिए व्रत रखने वालों को दशमी और एकादशी के दिन पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। 
  • अजा एकादशी का व्रत रखने वाले को चने, चने का आटा या करोदों आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए। यहाँ तक कि आप पूजा आदि में भी चने का इस्तेमाल न करें।

अजा एकादशी व्रत को रखने वाले भक्तों को दशमी तिथि से ही इस व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए।    

  • सबसे पहले एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करें और स्वच्छ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें।  
  • अब पूजा स्थल को अच्छे से गंगाजल गौमूत्र या स्वच्छ जल से साफ करें और वहां लाल या पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र रखें। 
  • भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाएं, धूप, दीप, नेवैद्य, फूल और फल चढ़ाकर पूरी  भक्तिभाव से पूजा करें। पूजा में तुलसी का प्रयोग अवश्य करें, ऐसा करने से भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं। 
  • इस दिन माता लक्ष्मी की भी पूजा किए जाने का विधान है, इसलिए माता लक्ष्मी की भी विधिपूर्वक पूजा करें। 
  •  इसके बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। पाठ पूरा होने के बाद आरती करें। 
  • अजा एकादशी में निराहार और निर्जल रहकर व्रत का पालन करें। हालांकि यदि ऐसा संभव न हो तो आप फलाहार कर सकते हैं। 
  • इस व्रत में रात में जागरण व् कीर्तन करें। 
  • द्वादशी के दिन प्रातः काल विधिवत पूजा-पाठ करने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें। और अब स्वयं व्रत का पारणा करें। 
  • व्रत के दिन व्रतकथा सुनने का विशेष महत्व होता है, अतः आइये हम सब भी मिलकर इस दिव्य कथा में अवगाहन करें।

अजा एकादशी व्रत कथा

अजा एकादशी व्रत की कथा सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र से जुड़ी है। अपने सत्य वचनों के लिए राजा हरिश्चंद्र आज भी इतिहास के पन्नों में जीवित हैं। एक बार देवताओं ने मिलकर इनकी सत्यता की परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा को एक स्वप्न आया, जिसमें उन्होंने देखा कि अपना सारा राजपाट उन्होंने ऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया है। अगले दिन राजा हरिश्चन्द्र ने विश्वामित्र को अपना सारा राज-पाठ सौंप दिया और राजमहल छोड़कर जाने लगे, तब विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा के रुप 500 सोने की मुद्राएं मांगी। 

राजा हरिश्चन्द्र ने विश्वामित्र से कहा कि उन्होंने अपने पूरे राजपाट के साथ-साथ राज्यकोष भी दान में उन्हें में दे दिया और अब उनके पास अपनी पत्नी और बेटे के अलावा कुछ नहीं बचा। राजा ने विश्वामित्र की मांग को पूरा करने के लिए अपनी पत्नी, पुत्र और स्वयं को एक चांडाल को बेच दिया और बदले में मिली स्वर्ण मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दीं।  वे अपनी पत्नी और बेटे से बिछड़ गए और उस चांडाल के यहाँ काम करने लगे। चांडाल ने राजा को श्मशान भूमि पर होने वाले दाह संस्कार की वसूली का काम दे दिया।

एक दिन राजा आधी रात के समय श्मशान के द्वार पर पहरा दे रहे थे। तभी वहां एक स्त्री बिलखते हुए अपने पुत्र का शव हाथ में लिए पहुंची। वो महिला कोई और नहीं बल्कि राजा हरिश्चन्द्र की पत्नी थी, जो अपने पुत्र के मृत्य शरीर का दाह-संस्कार करने वहां आयी थी।  अपने धर्म का पालन करते हुए राजा ने अपनी पत्नी से दाह संस्कार के लिए पैसे माँगे। राजा राजा की पत्नी के पास उन्हें देने के लिए धन नहीं था, इसलिए उसने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़कर कर के रूप में राजा का दे दिया। 

राजा हरिश्चंद्र की कर्त्तव्य निष्ठा देख भगवान वहां प्रकट हुए और उनका राज पाठ उन्हें लौटा दिया और साथ ही राजा के पुत्र को भी जीवित कर दिया। कहा जाता है कि जिस दिन यह घटना हुई थी, उस दिन अजा एकदशी व्रत था। राजा हरिश्चंद्र के साथ ही उनकी पत्नी ने भी सुबह से अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था। दोनों को ही इस एकदशी व्रत का फल मिला। 

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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