नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। हमारा यह देश, भारतवर्ष ऋषि महर्षियों की तपोभूमि है। समस्त सनातनी धर्मावलम्बी भारतीय ऋषि महर्षियों की ही सन्तानें हैं। वैसे तो प्रत्येक धर्मानुरागी सदैव ही अपने पूर्वजों ऋषि महर्षियों को सदा ही स्मरण करते हुए उनके द्वारा दिए गए ज्ञान के प्रति सदैव आभार व्यक्त करता ही रहता है, किन्तु वर्ष में एक दिन ऐसा भी आता है जब हम विशेष रूप से अपने पौराणिक ऋषि महर्षियों को याद करते हैं। उनकी याद में व्रत धारण करते हैं। जिसे हिन्दू पञ्चाङ्ग परम्परा के अनुसार ऋषि पंचमी व्रत के नाम से जाना जाता है।
ऋषि पंचमी व्रत का पौराणिक माहात्म्य, व्रत कथा एवं इसके पूजन की संपूर्ण विधि के बारे में हम आज विस्तृत रूप से चर्चा करने वाले हैं। अतः आप बने रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
हिन्दू धर्म में ऋषि पंचमी का महत्व पौराणिक काल से ही विशेष बताया गया है। इस दिन भक्ति भाव श्रद्धा पूर्वक व्रत धारण करने से व्यक्ति ऋषि ऋण से मुक्त हो जाता है। ऋषि पंचमी प्रति वर्ष एक पर्व की तरह नहीं बल्कि एक व्रत की भांति मनाई जाती है, जिसका व्रत मुख्य तौर से सप्त ऋषियों को समर्पित होता है। इस दिन महिलाएं एवं पुरुष समान रूप से सातों ऋषियों की पूजा कर उनसे धन-धान्य, समृद्धि, संतान प्राप्ति तथा सुख-शांति की कामना करते हुए व्रत रखते हैं। हिंदु पञ्चाङ्ग परम्परा के अनुसार ऋषि पंचमी का ये पवित्र व्रत हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को रखे जानें का विधान है। वहीं आंग्ल मत के अनुसार यह व्रत हर साल अगस्त या सितम्बर महीने में आता हैं। इस वर्ष 2020 में ये पवित्र ऋषि पंचमी का व्रत 23 अगस्त 2020 रविवार को देशभर में श्रद्धालुओं द्वारा रखा जाएगा। इस व्रत के माध्यम से समस्त सनातनी भारतीय सप्त ऋषियों के प्रति अपनी श्रद्धा, कृतज्ञता, समर्पण, व सम्मान व्यक्त करेंगे।
सनातन धर्म में किसी भी पूजा या आराधना के लिए पवित्रता का बहुत अधिक महत्व होता हैं। पुराने समय में मासिक धर्म के समय महिलाओं के लिए पूजा-आराधना के लिए कई तरह के नियम निर्धारित किए गए थे, और कहा गया कि इन नियमों का पालन न होने से दोष लगता है। अतः इस दोष के निवारण के लिए भी विशेषकर महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं।
अब बात करते हैं ऋषि पंचमी व्रत पूजा विधि के बारे में।इस व्रत की पूजा विधि दूसरे व्रतों से थोड़ी अलग तरह की होती है। इस व्रत वाले दिन व्रती को प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान आदि नित्यकर्म करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद घर के पूजा गृह में गोबर से चौका लगाकर या अच्छी तरह साफ़-सफाई कर उसे शुद्ध कर लें। इसके बाद पूजा स्थान पर एक चौकी में सफेद कपड़ा बिछाकर रोली या सुपारी से सप्त ऋषि बनाकर उनके समक्ष व्रत करने का संकल्प लें। फिर सप्तऋषियों की धूप दीप गंध अक्षत से श्रद्धा-भाव से पूजा करें। पूजा स्थान पर एक कलश की स्थापना अवश्य करें। इस दौरान मिट्टी के ही कलश का प्रयोग करना श्रेष्ठ रहता है। इसके पश्चात ऋषि पंचमी व्रत की कथा सुने। फिर आरती करने के बाद सप्तऋषियों को भोग के लिए बनाया गया मीठा पकवान अर्पित करें। व्रती को इस व्रत के दौरान रात्रि में केवल एक समय ही भोजन करना होता है। इस दिन भोजन में हल चलाकर बोया हुआ कोई भी अनाज नहीं खाना चाहिए। केवल फल या रोपाई किए हुए धान के चावल से बना भोजन ही इस व्रत में खाया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को धारण करने वाली महिलाओं को प्रतिवर्ष ही इस व्रत को करना आवश्यक होता है। वृद्धावस्था में ही व्रत का उद्यापन किया जाता हैं। इसके उद्यापन के दौरान भी कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है। जैसे, इस व्रत के उद्यापन के लिए विधि पूर्वक पूजा कर ब्राहमण भोज करवाया जाता हैं। उद्यापन के समय भोज के लिए सात ब्रह्मणों को सप्त ऋषि का रूप मानकर उन्हें वस्त्र, अन्न, दान, दक्षिणा, अपनी श्रद्धा अनुसार दी जाती है।
किसी भी व्रत में व्रत कथा सुनने का विशेष महत्व होता है। अतः आइए हम सब भी मिलकर ऋषि पंचमी व्रत कथा को श्रवण करें।
ऋषि पंचमी व्रत के संदर्भ में भगवान ब्रह्मा ने इस व्रत को कलयुग में सभी पापों से दूर करने वाला विशेष व्रत बताया है। जिसका श्रद्धा पूर्वक पालन करने से विशेषरूप से महिलाओं को अपने हर दोष से मुक्ति मिलती है। इस व्रत के पूजन की कथा के अनुसार, पौराणिक काल में एक राज्य में ब्राह्मण पति पत्नी बहुत प्रेम-भाव के साथ रहते थे। दोनों ही पति-पत्नी धर्म पालन में अग्रणी थे। उनकी दो संताने भी थी एक पुत्र एवं दूसरी पुत्री। बेटी के विवाह योग्य होने पर दोनों ब्राहमण दंपति ने उसका विवाह एक अच्छे कुल में किया। परन्तु विवाह के कुछ समय बाद ही बेटी के पति की किसी कारण वश मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु होने के बाद ब्राह्मण की बेटी अपने वैधव्य व्रत का पालन करने हेतु नदी किनारे एक कुटियाँ में रहने लगी। कुछ समय बाद ही विधवा बेटी के शरीर में रोग उत्पन्न हो जाने के कारण कीड़े पड़ने लगे। बेटी के इस दुर्दशा को देख ब्राह्मणी मां रोने लगी और उसने ब्राहमण पति से बेटी की इस दशा का कारण पूछा। जिसके बाद ब्राहमण ने अपनी दिव्य शक्ति से अपनी बेटी के पूर्व जन्म को देखा, जिस दौरान उसे ज्ञात हुआ कि पूर्व जन्म में उसकी बेटी ने ऋतुस्नान के समय नियमों का पालन नहीं किया और वर्तमान जन्म में दोष से मुक्ति पाने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया। इसी कारण उसके जीवन में सौभाग्य नहीं हैं और उसकी ये दशा हो रही है। पिता द्वारा पूरी बात बताए जाने के बाद ही ब्राह्मण की पुत्री ने पूरे विधि विधान के साथ ऋषि पंचमी के व्रत का पालन शुरू कर दिया। जिसके पश्चात उसे अगले जन्म में पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति हुई। इस व्रत का पालन करने से माना जाता है कि न केवल महिलाओं को दोषों से मुक्ति मिलती है बल्कि इसके साथ-साथ उन्हें संतान प्राप्ति एवं अपने दांपत्य जीवन में भी सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है। ऐसे में हर स्त्री को इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए। यह व्रत महिलाओं के जीवन की दुर्गति को समाप्त कर उन्हें पाप मुक्त जीवन प्रदान करता है।
वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है। नमस्कार
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