शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

जन्माष्टमी

नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। 
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम ।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
जब जब होहिं धरम के हानि।
बाढहिं असुर अधम अभिमानी।।
तब तब प्रभु धरि विविध शरीरा।
हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
जल प्रलय के बाद जीव जगत की पुनर्स्थापना करनी थी तो एक परम् शक्ति ने जीव जगत के समस्त जड़ चेतन की बीज रूप में रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया। उसी परम् शक्ति ने समस्त जीवों के आधार पृथ्वी के उद्धार हेतु वराह अवतार लिया। कभी देवताओं के कार्य की सिद्धि हेतु कच्छप बन कर मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ में धारण कर समुद्र मंथन सम्पादित किया, तो कभी मोहिनी रूप में दैत्यों को छलकर देवताओं को अमृत पान करवाया। एक छोटे से 5 वर्ष के बालक की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर कभी वही करुणामयी शक्ति संसार के समस्त वैभवों के साथ ही भक्त के लिए अटल ध्रुव लोक की स्थापना कर देते हैं, तो कभी दैत्य कुल में जन्मे भक्त बालक की रक्षा के लिए आवेश में आकर विचित्र नृसिंह रूप धारण कर लेते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रूप में वही परम् शक्ति स्वयं उच्च मर्यादाओं में बंधकर जहां अन्याय अत्याचार का अंत कर रामराज्य की स्थापना करती है। वहीं एक अवतार उस परम शक्ति नारायण का ऐसा भी है जिसने कारावास में अवतार धारण करने के उपरांत भी अत्याचारियों का अंत, न्याय धर्म नीति के साथ साथ साम दाम दंड भेद , जब जिस रीति की आवश्यकता उपस्थित हुई उसी रीति से किया। तभी तो उन्हें पूर्णावतार कहा जाता है, यदि नाम की बात करें, तो, इनके नाम अनेक अनूपा, के अनुसार इनके तो हजारों नाम हैं। जो भी भक्त इन्हें जिस भी नाम से भाव से पुकार ले, वही इनका नाम हो जाता है। कोई गोविंद तो कोई गोपाल, कोई नटवर तो कोई नंदलाल, कोई गिरधारी तो कोई बनवारी, जिसे जो भाए उसी नाम से पुकारे। किंतु एक नाम ऐसा है जिससे पूरा विश्व परिचित है। वह है कृष्ण। 
उन्हीं भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस को श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के रूप में पूरे भारतवर्ष में पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी पर्व को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं। अतः भगवान श्री कृष्ण के पावन जन्मोत्सव पर्व जन्माष्टमी व्रत की पूर्ण जानकारी के लिए आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। 
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण जी के अवतरण दिवस जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
देवकी एवं वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में मथुरा नगरी में स्थित भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को कंस के करावास में भगवान कृष्ण चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए, माता देवकी के आग्रह पर श्री कृष्ण जी ने बालक रूप धारण किया। ततपश्चात अत्याचारी कंस के भय से वासुदेव जी बालक कृष्ण को गोकुल में नंदबाबा के घर छोड़ आए और वहाँ से नंद यशोदा की पुत्री , जो कि स्वयं भगवान की माया ही थी, उनको लेकर कारावास में लौट आए। 
श्रीकृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ। अतः उनके जन्म की प्रसन्नता में नंदबाबा के महल में समस्त व्रज वासियों ने नवमी तिथि को उत्सव मनाया था।
तभी से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार पूरे देश में भाव व श्रद्धा से मनाया जाता है।
गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पर्व स्मार्त और वैष्णव भेद से दो दिन मनाया जाएगा। इस व्रत के सम्बंध में दो मत प्रचलित हैं। सामान्य गृहस्थी, जिन्हें स्मार्त कहा जाता है, वह सप्तमी युता अष्टमी में व्रत उपवास करते हैं। जो कि इस वर्ष 11 अगस्त 2020 मंगलवार को है। जबकि वैष्णव मतावलम्बी नवमी विद्धा अष्टमी तिथि को व्रत करते हैं। अधिकांश शास्त्रकारों ने अर्धरात्रि अष्टमी तिथि में ही व्रत पूजन एवं उत्सव मनाने की पुष्टि की है। क्योंकि श्रीमद्भागवत आदि महापुराणों ने भी अर्द्धरात्रि युक्ता अष्टमी में ही भगवान श्री कृष्ण के जन्म की पुष्टि की है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि मथुरा वृन्दावन में तो वर्षों की परम्परा अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव  जन्माष्टमी पर्व को सूर्य उदयकालिक एवं नवमी विद्धा अष्टमी को ही मनाने की परम्परा है। जबकि देश के अन्य समस्त भागों में चन्द्रोदय व्यापिनी जन्माष्टमी में व्रतादि करने की परम्परा है।
अतः गृहस्थियों के लिए इस वर्ष 11 अगस्त 2020 एवं वैष्णवों के लिए 12 अगस्त 2020 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पर्व है।
 
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिरों को खासतौर पर सजाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण के प्रेमी भक्त अपने घरों में भी भगवान की सुंदर झांकियां सजाते हैं। जन्माष्टमी पर पूरे दिन व्रत रखकर मध्य रात्रि 12 बजे भगवान का अभिषेक पूजन के उपरांत भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं।
साथ ही भजन गाते हुए भगवान श्रीकृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन भी होता है।
जन्माष्टमी के दिन देश में अनेक जगह दही-हांडी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। दही-हांडी प्रतियोगिता में सभी जगह के बाल-गोविंदा भाग लेते हैं। छाछ-दही आदि से भरी एक मटकी रस्सी की सहायता से ऊँचाई पर लटका दी जाती है और बाल-गोविंदाओं द्वारा मटकी फोड़ने का प्रयास किया जाता है। दही-हांडी प्रतियोगिता में विजेता टीम को उचित इनाम दिए जाते हैं। जो विजेता टीम मटकी फोड़ने में सफल हो जाती है वह इनाम प्राप्त करती है। 
यदि जन्माष्टमी व्रत विधि की बात करें तो प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर शौच मज्जन स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान कृष्ण का ध्यान करें। सूर्य भगवान को अर्घ्य चढाएं, एवं अपने घर के मंदिर में ही बाल कृष्ण लाल के लिए सुंदर पालना या झूला सजाएं। फिर भगवान कृष्ण की जल रोली अक्षत फूल फूलमाला धूप दीप से पूजन करें एवं भगवान को माखन मिश्री का भोग लगाएं। फिर स्वयं पूरे दिन उपवास करें। उपवास में दूध एवं फल ग्रहण कर सकते हैं। फिर शाम को भजन संध्या करें। भगवन्नाम का संकीर्तन पूरे परिवार के साथ मिलकर करें। मध्यरात्रि 12 बजे जब भगवान कृष्ण का जन्म हो तब पुनः भगवान की पूजा करें। भगवान के बाल रूप लड्डूगोपाल जी को दूध दही घी शहद शक्कर पंचामृत से स्न्नान करवाकर गाय के दूध से अभिषेक करें। भगवान को भोग लगाएं और बाल कृष्ण की आरती उतारें। फिर सभी भक्तों को चरणामृत प्रसाद वितरण कर स्वयं भी चरणामृत प्रसाद ग्रहण करें। 
यदि स्वास्थ्य अनुकूल न हो तो भोजन कर सकते हैं किंतु पवित्रता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
 
वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार

https://youtu.be/V7q6c_5qB6w
 

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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