शनिवार, 1 अगस्त 2020

पवित्रा एकादशी

नमस्कार।
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श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पवित्रा एकादशी के रुप में मनाते हैं. इस वर्ष पवित्रा एकादशी का पर्व 30 जुलाई 2020 को है. पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है. पवित्रा एकादशी के महत्व को सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण जी ने धर्मराज युधिष्ठिर जी को बताया था।
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भगवान श्री कृष्ण के कथन अनुसार यदि नि:संतान व्यक्ति यह व्रत पूर्ण विधि-विधान व श्रद्धा से करता है तो उसे अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है. अत: संतान सुख की इच्छा रखने वालों को इस व्रत को नियम पूर्वक अवश्य धारण करना चाहिए।

इस व्रत के समस्त नियमों का पालन करने से, भगवान विष्णु की कृपा आशीर्वाद से अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पवित्रा एकादशी व्रत करने से, पवित्रा एकादशी व्रत की कथा का श्रवण एवं पठन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है।इस व्रत के प्रभाव से वंश वृद्धि होती है तथा व्यक्ति इस धरा के समस्त सुख भोगकर अंत में भगवान नारायण के नित्य वैकुण्ठ को प्राप्त करता है।

पवित्रा एकादशी पूजा की पूजा विधि की बात करें तो अन्य एकादशियों की ही तरह इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है।व्रती को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए। सर्वप्रथम आचमन कर देह शुद्धि करें। तिलक लगाएं और हाथ जोड़कर भगवन्नाम स्मरण कर आत्मशुद्धि करें। ततपश्चात व्रत का संकल्प लें।जल दूध दही घी शहद शक्कर से भगवान के श्री विग्रह को भाव से स्नान करवाएं। स्वच्छ जल से स्न्नान करवाकर आसन पर स्थापित करें। फिर गंध तिलाक्षत  धूप-दीप आदि से भगवान नारायण की अर्चना करें।फिर तुलसी पत्र या तुलसी माला भगवान को अर्पण करें। धूप दीप जलाकर, भगवान की स्तुति करने के उपरांत भाव से भगवान को भोग लगाएं। फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामर्थ्य अनुसार भगवान नारायण को अर्पित कर सकते हैं। पूजा में रह गई कमियों के दोष को दूर करने हेतु दक्षिणा अवश्य ही चढ़ानी चाहिए।
फिर पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा श्रवण  के पश्चात फलाहार किया जाता है इस दिन दीप दान करने का विशेष महत्व है।सन्ध्या काल में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए दीप दान करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय द्वादशाक्षर मन्त्र का जप एवं एकादशी कथा का श्रवण अवश्य करें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरांत ही व्रत का पारण करें।
आइये हम सब भी मिलकर पवित्रा एकादशी व्रत की कथा का मन लगाकर श्रवण करें।

प्राचीन काल में एक सुकेतुमान नाम के राजा हुए।सुकेतुमान राजा की कोई संतान नहीं थी, इस बात को लेकर वह सदैव चिंतित रहते थे।जब बहुत समय तक उन्हें सन्तान प्राप्ति नहीं हुई तो एक दिन राजा सुकेतुमान वन की ओर चल दिए। चिंतामग्न वह अत्यन्त घने वन में चले गए और चलते-चलते राजा को बहुत प्यास लगने लगी। वह जल की तलाश में वन में और अंदर की ओर चले गए जहाँ उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया। राजा ने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी बने हुए है और बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे हैं।

राजा ने सभी मुनियों को बारी-बारी से प्रणाम किया। ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया। फिर राजा ने ऋषियों से उनके निर्जन वन में एकत्रित होने का कारण पूछा। मुनियों ने कहा कि वह विश्वेदेव हैं। अभी परम् पवित्र श्रावण मास चल रहा है,अतः हम सभी सरोवर 
में स्नान के लिए आये हैं। 

राजा ने यह सुनते ही कहा हे विश्वेदेवगण यदि आप सभी मुझ पर प्रसन्न हैं तब आप मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दें. मुनि बोले हे राजन आज से पाँचवें दिन श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पवित्रा एकादशी है। जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है।
आप इस व्रत को रखें और भगवान नारायण की आराधना करें। राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिवत तरीके से पवित्रा एकादशी का व्रत रखा और अनुष्ठान किया। व्रत के शुभ फलों द्वारा राजा को संतान की प्राप्ति हुई।
इस प्रकार जो व्यक्ति इस व्रत को रखते हैं उन्हें अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। संतान होने में यदि बाधाएं आती हैं तो इस व्रत के रखने मात्र से वह दूर हो जाती हैं। जो मनुष्य इस व्रत के महात्म्य को सुनता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पवित्रा एकादशी व्रत का महत्व समझ कर सन्तान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को सन्तान प्राप्ति की कामना से पवित्रा एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए। 

वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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