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सनातन धर्म संस्कृति में व्यक्ति के जन्म के समय आकाश मण्डल में उपस्थित ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के अनुसार ज्योतिषीय गणना कर ,जातक के जन्मपत्रिका निर्माण की श्रेष्ठ परम्परा आदिकाल से ही प्रचलित है। जन्मकुंडली के ही आधार पर गणना कर ज्योतिषी, व्यक्ति के भूत भविष्य वर्तमान के बारे में विचार करते हैं। व्यक्ति की कुंडली में कई तरह के योग होते हैं। कुछ योग ऐसे होते हैं जो आपका भाग्य, और जीवन बदलने की क्षमता रखते हैं, तो वहीं कुछ ऐसे भी योग होते हैं जो इंसान के जीवन में समस्याओं और असफलताओं का कारण बनते हैं। यहाँ यह समझना अतिआवश्यक है की ग्रहों की युतियों, स्थितियों को ही योग कहा जाता है। योग शब्द का शाब्दिक अर्थ ही है जुड़ना। जब दो या दो से अधिक ग्रहों की युति हो, या कुंडली के द्वादश भावों में से किसी विशेष भाव में किसी विशेष ग्रह की कोई विशिष्ट स्थिति हो, तो जन्मकुंडली में योग का निर्माण होता है। यह योग यदि शुभ फलदायी हों, तो राजयोग कहलाते हैं, वहीं यदि ग्रहों के योग से जातक को अशुभ फलों की प्राप्ति हो रही हो, तो यही योग दुर्योग या दोष कहलाते हैं। यदि जन्मपत्रिका में कोई शुभ योग उपस्थित हो , और उसकी जानकारी जातक को न हो, तो भी वह योग अपने शुभ प्रभाव से, जातक के जीवन को सफलता ही प्रदान करेगा। किन्तु यदि कुंडली में किसी भी प्रकार के किसी दुर्योग का निर्माण हो रहा हो और उस अशुभ योग से व्यक्ति अनभिज्ञ हो, तो ऐसे में व्यक्ति को जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है, और व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, शारिरिक रूप से ऐसा जातक अनेक कष्ट भोगता रहता है।
अतः यह आवश्यक हो जाता है कि व्यक्ति को अपनी जन्मकुंडली में उपस्थित किसी भी प्रकार के दुर्योगों की जानकारी होनी ही चाहिए। ताकि वह उन दोषों के दुष्प्रभाव से बचने हेतु उचित उपाय कर सके।
आज हम एक ऐसे ही योग, केमद्रुम के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं जिसे ज्योतिष की दुनिया में सर्वाधिक अशुभ योगों में से एक गिना जाता है। यह योग अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बनता है तो उसके प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में अनेक नकारात्मक परिणाम भोगने पड़ते हैं। केमद्रुम योग से प्रभावित लोगों को अपने जीवन में अनेक जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
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केमद्रुम योग जन्म कुंडली में होने वाला सबसे हानिकारक ग्रह दोषों में से एक है। केमद्रुम दोष तब होता है जब जन्म कुंडली में चंद्रमा किसी भी भाव में अकेले बैठा हो और दोनों ओर आगे या पीछे के भावों में कोई भी ग्रह उपस्थित न हों। अर्थात जब चंद्रमा जिस भाव में बैठा हो उस से दूसरे और बारहवें घर में कोई ग्रह स्थित नहीं हो तो केमद्रुम योग बनता है। इसके दुष्प्रभाव के कारण इसे केमद्रुम दोष कहा जाता है। इसे सर्वाधिक अशुभ दोष माना जाता है क्योंकि इसकी वजह से व्यक्ति के जीवन में अनेक परेशानियां उत्पन्न होती हैं। ऐसा माना गया है की ऐसा व्यक्ति जिसकी कुंडली में यह दोष होता है उसे यदि समस्त वैभव ही प्राप्त क्यों न हों, फिर भी उसका जीवन सदैव अभाव ग्रस्त ही व्यतीत होता है। और जीवन के अंत में भी वह अभावग्रस्त मृत्यु को ही प्राप्त होता है।
केमद्रुम दोष का नकारात्मक प्रभाव जीवन को दुखद और बहुत ही संघर्ष पूर्ण बना देता है। इसका प्रभाव प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है। यदि व्यक्ति इस दोष से प्रभावित है तो वह हर समय अकारण ही चिंतित और भयभीत रहता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में बहुत उतार चढ़ाव आते हैं। केमद्रुम दोष से पीड़ित व्यक्ति को जीवन में बहुत ही अधिक आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है। कुंडली में केमद्रुम दोष होने केे कारण व्यक्ति के स्वभाव में गुस्सा और चिड़चिड़ापन बहुत अधिक रहता है। साथ ही ऐसा व्यक्ति अपने विवाहित जीवन और बच्चों को साथ बनाए रखने में सक्षम नहीं हो पाता। स्वयं की आर्थिक उन्नति के लिए जीवन में अनैतिक मार्ग का चयन करता है। उसका जीवन सदैव दूसरों पर ही निर्भर होता है।
यदि किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में केमद्रुम दोष है, तो समय से इसका निदान करके दुष्प्रभावों को उपायों के माध्यम से कम किया जा सकता है।
केमद्रुम दोष से पीड़ित व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति के लिए 4 साल तक निरन्तर पूर्णिमा के व्रत उपवास रखने चाहिए।
सोमवार के व्रत धारण करने से भी इस दोष का अशुभत्व दूर होता है। भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना श्रेष्ठ रहता है। अतः सोमवार को शिवलिंग पर कच्चा दूध और काले तिल मिश्रित जल का अभिषेक करें साथ ही सर्वतोभद्र यंत्र को अपने घर के पूजा स्थान में स्थापित करें और “ॐ सों सोमाय नमः” इस मंत्र का प्रतिदिन 1 माला, अर्थात 108 बार जाप करें।
श्री दुर्गा सप्तशती के मंत्र “दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।।” से सम्पुटित कर 21 पाठ ब्राह्मणों द्वारा करवाएं। सफेद रंग की वस्तुओं जैसे चावल, दूध, सफेद फूल, कपूर, सफेद वस्त्र और सफेद मोती आदि का दान पूर्णिमा या सोमवार के दिन करें। सोमवार को दाहिने हाथ की कनिष्ठिका उंगली में चाँदी से जड़ी सफेद मोती की अंगूठी को धारण करें। घर के मंदिर में कनकधारा यंत्र स्थापित करें और प्रतिदिन 3 बार कनकधारा स्तोत्र पढ़ें।साथ ही श्री शिव् दारिद्रय दहन स्तोत्र का 1008 पाठ करवाना केमद्रुम दोष से बचने हेतु श्रेष्ठ उपाय है।
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