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सनातन वैदिक हिन्दू धर्मशास्त्रों में शरीर और मन को संतुलित करने के लिए अनेक व्रत और उपवास बताए गए हैं। जिनमें से कुछ व्रत साप्ताहिक कुछ मासिक तो कुछ व्रत वार्षिक होते हैं। सभी व्रतों का अपना विशिष्ट महत्व होता है। किंतु इन समस्त व्रत और उपवासों में सर्वाधिक महत्व समस्त वैष्णवों के परमप्रिय पाक्षिक व्रत एकादशी व्रत का है, जो प्रत्येक माह में दो बार, अर्थात शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष में एक एक बार पड़ती है।
प्रत्येक एकादशी का अलग अलग नाम एवं महत्व है। इसी क्रम में आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। अतः आज हम इंदिरा एकादशी व्रत के विषय में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।इंदिरा एकादशी व्रत के महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा के बारे में विस्तार से जानने के लिए आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
चूँकि ये एकादशी पितृपक्ष के दौरान आती है इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत रखने से दिवंगत पितरों की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का संबंध वैकुंठाधिपति भगवान नारायण से है। और मानव जीवन का परम उद्देश्य सही अर्थों में मोक्ष पद की प्राप्ति ही है। अतः पद्य पुराण के अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को मृत्यु के उपरांत वैकुण्ठ धाम में निवास मिलता है। इसके साथ ही साथ उनके पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि, इस व्रत को रखने से पितरों की आत्मा को मोक्ष पद की प्राप्ति होती है और वो इंदिरा एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव से भगवान नारायण के नित्य वैकुण्ठ को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं। इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति को जन्म मरण के चक्कर से भी मुक्ति मिलती है। हमारे पुराणों के अनुसार, एकमात्र इंदिरा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को इंद्र के समान सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। इंंदिरा एकादशी व्रत धारण कर, इन्द्राक्षी स्तोत्र के 51 पाठ करने मात्र से, समस्त आंतरिक एवं बाह्य शत्रुओं का नाश होता है। और व्रती को समस्त भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है।
इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों को चाहिए कि सर्वप्रथम सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि क्रियाओं से निवृत होने के पश्चात, उगते हुए भगवान सूर्य को, पूर्वाभिमुख होकर, तांबे के पात्र में शुद्ध जल भरकर , रोली अक्षत पुष्प मिलाकर अर्घ्य प्रदान करें। इसके बाद सबसे पहले व्रत का संकल्प लें। अपने नित्य पूजा कर्म आदि करें। एवं लकड़ी की एक चौकी पर पिला वस्त्र बिछाकर, रोली से अष्टदल निर्मित कर विधिवत कलश स्थापना करें। कलश के ऊपर रखे पूर्ण पात्र पर ही भगवान् विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को जल दूध दही घी शहद शक्कर पंचामृत से स्नान करवाएं। पुनः शुद्ध जल से स्नान करवाकर स्वच्छ वस्त्र एवं फूल फूलमाला आदि से भगवान का श्रृंगार करें। भगवान को तुलसी पत्र और तुलसी मंजरी अवश्य चढाएं। गौ माता के शुद्ध घी का दीप प्रज्वलित कर भगवान की आरती उतारें। अब भगवान को भाव से फल नैवेद्य ताम्बूल आदि का भोग लगाएं। साथ ही न्यूनातिरिक्त दोष के परिहार हेतु दक्षिणा अवश्य चढाएं।
ततपश्चात हाथों में फूल लेकर भगवान की स्तुति करें। एवं भगवान को पुष्पांजलि अर्पित कर, जयकारे लगाते हुए प्रणाम करें। पूजा विधि संपन्न होने के बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और साथ ही पितरों के लिए श्राद्ध की क्रिया पूरी करें। श्राद्ध क्रिया पूरी होने के बाद ब्राह्मणों को पितरों के निमित्त भोजन कराएं और उन्हें यथा शक्ति दान दक्षिणा अवश्य दें।
अब आइये, इंदिरा एकादशी व्रत कथा को भाव से श्रवण करें।
प्राचीन काल में महिष्मति नाम के नगर में इन्द्रसेन नाम का एक राजा हुआ करता था। एक दिन राजा ने सपने में देखा की उनके मृत पिता को नर्क में काफी यातनाएं झेलनी पड़ रही है। इस स्वप्न को देखने के बाद राजा काफी व्याकुल हो उठे और उन्होनें अपने पिता को इस कष्ट से बाहर निकालने के लिए देवर्षि नारद जी से सुझाव माँगा। नारद जी ने उन्हें इंदिरा एकदशी व्रत करने का सुझाव दिया, राजा ने नियम पूर्वक इस एकादशी का व्रत रखा और उससे मिलने वाले पुण्य को अपने पिता को अर्पित कर दिया। इसके फलस्वरूप उनके पिता नर्क की यातनाओं से मुक्ति पाकर भगवान विष्णु के नित्य बैकुंठ धाम गए और उनकी आत्मा को मोक्ष पद की प्राप्ति हुई।
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https://youtu.be/9yoPfA3WEbo
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