नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। और समस्त प्राणिमात्र में श्रेष्ठ भी है। मानव के सभी प्राणियों में श्रेष्ठ होने के अनेक कारण हैं। मनुष्य की श्रेष्ठता के समस्त कारणों में से एक मुख्य कारण है उसका विचारशील होना, और विचार के अनुरूप क्रियाशील होना। श्रेष्ठ मनुष्य वही है जो अपने विवेकपूर्ण कर्मों द्वारा स्वयं के साथ अपने परिवार, समाज और प्रकृति के अन्य प्राणियों, अर्थात जीव जंतुओं तक का भरण पोषण करने की इच्छा रखता है। किन्तु किसी भी भौतिक कर्म को सम्पादित करने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु है धन। यदि आपके पास धन है तभी आप अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने समाज के लिए, या जीवमात्र के लिए अनेको प्रकार के धार्मिक कर्म, जैसे प्याऊ लगवाना, अन्नक्षेत्र चलाना, रैनबसेरों का निर्माण, धर्मशालाओं का निर्माण, विद्यालय चिकित्सालय निर्माण आदि अनेकों धार्मिक कर्म कर पाएंगे। अतः इस भौतिक संसार में मनुष्यों के लिए धन एक मुख्य अंग है। किंतु क्या सभी मनुष्यों को जीवन में धन सहज रूप में ही प्राप्त हो जाता है? आप सभी ने अपने आस पास ऐसी अनेक स्थितियां देखी होंगी, जब योग्य व्यक्ति भी निर्धन होता है, और एक अयोग्य व्यक्ति के पास धन की कोई कमी नहीं रहती। योग्य व्यक्ति धन कमाने के अनेक साधन अपनाता है, किन्तु कभी कभी ग्रहों नक्षत्रों की चाल कहें या भाग्य, व्यक्ति बार बार असफल होता रहता है। इसका मुख्य कारण जन्म कुंडली में उपस्थित ग्रहों द्वारा निर्मित अनेक प्रकार के योग ही होते हैं। आज हम धनोपार्जन के एक श्रेष्ठ साधन, व्यापार से जुड़ी अनेक ग्रह स्थितियों पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे। अतः आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
कोई भी व्यापार प्रारम्भ करना सहज होता है किन्तु उसे सफलतापूर्वक चलाने के लिए अनेक चीजों की आवश्यकता पड़ती है। अतः सर्वप्रथम तो यह बात मुख्यरूप से समझना अतिआवश्यक है, की व्यापार हमेशा वही करें जिस विषय में आपको जानकारी का अभाव न हो। और साथ ही जिस व्यापार के प्रति आप जनमानस का ध्यान आकर्षित करने में समर्थवान हों। यह ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार के व्यापार को धनोपार्जन का मुख्य स्रोत बनाने के लिए आपके अंदर क्रिएटिविटी और नेतृत्व क्षमता होनी अतिआवश्यक है।
इस बात में तनिक भी संदेह नहीं है कि क्रियाशीलता एक व्यापारी की जीवनरेखा होती है। साथ ही आपको काम करने वाले कर्मचारी तो बहुत मिल जाएंगे किन्तु उनसे काम करवाने के लिए आपके अंदर नेतृत्व क्षमता का होना भी परम् आवश्यक है।
कोई भी व्यक्ति जब किसी नए व्यापार को प्रारम्भ करता है तो उस कार्य में समय देना आवश्यक होता है। साथ ही धैर्य रखना अतिआवश्यक होता है, क्योंकि इससे आप सीखते हैं, आपको अनुभवों की प्राप्ति होती है। और इन्ही अनुभवों के आधार पर आप एक सफल व्यापारी बनते हैं।
जन्मकुंडली में लग्न से लेकर बारहवें भाव तक प्रत्येक भाव का अपना अलग अलग प्रभाव होता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली का बारहवाँ भाव, व्यय भाव कहलाता है। यह भाव, समय और धन की बर्बादी का है, परंतु यदि यह बारहवाँ भाव अनुकूल हो तो यह अनुभव देता है। नेतृत्व करने की क्षमता हमें कई ग्रह प्रदान करते हैं, इनमें सूर्य, मंगल और बृहस्पति प्रमुख हैं। इनमें से किसी एक ग्रह की शुभदृष्टि यदि जन्मकुंडली में आपके जन्म लग्न या जन्मराशि पर हो जाए तो किससे कैसे काम लेना है यह आपके लिए बहुत ही आसान हो जाता है अर्थात नेतृत्व क्षमता आप में जन्मजात ही विद्यमान होगी।
आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसका अपना कोई व्यवसाय हो। क्योंकि दूसरे के अधीन रहकर काम करना वास्तव में बड़ा कष्टकारी ही होता है। कहा भी गया है, पराधीन सपनेहु सुख नाहीं। काम चाहे छोटा हो , लेकिन अपना होना चाहिए। अतः इसी विचार से कई बार हम बहुत चुनौतियों का सामना करते हुए अपना कोई काम शुरू कर भी देते हैं, लेकिन वहां हम सफल होंगे या असफल यह कोई नहीं जानता है। ऐसे में जन्मकुंडली में उपस्थित ग्रह योगों के आधार पर ही व्यक्ति को व्यवसाय प्रारम्भ करना चाहिए। क्योंकि वैदिक ज्योतिष शास्त्र में ऐसी अनेक विधाएं उपस्थित हैं, जिनके द्वारा व्यक्ति की जन्मपत्रिका का विश्लेषण कर, जातक के लिए कौन सा व्यापार श्रेष्ठ रहेगा, अथवा किस व्यापार में सफलता मिलेगी, या व्यापार कब प्रारंभ करना चाहिए, आदि अनेकों विषयों को स्पष्ट किया जा सकता है। यदि आप भी किसी प्रकार का व्यापार करना चाहते हैं, तो व्यापार प्रारम्भ करने से पूर्व अपनी जन्मपत्रिका का विश्लेषण अवश्य करवा लें।
आइए अब चर्चा करते हैं कि एक व्यापार को सफलता पूर्वक चलाने के लिए कौन-कौन से ग्रह सहायक होते हैं।
एक सफल व्यापारी बनने के लिए ग्रह स्थिति और व्यक्ति की दृढ़ सोच बहुत महत्वपूर्ण होती है। किन्तु जन्मकुंडली में उपस्थित ग्रहों का यदि साथ मिल जाए तो व्यक्ति व्यापार की ऊंचाइयों तक सहज ही पँहुच जाता है।
एक सफल व्यापारी बनने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह हैं बुध। व्यापार के लिए बुध ग्रह की कृपा अवश्य होनी चाहिए क्योंकि बुध ग्रह व्यापार का मूल कारक ग्रह है, और एक सफल व्यापारी बनने के लिए बुध ग्रह की कृपा आवश्यक होती है, बुध ग्रह घोड़े को घास से दोस्ती नहीं करने देता।
व्यक्ति किस तरह के व्यवसाय में अधिक सफलता प्राप्त करेगा इसका निर्धारण जन्मकुंडली के प्रथम, द्वितीय, सप्तम, दशम एवं एकादश भाव में स्थित ग्रहों या इन भावों पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों से किया जाता है। अर्थात जिस जातक की जन्म कुंडली में प्रथम, द्वितीय, सप्तम, नवम, दशम एवं एकादश भाव के स्वामी एवं बुध ग्रह प्रबल रहतें हैं, ऐसे लोग समान्यतः स्वयं के व्यवसाय में अधिक सफल होते हैं।साथ ही जन्म कुंडली में कर्म का स्थान दसवां घर होता है। यदि किसी व्यक्ति का कर्म स्थान अच्छा है तो उस व्यक्ति का व्यवसाय अच्छा चलने की संभावना अधिक रहती हैं। जन्मकुंडली में कुछ ऐसे ग्रह योग उपस्थित होते हैं, जिनके प्रभाव से व्यक्ति व्यापार में अवश्य ही सफल होता है, जैसे,
यदि जन्म कुंडली के दशम भाव अर्थात कर्म स्थान में बृहस्पति ग्रह उपस्थित हों, तो यह केंद्रादित्य योग बनाता है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह योग होता है तो उस व्यक्ति का व्यवसाय अन्य जातकों की तुलना में ज्यादा अच्छा चलता है।
अगर कर्म स्थान पर बुध या सूर्य की दृष्टी हो या इन ग्रहों में से कोई ग्रह कर्म के स्थान (दसवें भाव) में विराजमान हो तो यह लक्ष्मी नारायण योग बनता है। इस प्रकार के जातकों को व्यवसाय में लाभ प्राप्त होने के अवसर ज्यादा प्राप्त होते हैं।
जातक की जन्म कुंडली में अगर मंगल उच्च का होकर कर्म भाव में विराजमान है तो ऐसे व्यक्ति के लिए व्यवसाय और विदेश यात्रा के अच्छे संयोग बन जाते हैं।
कुंडली के केंद्र में यदि कहीं भी गुरू और सूर्य या चंद्रमा और गुरु की युति हो रही हो तो इस योग का सीधा प्रवाह कर्म को जाता है। ज्योतिष शास्त्र में इसे वर्गोतम योग कहा जाता है। इस योग में व्यक्ति को सभी प्रकार की सुख-सुविधायें प्राप्त होती हैं।
सप्तम दृष्टी सभी ग्रहों की होती है। ब्रहस्पति, सूर्य या मंगल इन शुभ ग्रहों में से किसी की भी दृष्टी अगर दसवें घर पर हो तब भी कर्म भाव में अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता रहता है।
राहु ग्रह भी अगर कर्मभाव की तरफ देखता है या कर्म भाव में उच्च का होकर विराजमान हो तो यह भी योग व्यवसाय के लिए अच्छा माना जाता है। बेशक शनि, राहू और केतु अशुभ ग्रह माने जाते हैं किन्तु कई बार योग के कारण यह ग्रह अच्छे फल प्रदान कर देते हैं।
वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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