रविवार, 4 अक्तूबर 2020

चन्द्र ग्रह को मजबूत करने के उपाय

नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। मन
 ! मस्तिष्क की उस क्षमता को कहते हैं जो मनुष्य को चिंतन शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय शक्ति, बुद्धि, भाव, इंद्रियाग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहार, परिज्ञान अर्थात अंतर्दृष्टि, इत्यादि में सक्षम बनाती है। सामान्य भाषा में मन शरीर का वह हिस्सा या प्रक्रिया है जो किसी ज्ञातव्य को ग्रहण करने, सोचने और समझने का कार्य करता है। यह मस्तिष्क का ही एक प्रकार्य है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवग्रहों में एक ग्रह चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना जाता है। मानव जीवन में यह ग्रह जातक की माता , मानसिक स्तिथि, मनोबल, द्रव्य वस्तुओं, यात्रा, सुख शान्ति, धन संपत्ति, आदि को विशेष रूप से प्रभावित करता है। मानव मन को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है। जिसमें सर्व प्रथम है सचेतन मन। सचेतन मन, पूर्ण मन का लगभग केवल दसवां हिस्सा होता है, जिसमें स्वयं तथा वातावरण के बारे में जानकारी अर्थात (चेतना) रहती है। दैनिक कार्यों में सभी व्यक्ति मन के इसी भाग को व्यवहार में लाते हैं। द्वितीय है अचेतन मन। यह मन का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा है, जिसके कार्य के बारे में व्यक्ति को जानकारी नहीं रहती। यह मन की स्वस्थ एवं अस्वस्थ क्रियाओं पर प्रभाव डालता है। इसका बोध व्यक्ति को आने वाले सपनों से हो सकता है। इसमें व्यक्ति की मूल-प्रवृत्ति से जुड़ी इच्छाएं जैसे कि भूख, प्यास, यौन इच्छाएं दबी रहती हैं। मनुष्य! मन के इस भाग का सचेतन प्रयोग नहीं कर सकता। किन्तु यदि मन के मूल कारक ग्रह चंद्रमा की जन्मकुंडली में स्थिति अशुभ हो तो इस भाग में दबी इच्छाएं नियंत्रण-शक्ति से बचकर प्रकट हो जाती हैं। जिसके फलस्वरूप जातक में कई लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं जो की अधिक समय तक रहने पर किसी मनोरोग का रूप ले लेते हैं। तृतीय भाग है अर्धचेतन या पूर्वचेतन मन।यह मन के सचेतन तथा अचेतन के बीच का हिस्सा है, जिसे मनुष्य अपनी इच्छा अनुसार प्रयोग कर सकता है, जैसे स्मरण-शक्ति का वह हिस्सा जिसे व्यक्ति प्रयास करके किसी घटना, वस्तु इत्यादि को याद करने में प्रयोग करता है। जन्मकुंडली में चन्द्रमा की दृढ़ स्थिति से मन के मुख्य कार्य, जैसे- वास्तविकता, बुद्धि, विवेक,  चेतना, तर्क-शक्ति, स्मरण-शक्ति, निर्णय-शक्ति, इच्छा-शक्ति, अनुकूलन, समाकलन, आदि सुव्यवस्थित रहते हैं। जो कि मानव जीवन के लिए अतिमहत्वपूर्ण क्रियाएं हैं। चन्द्र ग्रह को नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह माना जाता है किंतु जन्मकुंडली में यदि चन्द्रमा की स्थिति अशुभ हो, तो जातक की विचार शक्ति, स्मरण शक्ति, क्षीण हो जाती है। वह प्रत्येक छोटी छोटी बातों को भी भूलने लगता है। चन्द्रमा के साथ यदि राहु की युति हो तो स्थिति और अधिक गम्भीर हो जाती है। ऐसा व्यक्ति नशा, अपराध आदि निंदनीय कार्यों द्वारा स्वयं के धन की हानि भी करने लगता है। आज हम इसी चन्द्र ग्रह के बारे में महत्वपूर्ण चर्चा करने वाले हैं। अतः आप बने रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिये वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। मेषादि बारह राशियों में चन्द्रमा कर्क राशि, एवं नक्षत्रों में, रोहिणी हस्त एवं श्रवण नक्षत्र का स्वामी होता है। आकार में यह सबसे छोटा है, किन्तु गति इसकी सभी ग्रहों में सर्वाधिक तीव्र है।अतः इसी कारण से चन्द्रमा के गोचर की अवधि सबसे कम होती है। लगभग सवा दो दिन ही यह एक राशि में रहकर फिर अगली राशि में पारगमन कर जाता है। जातक के जीवन को प्रभावित करने वाली मुख्य दशाएँ, विंशोत्तरी, योगिनी , अष्टोत्तरी आदि चन्द्र ग्रह की गति से ही बनती हैं। साथ ही वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक के राशिफल कथन हेतु मुख्य रूप से जातक की चन्द्र राशि को ही आधार मानकर फल कथन किया जाता है। जातक के जन्म समय में चन्द्र ग्रह जिस राशि में स्थित होते हैं वही राशि जातक की चन्द्र राशि होती है। चन्द्र ग्रह के शुभ लक्षणों से प्रभावित व्यक्ति देखने में सुंदर और आकर्षक होता है। साथ ही स्वभाव से साहसी होता है। चंद्र ग्रह के प्रभाव से व्यक्ति अपने सिद्धांतों को महत्व देता है। व्यक्ति की यात्रा करने में रुचि होती है। लग्न भाव में स्थित चंद्रमा व्यक्ति को प्रबल कल्पनाशील बनाता है। इसके साथ ही व्यक्ति अधिक संवेदनशील और भावुक होता है। बली चंद्रमा के कारण जातक मानसिक रूप से सुखी रहता है। उसे मानसिक शांति प्राप्त होती है तथा उसकी कल्पना शक्ति भी मजबूत होती है। बली चंद्रमा के कारण जातक के माता जी संबंध मधुर होते हैं और इनकी माता जी का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। वहीं यदि चन्द्रमा पीड़ित अवस्था में हो तो व्यक्ति को अनेकों प्रकार से मानसिक पीड़ा होती है। इस दौरान व्यक्ति की स्मृति क्षीण हो जाती है। माता जी को  मानसिक या शारिरिक किसी न किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई बार देखा गया है कि जातक इस अवस्था में आत्महत्या करनी की कोशिश भी करता है। क्रूर अथवा पापी ग्रह से पीड़ित चन्द्रमा का नकारात्मक प्रभाव जातक के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इसके प्रभाव से जातक को मस्तिष्क पीड़ा, सिरदर्द, तनाव, डिप्रेशन, भय, घबराहट, दमा, रक्त से संबंधित विकार, मिर्गी के दौरे, पागलपन अथवा बेहोशी आदि की समस्याऐं होती है। कार्यक्षेत्र पर भी चन्द्र ग्रह की प्रतिकूलता के अनेकों दुष्प्रभाव पड़ते हैं। ऐसे में जातक को हानि का सामना करना पड़ता है। अतः चन्द्र ग्रह की अनुकूलता हेतु व्यक्ति को श्रेष्ठ वैदिक उपाय अवश्य ही प्रयोग करने चाहिए। उपायों में सर्वप्रथम बात करते हैं व्रत की। चन्द्र ग्रह की कृपादृष्टि प्राप्त करने हेतु सोमवार, एवं पूर्णिमा तिथि का व्रत धारण किया जाता है। व्रती को चाहिए कि व्रत वाले दिन सूर्योदय से पूर्व जगकर, स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर, भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के उपरांत,  नित्य पूजन कर, व्रत का संकल्प लें। और पूरे दिन निराहार रहकर रात्रि में चन्द्र देव को चांदी या पीतल धातु के पात्र में दुग्ध मिश्रित जल से अर्घ्य प्रदान अवश्य करें। चन्द्र ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर करने हेतु मन्त्र जप सर्वश्रेष्ठ साधन है। अतः दैवज्ञ ब्राह्मणों द्वारा, चन्द्र ग्रह के वैदिक, तांत्रिक अथवा बीज मन्त्र का जप विधि विधान पूर्वक अवश्य करवाना चाहिए। जप उपरांत दशांश हवन, तर्पण मार्जन के साथ ही शांति पाठ भी अवश्य कर लेना चाहिए। चन्द्र ग्रह की शांति के निमित्त, चावल , चीनी , सफेद वस्त्र , चांदी आदि का दान श्रेयस्कर होता है।

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा जल तत्व के देवता हैं। और मानव शरीर की संरचना में जल तत्व ही सर्वाधिक है। अतः मानव जीवन पर चंद्रमा के प्रभाव का विचार आप स्वयं कर इसकी अनुकूलता के महत्व को अवश्य समझें। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है। नमस्कार।

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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