रविवार, 11 अक्तूबर 2020

नवरात्रि

नमस्कार। वैदिक एस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से मां भगवती पराम्बा पराशक्ति की उपासना का सर्वश्रेष्ठ पर्व शारदीय नवरात्र प्रारम्भ होंगे। यह शुभ तिथि इस वर्ष आंग्लमत के अनुसार, 17 अक्टूबर 2020 को है। आज हम नवरात्रि पर्व के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे, अतः नवरात्रि पर्व की शास्त्र सम्मत सम्पूर्ण जानकारी हेतु आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। कलियुग के लिए एक सूत्र प्रचलित है, कलौ चण्डी विनायकौ। इस सूत्र के अनुसार कलियुग में सर्वेष्ट साधन हेतु चण्डी, अर्थात दुर्गा, एवं विनायक, अर्थात गणेश जी की प्रधानता सिद्ध है। इन दोनों श्रेष्ठ साधनों में भी प्रथम, शक्ति की साधना का ही उल्लेख है। शायद इसलिए भी की क्षुधा तृषार्ता जननी स्मरन्ति।अर्थात भूख लगने पर बालक सर्वप्रथम मां का ही स्मरण करता है। क्षुधा चाहे भोजन, धन-सम्पदा ,भौतिक सुख साधनों, मान-सम्मान, सन्तान प्राप्ति,  आदि किसी भी प्रकार की हो। वस्तुतः जगज्जननी माता दुर्गा धर्म अर्थ काम मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थों को प्रदान करने वाली हैं। 
एकैव शक्ति: परमेश्वरस्य भिन्नाश्चतुर्धा व्यवहार काले।
पुरुषेषु विष्णुर्भोगे भवानी समरे च दुर्गा प्रलये च काली।। अर्थात
अखिल ब्रह्माण्ड नायिका मातेश्वरी, पूर्ण ब्रह्म परमात्मा की वह दिव्य शक्ति हैं जिन्हें समय समय पर अनेक रूपों में आवश्यकता अनुसार प्रकट कर परब्रम्ह परमात्मा सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करते हैं। अतः इनकी आराधना जो भी भक्त श्रद्धा भक्ति पूर्वक जिस भी कामना से करते हैैं, अल्प प्रयास से ही उनकी वह कामना, यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्, शास्त्र वाक्य के अनुसार अवश्य पूरी होती है। नवरात्र पर्व शक्ति उपासना का सर्वश्रेष्ठ शुभ समय होता है। वर्ष में चार बार नवरात्रि आती हैं। जिनमें से दो गुप्त और दो प्रकट नवरात्रि होती हैं। चारों ही नवरात्रि में शक्ति उपासना का अपना विशिष्ट महत्व होता है। नवरात्र में शक्ति उपासना करने वाले भक्तों की कामनाएं अलग अलग हो सकती हैं, किन्तु पूजन विधि शास्त्र सम्मत एक ही है। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि यदि भक्त निष्काम भाव से आराधना करता है तो किसी भी प्रकार के साधनों हेतु प्रतिबंधित नहीं होता।अर्थात पूजन सामग्री हो या पाठ विधि। वह स्वेच्छा से पूजन एवं पाठ विधि को अपनी शक्ति सामर्थ्य अनुसार प्रयोग कर सकता है। किंतु यदि साधक किसी भी प्रकार की मनोकामना पूर्ति हेतु शक्ति उपासना स्वयं करता है अथवा ब्राह्मणों के द्वारा करवाता है, तो पूजन विधि एवं पाठ विधि नियम पूर्वक शास्त्र सम्मत होनी अतिआवश्यक होती है। श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय के तेइसवें श्लोक में भगवान स्वयं यह बात स्पष्ट करते हैं कि 
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः। 
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।। 
अर्थात जो मनुष्य शास्त्रविधिको छोड़कर अपनी इच्छासे मनमाना कार्य करता है, वह किए गए कार्य में सिद्धि प्राप्त नहीं करता। और न ही उसे इस लोक में सुख और परलोक में परमगति ही प्राप्त होती है।
अतः उपासक को चाहिए कि ,
तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।
अर्थात किसी भी कामना से किए जाने वाले पूजा पाठ साधना उपासना जप तप में पूर्ण रूप से शास्त्र विधि को ही प्रमाण मानकर कर्म करे। तभी अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है।
नवरात्रि पूजन हेतु पूजन क्रम इस प्रकार कहा गया है। पूजन पूर्व के समस्त आवश्यक कर्मों, जैसे आचमन, पवित्री धारण, शिखाबन्धन, आसन शुद्धि, भूमिपूजन, कर्मपात्र स्थापना, घण्टा शंख पूजन, दीप पूजन, सूर्य पूजन, स्वस्ति वाचन, संकल्प आदि के उपरांत गणेशाम्बिका पूजन, कलश पूजन, पुण्याहवाचन, मातृका पूजन, वसोर्धारा पूजन, आयुष्यमन्त्र जप, नान्दी श्राद्ध, आचार्यादि वरण, दिग रक्षण, सर्वतोभद्र मण्डल स्थापना एवं पूजन, प्रधान कलश स्थापना एवं पूजन, यन्त्र निर्माण, पीठ पूजन, यन्त्रस्थ देवता स्थापन एवं पूजन, दुर्गा प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा एवं अभिषेक सहित षोडशोपचार दुर्गा पूजन, आवरण पूजन के उपरांत कामना अनुसार दुर्गा सप्तशती का पाठ, एवं यज्ञ के पूर्ण फल की प्राप्ति के लिए नवग्रह स्थापना सहित कुण्ड पूजन पूर्वक आवाहित देवताओं के निमित्त होम एवं शप्तशती पाठ संख्या के अनुसार दशांश हवन, तर्पण मार्जन, बटुक कुमारिका पूजन आरती क्षमापन आदि कर्म सावधानी पूर्वक पूर्ण श्रद्धा पूर्ण निष्ठा से करने चाहिए। पूजन क्रम समस्त कामनाओं की पूर्ति हेतु यही रहेगा, किन्तु कामना अनुसार पाठ क्रम या पाठ संख्या बदल जाएगी। कामना अनुसार पाठ की अनेक विधियां हैं। जैसे नवचण्डी, शतचण्डी, सहस्त्र चण्डी, लक्षचण्डी आदि। इन प्रयोगों में भी कामना अनुसार सप्तशती पाठ अनेक मन्त्रों द्वारा सम्पुटित कर एक निश्चित संख्या में किया जाता है। जैसे यदि दुःख दारिद्रय निवारण की कामना हो तो, 
'दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:,
स्वस्थै: स्मृता मतिमअतीव शुभां ददासि।
दारिद्रय-दु:ख-भयहारिणी का त्वदन्या,
सर्वोपकार करणाय सदाऽर्द्रचित्ता:।।' इस मंत्र से सम्पुटित कर पाठ करना चाहिए।
यदि किसी भी प्रकार के असाध्य रोग से मुक्ति की कामना हो तो,
रोगान शेषानपहंसि तुष्टा 
रुष्टा,तु कामान् सकलानभीष्टान्।त्वांमाश्रितानां न विपन्नराणां,
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।' इस मंत्र से सम्पुटित कर पाठ करना चाहिए।
यदि जीवन के किसी भी क्षेत्र में, जैसे पढाई, रोजगार, घर निर्माण, विवाह, सन्तानोत्पत्ति, आदि में बाधाएं आ रहीं हों तो,
सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेव त्वया कार्य मस्मद्वैरि विनाशनम्‌॥ इस मंत्र से सम्पुटित कर पाठ करना चाहिए।
यदि सुलक्षणा धर्मपत्नी की कामना हो तो, पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्। तारिणींदुर्गसंसार सागरस्य कुलोद्भवाम्॥ इस मंत्र से सम्पुटित कर पाठ करना चाहिए।
धन धान्य एवं पुत्र प्राप्ति की कामना से,
सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यो मत्प्रसादेन,भविष्यति न शंसयः॥ इस मंत्र से सम्पुटित कर पाठ करना चाहिए।
यदि अकारण ही शत्रु परेशान करते हों, एवं उनसे आप मुक्ति चाहते हों, तो, 
मम वैरिवशं यात: कान् भोगानुलप्स्यते।
ये ममानुगता नित्यं प्रसाद धन भोजनैः।।
इस मंत्र से सम्पुटित कर पाठ करना चाहिए।
और यदि पुत्र प्राप्ति की कामना हो तो, हरवंश पुराण के इस दिव्य मन्त्र 'देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते । देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः । से सम्पुटित कर सप्तशती पाठ करना चाहिए।
यहां ध्यान रखने योग्य यह है कि कामना अनुसार, आसन, दिशा, जप माला, एवं हवनीय द्रव्यों का भी चयन अवश्य ही करना चाहिए। सामान्य रूप से लाल रंग का ऊनी आसन, पूर्व या उत्तर दिशा, रुद्राक्ष एवं कमलगट्टे की माला, एवं पायस हवन श्रेष्ठ माना जाता है।
नवरात्रि में सर्वाधिक पूछा जाने वाला प्रश्न, जो कि महत्वपूर्ण भी है, वह है घट स्थापना मुहूर्त। शास्त्रानुसार सूर्योदय के उपरांत 10 घड़ी तक या मध्यान्ह में अभिजित मुहूर्त के समय आश्विन शुक्ल प्रतिपदा में कलश स्थापना की जाती है। प्रतिपदा तिथि की प्रथम सोलह घड़ियां, एवं चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग का पूर्वार्ध भाग घट स्थापना के लिए वर्जित काल है। इस वर्ष प्रतिपदा तिथि की प्रथम सोलह घड़ियां 17 अक्टूबर 2020 को प्रातः लगभग 7 बजकर 25 मिनट तक हैं। अतः 7 बजकर 25 मिनट के बाद ही घट स्थापन करना शुभ रहेगा।

नवरात्रि पर्व में वैदिक विधि पूर्वक, श्रेष्ठ कर्मकाण्डी आचार्यों द्वारा शक्ति पूजन् करवाने हेतु आप सम्पर्क कर सकते हैं। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है। नमस्कार

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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