एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाते हैं। अत: दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। किन्तु यदि स्वास्थ्य समस्याओं के चलते आवश्यक हो तो भोजन शुद्ध सात्विक अथवा दुग्ध फलाहार आदि ही लेना चाहिए। एकादशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व जगकर शौच स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सर्व प्रथम भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान करें। फिर व्रत का संकल्प लेकर भगवान नारायण की विधिवत पूजा अर्चना कर भोग लगाएं। पूरे दिन निराहार व्रत रखकर सन्ध्या समय पुनः पूजन करें, एवं रमा एकादशी व्रत की कथा श्रवण करें। आरती करने के उपरांत पुनः भगवान को भोग लगाएं। एकादशी के अगले दिन द्वादशी पर पूजन के बाद जरुरतमंद व्यक्तियों एवं ब्राह्मणों को भोजन करवाकर और दान-दक्षिणा देकर, अंत में भोजन करके व्रत खोलना चाहिए। आइए हम सब भी भाव से रमा एकादशी व्रत कथा को श्रवण करें।
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहने लगे कि हे मधुसूदन! कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत को करने की विधि क्या है? इसके करने से क्या फल मिलता है। सो आप विस्तारपूर्वक बताइए। लोक कल्याण करने वाले इस श्रेष्ठ प्रश्न को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण बोले कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा एकादशी है। यह एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली है। इसका माहात्म्य मैं विस्तार पूर्वक तुमसे कहता हूँ, अतः ध्यानपूर्वक सुनो।
राजन युधिष्ठिर! प्राचीनकाल में मुचुकुंद नाम के एक महाप्रतापी राजा थे। उनकी देवराज इंद्र के साथ ही यम, कुबेर, वरुण और विभीषण के साथ भी मित्रता थी। वह बहुत बड़े धर्मात्मा, विष्णुभक्त थे और न्याय पूर्वक राज्य किया करते थे। उनकी चन्द्रभागा नाम की एक अत्यंत रूपवती विदुषी कन्या थी। चन्द्रभागा का विवाह महाराज चंद्रसेन के पुत्र राजकुमार शोभन के साथ हुआ था, जिनका शरीर किसी रोग के कारण बहुत कमजोर हो गया था। एक समय राजकुमार शोभन अपने ससुराल आए। उन्हीं दिनों जल्दी ही पुण्यदायिनी रमा एकादशी भी आने वाली थी। जब व्रत का दिन समीप आ गया तो चंद्रभागा के मन में अत्यंत सोच उत्पन्न हुआ कि मेरे पति अत्यंत दुर्बल हैं और मेरे पिता की आज्ञा अति कठोर है। दशमी को राजा ने ढोल बजवाकर सारे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए। राजा की घोषणा सुनते ही शोभन को अत्यंत चिंता हुई तो अपनी पत्नी से कहने लगे कि हे प्रिये! अब हमें क्या करना चाहिए, मैं इस असहाय अवस्था में किसी भी प्रकार भूख सहन नहीं कर पाऊंगा।अतः कोई ऐसा उपाय बतलाओ कि जिससे मेरे प्राण बच सकें। चंद्रभागा कहने लगी कि हे स्वामी! मेरे पिता के राज में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं करता। हाथी, घोड़ा, ऊँट, बिल्ली, गौ आदि भी तृण, अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं करते, फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या है। यदि आप भोजन करना चाहते हैं तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहीं रहना चाहते हैं तो आपको अवश्य व्रत करना पड़ेगा।यह बात सुनकर राजकुमार शोभन कहने लगे कि हे प्रिये! मैं अवश्य व्रत करूँगा, जो भाग्य में होगा, वह देखा जाएगा। इस प्रकार से विचार कर शोभन ने व्रत रख लिया और वह भूख व प्यास से अत्यंत पीडि़त होने लगा। जब सूर्य नारायण अस्त हो गए और रात्रि को जागरण का समय आया जो वैष्णवों को अत्यंत हर्ष देने वाला था, परंतु शोभन के लिए अत्यंत दु:खदायी हुआ। प्रात:काल होते होते शोभन के प्राण निकल गए। तब राजा ने सुगंधित काष्ठ से उसका दाह संस्कार करवाया। परंतु चंद्रभागा ने अपने पिता की आज्ञा से अपने शरीर को दग्ध नहीं किया और शोभन की अंत्येष्टि क्रिया के बाद अपने पिता के घर में ही रहने लगी। कुछ काल उपरांत रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से राजकुमार शोभन को देवताओं जैसा सर्वांग सुंदर शरीर प्राप्त हुआ। देवताओं द्वारा राजकुमार शोभन को मंदराचल पर्वत का धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित एक सुंदर देवपुर का राज्य प्रदान किया गया। उस दिव्य नगरी की छटा स्वर्ग जैसी सुंदर थी। सिंहासन पर आरूढ़ राजकुमार शोभन ऐसा शोभायमान होता था मानो दूसरा इंद्र विराजमान हो। कुछ काल व्यतीत होने पर एक बार मुचुकुंद महाराज के नगर में रहने वाले एक सोम शर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थयात्रा करते हुए मंदराचल पर्वत पर स्थित राजकुमार शोभन की सभा में जा पँहुचे।वहाँ राजगद्दी पर बैठे हुए राजकुमार शोभन को पहचान कर, कि यह तो राजा का जमाई शोभन है, उसके निकट गए। शोभन भी ब्राह्मण देवता को पहचान कर अपने आसन से उठकर उसके पास आए और प्रणामादि करके कुशल प्रश्न किया। ब्राह्मण ने कहा कि राजा मुचुकुंद और आपकी पत्नी कुशल से हैं। नगर में भी सब प्रकार से कुशल हैं, परंतु हे राजन! हमें आश्चर्य हो रहा है। आप अपना वृत्तांत कहिए कि ऐसा सुंदर नगर जो न कभी देखा, न सुना, आपको कैसे प्राप्त हुआ। तब शोभन कहने लगे कि कार्तिक कृष्ण की रमा एकादशी का व्रत करने से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ, परंतु यह अस्थिर है। यह स्थिर हो जाए ऐसा उपाय कीजिए। ब्राह्मण देवता ने पुनः प्रश्न किया कि हे राजन! यह स्थिर क्यों नहीं है और कैसे स्थिर हो सकता है आप बताइए, फिर मैं अवश्यमेव वह उपाय करूँगा। यह में आपको वचन देता हूँ। शोभन ने कहा कि मैंने इस व्रत को श्रद्धारहित होकर किया है। अत: यह सब कुछ अस्थिर है। यदि आप महाराज मुचुकुंद की कन्या चंद्रभागा अर्थात मेरी धर्म भार्या को यह सब वृत्तांत कहें तो यह स्थिर हो सकता है।
ऐसा सुनकर उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने अपने नगर लौटकर चंद्रभागा से सब वृत्तांत कह सुनाया। ब्राह्मण के वचन सुनकर चंद्रभागा बड़ी प्रसन्नता से ब्राह्मण से कहने लगी कि हे ब्राह्मण देवता! ये सब बातें आपने प्रत्यक्ष देखी हैं या स्वप्न की बातें कर रहे हैं। ब्राह्मण कहने लगे कि हे पुत्री! मैंने महावन में तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है। साथ ही उनके अजेय देवताओं के स्वर्ग समान नगर को भी देखा है। किन्तु वह सब अस्थिर है। उसकी स्थिरता हेतु हमें उपाय अवश्य करना चाहिए।
चंद्रभागा कहने लगी हे विप्र! तुम मुझे वहाँ ले चलो, मुझे पतिदेव के दर्शन की तीव्र लालसा है। मैं अपने किए हुए पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूँगी। आप ऐसा कार्य कीजिए जिससे उनका और हमारा संयोग हो क्योंकि वियोगी को मिला देना महान पु्ण्य है। सोम शर्मा यह बात सुनकर चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर गए। वामदेवजी ने सारी बात सुनकर वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का अभिषेक कर दिया। तब ऋषि के मंत्र के प्रभाव और एकादशी के व्रत से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और वह दिव्य गति को प्राप्त हुई।
इसके बाद बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने पति के निकट गई। अपनी प्रिय पत्नी को आते देखकर शोभन अति प्रसन्न हुए। और उसे बुलाकर अपनी बाईं तरफ बिठा लिया। चंद्रभागा कहने लगी कि हे प्राणनाथ! आप मेरे पुण्य को ग्रहण कीजिए। अपने पिता के घर जब मैं आठ वर्ष की थी तब से विधिपूर्वक एकादशी के व्रत को श्रद्धापूर्वक करती आ रही हूँ। इस पुण्य के प्रताप से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा तथा समस्त कर्मों से युक्त होकर प्रलय के अंत तक रहेगा। इस प्रकार चंद्रभागा भी दिव्य आभूषणों और वस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने पति के साथ आनंदपूर्वक रहने लगी।
हे राजन! यह मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य कहा है, जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, उनके ब्रह्म हत्यादि समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ते अथवा सुनते हैं, वे समस्त पापों से छूटकर विष्णुलोक को प्राप्त करते हैं।
हमारे समस्त प्रिय दर्शकों को रमा एकादशी व्रत पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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