हर एक माता अपने बालकों की रक्षा करने के लिए सदैव तत्पर रहती है। और हर मूल्य पर रक्षा करती हैं। सन्तान की रक्षा हेतु अनेक प्रकार के पूजा पाठ जप तप व्रत आदि करती ही रहतीं हैं। वैसे तो सन्तान के कष्ट निवारणार्थ अनेकों व्रत हैं किंतु उन सभी व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत है, अहोई अष्टमी का व्रत। आज हम इसी व्रत के विषय में चर्चा करेंगे। आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक एस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
अहोई अष्टमी का व्रत पर्व कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है। इस अवसर पर माताएँ अपनी सन्तान की दीर्घायु और उनके स्वस्थ जीवन के लिए व्रत धारण करती है। अहोई अष्टमी व्रत, एक माँ का अपने पुत्र के प्रति समर्पण प्रेम तथा मोह को दर्शाता है। इस दिन माताएँ अपने पुत्र की रक्षा के लिए निर्जला व्रत का पालन करती हैं। जबकि निःसंतान महिलाएँ भी पुत्र प्राप्ति की कामना से यह व्रत धारण करती हैं। इस दिन अहोई माता के साथ-साथ सेही माता की भी पूजा का विधान है। सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाए जाने वाले इस पर्व पर माताएँ अपने पुत्र के जीवन में होने वाली किसी भी प्रकार की अनहोनी से बचाने के लिए अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं।
अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता की पूजा प्रदोषकाल मे की जाती है। इस दिन व्रत धारण करने वाली सभी माताओं को चाहिए कि सूर्योदय से पूर्व जग जाएं और उसके बाद स्नान आदि नित्यकर्म करके भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के उपरांत व्रत का संकल्प लेकर माता अहोई की पूजा करनी चाहिए। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर उनके चित्र के साथ ही साही और उसके सात पुत्रों का चित्र भी बनाएँ। यदि यह सम्भव ना हो तो पूजा के लिए अहोई माता की फोटो पूजा स्थल पर स्थापित की जा सकती है। माँ अहोई के तस्वीर के साथ वहाँ साही की भी तस्वीर होनी चाहिए। साही एक कांटेदार स्तनपाई जीव होता है जो माँ अहोई के ही समीप विराजता है। अहोई अष्टमी के दिन सन्ध्या समय प्रदोष काल में ही पूजन करना श्रेष्ठ होता है। पूजन हेतु लकड़ी की एक शुद्ध चौकी पर लाल, या पीला कपड़ा बिछाकर, उस पर रोली चन्दन अथवा कुमकुम से अष्टदल कमल का निर्माण करें। उस अष्टदल के ऊपर विधिवत रूप से कलश स्थापना कर, कलश के ऊपर ही पूर्णपात्र में अहोई माता की फोटो स्थापित करें।कलश पर हल्दी से स्वास्तिक बनाना न भूलें। कलश सहित अहोई माता की पूजा करने के उपरांत माता जी के सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़ा आदि रखकर अहोई अष्टमी की व्रत कथा सुनें या स्वयं पढें। कथा श्रवण के बाद माता को खीर का भोग लगाएं एवं दक्षिणा चढ़ाएँ। चंद्रोदय के पश्चात चंद्रमा को जल अर्पित करें और अपना उपवास खोलें। अहोई अष्टमी के दिन ज़रूरतमंद, अनाथ और बुज़ुर्ग लोगों को भोजन कराया जाए तो माता अहोई बहुत प्रसन्न होती हैं। सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं। इसमें उपयोग किया जाने वाला करवा भी वही होना चाहिए, जिसे करवा चौथ के व्रत में प्रयोग किया गया हो। इसी जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। अहोई पूजा में चाँदी की अहोई बनाने का विधान है, जिसे स्याहु या साही कहते हैं। साही की पूजा करने के बाद इन्हें दूध और भात का भोग लगाया जाता है।
आइए हम सब भी अहोई अष्टमी व्रत कथा को भाव से श्रवण करें। एक समय की बात है किसी गाँव में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे थे। दीपावली से पहले साहूकार की पत्नी घर की पुताई करने के लिए मिट्टी लेने खदान गई। वहां वह कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैवयोग से साहूकार की पत्नी जिस स्थान पर मिट्टी खोद रही थी उस स्थान पर एक “साही” की मांद थी, जहाँ वह अपने बच्चों के साथ रहती थी। साहूकार की पत्नी के हाथों कुदाल अचानक “साही” के बच्चे को लग गई, जिससे उस बच्चे की मृत्यु हो गई। “साही” के बच्चे की मौत का साहूकारनी को बहुत दुख हुआ। परंतु वह अब कर भी क्या सकती थी, वह पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई।
कुछ समय बाद साहूकारनी के एक एक करके सातों बेटों की मृत्यु हो गई। इससे वह बहुत दुखी रहने लगी। एक दिन उसने अपनी एक पड़ोसी को “साही” के बच्चे की मौत की घटना सुनाई और बताया कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। यह हत्या उससे गलती से हुई थी जिसके परिणाम स्वरूप उसके सातों बेटों की मौत हो गई। यह बात जब सबको पता चली तो गांव की वृद्ध औरतों ने साहूकार की पत्नी को सांत्वना दी, और कहने लगी आज जो यह बात तुमने सबको बताई है, इससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। इसके साथ ही, उन्होंने साहूकारनी को अष्टमी के दिन अहोई माता तथा “साही” और “साही” के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करने को कहा। इस प्रकार क्षमा याचना करने से तुम्हारे सारे पाप धुलकर सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। साहूकार की पत्नी ने उनकी बात मानते हुए कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत रखा व विधि पूर्वक पूजा कर क्षमा याचना की। इसी प्रकार उसने प्रतिवर्ष नियमित रूप से इस व्रत का पालन किया। जिसके बाद उसे सात पुत्र रत्नों की फिर से प्राप्ति हुई। तभी से अहोई व्रत की परंपरा चली आ रही है। कथा सुनने के उपरांत आरती अवश्य करनी चाहिए। अहोई माता की आरती आपको डिस्क्रिप्शन में उपलब्ध हो जाएगी। हम आशा करते हैं कि माता अहोई आपकी संतान को लंबी उम्र और निरोगी काया प्रदान करें। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आप सभी को वैदिक एस्ट्रो केयर की ओर से अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार
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