रविवार, 15 नवंबर 2020

नरक चतुर्दशी

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन “नरक चतुर्दशी” का त्यौहार मनाया जाता है। इसे नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाये जाने के कारण इसे छोटी दिवाली भी कहते हैं। इस साल नरक चतुर्दशी 14 नवंबर, शनिवार के दिन मनाया जायेगा। 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता “यमराज” की पूजा की जाती है। इस दिन शाम के समय दिया जलाते हैं और यमराज की पूजा कर अकाल मृत्यु से मुक्ति और अच्छे  स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस वध किया था, तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी कहते हैं । इस दिन घर से दूर एक दीपक यम के नाम से जलाया जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन सुबह सूर्य निकलने से पहले उठ जाएं और अपने पूरे शरीर पर तिल्ली का तेल मल लें। अब अपामार्ग (चिचड़ी) जो कि एक औधषीय पौधा होता है उसकी पत्तियों को पानी में डालकर नहा लें ऐसा करने से व्यक्ति को नरक के भय से मुक्ति मिलती है। इस दिन स्नान के बाद दक्षिण दिशा की तरफ मुख कर के हाथ जोड़कर खड़े हो जाये और यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से साल भर आपके द्वारा किए गए पापों का नाश हो जाता है। नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है, इसलिए इस दिन स्नान के बाद भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से सौंदर्य की प्राप्ति भी होती है। इस दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजा अर्चना करने के बाद तेल का दिया जलाएं और घर की चौखट के दोनों ओर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी हमेशा घर में निवास करती हैं। मान्यतानुसार नरक चतुर्दशी की रात एक बड़ा सा दीपक जलाएं। इसे पूरे घर में घुमाएं और फिर उसे घर से बाहर कहीं दूर ले जाकर रख दें। इसे यम का दीया कहा जाता है। इस दीए को पूरे घर में घुमाकर बाहर ले जाने से घर की सभी बुरी और नकारात्मक शक्तियां घर से बाहर चली जाती है। नरक चतुर्दशी के दिन कुलदेवी, कुल देवता, और पितरों के नाम से भी दिया जलाएं। ऐसी मान्यता है कि इन दीपकों की रोशनी से पित्तरों को अपने लोक का रास्ता मिलता है और वे प्रसन्न होते हैं। संतान सुख प्राप्ति के लिए नरक चौदस के दिन दीपदान करना चाहिए। दीप दान से वंश की वृद्धि होती है। नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है। इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए। नरक चतुर्दशी के संदर्भ में कई पौराणिक और लौकिक मान्यताएं प्रचलित हैं। इस सम्बंध में नरकासुर वध की कथा सर्वाधिक प्रचलित है। पुरातन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवता और साधु संतों को परेशान कर दिया था। नरकासुर का अत्याचार इतना बढ़ने लगा कि उसने देवता और मानवों की 16 हज़ार कन्याओं को बंधक बना लिया। नरकासुर के अत्याचारों से त्रस्त होकर समस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया। नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से 16 हजार स्त्रियों को आजाद कराया। बाद में ये सभी स्त्री भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पट रानियां के नाम से जानी जाने लगी। नरकासुर के वध के बाद लोगों ने कार्तिक मास की अमावस्या को अपने घरों में दीये जलाए और तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा।एक अन्य पौराणिक कथा में दैत्यराज बलि को भगवान विष्णु द्वारा मिले वरदान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार के समय त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को 3 कदम में नाप दिया था। राजा बलि जो कि परम दानी थे, उन्होंने यह देखकर अपना समस्त राज्य भगवान वामन को दान कर दिया। इसके बाद भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा। दैत्यराज बलि ने कहा कि हे प्रभु, त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि में इन तीनों दिनों में हर वर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए। इस दौरान जो मनुष्य में मेरे राज्य में दीपावली मनाए उसके घर में लक्ष्मी का वास हो और चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करे, उनके सभी पितर नरक में ना रहें और ना उन्हें यमराज यातना ना दें। राजा बलि की बात सुनकर भगवान वामन प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया। इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन शुरू हुआ। धार्मिक और पौराणिक कारणों से हिंदू धर्म में नरक चतुर्दशी का बड़ा महत्व है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्यौहार है। दीपावली से दो दिन पूर्व धन तेरस, नरक चतुर्दशी या छोटी दीवापली और फिर दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी पर यमराज के निमित्त दीपदान और प्रार्थना करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।वैदिक एस्ट्रो केयर की ओर से आप सभी दर्शकों को नरक चतुर्दशी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ! वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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