बुधवार, 20 जनवरी 2021

सन्तान प्राप्ति के शास्त्रीय उपाय

नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। सनातन धर्म के मुख्य ग्रन्थ वेदों के अनुसार, प्रत्येक मनुष्य जन्म लेने के साथ ही तीन ऋणों से बन्ध जाता है। देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण। तीनों ही प्रकार के ऋणों से मुक्ति के उपाय भी शास्त्रों में विस्तार पूर्वक बताए गए हैं। अतः शास्त्रों के अनुसार ही पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए गृहस्थ जीवन में सन्तान होना परम आवश्यक है। सन्तान होने से वंश परम्परा अक्षुण्ण होती है, तथा होने वाली सन्तान के द्वारा श्राद्ध, तर्पण आदि पितृकर्म सम्पन्न होने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। यह तो है सन्तान प्राप्ति का आध्यात्मिक पक्ष। और यदि लौकिक पक्ष की बात करें तो संसार में गृहस्थ व्यक्ति को समस्त सुखों के रहते हुए भी यदि पुत्र सुख नहीं है तो उसे संसार के समस्त सुख नीरस प्रतीत होते हैं। कहा भी गया है कि अपुत्रस्य गृहं शुन्यम् ।
जिसे सन्तान नहीं उसका घर सूना होता है। अतः लोकदृष्टि हो या आध्यात्मिक दृष्टि, दोनों ही दृष्टियों से गृहस्थाश्रम को सुखी बनाने के लिए मनुष्य को सन्तान की परम आवश्यकता होती है। वैसे तो विवाह के उपरांत नवदम्पतियों को सन्तान होना स्वाभाविक है, किन्तु कभी कभी प्रारब्धवश, या ग्रह बाधा आदि दैवीय कारणों से औषधि उपचार के उपरांत भी, सन्तान सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती। आज हम सन्तान प्राप्ति के लिए किए जाने वाले कुछ श्रेष्ठ वैदिक उपाय आपके समक्ष जनकल्याणार्थ प्रस्तुत करेंगे। अतः आप वीडियो को ध्यान पूर्वक पूरा अवश्य देखें, साथ ही वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। 
सनातन संस्कृति के मूल आधार वेदों एवं पुराणों में सन्तान प्राप्ति के लिए अनेक उपाय बताए गए हैं, जिनमें से कुछ श्रेष्ठ प्रमुख उपायों के बारे में क्रम से चर्चा करते हैं। सर्वप्रथम पुत्र प्रदान करने वाले पांच व्रतों के विधान को ध्यान से समझें। 
पहला व्रत है गौ पूजन व्रत। यह व्रत कार्तिक, मार्गशीर्ष या वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले पहले गुरुवार से प्रारंभ करना चाहिए। व्रत वाले दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर, अपनी या पराई किसी की भी हो, किन्तु देशी भारतीय गाय होनी चाहिये, गाय को घर के आंगन में या गौशाला में पूर्व की ओर मुख कर खड़ी करके, स्वयं उत्तराभिमुख होकर, शुद्ध जल से गौ माता के पैर धोएं। फिर गौ माता को रोली और अक्षत से तिलक लगाएं। फिर लड्डू पेड़ा गुड़ आदि कुछ मीठा भोजन खिलाकर पानी पिलाएं। इसके बाद हाथ जोडकर नतमस्तक होकर गौ माता से पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें। यह व्रत एक वर्ष पर्यंत करना चाहिए। गौ माता की कृपा से पुत्र अवश्य प्राप्त होता है। 
विवाह पूर्व ही शारिरिक सम्बन्ध बनाने के बाद गर्भ रहने पर जो लोग दवाइयों के सेवन से गर्भ क्षीण कर देते हैं उन्हें महापातक लगता है। ऐसे में यदि किसी पातक, उपपातक, या महापातक के प्रभाव से पुत्र नहीं हो रहा हो तो पति पत्नी दोनों को ही मिलकर किसी तीर्थ में जाकर शुभ मुहूर्त में पापघट दान अवश्य करना चाहिए। पापघट दान की जानकारी के लिए आप हमसे फोन के माध्यम से सम्पर्क कर सकते हैं। इस विषय पर आने वाले समय में एक विस्तृत वीडियो प्रकाशित की जाएगी। पुत्र प्राप्ति का अगला उपाय है कृष्ण व्रत। इसके लिए भगवान कृष्ण या गणेश जी के मंदिर या गौशाला में, अथवा पीपल गूलर या कदम्ब वृक्ष के नीचे बैठकर, कमलगट्टे या तुलसी की माला पर, देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ।। सामर्थ्य अनुसार इस मंत्र का प्रतिदिन पांच हजार, ढाई हजार या एक हजार की संख्या में जप करें। एक लाख जप संख्या पूरी हो जाने पर दशांश हवन, तर्पण,  मार्जन, कर ब्राह्मणों को खीर मालपुआ आदि का भोजन कराएं। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से शीघ्र लाभ अवश्य प्राप्त होगा।
सन्तान प्राप्ति के लिए एक अन्य उपाय है गायत्री पुरश्चरण। यह किसी शुभ मुहूर्त में ही प्रारंभ करना चाहिये। मुहूर्त से एक दिन पहले ही क्षौर कर्म आदि करने के उपरांत दशविध स्नान कर लेना चाहिए। निश्चित मुहूर्त में किसी देवमन्दिर या विल्व वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान सूर्य का ध्यान करते हुए रुद्राक्ष की माला से प्रतिदिन पांच हजार की संख्या में गायत्री मंत्र का जाप करें। प्रतिदिन जप पूरा होने पर गौघृत से दशांश हवन भी करें। जप के उपरांत जौ के आटे की रोटी, और मूंग की दाल का ही भोजन करें। भोजन स्वयं का बनाया ही होना चाहिए। चौबीस लाख की जप संख्या पूर्ण होने पर एक पुरश्चरण पूर्ण होता है। गायत्री पुरश्चरण के प्रभाव से व्यक्ति को धन धान्य सहित पुत्र अवश्य प्राप्त होता है।
पुत्र प्राप्ति की कामना से सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला मन्त्र है, सन्तान गोपाल मन्त्र। किन्तु ध्यान देने योग्य बात यहां यह है कि सन्तान गोपाल मन्त्र के तीन प्रकार उपलब्ध हैं। अतः आज हम जनकल्याणार्थ तीनों ही मन्त्रों का सविधि प्रयोग प्रस्तुत कर रहे हैं। यह मंत्रानुष्ठान श्रेष्ठ वैदिक कर्मकाण्डी ब्राह्मणों के द्वारा ही सम्पन्न करवाना चाहिए। किसी शुभ मुहूर्त में संकल्प सहित पञ्चाङ्ग पूजन के उपरांत भगवान श्री कृष्ण का षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए। ततपश्चात जप प्रारम्भ करें। जप मन्त्र के प्रथम प्रकार की विधि इस प्रकार है। सर्वप्रथम एक आचमनी जल लेकर विनियोग पढ़ें। ॐ अस्य श्री सन्तानगोपाल मन्त्रस्य श्री नारद ऋषि:, अनुष्टुप छन्दः, श्री कृष्णो देवता, ग्लौं बीजम्, नमः शक्तिः, पुत्रार्थे जपे विनियोगः।
यह कहते हुए जल भूमि पर छोड़ दें। इसके बाद भगवान के नामों का उच्चारण करते हुए अपने अंगों का स्पर्श कर अंगन्यास करें। 
देवकीसुत गोविंद, हृदयाय नमः, कहते हुए हृदय का स्पर्श करें।
वासुदेव जगत्पते, शिरसे स्वाहा, कहते हुए सिर का स्पर्श करें।
देहि मे तनयं कृष्ण, शिखायै वषट, कहते हुए शिखा को स्पर्श करें।
त्वामहं शरणं गत:, कवचाय हुम्, बोलकर दोनों भुजाओं का स्पर्श करें।
ॐ नमः, अस्त्राय फट, कहते हुए दाहिने हाथ को सिर के ऊपर एंटीक्लॉकवाइज घुमाकर, बाएं हाथ की हथेली पर ताली बजाएं। 
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण जी का हाथजोडकर यह श्लोक बोलते हुए ध्यान करें।  
वैकुंठादागतं कृष्णं रथस्थं करुणानिधिम् ।
किरीटिसारथिंं पुत्र मानयन्तं परात्परम् ।।
आदाय तं जलस्थं च गुरवे वैदिकाय च ।
अर्पयन्तं महाभागं ध्यायेत् पुत्रार्थमच्युतम् ।।
यह ध्यान श्लोक कहते हुए भगवान को पुष्प अर्पित कर इस मूल मंत्र का जप प्रारम्भ करें।
ॐ श्रींं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ।।  इस मंत्र का तीन लाख की संख्या में ब्राह्मणों द्वारा जाप करवाना चाहिए। यह सन्तान गोपाल मन्त्र का प्रथम प्रकार है।
सन्तान गोपाल मन्त्र की द्वितीय विधि इस प्रकार है। सर्वप्रथम एक आचमनी जल लेकर विनियोग लें।
ॐ अस्य श्री सन्तानगोपाल मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषि:, गायत्री छन्दः, श्री कृष्णो देवता, क्लीं बीजम्, नमः शक्तिः, पुत्रार्थे जपे विनियोगः।
यह कहते हुए जल भूमि पर छोड़ दें। 
इसके बाद अपने अंगों का स्पर्श कर अंगन्यास करें। 
ग्लौं, हृदयाय नमः, कहते हुए हृदय का स्पर्श करें।
क्लीं, शिरसे स्वाहा, कहते हुए सिर का स्पर्श करें।
ह्रीं, शिखायै वषट, कहते हुए शिखा को स्पर्श करें।
श्रीं, कवचाय हुम्, बोलकर दोनों भुजाओं का स्पर्श करें।
ॐ , अस्त्राय फट, कहते हुए दाहिने हाथ को सिर के ऊपर एंटीक्लॉकवाइज घुमाकर, बाएं हाथ की हथेली पर ताली बजाएं। 
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण जी का हाथजोडकर यह श्लोक बोलते हुए ध्यान करें।  
शंख चक्र गदा पद्मं दधानं सूतिका गृहे ।
अंके शयानं देवक्याः कृष्णं वन्दे विमुक्तये ।।
यह ध्यान श्लोक कहते हुए भगवान को पुष्प अर्पित कर इस मूल मंत्र का जप प्रारम्भ करें।
ॐ नमो भगवते जगदात्मसूतये नमः।।
इस मंत्र का तीन लाख की संख्या में ब्राह्मणों द्वारा जाप करवाना चाहिए। यह सन्तान गोपाल मन्त्र का द्वितीय प्रकार है।
सनत्कुमारोक्त सन्तान गोपाल मन्त्र की तृतीय विधि इस प्रकार है।
सर्वप्रथम एक आचमनी जल लेकर विनियोग लें।
ॐ अस्य श्री सन्तानगोपाल मन्त्रस्य श्री नारद ऋषि:, अनुष्टुप छन्दः, श्री कृष्णो देवता, ग्लौं बीजम्, नमः शक्तिः, पुत्रार्थे जपे विनियोगः।
यह कहते हुए जल भूमि पर छोड़ दें। इसके बाद भगवान के नामों का उच्चारण करते हुए अपने अंगों का स्पर्श कर अंगन्यास करें। 
देवकीसुत गोविंद, हृदयाय नमः, कहते हुए हृदय का स्पर्श करें।
वासुदेव जगत्पते, शिरसे स्वाहा, कहते हुए सिर का स्पर्श करें।
देहि मे तनयं कृष्ण, शिखायै वषट, कहते हुए शिखा को स्पर्श करें।
त्वामहं शरणं गत:, कवचाय हुम्, बोलकर दोनों भुजाओं का स्पर्श करें।
ॐ नमः, अस्त्राय फट, कहते हुए दाहिने हाथ को सिर के ऊपर एंटीक्लॉकवाइज घुमाकर, बाएं हाथ की हथेली पर ताली बजाएं। 
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण जी का हाथजोडकर यह श्लोक बोलते हुए ध्यान करें।  
शंख चक्र गदा पद्मं धारयन्तं जनार्दनम् ।
अंके शयानं देवक्याः सूतिका मंदिरे शुभे ।।
एवं रूपं सदा कृष्णं सुतार्थं भावयेत् सुधीः ।।
यह ध्यान श्लोक कहते हुए भगवान को पुष्प अर्पित कर इस मूल मंत्र का जप प्रारम्भ करें।
ॐ देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ।। 
इस मंत्र का तीन लाख की संख्या में ब्राह्मणों द्वारा जाप करवाना चाहिए। यह सन्तान गोपाल मन्त्र का तृतीय प्रकार है।
सन्तान गोपाल मन्त्र जप के द्वारा अभीष्ट सिद्धि प्राप्त करने के लिए जप संख्या पूर्ण होने के उपरांत शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आधी रात के समय भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। पूजा के लिए एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर, उस पर अष्टदल बनाकर, विधिवत कलश स्थापना कर कलश पूजन करने के उपरांत उसके ऊपर रखे पूर्णपात्र में भगवान श्री कृष्ण जी की स्थापना कर उनका विधि विधान पूर्वक पूजन करें। ध्यान रखें कि पूजा में दीपक गाय के शुद्ध घी का ही जलाना है। कृष्ण पूजन के उपरांत पुनः जिस मन्त्र का जप किया गया है उसी मन्त्र को एक हजार आठ की संख्या में पुनः जप करें। फिर अगले दिन भक्ति भाव से एकादशी का व्रत धारण करें। फिर द्वादशी तिथि को गोविंद की विधिवत पूजा करने के बाद अगहनी के चावल, गुड़, गाय के दूध, गाय के घी, से निर्मित खीर का भोग लगाएं। साथ ही ऋतु अनुसार जो भी फल उपलब्ध हो सकें, उन्हें भी भगवान को अर्पित करें। साथ ही जो कुछ भी सुलभ हो सकें वह शुद्ध सात्विक उत्तम पकवान निर्मित कर एक थाली में सुंदर से सजाकर भगवान को अर्पित करें। साथ ही स्वच्छ जल भी अर्पण करें। इसके बाद पंच भू संस्कार पूर्वक अग्नि स्थापना कर भगवान यज्ञ नारायण का आवाहन कर उनका पूजन करें। फिर आवाहित देवताओं के निमित्त हवन करने के उपरांत, जप वाले मूल मंत्र द्वारा एक सौ आठ आहुति खीर की प्रदान करें। शेष खीर को सुरक्षित रख दें। इसके बाद मूल मंत्र द्वारा घी से आठ सौ आहुति पुनः प्रदान करें। हुतशेष घृत को कलश के जल में मिलाकर घृतमिश्रित जल द्वारा यजमान दम्पति का अभिषेक करें। इसके बाद पुनः ब्राह्मण एक सौ आठ बार, पुनः मन्त्र जप करने के बाद शेष रखे हुए हविष्य को यजमान पत्नी को आशीर्वाद स्वरूप दे दें। यजमान पत्नी उस हविष्य को लेकर पूर्वाभिमुख शुद्ध आसन पर बैठकर भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए उसका भक्षण करे। साथ ही यह भाव बनाए की इस हविष्य के द्वारा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण मेरे उदर में विराजमान हो रहे हैं। यज्ञ पूर्ण होने के उपरांत 11 ब्राह्मणों को प्रेम से भोजन करवाकर, वस्त्र, फल, मिष्टान्न सहित दक्षिणा प्रदान करें। ब्राह्मणों के सन्मुख नतमस्तक होकर आशीर्वाद प्राप्त करें। इस विधि से सन्तान गोपाल अनुष्ठान पूर्ण करने पर अवश्य ही मनोरथ सिद्ध होता है।
हम आशा करते हैं कि सन्तान प्राप्ति के इच्छुक दम्पति इस वीडियो से अवश्य ही लाभान्वित होंगे। किसी भी प्रकार से शंशय की स्थिति में आप कमेंट के माध्यम से हमें सूचित कर सकते हैं। साथ ही वैदिक विधि द्वारा सन्तान गोपाल मन्त्र जप अनुष्ठान हेतु आप हमसे संपर्क कर सकते हैं। जनकल्याणार्थ वीडियो को लाइक कर फेसबुक, व्हाट्सएप आदि के माध्यम से फॉरवर्ड करना न् भूलें। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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