वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिदेव न्याय कर्ता ग्रह हैं। यह एक राशि में लगभग ढाई साल तक भ्रमण कर उसके बाद राशि परिवर्तन करते हैं। यह जब चंद्र राशि से द्वादश भाव में होते हैं तो साढ़ेसाती प्रारम्भ होती है। द्वादश भाव में यह ढाई साल भ्रमण करने के बाद चन्द्र राशि में प्रवेश करते हैं और वहां भी ढाई साल रहते हैं। इसके बाद यह चंद्र राशि से द्वितीय भाव में गोचर कर वहां भी ढाई साल की अवधि तक भ्रमण करते हैं। ज्योतिष के अनुसार द्वादश से द्वितीय भाव तक शनि के इस साढे सात साल के समय को ही साढे़ साती कहा जाता है। मेष आदि बारह राशियों के जातकों पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव भी अलग तरह से पड़ता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार द्वादश भाव को आपके पैरों का भाव भी कहा जाता है, शनि की साढ़े साती भी द्वादश भाव से शुरू होती है। इसके बाद यह आपके मस्तिष्क पर भी प्रभाव डालती है जिसका पता लग्न अथवा प्रथम भाव से चलता है और अंत में यह आपके कुटुंब, वाणी एवं संचित धन के द्वितीय भाव में प्रवेश करता है और इसे विशेष रूप से प्रभावित करता है। ऐसा माना जाता है कि शनि व्यक्ति द्वारा किए गए कर्मों के अनुसार ही व्यक्ति को फल देते हैं। जब इनकी साढ़े साती शुरू होती है तो व्यक्ति मानसिक रूप से अत्यधिक परेशान रहता है। कई तरह के बुरे अनुभव इस दौरान व्यक्ति को हो सकते हैं। अपने द्वितीय चरण में शनि देव व्यक्ति के सामने शारीरिक और आर्थिक रूप से चुनौतियां प्रस्तुत करते हैं और अंतिम चरण में वह व्यक्ति के जीवन में हुई आर्थिक सामाजिक पारिवारिक हानियों की भरपाई करते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो शनि की साढ़े साती के दौरान व्यक्ति जीवन के सत्य को जानता है और जीवन को सरल बनाने के लिए किसी ठोस निष्कर्ष पर आता है। आम लोग शनि की साढ़े साती को दुखदायी मानते हैं। लेकिन ज्योतिष के अनुसार शनि की साढ़े साती व्यक्ति को अच्छे सबक सिखाने वाली होती है। आपके कर्मों के अनुसार ही साढ़े साती का आपको फल प्राप्त होता है। यदि आपके कर्म अच्छे हैं और साढ़े साती शुरू होने के पहले तक आप परेशान थे तो साढ़े साती के दौरान शनि देव आपको शुभ फल देते हैं। गलत कामों में लिप्त रहने वालों को इस दौरान शनिदेव का प्रकोप भोगना पड़ता है। हालांकि प्रताड़ित करते हुए भी शनि देव व्यक्ति को सही राह पर आने का संदेश देते हैं। शनि की साढ़े साती का सबसे बुरा प्रभाव कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव में माना जाता है। मकर, कुंभ, धनु और मीन लग्न में साढ़ेसाती का प्रभाव उतना बुरा नहीं होता जितना अन्य लग्नों में। आपके जीवन में साढ़े साती का आरंभ कब हो रहा है यह जन्म कुंडली को देखकर पता कर सकते हैं। इसके लिए आप अपनी जन्मपत्रिका का विश्लेषण करवाने के लिए हमसे संपर्क कर सकते हैं। शनि साढ़ेसाती के दौरान शनि ग्रह के बुरे प्रभावों से बचने के लिए आप यह कुछ वैदिक उपाय अपना सकते हैं। शनि देव को भगवान शिव का भक्त माना जाता है इसलिए साढ़े साती के दौरान भगवान शिव की नियमित रूप से पूजा अवश्य करनी चाहिए। भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय ‘ का जाप या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से साढ़े साती के दौरान आपको अवश्य लाभ मिलेगा। साथ ही सोमवार के व्रत और शिवलिंग पर बेल पत्र या दूध अर्पित करना भी शुभ फलदायी माना गया है। साढ़ेसाती के दौरान नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ एवं हनुमान जी की पूजा करने से भी साढ़े साती के प्रभाव में कमी आती है। साढ़े साती के दौरान छाया दान करना भी एक श्रेष्ठ उपयोगी उपाय है। शनिदेेेव से संबंधित वस्तुओं जैसे, सरसों का तेल, काले तिल, उड़द की दाल, लोहे का बर्तन, काला सूती कपड़ा, आदि का दान करके भी साढ़ेसाती का प्रभाव कम होता है। साढ़ेसाती के दौरान दशरथ कृत शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए कभी भी झूठ ना बोलें, अन्याय न करें और अपने माता-पिता और गुरुजनों का सम्मान करें। शनि की साढ़े साती व्यक्ति के जीवन को कई तरह से बदल सकती है। जैसा कि बताया गया है शनि कर्म फल दाता ग्रह है। साढ़ेसाती के दौरान यह आपके कर्मों पर दृष्टि रखता है। अतः यदि आप अच्छे कर्म करते हैं तो यह आपके जीवन को सकारात्मक दिशा दे सकता है वहीं बुरे कर्मों के कारण यह आपके सम्मुख कई चुनौतियां प्रस्तुत कर सकता है। कुल मिलाकर कहा जाए तो शनि की साढ़े साती शनि का वह काल है जो व्यक्ति को जीवन में सीख प्रदान करता है। इस दौरान व्यक्ति यदि स्वयं को निखारने में सफल रहा तो उसका जीवन सरल हो जाता है। जिस तरह शनि और शनि की साढ़ेसाती को लेकर गलत धारणाएं बनाई गई हैं वह सही नहीं हैं। साढ़े साती का काल व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने वाला होता है। इस दौरान व्यक्ति के जीवन में चुनौतियां अवश्य आती हैं लेकिन कुछ उपाय कर इनसे बचा जा सकता है। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार
गुरुवार, 28 जनवरी 2021
साढ़े साती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और जरूरी उपाय
नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। नव ग्रहों में शनि देव को न्यायाधीश कह जाता है। शनिदेव ही कर्मफल दाता हैं। अर्थात व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले शुभ अशुभ कर्मों का शुभाशुभ फल शनि देव व्यक्ति को अपनी महादशा अंतर्दशा गोचर साढ़ेसाती ढैय्या आदि के माध्यम से प्रदान करते हैं। शनि की साढ़े साती व्यक्ति के जीवन का एक अहम चरण होता है। इसका आकलन कुंडली में चंद्र राशि से किया जाता है। आज हम शनि की साढ़ेसाती से जुड़ी हर आवश्यक जानकारी के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा करेंगे। आप वीडियो को अंत तक पूरा अवश्य देखें, और साथ ही वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र
Author & Editor
आचार्य हिमांशु ढौंडियाल
जनवरी 28, 2021
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