बुधवार, 2 मार्च 2022

एकादशी व्रत उद्यापन की विस्तृत विधि

मस्त वैष्णवों का परमप्रिय एकादशी का व्रत जहां एक कठिन तप है तो उद्यापन उसकी पूर्णता है। एकादशी व्रत का उद्यापन वर्ष में एक बार किया जाता है इसके अंग हैं- व्रत, पूजन, जागरण, हवन, दान, ब्राह्मण भोजन, पारण। समय व जानकारी के अभाव में कम लोग ही पूर्ण विधि-विधान के साथ उद्यापन कर पाते हैं। प्रत्येक व्रत के उद्यापन की अलग-अलग शास्त्रसम्मत विधि होती है। अतः इस लेख के माध्यम से हम  एकादशी व्रत के उद्यापन की शास्त्र सम्मत जानकारी प्रसारित कर रहे हैं।
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यदि कोई भगवत भक्त वर्ष भर की 24 एकादशियों के व्रत पूर्ण कर ले तो उसे उद्यापन अवश्य करना चाहिए।
एकादशी व्रत प्रारंभ करने से पूर्व भी एकादशी के दिन भगवान नारायण का विधिवत पूजन करके ही व्रत प्रारंभ करने चाहिए। कुछ लोग साल भर केवल कृष्ण पक्ष के 12 एकादशी व्रत लेकर उनका ही उद्यापन करते हैं तो कुछ लोग साल भर के 12 शुक्ल एकादशी व्रत लेकर उनका ही उद्यापन भी करते हैं । अतः जैसी इच्छा हो वैसे करे लेकिन उद्यापन अवश्य ही करे तभी व्रत को पूर्णता मिलती है। कृष्ण पक्ष वाले व्रतों का उद्यापन कृष्ण पक्ष की एकादशी और द्वादशी को करे, शुक्ल पक्ष वाले व्रतों का उद्यापन शुक्ल पक्ष की एकादशी और द्वादशी को करे। दोनों पक्ष के 24 एकादशी व्रतों का उद्यापन किसी भी पक्ष की एकादशी को कर सकते हैं, किन्तु ध्यान रखें कि चौमासे में एकादशी उद्यापन नहीं करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार एकादशी उद्यापन दो दिन का कार्यक्रम होता है पहले दिन एकादशी को व्रत के साथ पूजा होती है तथा द्वादशी को हवन करके 24 या12  ब्राह्मणों का पूजन करके उचित दान दक्षिणा देकर प्रेम सहित भोजन करवाया जाता है।
एक बार एकादशी व्रत उद्यापन की विधि के बारे में पूछते हुए अर्जुन भगवान श्री कृष्ण जी से बोले, “हे कृपानिधि ! एकादशी व्रत का उद्यापन कैसा होना चाहिये और उसकी क्या विधि है? उसको आप कृपा करके मुझे उपदेश दें।” तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- "हे पांडवश्रेष्ठ ! उद्यापन के बिना, कष्ट से किये हुए व्रत भी निष्फल हैं। सो तुम्हें उसकी विधि बताता हूं। देवताओं के प्रबोध समय में ही एकादशी का उद्यापन करे। विशेष कर मार्गशीर्ष के महीने, माघ माह में शुक्ल एकादशी के दिन उद्यापन करना चाहिये |" भगवान के उपरोक्त कथन से तात्पर्य है कि चातुर्मास अर्थात आषाढ़ शुक्ला एकादशी से लेकर कार्तिक कृष्ण एकादशी में एकादशी व्रत उद्यापन नहीं करे।
भगवान ने कहा  "हे अर्जुन! अब उद्यापन की विधि को मैं कहता हूं। यदि सामर्थ्यवान मनुष्य श्रद्धा से हजार 'स्वर्ण मुद्रा' दान दे और असमर्थ व्यक्ति एक 'कौड़ी' भी यदि श्रद्धा से दान दे दे तो उन दोनों का फल एक समान ही है।” दान विधि में जितना बताया है यदि धनसम्पन्न व्यक्ति हो समर्थ हो तो दुगुना दान दे। लेकिन अशक्त मनुष्य यदि उससे आधा भी दान देता है तो वह दान का पूरा फल पाता है। स्वर्ण मुद्रा प्राचीन समय में प्रचलित थी इतना अधिक आज के समय में सम्भव नहीं। अब रुपया प्रचलन में है, अतः व्रती अपनी जैसी सामर्थ्य हो उस अनुसार धन का, उपयोगी वस्तुओं का दान करे। एकादशी व्रत उद्यापन के नियम दशमी तिथि से ही प्रारंभ हो जाते हैं। अतः दशमी तिथि के दिन एक ही समय भोजन किया जाता है। इसी दिन मंदिर या पूजा स्थान को साफ करके पूजा की आवश्यक सामग्रियाँ एकत्रित कर लेनी चाहिए। उद्यापन कार्य सम्पादित करने के लिए दशमी को ही किसी श्रेष्ठ कर्मकांडी वैदिक ब्राह्मण को निमंत्रण देकर आना चाहिए। रात्रि में दुग्ध फलाहार लेकर, दन्तधावन करके ही शयन करना चाहिए।
हे अर्जुन! एकादशी को प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में जागकर, भगवान श्री हरि का स्मरण करके, स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर, पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। संध्या वंदन करके नदी, तालाब आदि के शुद्ध जल में या घर पर ही शुद्ध जल में मन्त्र पूर्वक पितरों का तर्पण करे। फिर पूजा की समस्त सामग्री पूजन स्थान में एकत्रित करके  24 प्रकार के नैवेद्य बनवा ले। यह ध्यान रखें कि भगवान का नैवेद्य बनाने के लिए एक ब्राह्मण को पहले ही वरण कर लें। फिर उद्यापन विधि करवाने वाले आचार्य जी का स्वागत सत्कार कर,  चरण धुलाकर, उचित आसन पर बिठाकर, जलपान करवाएं। इसके बाद आचार्य जी को पूजन स्थल पर आसन पर बिठाकर प्रणाम करके, तिलक करे, फूल माला पहनाकर  धोती  अंगोछा आदि वस्त्र दक्षिणा सहित देकर वरण करें। फिर प्रणाम करते हुए कहे कि आचार्यवर! जिस विधि से मेरा यह एकादशी व्रत उद्यापन पूर्ण हो, आप वह शास्त्र सम्मत विधि पूर्ण कीजिए। इसके उपरांत आचार्य जी के दिशानिर्देश में गणपति पञ्चाङ्ग पूजन, वरुण कलश पूजन, पुण्याहवाचन, नांदिश्राध्द, मातृका पूजन, नवग्रह पूजन, सर्वतोभद्र मंडल पूजन, नारायण पूजन आदि सभी कर्म विधिवत सम्पादित करे। फिर पूजन के उपरांत ब्राह्मणों को उचित फलाहार करवाएं। सन्ध्या समय एकादशी व्रत कथा सुनें एवं रात्रि में भगवन्नाम संकीर्तन करते हुए जागरण करें। यदि पूर्ण रात्रि जागने में असमर्थ हों तो अर्ध रात्रि के उपरांत विश्राम कर लें। फिर ब्रह्ममुहूर्त में जगकर, नित्य कर्म से निवृत्त होकर पुनः भगवान का पूजन कर यज्ञ वेदी की स्थापना करें। ब्रह्मा जी का पूजन कर पंचभू संस्कार पूर्वक अग्नि स्थापना कर, हवन प्रारम्भ करें। हवन करने हेतु 24 या 12 ब्राह्मणों का वरण करना चाहिए।ततपश्चात पूर्णाहुति के उपरांत समस्त आवाहित देवताओं का उत्तर पूजन कर गौदान करें। फिर क्षमा याचना करते हुए आवाहित देवताओं का विसर्जन करें। आचार्य ब्राह्मणों से आशीर्वाद प्राप्त करें। एवं आचार्य ब्राह्मणों को भोजन करवाकर, उचित दक्षिणा देकर, विदा करना चाहिए। कुछ लोग अपनी श्रद्धा अनुसार एकादशी व्रत उद्यापन में श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा भी करवाते हैं। यह बहुत उत्तम बात है। किन्तु अनिवार्य नहीं है। अतः अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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