मंगलवार, 26 जनवरी 2021

पौष पुत्रदा एकादशी

नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। पौष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत धारण कर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि दम्पतियों द्वारा इस व्रत को भक्ति भाव से पूर्ण करने पर मनचाही सन्तान की प्राप्ति होती है, इसलिए शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का नाम पौष पुत्रदा एकादशी है। सन्तान प्राप्ति के इच्छुक दम्पत्तियों के लिए इस व्रत का बड़ा महत्व है। इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त संतान की रक्षा भी होती है। पौष पुत्रदा एकादशी की सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।

सर्वप्रथम बात करते हैं व्रत विधि के बारे में। क्योंकि किसी भी जप तप व्रत पूजा आदि कार्य को सदैव पूर्ण विधि विधान से करना आवश्यक होता है। अन्यथा भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय के तेइसवें श्लोक के माध्यम से स्वयं कहते हैं कि, 
यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।
अर्थात जो मनुष्य शास्त्र विधि को छोड़कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि को, न सुख को और न परम गति को ही प्राप्त होता है। अतः प्रत्येक कार्य शास्त्र विधि से ही करना श्रेयस्कर होता है। एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाते हैं। अत: दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।  किन्तु यदि स्वास्थ्य समस्याओं के चलते आवश्यक हो तो भोजन शुद्ध सात्विक अथवा दुग्ध फलाहार आदि ही लेना चाहिए। एकादशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व जगकर शौच स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सर्व प्रथम भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान करें। फिर व्रत का संकल्प लेकर भगवान नारायण की विधिवत पूजा अर्चना कर भोग लगाएं। पूरे दिन निराहार व्रत रखकर सन्ध्या समय पुनः पूजन करें, एवं पौष पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा श्रवण करें। आरती करने के उपरांत पुनः भगवान को भोग लगाएं। सन्तान प्राप्ति की कामना वाले पति पत्नी मिलकर इस दिन व्रत धारण कर साथ साथ भगवान कृष्ण की पूजा करें। पूजन के उपरांत दिनभर में यथा शक्ति सन्तान गोपाल मन्त्र का जाप अवश्य करें। एकादशी के अगले दिन द्वादशी पर पूजन के बाद जरुरतमंद व्यक्तियों एवं ब्राह्मणों को भोजन करवाकर और दान-दक्षिणा देकर, अंत में भोजन करके व्रत खोलना चाहिए। 

आइए हम सब भी भाव से पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा को श्रवण करें।

बहुत काल पहले भद्रावती नाम के एक विशाल नगर में सुकेतु नाम के महाप्रतापी राजा राज्य करते थे।। उसकी सुलक्षणा धर्म पत्नी का नाम शैव्या था। यूं तो उनके जीवन में धन धान्य सम्पदा आदि की कोई कमी ना थी, फिर भी दोनों पति पत्नी सन्तान ना होने से बहुत दुखी रहते थे। इसी दुख से दुखी एक दिन राजा और रानी अपने मंत्री को राजपाठ सौंपकर वन को चले गये। निर्जन वन में राजा और रानी पुत्र न होने की चिंता से अति व्याकुल हो गए, और जब पुत्र प्राप्ति का कोई साधन उन्हें प्राप्त नहीं हुआ तो दोनों ने ही अपने जीवन को समाप्त करने का मन बना लिया। किन्तु पूर्व कृत शुभ कर्मों के प्रभाव से राजा का विवेक जागृत हो गया, उन्हें विचार आया कि आत्महत्या से बढ़कर कोई पाप नहीं है, चौरासी लाख योनियों में भटकने के उपरांत यह दिव्य मानव शरीर प्राप्त हुआ है, बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थन्हि गावा।। दुर्लभो मानुषों देहो, राजा चलते चलते इस प्रकार विचार कर ही रहे थे कि अचानक उन्हें वेद पाठ के स्वर सुनाई दिये। अतः जिस दिशा से वेदपाठ की ध्वनि आ रही थी, राजा और रानी दोनों उसी दिशा को चल पड़े। साधु महात्माओं के पास पहुंचने पर  दोनों ने उन्हें सादर दण्डवत प्रणाम किया। साथ ही अपनी चिंता का मूल कारण भी बताया। कहते हैं कि सन्त के दर्शन मात्र से ही दुख की निवृत्ति हो जाती है। अतः सन्तों ने राजा और रानी दोनों को ही पौष मास की पुत्रदा एकादशी के माहात्म्य को विस्तार पूर्वक सुनाया। इस एकादशी के महत्व को सुनकर पति-पत्नी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत पूर्ण विधि विधान पूर्वक सम्पन्न किया। इस व्रत के प्रभाव से समयानुसार उन्हें एक दिव्य ओजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। वे दंपती जो निःसंतान हैं उन्हें श्रद्धा पूर्वक पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।


Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें