नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। मानव जीवन में मन वचन कर्म के द्वारा अनेक प्रकार के पाप होते ही रहते हैं। किन्तु फिर भी मनुष्य के अंदर पाप करने की इतनी क्षमता नहीं है जितनी परमात्मा के पास पापों का अंत करने की। व्यक्ति यदि कर्म से पतित भी हो जाए, तो परमात्मा की शरणागति स्वीकार करने से, परमात्मा के नाम का आश्रय ग्रहण करने से, पापों से मुक्त हो जाता है। इसके लिए सनातन धर्म में अनेक प्रकार के व्रत हैं, जिन्हें करने से व्यक्ति के द्वारा किए गए पापों का नाश हो जाता है। इनमें एक प्रमुख व्रत है चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को होने वाली पापमोचनी एकादशी का।
आज हम पापमोचनी एकादशी व्रत के बारे में चर्चा करेंगे। आप बनें रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
शास्त्रों में पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज स्वरूप की विधिपूर्वक पूजा का विधान बताया है। जो व्यक्ति ऐसा करता है और इस दिन व्रत करता है उसके समस्त पाप श्रीहरि की कृपा से नष्ट हो जाते हैं। रामचरित मानस के माध्यम से भगवान स्वयं कहते हैं, सन्मुख होहिं जीव मोहि जबहिं। जन्म कोटि अघ नाषहिं तबहिं।। अर्थात, जो भी व्यक्ति मेरी शरणागति स्वीकार करते हुए मेरे सन्मुख उपस्थित होता है, उसके करोडों जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। अतः पापमोचनी एकादशी व्रत को हर एक सनातनी को अवश्य ही विधिपूर्वक करना चाहिए।
एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाता है। अत: दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। किन्तु यदि स्वास्थ्य समस्याओं के चलते आवश्यक हो तो भोजन शुद्ध सात्विक अथवा दुग्ध फलाहार आदि ही लेना चाहिए। एकादशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व जगकर शौच स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सर्व प्रथम भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान करें। फिर व्रत का संकल्प लेकर भगवान नारायण की विधिवत पूजा अर्चना कर भोग लगाएं। फिर पूरे दिन निराहार व्रत रखकर सन्ध्या समय पुनः पूजन करें, एवं पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा श्रवण करें। आरती करने के उपरांत पुनः भगवान को भोग लगाएं। एकादशी के अगले दिन द्वादशी पर पूजन के बाद जरुरतमंद व्यक्तियों एवं ब्राह्मणों को भोजन करवाकर और दान-दक्षिणा देकर, अंत में भोजन करके व्रत खोलना चाहिए।
विधिपूर्वक पूजा एवं व्रत के साथ-साथ पापमोचनी एकादशी के दिन व्रत कथा सुनने का भी अपना विशेष महत्व होता है। जो कोई भी व्यक्ति व्रत कथा सुनता है उसे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। तो आइए हम सब भी भाव से पापमोचनी एकादशी व्रत कथा श्रवण करें।
पुरातन काल में चैत्ररथ नामक एक बहुत सुंदर वन था। इस वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या किया करते थे। देवराज इंद्र अन्य देवगणों सहित गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं के साथ इसी वन में विचरण करते थे। मेधावी ऋषि भगवान शिव के भक्त थे और अप्सराएं कामदेव की अनुचरी थी। इसलिए एक समय कामदेव ने मेधावी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू घोषा नामक अप्सरा को भेजा। उसने अपने नृत्य, गायन और सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग कर दिया और मुनि मेधावी मंजूघोषा अप्सरा पर मोहित हो गए। इसके बाद अनेक वर्षों तक मुनि ने मंजूघोषा के साथ विलास में समय व्यतीत किया। बहुत समय बीत जाने के पश्चचात मंजूघोषा ने वापस जाने के लिए अनुमति मांगी, तब मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का आत्मज्ञान हुआ।
जब ऋषि को ज्ञात हुआ कि मंजूघोषा ने किस प्रकार से उनकी तपस्या को भंग किया है तो क्रोधित होकर उन्होंने मंजूघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। इसके बाद अप्सरा ऋषि के पैरों में गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। मंजूघोषा के बार-बार विनती करने पर मेधावी ऋषि ने उसे श्राप से मुक्ति पाने के लिए बताया कि पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से तुम्हारे समस्त पापों का नाश हो जाएगा और तुम पुन:अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी। अप्सरा को मुक्ति का मार्ग बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता महर्षि च्यवन के पास पहुंचे। श्राप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा कि- ''हे पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया, ऐसा कर तुमने भी पाप किया है, इसलिए तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो। इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके अप्सरा मंजूघोषा को श्राप से मुक्ति मिल गई और मेधावी ऋषि भी सभी प्रकार से निष्पाप हो गए। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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