मंगलवार, 30 मार्च 2021

कालसर्प योग : कितना सच, कितना झूठ

कालसर्प योग : कितना सच, कितना झूठ
 
नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है।
वर्तमान समय में कालसर्प योग की शांति के नाम पर आम जनमानस में अनेक भ्रांतियां प्रचलित हैं। हालांकि कालसर्प नाम से कोई भी योग किसी भी पुरातन ज्योतिषीय ग्रन्थों में लिखित में नहीं है, किन्तु वर्तमान काल में, जन्मकुंडली में उपस्थित राहु और केतु छाया ग्रहों के मध्य अन्य सूर्यादि ग्रहों की उपस्थिति को ही कालसर्प योग नाम दिया गया है।
विषय थोड़ा जटिल है, अतः वीडियो को ध्यान पूर्वक पूरा देखने पर ही समझ आएगा। और हमारा प्रयास भी यही है कि आप कालसर्प दोष के नाम पर अपने समय, और पैसे का अपव्यय करने से बच जाएं।
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राहु एवं केतु को ग्रहों की संज्ञा वर्तमान में ही दी गई है ।पुरातन ज्योतिष शास्त्रों में सात ग्रहों को ही माना गया है। राहु और केतु जिस राशि में स्थित हों उसी राशि उसी ग्रह के अनुसार ही इनका फल कथन है। यदि इसे वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो राहु उत्तरी ध्रुव को माना जाता है व केतु दक्षिणी ध्रुव को। राहु-केतु दो सम्पात बिन्दू हैं जो इस दीर्घवृत्त को दो भागों में बाँटते हैं। इन दो बिन्दुओं के बीच ग्रहों की उपस्थिति होने से ही कालसर्प योग बनता है। यह सभी जानते हैं कि कालसर्प योग या दोष का कारण राहु और केतु होते हैं। लेकिन क्यों? इस बात को समझें। छाया ग्रह राहु के अधिदेवता काल एवं प्रत्यधिदेवता सर्प हैं। राहु एवं केतु दोनों ग्रहों के बीच 180 डिग्री की दूरी बनी रहती है। और जब जन्म कुंडली में सारे ग्रह, राहु और केतु के मध्य फँस जाते हैं तब ग्रहों की उसी स्थिति को कालसर्प योग कहते हैं।
कुछ लोग कालसर्प योग के प्रभाव को नकारते हैं और तर्क देते हैं कि राहु केतु छाया ग्रह हैं अतः इनका मानव जीवन पर कोई प्रभाव नहीं है। किन्तु आप स्वयं विचार करें। 
धरती पर हम धूप में खड़े हैं तो हमारी छाया भी बन रही है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह और नक्षत्रों की छाया भी इस धरती पर पड़ती रहती है। हमारी छाया तो बहुत छोटी होती है लेकिन इन महाकाय ग्रहों की छाया का धरती पर असर गहरा होता है। इसे इस प्रकार समझें।
जैसे पीपल या बरगद के वृक्ष की छाया हमें शीतलता प्रदान करती है। नीम की छाया रोग का निदान करती है तथा बबूल की छाया में सोने से स्किन प्रॉब्लम हो सकती है उसी तरह राहु और केतु यह दो तरह की विशालकाय छाया हैं। जातक की ग्रह स्थिति के आधार पर इनका अच्छा और बुरा प्रभाव व्यक्ति के जीवन को अवश्य ही प्रभावित करता है।
विद्वानों के मतानुसार पितृदोष या प्रारब्ध के कारण कुंडली में कालसर्प योग बनता है। शास्त्रों के अनुसार, पूर्व जन्म कृतं पापं व्याधि रूपेण दृश्यते। अर्थात पूर्वजन्मों में किए गए पाप इस जन्म में व्याधियों के रूप में प्रकट होते हैं। 
यह अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि जिस किसी जातक की जन्मकुंडली में कालसर्प योग रहता है वह व्यक्ति आर्थिक, शारीरिक और मानसिक रूप से सदा पीड़ित रहता है। शिक्षा , व्यापार, नौकरी, स्वास्थ्य, विवाह, सन्तान आदि सभी क्षेत्रों में कालसर्प योग के कारण सदैव बाधा उत्पन्न होती ही रहती हैं। अनावश्यक तनाव, अशांति, घबराहट, मानसिक विक्षिप्तता, दुश्मनी, धोखेबाजी, नशा, अति सम्भोग की प्रवृत्ति, यह सब जन्मकुंडली में कालसर्प योग या राहु के अशुभ होने के चिन्ह हैं।
कालसर्प योग एक ऐसा योग है जो व्यक्ति को आसमान पर पहुँचाकर पुन: जमीन पर गिराने की शक्ति रखता है। किन्तु यह भी समझने वाली बात है कि कालसर्प योग से वही व्यक्ति डरता है जिसे इसकी शांति का उपाय ज्ञात न हो। अतः इस योग से डरने के बजाय इसके वैदिक उपाय किसी श्रेष्ठ वैदिक कर्मकांडी ब्राह्मण द्वारा ठीक से शुभ मुहूर्त में करवाने चाहिए। 
कालसर्प योग शांति के लिए नागपंचमी के दिन व्रत रखकर, रुद्राभिषेक तथा नाग पूजन करवाना चाहिए।
काले नाग-नागिन का जोड़ा सपेरे से मुक्त करके जंगल में छोड़ें। चांदी के नाग-नागिन के जोड़े को बहते हुए पानी में बहाने से इस दोष का शमन होता है।
उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर स्थित नागचन्द्रेश्वर मंदिर (जो केवल नागपंचमी के दिन ही खुलता है) के दर्शन करें। अष्टधातु या कांसे का बना नाग शिवलिंग पर चढ़ाने से भी इस दोष से मुक्ति मिलती है।
पंचमी तिथि के दिन 11 नारियल सिर से उतारते हुए बहते हुए पानी में प्रवाहित करने से काल सर्पदोष दूर होता है , यह उपाय श्रवण माह की पंचमी अर्थात नाग पंचमी को करना बहुत फलदायी होता है। तांबे का बना सर्प श्रावण माह के सोमवार को शिवलिंग पर चढाने से कालसर्प योग का दुष्प्रभाव समाप्त होता है। 
श्रावण या माघ मास में रूद्राभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला का जाप प्रतिदिन करें।
 जिस भी जातक पर काल सर्प दोष हो उसे कभी भी नाग की आकृति वाली अंगूठी, कड़ा लॉकेट नहीं पहनना चाहिए ।
कालसर्प योग से प्रभावित व्यक्ति को सर्प सूक्त का पाठ प्रतिदिन सुनना चाहिए। साथ ही जो लोग पाठ कर सकते हैं, उन्हें नियमित रूप से सर्पसूक्त का पाठ करना चाहिए।
 सर्प सूक्त इस प्रकार है।
।।श्री सर्प सूक्त।।
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।

कालसर्प योग शांति,एवं जन्मपत्रिका के विश्लेषण हेतु आप हमसे संपर्क कर सकते हैं। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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