शनिवार, 1 मई 2021

भगवत्प्राप्ति का साधन, शरणागति

नमस्कार। आध्यात्म संस्कृति में आपका हार्दिक अभिनंदन है। वेदों में, पुराणों में इस जगत को, इस संसार को दुःखालय कहा गया है। और केवल दुःखालय नहीं बल्कि शाश्वत दुःखालय। ऐसा दुःखालय जो सदा दुःख से लबालब भरा ही रहता है। आलय का शाब्दिक अर्थ है घर। जैसे देवालय अर्थात देवताओं का घर। पुस्तकालय, अर्थात पुस्तकों का घर। इसी प्रकार से इस संसार का नाम है दुःखालय। अब यह विचार कीजिए कि दुःखालय में रहकर सदा सुख की ही कामना करना कहाँ तक उचित है। वैसे भी पद्मपुराण में कहा गया है कि, न चेन्द्रस्य सुखं किन्चिन्न सुखं चक्रवर्तिनः। सुखमस्ति विरक्तस्य मुनेरेकान्तजीविनः।। अर्थात, सुख ना तो देवराज इंद्र को है और ना ही इस धरती के किसी चक्रवर्ती सम्राट को। तो फिर प्रश्न यह उठता है कि सुख प्राप्त होता किसे है? तो सुखमस्ति विरक्तस्य मुनेरेकान्तजीविनः। अर्थात जो व्यक्ति विरक्त हो और एकांत जीवी हो गया हो उसे ही सुख की प्राप्ति होती है। यहाँ विरक्त और एकांत जीवी की परिभाषा को भलीभांति समझना आवश्यक है। विरक्त का अर्थ है किसी वस्तु या सम्बन्ध विशेष में रुचि न रह जाना। यदि व्यक्ति मानव जीवन के लिए उपयोगी समस्त साधनों का उपभोग करता हुआ भी उनमें आसक्त नहीं होता,तो वही विरक्त है। विरक्ति वह स्थिति है कि मिल जाए तो कोई प्रसन्नता नहीं और खो जाए तो कोई दुःख नहीं। इसी समान अवस्था को विरक्ति कहा जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःख में समान रहना ही विरक्ति है। द्वितीय स्थिति है एकांत जीवी। अर्थात एकाकी जीवन। इसका अर्थ यह नहीं है कि जंगल चले जाएं, या सांसारिक लोक धर्म से विमुख हो जाएं। जिस प्रकार कमल पुष्प सदैव जल में रहता है किंतु जल कमल पुष्प को गीला नहीं कर पाता ठीक उसी प्रकार इस संसार में रहते हुए जो व्यक्ति अपने आश्रम धर्म के अनुरूप समस्त लोकधर्मो का पालन करता हुआ भी उनमें आसक्ति नहीं रखता, अर्थात संसार में रहता हुआ भी उसमें मन को नहीं रमाता वही एकांतजीवी है। और इस शाश्वत दुःखालय में मन से सुखी रहने के यही दो श्रेष्ठ साधन हैं। इन्हें प्राप्त करने का सहज मार्ग है परमात्मा की शरणागति। यदि जीव ईश्वर की शरणागति स्वीकार कर ले तो उसके समस्त दैहिक दैविक भौतिक सुखों की पूर्ति स्वयं भगवान करते हैं। रामचरित मानस इस बात को स्पष्ट करता है कि, करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी। जिमि बालक राखइ महतारी।। भगवान अपनी 
शरण में आए हुए भक्त के समस्त सुखों का ध्यान ठीक उसी प्रकार रखते हैं जैसे एक नवजात शिशु का ध्यान उसकी माता रखती हैं। अतः इस दुःखालय में भी यदि सुख की कामना है तो परमात्मा के शरणागत हो जाओ। यही सर्वश्रेष्ठ साधन है। लाखों दुःखों करोड़ों कष्टों से घिर जाने पर भी यदि परमात्मा की चरण शरण ग्रहण कर ली तो समझो मुक्त  हो जाओगे। इसे एक दृष्टांत के माध्यम से समझें। किसी जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी। वो एकांत स्थान की तलाश में घूम रही थी , कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी । उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये ।
वहां पहुँचते  ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी ।
उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी। तभी उसने दाये देखा , तो एक शिकारी तीर का निशाना , उस की तरफ साध रहा था । घबराकर वह दाहिने मुड़ी , तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था । दैवयोग से सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुड़ी , तो नदी में जल बहुत था। अब वह मादा हिरनी क्या करती ?
 वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। तो क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो बच्चे को जन्म दे पाएगी? 
या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?
या वह मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी ?
वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ? हिरनी अपने आप को परमात्मा की शरण में छोड़ , अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी।
तभी ईश्वर का चमत्कार देखिए। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए , शिकारी की आँखे चौंधिया गयी !
उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते हुए , शेर की आँख में जा लगा , शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा, यह देख शिकारी भी शेर को घायल ज़ानकर वहां से भाग गया । तभी घनघोर बारिश भी शुरू हो गयी और जंगल की आग भी बुझ गयी। उस मादा हिरनी ने एक शावक को जन्म दिया।
हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है , जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते । तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर परमात्मा की शरणागति स्वीकार करते हुए  अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए । अन्तत: यश , अपयश , हार , जीत , जीवन , मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर ही करते हैं।
हमें ईश्वर पर विश्वास कर उनके प्रत्येक निर्णय का सम्मान करना चाहिए। सदैव स्मरण रखें जब सारे सांसारिक द्वार बंद हो जाते है तब भी भगवान के द्वार खुले होते है। 
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✨श्री ॐ नमो नारायण भगवते वासुदेवाय नमः ॐ ✨

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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