नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। शनिदेव, भगवान शिव के परमप्रिय भक्तों में एक विशिष्ट भक्त हैं। एक बार शनिदेव भगवान शिव की पूजा करने हेतु उनके नित्यनिवास कैलाश पर्वत पर गए। वहां भगवान शिव, माता पार्वती, उनके बड़े पुत्र स्वामी कार्तिकेय, बड़ी बहू देवसेना, छोटे पुत्र श्री गणेश जी, छोटी बहुएं, रिद्धि सिद्धि, पोते, शुभ, लाभ, प्रमुख गण नन्दी भृंगी आदि सभी बड़े प्रसन्न थे।यहाँ तक की जो स्वभाव से ही परम शत्रु हैं, ऐसे उनके वाहन, सिंह, बैल, मयूर, सर्प, मूषक आदि भी बड़े प्रेम के साथ उपस्थित थे। शनिदेव ने भगवान शिव एवं माता पार्वती की विधिवत पूजा की। भगवान शिव ने भी पूजन स्वीकार करते हुए, इस विशिष्ट पूजन का तात्पर्य पूछा। शनिदेव बोले, भगवन! आप तो त्रिकालदर्शी हैं। सब जानते हैं। मैं भी कालचक्र से बंधा हुआ हूँ। अतः कुछ ही दिनों में मैं आपकी कुंडली में साढ़ेसाती के रूप में आने वाला हूँ। मेरे उपस्थित होने पर आपको भी कष्ट तो अवश्य ही होगा, अतः मैं पहले ही आपसे क्षमा याचना करने के लिए आया हूँ। मुझे क्षमा दान करें। भगवान शिव प्रसन्न होकर बोले, शनि देव, आने से पूर्व सूचना देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार। आप कालचक्र के अपने नियत समय पर हमारी कुंडली में भी उपस्थित हों हमें किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं है। भयभीत वो होंगे जिनके पास धन दौलत, पद प्रतिष्ठा, आदि होगी। हम तो पहले ही पहाड़ पर बाघम्बर धारण किए बैठे हैं, आप आएंगे भी तो क्या हो जाएगा। यह सुनकर शनिदेव ने भगवान को प्रणाम किया और चले गए। किन्तु शनिदेव के जाने के उपरांत भगवान शिव ने अपने पूरे परिवार को बुलाया, और कहा, की शनिदेव साढ़ेसाती के रूप में हमारी कुंडली में आएंगे तो कुछ ना कुछ परेशानी तो जरूर उत्पन्न होगी ही। वैसे भी जब शनिदेव हानि और व्यय के द्वादश भाव से प्रवेश करेंगे तो अकारण व्यय बहुत करवाते हैं। व्यय करने हेतु तो कुछ हमारे पास है नहीं। किन्तु ऐसी स्थिति में पारिवारिक कलह बहुत होता है। अतः आप सभी लोग, कैलाश पर्वत को त्यागकर कहीं और चले जाएं। भगवान शिव की आज्ञा से माता पार्वती मायके चली गई, स्वामी कार्तिकेय भी अपने परिवार सहित क्रोंच पर्वत चले गए। गणेश जी ने भी वहां से परिवार सहित पलायन कर लिया। अब बचे भगवान शिव। अकेले। और कोई नहीं। कुछ समय के उपरांत शनिदेव पुनः उपस्थित हुए। भगवान को प्रणाम कर कुशलता पूछी। भगवान शिव ने भी मुस्कुराते हुए कहा, शनिदेव, हमारी कुंडली में आपकी साढेसाती चल रही है, किन्तु आप हमें कोई भी परेशानी दे नहीं पाएंगे। हमने पहले ही सबको सुरक्षित स्थानों पर भेज दिया है। शनिदेव भी हंस पड़े। बोले प्रभु, इससे अधिक साढ़ेसाती का प्रभाव और क्या हो सकता है कि इतना बड़ा परिवार होने पर भी आप इस निर्जन पर्वत पर अकेले बैठे हैं? कोई आपको भोग लगाने वाला नहीं है, कोई जल पिलाने वाला नहीं है। और तो और कोई न बोलने वाला, न सुनने वाला। प्रभु। यह सब आपकी कुंडली में मेरे उपस्थित होने का ही परिणाम है। यह सुनकर भगवान शिव बड़े प्रसन्न हुए और बोले शनिदेव, आप अपने कर्तव्य पथ पर दृढ़ हैं, अतः मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूँ। कोई वरदान मांगो। शनिदेव बोले, भगवन् आप मेरे आराध्य देव हैं, अतः मुझे यही वरदान दें कि आपकी आराधना करने वाले व्यक्ति को मेरी साढ़ेसाती का दुष्प्रभाव भी प्रभावित न करे।
शनिदेव की साढ़े-साती से हर कोई व्यक्ति डरता अवश्य है, लेकिन जितना उचित यह डर है उतना ही सच यह भी है कि, शनि की साढ़ेसाती हर एक व्यक्ति के जीवन में एक ना एक बार अवश्य आती है। इसके अतिरिक्त यहाँ ये भी जानना आवश्यक है कि, शनि की साढ़े साती व्यक्ति के जीवन का एक महत्वपूर्ण चरण होती है। शनि की साढ़ेसाती हमारे जीवन पर चल रही है या नही? इसका आकलन कुंडली में चंद्र राशि से किया जाता है। साढ़े साती शनि ग्रह से संबंधित होने से ही इसे इसे शनि की साढ़े साती कहा जाता है। आज हम शनि की साढ़ेसाती से जुड़ी प्रत्येक आवश्यक जानकारी के बारे में चर्चा करेंगे। आप बने रहें वीडियो के अंत तक हमारे साथ, एवं वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
वैदिक ज्योतिष में शनिदेव न्याय कर्ता ग्रह माने जाते हैं। यह एक राशि में लगभग ढाई साल तक भ्रमण करने के उपरांत राशि परिवर्तन करते हैं। यह जब चंद्र राशि से द्वादश भाव में होते है तो साढ़ेसाती प्रारम्भ होती है। द्वादश भाव में यह ढाई साल भ्रमण करने के उपरांत चन्द्र राशि में प्रवेश करते हैं, और वहां भी ढाई साल रहते हैं। इसके बाद यह चंद्र राशि से द्वितीय भाव में गोचर कर जाते हैं, और वहां भी ढाई साल की अवधि तक भ्रमण करते हैं। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार द्वादश से द्वितीय भाव तक शनि के इस साढ़े सात साल के काल को ही साढ़े साती कहा जाता है। हर राशि में शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव भी अलग तरह से पड़ता है।
ज्योतिष के अनुसार द्वादश भाव को आपके पैरों का भाव भी कहा जाता है, शनि की साढ़े साती भी द्वादश भाव से शुरू होती है। इसके बाद यह आपके मस्तिष्क पर भी प्रभाव डालती है जिसका पता लग्न अथवा प्रथम भाव से चलता है और अंत में यह आपके कुटुंब, धन के द्वितीय भाव में प्रवेश करता है और इस पर भी प्रभाव डालता है।
ऐसा माना जाता है कि शनि कर्मों के अनुसार व्यक्ति को फल देते हैं। जब इनकी साढ़ेसाती प्रारम्भ होती है तो व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है। कई तरह के बुरे अनुभव इस दौरान व्यक्ति को हो सकते हैं। अपने द्वितीय चरण में शनि देव व्यक्ति के सामने शारीरिक और आर्थिक रूप से चुनौतियां प्रस्तुत करते हैं और अंतिम चरण में वह व्यक्ति के नुकसान की भरपाई करते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो शनि की साढ़े साती के दौरान व्यक्ति जीवन के सत्य को जानता है और जीवन को सरल बनाने के लिए किसी ठोस निष्कर्ष पर आता है। साढ़े साती के आरंभ में व्यक्ति के जीवन में कुछ असामान्य घटनाएं हो सकती हैं जिससे इसका पता चल जाता है। आम लोग शनि की साढ़े साती को दुखदायी मानते हैं। लेकिन ज्योतिष के अनुसार शनि की साढ़े साती व्यक्ति को अच्छे सबक सिखाने वाली होती है। आपके कर्मों के अनुसार ही साढ़े साती का आपको फल प्राप्त होता है। यदि आपके कर्म अच्छे हैं और साढ़े साती शुरू होने के पहले तक आप परेशान थे तो साढ़े साती के दौरान शनि देव आपको शुभ फल देते हैं। जो लोग अपने कर्मों को कलुषित करते हैं उनको इस दौरान शनि का प्रकोप भोगना पड़ता है। हालांकि प्रताड़ित करते हुए भी शनि देव व्यक्ति को सही राह पर आने का अवसर अवश्य देते हैं। शनि की साढ़े साती का सबसे बुरा प्रभाव छठे, आठवें और बारहवें भाव में माना जाता है। लग्नानुसार, मकर, कुंभ, धनु और मीन लग्न में साढ़ेसाती का प्रभाव उतना बुरा नहीं होता जितना अन्य लग्नों में होता है।
आपके जीवन में साढ़ेसाती का आरंभ कब हो रहा है यह आप अपनी कुंडली को देखकर पता कर सकते हैं। इसके लिए आप किसी प्रबुद्ध ज्योतिषि से अपनी जन्मकुंडली का सम्पूर्ण विश्लेषण करवा सकते है।यदि आपकी कुंडली में साढ़े साती प्रारम्भ हो चुकी है तो साढ़े साती के दौरान शनि ग्रह के बुरे प्रभावों से बचने के लिए आप यह वैदिक उपाय कर सकते हैं।
शनिदेव को भगवान शिव का भक्त माना जाता है इसलिए साढ़े साती के दौरान भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए लघुरुद्र विधि द्वारा रुद्राभिषेक सर्वोत्तम उपाय है।
भगवान शिव के परमप्रिय मंत्र ‘महामृत्युंजय मंत्र ‘ का सवा लाख की संख्या में ब्राह्मणों द्वारा वैदिक विधि से जाप करवाना, और नित्यप्रति, प्रातःकाल एवं सन्ध्या समय स्वयं ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करने से साढ़े साती के दौरान आपको शुभ फल प्राप्त होते हैं। इसके साथ ही सोमवार के व्रत धारण कर, शिवलिंग पर बेलपत्र, दूध अर्पित करना भी शुभ फल दायक होता है। साढ़ेसाती के दौरान, सुंदरकांड का पाठ पांच ब्राह्मणों द्वारा सन्ध्या समय में करवाने से शीघ्र लाभ मिलता है। क्योंकि हनुमान जी की पूजा करने से साढ़े साती के प्रभाव में कमी आती है। साढ़े साती के दौरान छाया पात्र दान करना भी उपयोगी उपाय है। इसके साथ ही शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करके भी साढ़ेसाती का असर कम होता है। इस दौरान सरसों का तेल, काजल, काले तिल, उड़द की दाल, लोहे का बर्तन आदि दान कर सकते हैं। साढ़ेसाती के दौरान शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए। ध्यान रखें कि शनि देव को प्रसन्न करने के लिए कभी झूठ न बोलें, अन्याय न करें और अपनी माता-पिता और गुरुजनों का सम्मान करें।
शनि की साढ़े साती व्यक्ति के जीवन को कई तरह से बदल सकती है। जैसा कि बताया गया है शनि कर्मफल दाता ग्रह है। साढ़ेसाती के दौरान यह आपके कर्मों पर दृष्टि रखते हैं, यदि आप अच्छे कर्म करते हैं तो यह आपके जीवन को सकारात्मकता देते है वहीं बुरे कर्मों के कारण यह आपको कई चुनौतियां भी दे सकते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो शनि की साढ़े साती शनि का वह समय है जो व्यक्ति को जीवन में सीख प्रदान करता है। इस दौरान यदि व्यक्ति स्वयं को निखारने में सफल रहा तो उसका जीवन सरल हो सकता है।
जिस तरह शनि और शनि की साढ़ेसाती को लेकर गलत धारणाएं बनाई गई हैं वह सही नहीं हैं। साढ़े साती का काल व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने वाला होता है। इस दौरान व्यक्ति के जीवन में चुनौतियां अवश्य आती हैं लेकिन कुछ उपाय करने इनसे बचा भी जा सकता है। अपनी जन्म कुंडली के सशुल्क पूर्ण विश्लेषण हेतु आप हमसे संपर्क कर सकते हैं, वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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