मंगलवार, 4 मई 2021

विश्वास


नमस्कार। आध्यात्म संस्कृति में आपका हार्दिक अभिनंदन है। इस संसार में मुख्यतः यदि देखा जाये तो दो प्रकार के लोग होते है, एक आस्तिक, जो ईश्वर को मानते है, और दुसरे नास्तिक, जो ईश्वर को नहीं मानते है। नास्तिक होना भी तब तक बुरा नही है जब तक कि आप दुसरे की भावनाओं को ठेस ना पहुचायें।अनुभव की बात है कि आस्तिक लोगों में एक अलग ही प्रकार की शक्ति होती है, जिसे अपने आराध्य के प्रति श्रद्धा और विश्वास की शक्ति कहा जा सकता है। यह श्रद्धा यह विश्वास, किसी भी देवी देवता के प्रति हो सकता है। बस इसमें निरन्तरता और दृढ़ता होनी परम् आवश्यक है। आराध्य रुचि के अनुसार कोई भी हो सकता है, श्रद्धा रखकर पूर्ण विश्वास के साथ की गई आराधना का मनोनुकूल फल मिलता अवश्य है। यदि आपके पास ईश्वर विश्वास की शक्ति है तो आप इस दुनिया के सबसे खुशहाल व्यक्ति हो सकते है । क्योंकि जिसको ईश्वर में विश्वास होता है, उसी को ईश्वर की प्रेरणा, और ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त होता है। इस विषय को एक छोटे से दृष्टांत के माध्यम से समझने का प्रयत्न करें।
एक राजा था, उसके कोई पुत्र नहीं था। राजा बहुत दिनों से पुत्र की प्राप्ति के लिए आशा लगाए बैठा था, लेकिन पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई, उसके सलाहकारों ने, तांत्रिकों से सहयोग लेने को कहा।
तांत्रिकों की तरफ से राजा को सुझाव मिला कि यदि किसी बच्चे की बलि दे दी जाए, तो राजा को पुत्र की प्राप्ति हो सकती है।
राजा ने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि जो अपना बच्चा बलि चढाने के लिये राजा को देगा, उसे राजा की तरफ से, बहुत सारा धन दिया जाएगा।
एक परिवार में कई बच्चे थे, गरीबी भी बहुत थी। एक ऐसा बच्चा भी था, जो ईश्वर पर आस्था रखता था तथा सन्तों के सत्संग में अधिक समय देता था।
राजा की मुनादी सुनकर परिवार को लगा कि क्यों ना इसे ही राजा को दे दिया जाए ? क्योंकि ये निकम्मा है, कुछ काम-धाम भी नहीं करता है और हमारे किसी काम का भी नहीं है और इसे देने पर, राजा प्रसन्न होकर, हमें बहुत सारा धन देगा।
ऐसा ही किया गया, बच्चा राजा को दे दिया गया।
राजा ने बच्चे के बदले, उसके परिवार को काफी धन दिया। राजा के तांत्रिकों द्वारा बच्चे की बलि देने की तैयारी हो गई। राजा को भी बुला लिया गया, बच्चे से पूछा गया कि तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है ? ये बात राजा ने भी बच्चे से पूछी और तांत्रिकों  ने भी पूछी।
बच्चे ने कहा कि, मेरे लिए रेत मँगा दी जाए, राजा ने कहा, बच्चे की इच्छा पूरी की जाये । अतः रेत मंगाया गया।
बच्चे ने रेत से चार ढेर बना कर एक-एक करके तीन रेत के ढेरों को तोड़ दिया और चौथे के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया और उसने राजा से कहा कि अब जो करना है, आप लोग कर लें।
यह सब देखकर तांत्रिक डर गए  और उन्होंने बच्चे से पूछा पहले तुम यह बताओ कि ये तुमने क्या किया है?
राजा ने भी यही सवाल बच्चे से पूछा, तो बच्चे ने कहा कि पहली ढेरी मेरे माता-पिता की थी। मेरी रक्षा करना उनका कर्त्तव्य था । परंतु उन्होंने अपने कर्त्तव्य का पालन न करके, पैसे के लिए मुझे बेच दिया, इसलिए मैंने ये ढेरी तोड़ी दी।
दूसरी  ढ़ेरी, मेरे सगे-सम्बन्धियों की थी, परंतु उन्होंने भी मेरे माता-पिता को नहीं समझाया। अतः मैंने दूसरी ढ़ेरी को भी तोड़ दिया।
हे  राजन, तीसरी ढेर आपकी थी क्योंकि राज्य की प्रजा की रक्षा करना, राजा का ही धर्म होता है, परन्तु जब राजा ही, मेरी बलि देना चाह रहा है तो, ये ढेरी भी मैंने तोड़ दी।
,,,,और चौथी ढ़ेरी, हे राजन, मेरे ईश्वर की है। अब सिर्फ और सिर्फ,अपने ईश्वर पर ही मुझे भरोसा है। इसलिए यह एक ढेरी मैंने छोड़ दी है।
बच्चे का उत्तर सुनकर, राजा अंदर तक हिल गया। उसने सोचा, कि पता नहीं बच्चे की बलि देने के पश्चात भी, पुत्र की प्राप्ति  होगी भी या नहीं  होगी। इसलिये क्यों न इस बच्चे को ही अपना पुत्र बना लिया जाये?
इतना समझदार और ईश्वर-भक्त बच्चा है । इससे अच्छा बच्चा और कहाँ मिलेगा ?
काफी सोच विचार के बाद, राजा ने उस बच्चे को अपना पुत्र बना लिया और राजकुमार घोषित कर दिया।
अपने ईश्वर के प्रति विश्वास से ही मानव जीवन के लिए उपयोगी समस्त भौतिक साधनों सहित परम् साधन आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त की जा सकती है।
जो व्यक्ति ईश्वर पर विश्वास रखते हैं, उनका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता, यह एक अटल सत्य है।
जो मनुष्य हर मुश्किल में, केवल और केवल, ईश्वर का ही आसरा रखते हैं, उनका कहीं भी, किसी भी प्रकार का कोई अहित नहीं हो सकता।
आध्यात्म संस्कृति परिवार आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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