बुधवार, 5 मई 2021

वरुथिनी एकादशी 7 मई

नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। सनातनी वैष्णव भक्तों का परम प्रिय वरुथिनी एकादशी का व्रत सुख और सौभाग्य का प्रतीक है। वरुथिनी एकादशी व्रत के दिन व्रत धारण कर भक्तिभाव से भगवान मधुसुदन की पूजा करने से समस्त पाप, ताप सन्ताप दूर होते हैं और साथ ही भक्तिपूर्ण ओजस्वी जीवन के साथ साथ अनंत शक्ति भी मिलती है। कहा जाता है कि सूर्य ग्रहण के समय जो फल स्वर्ण दान करने से प्राप्त होता है, वही फल वरूथिनी एकादशी का उपवास करने से मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख भोगता है। वरुथिनी एकादशी व्रत एवं पूजा विधि, व्रत कथा के साथ ही मुहूर्त की सही जानकारी के लिए आप वीडियो को अंत तक अवश्य देखें, साथ ही वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
वरूथिनी एकादशी का व्रत वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है, जो कि इस वर्ष 2021 में 7 मई शुक्रवार को रखा जाएगा। वरुथिनी एकादशी का पारणा मुहूर्त 8 
मई को प्रातःकाल 5 बजकर 35 मिनट से 8 बजकर 16 मिनट तक है। जिसकी अवधि 2 घण्टे 41 मिनट है। 
एकादशी व्रत धारण करने वाले भक्तों को सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य व्रत का पालन अवश्य ही करना चाहिये। साथ ही निंदा, अर्थात दूसरों की बुराई और दुष्ट लोगों की संगत से बचना चाहिए। 
वरुथिनी एकादशी व्रत के महत्व की यदि बात करें तो पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत बहुत पुण्यदायी होता है। ब्राह्मणों को गाय दान देने, वर्षों तक ध्यान साधना करने और कन्या दान से मिलने वाले फल से भी बढ़कर वरुथिनी एकादशी का व्रत का फल है। इस व्रत को करने से भगवान मधुसुदन की कृपा सहज ही प्राप्त होती है। मनुष्य के समस्त दैहिक दैविक भौतिक दुख दूर हो होते हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही प्रारम्भ हो जाता है। अत: दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।  किन्तु यदि स्वास्थ्य समस्याओं के चलते आवश्यक हो तो भोजन शुद्ध सात्विक अथवा दुग्ध फलाहार आदि ही लेना चाहिए। एकादशी तिथि को प्रातः सूर्योदय से पूर्व जगकर शौच स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सर्व प्रथम भगवान सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान करें। फिर व्रत का संकल्प लेकर भगवान नारायण की विधिवत पूजा अर्चना कर भोग लगाएं। फिर पूरे दिन निराहार व्रत रखकर सन्ध्या समय पुनः पूजन करें, एवं वरूथिनी एकादशी व्रत की कथा श्रवण करें। आरती करने के उपरांत पुनः भगवान को भोग लगाएं। एकादशी के अगले दिन द्वादशी पर पूजन के बाद जरुरतमंद व्यक्तियों एवं ब्राह्मणों को भोजन करवाकर और दान-दक्षिणा देकर, अंत में भोजन करके व्रत खोलना चाहिए।
विधिपूर्वक पूजा एवं व्रत के साथ-साथ वरूथिनी एकादशी के दिन व्रत कथा सुनने का भी अपना विशेष महत्व होता है। जो कोई भी व्यक्ति व्रत कथा सुनता है उसे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। तो आइए हम सब भी भाव से वरूथिनी एकादशी व्रत कथा श्रवण करें।
धर्मराज युधिष्ठिर बोले: हे भगवन्! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आपने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात कामदा एकादशी के बारे मे विस्तार पूर्वक बतलाया। अब आप कृपा करके वैशाख कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी विधि एवं महात्म्य क्या है? यह विस्तार से बताने का अनुग्रह कीजिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे राजेश्वर! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है। इसकी महात्म्य कथा आपसे कहता हूँ..
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी न जाने कहाँ से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहे। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया।
राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।
राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुए। उन्हें दुःखी देखकर भगवान विष्णु बोले: हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।
भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गये थे। जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार



Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

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