बुधवार, 21 जुलाई 2021

व्यासपूर्णिमा

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात्परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है।  गुरुपूर्णिमा अर्थात् सद्गुरुके पूजनका पर्व । गुरुकी पूजा - गुरुका आदर किसी व्यक्तिकी पूजा नहीं है , व्यक्तिका आदर नहीं है अपितु गुरुके देहके अंदर जो विदेही आत्मा है - परब्रह्म परमात्मा है उसका आदर है , ज्ञानका आदर है , ज्ञानका पूजन है , ब्रह्मज्ञानका पूजन है। यूं तो यह पूजन प्रतिदिन ही होता है, किन्तु वर्ष में एक बार गुरुपूर्णिमा के दिन  विशेष रूप से गुरु का विशिष्ट पूजन किया जाता है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहते हैं। वसिष्ठजी महाराजके पौत्र पराशर ऋषिके पुत्र वेदव्यासजी जन्मके कुछ समय बाद ही अपनी माँसे कहने लगे - ' माता हम  तपस्याके लिये जाते हैं । ' माँ बोली - बेटा ! पुत्र तो माता पिताकी सेवाके लिये होता है । माता - पिताके अधूरे कार्यको पूर्ण करनेके लिये होता है और तुम अभीसे जा रहे हो ? ' व्यासजीने कहा - ' माँ ! जब तुम याद करोगी और अति आवश्यक कार्य होगा , तब मैं तुम्हारे आगे प्रकट हो जाऊँगा । ' माँसे आज्ञा लेकर व्यासजी तपके लिये चल दिये । वे बदरिकाश्रम गये । वहाँ एकान्तमें समाधि लगाकर रहने लगे । बदरिकाश्रममें बेरपर जीवन - यापन करनेके कारण उनका एक नाम ' बादरायण ' भी पड़ा । व्यासजी द्वीपमें प्रकट हुए इसलिये उनका नाम ' द्वैपायने ' पड़ा । वह कृष्ण अर्थात काले रंगके थे इसलिये उन्हें ' कृष्णद्वैपायन ' भी कहते हैं । उन्होंने वेदोंका विस्तार किया , इसलिये उनका नाम ' वेदव्यास ' भी पड़ा । ज्ञानके असीम सागर , भक्तिके आचार्य , विद्वत्ताकी पराकाष्ठा और अथाह कवित्व शक्ति इनसे बड़ा कोई कवि मिलना मुश्किल है । भगवान् वेदव्यासके नामसे ही आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमाका नाम ' व्यासपूर्णिमा ' पड़ा है यह सबसे बड़ी पूर्णिमा मानी जाती है ; क्योंकि परमात्माके ज्ञान , परमात्माके ध्यान और परमात्माकी प्रीतिकी तरफ ले जानेवाली है यह पूर्णिमा । इसको ' गुरुपूर्णिमा ' भी कहते हैं । जबतक मनुष्यको सत्यके ज्ञानकी प्यास रहेगी , तबतक ऐसे व्यास पुरुषोंका , ब्रह्मज्ञानियोंका आदर - पूजन होता रहेगा । 
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि, गुरू बिन भवनिधि तरहिं न कोई , जों बिरंचि संकर सम होई।। भारतीय वांग्मय में गुरु को इस भौतिक संसार और परमात्म तत्व के बीच का सेतु कहा गया है । सनातन अवधारणा के अनुसार इस संसार में मनुष्य को जन्म भले ही माता पिता देते है लेकिन मनुष्य जीवन का सही अर्थ गुरु कृपा से ही प्राप्त होता है । गुरु जगत व्यवहार के साथ - साथ भव तारक पथ प्रदर्शक होते है । जिस प्रकार माता पिता शरीर का सृजन करते है उसी तरह गुरु अपने शिष्य का सृजन करते है । शास्त्रों में " गु " का अर्थ बताया गया है अंधकार और " रु " का अर्थ उसका निरोधक । याने जो जीवन से अंधकार को दूर करे उसे गुरु कहा गया है। आषाढ़ की पूर्णिमा को हमारे शास्त्रों में गुरुपूर्णिमा कहते हैं । इस दिन गुरु पूजा का विधान है । गुरु के प्रति आदर और सम्मान व्यक्त करने के वैदिक शास्त्रों में कई प्रसंग बताए गये हैं । उसी वैदिक परम्परा के महाकाव्य रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कई अवसरों पर गुरु महिमा का बखान किया है। अतः मनुष्य को आध्यात्मिक उन्नति हेतु गुरुदीक्षा अवश्य ही लेनी चाहिए। क्योंकि व्यक्ति द्वारा किए गए समस्त जप तप व्रत का पूर्ण फल बिना गुरु मंत्र के प्राप्त नहीं होता। अतः गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर गुरुमंत्र की दीक्षा अवश्य लेनी चाहिए। सद्गुरु पथप्रदर्शक होते हैं। जो लोग शिष्य बनाकर केवल शिष्य के धन पर ही दृष्टि जमाए बैठे रहते हैं उन लोगों के लिए तुलसी दास जी लिखते हैं कि, हरइ सिष्य धन सोक न हरई। सो गुर घोर नरक महुँ परई॥ अर्थात जो गुरु शिष्य का धन हरण करता है, किन्तु शोक नहीं हरण करता, वह घोर नरक में पड़ता है। अतः शिष्य का कल्याण गुरु की प्रार्थमिकता होती है। और मानव कल्याण का सहज मार्ग ज्ञान ही है। जो बिना गुरु कृपा के सम्भव नहीं होता। गुरुपूर्णिमा के अवसर पर वैष्णव गुरुमंत्र दीक्षा हेतु इच्छुक व्यक्ति सम्पर्क कर सकते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेदव्यास जी का विशिष्ट पूजन किया जाता है, क्योंकि
व्यासजीने वेदोंके विभाग किये । ' ब्रह्मसूत्र ' व्यासजीने ही बनाया । पाँचवाँ वेद ' महाभारत ' व्यासजीने बनाया , भक्ति - ग्रन्थ भागवतपुराण भी व्यासजीकी रचना है एवं अन्य १७ पुराणोंका प्रतिपादन भी भगवान् वेदव्यासजीने ही किया है । विश्वमें जितने भी धर्मग्रन्थ हैं , फिर वे चाहे किसी भी धर्म - पन्थके हों , उनमें अगर कोई सात्त्विक और कल्याणकारी - बातें हैं तो सीधे - अनसीधे भगवान् वेदव्यासजीके शास्त्रोंसे ली गयी हैं । इसीलिये ' व्यासोच्छिष्टं जगत्सर्वम् ' कहा गया है । व्यासजीने पूरी मानव - जातिको सच्चे कल्याणका खुला रास्ता बता दिया है । वेदव्यासजीकी कृपा सभी साधकोंके चित्तमें चिरस्थायी रहे । जिन - जिनके अन्त : करणमें ऐसे व्यासजीका ज्ञान , उनकी अनुभूति और निष्ठा उभरी , ऐसे पुरुष अभी भी ऊँचे आसनपर बैठते हैं तो कहा जाता है कि भागवतकथामें अमुक महाराज व्यासपीठपर विराजेंगे । व्यासजीके शास्त्र - श्रवणके बिना भारत तो क्या विश्वमें भी कोई आध्यात्मिक उपदेशक नहीं बन सकता व्यासजीका ऐसा अगाध ज्ञान है । व्यासपूर्णिमाका पर्व वर्षभरकी पूर्णिमा मनानेके पुण्यका फल तो देता ही है , साथ ही नयी दिशा , नया संकेत भी देता है और कृतज्ञताका सद्गुण भी भरता है । जिन महापुरुषोंने कठोर परिश्रम करके हमारे लिये सब कुछ किया , उन महापुरुषोंके प्रति कृतज्ञता ज्ञापनका अवसर - ऋषिऋण चुकानेका अवसर , ऋषियोंकी प्रेरणा और आशीर्वाद पानेका यही अवसर है - व्यासपूर्णिमा ।यह पर्व गुरुपूर्णिमा भी कहलाता है । भगवान् श्रीराम भी गुरुद्वारपर जाते थे और माता - पिता तथा गुरुदेवके चरणोंमें विनयपूर्वक नमन करते थे प्रातकाल उठि कै रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहिं माथा ॥ गुरुजनों , श्रेष्ठजनों एवं अपनेसे बड़ोंके प्रति अगाध श्रद्धाका यह पर्व भारतीय सनातन संस्कृतिका विशिष्ट पर्व है । इस प्रकार कृतज्ञता व्यक्त करनेका और तप , व्रत , साधनामें आगे बढ़नेका भी यह त्योहार है । संयम , सहजता , शान्ति और माधुर्य तथा जीते - जी मधुर जीवनकी दिशा बनानेवाली पूर्णिमा है - गुरुपूर्णिमा । ईश्वरप्राप्तिकी सहज , साध्य , साफ - सुथरी दिशा बतानेवाला त्योहार है - गुरुपूर्णिमा । यह आस्थाका पर्व है , श्रद्धाका पर्व है , समर्पणका पर्व है। वैदिक ऐस्ट्रो केयर परिवार के समस्त प्रिय दर्शकों को गुरुपूर्णिमा महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार

Vedic Astro Care | वैदिक ज्योतिष शास्त्र

Author & Editor

आचार्य हिमांशु ढौंडियाल

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें