नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। शास्त्रों में शरीर को रोगों का घर कहा गया है। और नाना प्रकार के सुखों में प्रथम सुख निरोगी काया ही है। प्रथम सुख निरोगी काया। यदि जीवन में सभी सुख उपलब्ध हों, और स्वयं का स्वास्थ्य ही ठीक ना हो तो साधनों का सुख भी दुःखदाई ही प्रतीत होता है। रोगों के वैसे तो अनेक कारण होते हैं, जिनका ज्ञान वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली के छठे भाव से प्राप्त होता है। अर्थात जन्मकुंडली का षष्ठ भाव रोग को दर्शाता है। शास्त्रवचनों को प्रमाण मानें तो, पूर्व जन्म कृतं पापं ब्याधि रूपेण दृश्यते। अर्थात मनुष्य द्वारा पूर्व जन्म में किए गए पाप रोगों के रूप में प्रकट होते हैं। किन्तु जो सात्विक प्रवृत्ति के परमात्मा को मानने वाले भक्त जन हैं, वो यह जानते हैं कि हमारे अंदर पापकर्म करने की इतनी शक्ति नहीं है जितना सामर्थ्य भगवान के नामजप में पापों के प्रभाव को भस्म करने में है। यदि ज्ञात अज्ञात किन्हीं पाप कर्मों के कारण शरीर रोग ग्रस्त हो गया हो तो भगवान शिव के परम प्रभावी मन्त्र, महामृत्युंजय मंत्र का सविधि प्रयोग कर रोगमुक्ति का उपाय कर सकते हैं। महामृत्युंजय मंत्र प्रयोग की सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप वीडियो को पूरा अवश्य देखें, और साथ ही ज्योतिष, धर्म, आध्यात्म, के अनेक विषयों की शास्त्रसम्मत जानकारी के लिए वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें। महामृत्युंजय मंत्र के अनेक प्रकार हैं। यहां सर्वाधिक प्रचलित मन्त्र के प्रयोग को बता रहे हैं।
' ॐ हौं जूं सः , ॐ भूर्भुवः स्वः । ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् । स्वः भुवः भूः ॐ । सः जू हौं । ' यह मन्त्र मृतसंजीवनी प्रयोग कहलाता है। इस मन्त्र का अर्थ है कि - हम परमपिता त्र्यम्बक अर्थात भगवान् शिव की आराधना करते हैं । वह परमसुखदायक एवं पुष्टिवर्धक हैं । जैसे तरबूज आदि फल पक जाने पर स्वयं ही बेल से छूट जाता है , वैसे ही पूर्ण आयु भोगकर मैं मृत्युमय जीवन से बिना कष्ट भोगे छूट जाऊँ , परन्तु अमृतमय जीवन से ना छूटूं । इस दिव्य मन्त्र की विधि को ध्यान पूर्वक समझें। यह सम्पुटयुक्त मन्त्र है । ॐकार का प्रतीक शिवलिङ्ग है ; उसी के ऊपर अविच्छिन - अनवरत जलधारा के प्रवाहवत अपनी दृष्टि स्थिर करते हुए विश्वासपूर्वक मृत्युंजय महामन्त्र का जाप करता रहे तो ध्यानावस्था प्रत्यक्ष खड़ी हो जाती है और एक विलक्षण आनन्द की अनुभूति होती है। किसी शुभ मुहूर्त में शुद्ध शान्तचित्त , संयमपूर्वक देवालय, विशेषकर शिव मन्दिर, गंगादि तीर्थ स्थान , जलाशय , पीपल वृक्ष के पास अथवा अपने निवास स्थान में स्वच्छ एकान्त स्थान पर संकल्पपूर्वक भगवान शिव का पूजन अभिषेक करने के उपरांत निश्चित विषम संख्या में श्रद्धापूर्वक जाप करने से अवश्य लाभ मिलता है। जप संख्या सवालाख सर्वाधिक प्रभावी मानी गई है। जप संख्या में उलट - फेर या कमी बेशी करने से विक्षिप्तता का भय रहता है। अतः महामृत्युंजय जप अनुष्ठान सदैव श्रेष्ठ वैदिक ब्राह्मणों द्वारा ही करवाना चाहिए। जपसंख्या पूर्ण हो जाने पर जपसंख्या का दशांश हवन , हवन का दशांश तर्पण एवं तर्पण का दशांश मार्जन एवं यथेष्ठ दानादि सहित ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए तथा पाठोपरान्त शिव कवच अवश्य पढ़ना चाहिए । जप के बाद प्रतिदिन इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए ।
गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देव त्वत्प्रसादन्महेश्वर ॥
मृत्युंजय महारुद्र त्राहि मां शरणागतम् । जन्ममत्युजरारोगैः पीडितं कर्मबन्धनैः ॥ श्रीमहामृत्युञ्जय मंत्र के जप से अकालमृत्यु का निवारण , दीर्घायु व आरोग्य की प्राप्ति होती है । इसके अतिरिक्त जन्मकुण्डली में ग्रहबाधा - नक्षत्र दोष , नाड़ी दोष , मंगलीक दोष , शत्रुषडाष्टक , विधुर एवं वैधव्यादि दोषों के निवारण हेतु तथा अतिशय क्लिष्ट एवं असाध्य रोगों और मृत्युतुल्य शारीरिक एवं मानसिक रोगों में उपायस्वरूप अचूक एवं सिद्ध मन्त्र माना गया है। इसके साथ ही श्रीमहामृत्युंजय कवच यन्त्रम् को भी धारण करना चाहिए" भोजपत्र पर अष्टगन्ध से यन्त्र लिखकर गुग्गुल का धूप देकर पुरुष के दाहिने और स्त्री की बाईं भुजा में बाँध देना चाहिए । महामृत्युंजय मंत्र जप एवं यंत्र धारण करने हेतु आप स्क्रीन पर दिए गए नम्बरों के माध्यम से हमसे संपर्क कर सकते हैं। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
https://youtu.be/YKHh6IRO99w
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