अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः ॥४ ॥ धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् । पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः ॥५ ॥
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥६ ॥
अर्थात, इस सेनामें बड़े - बड़े धनुषोंवाले तथा युद्धमें भीम और अर्जुनके समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद , धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान् काशिराज , पुरुजित् , कुन्तिभोज और मुनष्योंमें श्रेष्ठ शैब्य , पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान् उत्तमौजा , सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदीके पाँचों पुत्र - ये सभी महारथी हैं॥४-६ ॥ यह इन तीनों श्लोकों का शब्दार्थ है।
अब यहां सर्वप्रथम प्रश्न उठता है कि ' अत्र ' पदका यहाँ किस अर्थमें प्रयोग हुआ है ? तो इसका उत्तर है कि ' अत्र ' पद यहाँ पाण्डव - सेनाके अर्थमें प्रयुक्त है । 'दूसरा प्रश्न है कि- युधि ' पदका अन्वय अत्र के साथ न करके ' भीमार्जुनसमा : ' के साथ क्यों किया गया ?तो इसका उत्तर है कि - ' युधि ' पद यहाँ ' अत्र'का विशेष्य नहीं बन सकता , क्योंकि उस समय युद्ध आरम्भ ही नहीं हुआ था । इसके अतिरिक्त उसके पहले पाण्डव - सेनाका वर्णन होनेके कारण ' अत्र ' पद स्वभावसे ही उसका वाचक हो जाता है , इसीलिये उसके साथ किसी विशेष्यकी आवश्यकता भी नहीं है । ' भीमार्जुनसमाः'के साथ ' युधि ' पदका अन्वय करके यह भाव दिखलाया है कि यहाँ जिन महारथियोंके नाम लिये गये हैं , वे पराक्रम और युद्धविद्यामें भीम और अर्जुनकी ही समता रखते हैं । अगला प्रश्न होता है कि - युयुधान , विराट , द्रुपद , धृष्टकेतु , चेकितान , काशिराज , पुरुजित् , कुन्तिभोज , शैब्य , युधामन्यु और उत्तमौजा कौन थे ? इसे विस्तार से समझें। अर्जुनके शिष्य सात्यकिका ही दूसरा नाम युयुधान था। ये यादववंशीय राजा शिनिके पौत्र थे। ये भगवान् श्रीकृष्ण का परम अनुगत थे और बड़े ही बलवान् एवं अतिरथी थे । ये महाभारतयुद्धमें न मरकर यादवोंके पारस्परिक युद्धमें मारे गये थे । युयुधान नामक एक दूसरे यादववंशीय योद्धा भी थे।
विराट मत्स्यदेशके धार्मिक राजा थे । पाण्डवोंने एक वर्ष इन्हींके यहाँ अज्ञातवास किया था । इनकी पुत्री उत्तराका विवाह अर्जुनके पुत्र अभिमन्युके साथ हुआ था । ये महाभारतयुद्धमें उत्तर , श्वेत और शंखनामक तीनों पुत्रोंसहित मारे गये । द्रुपद पांचालदेशके राजा पृषत् के पुत्र थे । राजा पृषत् और भरद्वाज मुनिमें परस्पर मैत्री थी , द्रुपद भी बालक - अवस्थामें भरद्वाज मुनिके आश्रममें रहे थे । इससे भरद्वाजके पुत्र द्रोणके साथ इनकी भी मित्रता हो गयी थी । पृषत्के परलोकगमनके पश्चात् द्रुपद राजा हुए , तब एक दिन द्रोणने इनके पास जाकर इन्हें अपना मित्र कहा । द्रुपदको यह बात बुरी लगी । तब द्रोण मनमें क्षुब्ध होकर चले आये । द्रोणने कौरवों और पाण्डवोंको अस्त्रविद्याकी शिक्षा देकर गुरुदक्षिणामें अर्जुनके द्वारा द्रुपदको पराजित कराकर अपने अपमानका बदला चुकाया और उनका आधा राज्य ले लिया । द्रुपदने ऊपरसे द्रोणसे प्रीति कर ली , परंतु उनके मनमें क्षोभ बना रहा । उन्होंने द्रोणको मारनेवाले पुत्रके लिये याज और उपयाजनामक ऋषियोंके द्वारा यज्ञ करवाया । उसी यज्ञकी वेदीसे धृष्टद्युम्न तथा कृष्णाका प्राकट्य हुआ । यही कृष्णा ' द्रौपदी ' या ' याज्ञसेनी के नामसे प्रसिद्ध हुई और स्वयंवरमें जीतकर पाण्डवोंने उसके साथ विवाह किया । राजा द्रुपद बड़े ही शूरवीर और महारथी थे । महाभारतयुद्धमें द्रोणके हाथसे इनकी मृत्यु हुई। धृष्टकेतु चेदिदेशके राजा शिशुपालके पुत्र थे । ये महाभारतयुद्धमें द्रोणके हाथसे मारे गये थे। चेकितान वृष्णिवंशीय यादव, महारथी योद्धा और बड़े शूरवीर थे ।
पाण्डवोंकी सात अक्षौहिणी सेनाके सात सेनापतियोंमेंसे एक थे। ये महाभारतयुद्धमें दुर्योधनके हाथसे मारे गये। काशिराज काशीके राजा थे । ये बड़े ही वीर और महारथी थे। काशिराजका नाम सेनाविन्दु और क्रोधहन्ता बतलाया गया है । कर्णपर्व अध्याय छ : में जहाँ काशिराजके मारे जानेका वर्णन है , वहाँ उनका नाम ' अभिभू ' बतलाया गया है । पुरुजित् और कुन्तिभोज - दोनों कुन्तीके भाई थे और युधिष्ठिर आदिके मामा होते थे । ये दोनों ही महाभारतयुद्धमें द्रोणाचार्यके हाथसे मारे गये। शैब्य धर्मराज युधिष्ठिरके श्वसुर थे , इनकी कन्या देविकासे युधिष्ठिरका विवाह हुआ था। ये मनुष्योंमें श्रेष्ठ , बड़े बलवान् और वीर योद्धा थे । इसीलिये इन्हें ' नरपुंगव ' कहा गया है । युधामन्यु और उत्तमौजा - दोनों भाई पांचालदेशीय राजकुमार थे। पहले अर्जुनके रथके पहियोंकी रक्षा करनेपर इन्हें नियुक्त किया गया था। ये दोनों ही बड़े भारी पराक्रमी और बलसम्पन्न वीर थे , इसीलिये इनके साथ क्रमश : ' विक्रान्त ' और ' वीर्यवान् ' - दो विशेषण जोड़े गये हैं । ये दोनों रातको सोते समय अश्वत्थामाके हाथसे मारे गये। अगला नाम है अभिमन्यु का। अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्णकी बहिन सुभद्रासे विवाह किया था । उन्हींके गर्भसे अभिमन्यु उत्पन्न हुए थे। मत्स्यदेशके राजा विराटकी कन्या उत्तरासे इनका विवाह हुआ था। इन्होंने अपने पिता अर्जुनसे और प्रद्युम्नसे अस्त्रशिक्षा प्राप्त की थी । ये असाधारण वीर थे । महाभारतयुद्धमें द्रोणाचार्यने एक दिन चक्रव्यूहकी ऐसी रचना की कि पाण्डवपक्षके युधिष्ठिर , भीम , नकुल , सहदेव , विराट , द्रुपद , धृष्टद्युम्न आदि कोई भी वीर उसमें प्रवेश नहीं कर सके ; जयद्रथने सबको परास्त कर दिया । अर्जुन दूसरी ओर युद्धमें लगे थे । उस दिन वीर युवक अभिमन्यु अकेले ही उस व्यूहको भेदकर उसमें घुस गये और असंख्य वीरोंका संहार करके अपने असाधारण शौर्यका परिचय दिया । द्रोण , कृपाचार्य , कर्ण , अश्वत्थामा , बृहद्बल और कृतवर्मा - इन छ : महारथियोंने मिलकर अन्यायपूर्वक इन्हें घेर लिया ; उस अवस्थामें भी इन्होंने अकेले ही बहुत - से वीरोंका संहार किया । अन्तमें दुःशासनके लड़के ने इनके सिरपर गदाका बड़े जोरसे प्रहार किया , जिससे इनकी मृत्यु हो गयी। राजा परीक्षित् इन्हींके पुत्र थे ।अब प्रश्न होता है कि - द्रौपदीके पाँच पुत्र कौन - कौन थे ? तो इसका उत्तर है कि- प्रतिविन्ध्य , सुतसोम , श्रुतकर्मा , शतानीक और श्रुतसेन - ये पाँचों क्रमशः युधिष्ठिर , भीमसेन , अर्जुन , नकुल और सहदेवके औरस और द्रौपदीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। इनको रात्रिके समय अश्वत्थामाने मार डाला था। अगला प्रश्न है कि - ' सर्वे एव महारथाः ' इस कथनका क्या भाव है ? तो इसका उत्तर है कि - शास्त्र और शस्त्रविद्यामें अत्यन्त निपुण, असाधारण वीरको महारथी कहते हैं , जो अकेला ही दस हजार धनुर्धारी योद्धाओंका युद्धमें संचालन करता हो ।
एको दशसहस्राणि योधयेद्यस्तु धन्विनाम् । शस्त्रशास्त्रप्रवीणश्च महारथ इति स्मृतः ।।
दुर्योधनने यहाँ जिन योद्धाओंके नाम लिये हैं , ये सभी महारथी हैं - इसी भावसे ऐसा कहा गया है । प्रायः इन सभी वीरोंके पराक्रमका पृथक् - पृथक रूप से विस्तृत वर्णन पाया जाता है । वहाँ भी इन्हें अतिरथी और महारथी बतलाया गया है । इसके अतिरिक्त पाण्डव सेनामें और भी बहुत - से महारथी थे , उनके भी नाम वहाँ बतलाये गये हैं । यहाँ ' सर्वे ' पदसे दुर्योधनका कथन उन सबके लिये भी समझ लेना चाहिये । जय श्री कृष्ण।
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