नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। हमारे सनातन धर्म ग्रन्थों के अनुसार, धर्म अर्थ काम और मोक्ष, यह चार पुरुषार्थ कहे गए हैं। इन्हें सामान्य रूप से समझें तो, मानव अपने जीवन में यदि धर्ममार्ग का अनुसरण करके, अर्थोपार्जन करता है, और उसी अर्थ से अपनी समस्त कामनाओं की पूर्ति कर पूर्ण आयु को भोगता है तो उसे मोक्ष पद सहज ही प्राप्त हो जाता है। किंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस प्रकार का जीवन कोई विरला ही जी पाता है। प्रथम तो हम वेद विहित धर्म मार्ग का ही अनुसरण नहीं कर पाते। अर्थोपार्जन, अर्थात धन कमाने के लिए भी न जाने कितने प्रकार के अनुचित प्रयोग करते हैं, और फिर उस अनुचित साधनों से प्राप्त धन से जब हम अपने और अपने परिवार की कामनाओं की पूर्ति करते हैं, तो वो शुभ अशुभ कामनाएं भी हमें दुख देने वाली ही सिद्ध होती हैं। और इस प्रकार सांसारिक सुख दुखों से व्यथित होकर हम जब अपने जीवन का त्याग करते हैं तो मुक्त नहीं पाते। क्योंकि अंत समय में अनेक प्रकार की कामनाएं हमारी अपूर्ण ही रह जाती हैं। अन्ते मति सा गति। जैसी अंत समय में हमारी बुद्धि होती है वैसी ही हमारी गति होती है। अतृप्त जीवन जीने के पश्चात, मृत्यु को प्राप्त होने पर, जीवात्मा अतृप्त अवस्था में ही भटकती रहती है, तथा अपनी मुक्ति के लिए अपने परिजनों को अनेकों माध्यमों से अपनी उपस्थिति, समय समय पर अनुभव करवाती रहती है।
पितरों के अतृप्त होने के, या अपने वंशजों से रुष्ट होने, अर्थात पितृदोष के कुछ असामान्य लक्षण जो हम अपनी दिनचर्या के माध्यम से स्वयं भी अनुभव कर सकते हैं, उन सभी विषयों पर आज विस्तार से चर्चा करेंगे। आप विषय को पूर्ण रूप से समझने के लिए वीडियो को पूरा अवश्य देखें। साथ ही, धर्म, कर्म, आध्यात्म, ज्योतिष, कर्मकांड के अनेकों विषयों की शास्त्रसम्मत जानकारी के लिए आपके अपने इस वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
हमारे दैनिक जीवन में यदि कुछ असामान्य घटनाएं बार बार हों तो उनके पीछे कोई न कोई बड़ा कारण अवश्य ही होता है। और यदि हम थोड़ा सचेत रहें तो उनका रहस्य प्रकट भी हो जाता है। जैसे यदि भोजन करते समय आपके भोजन में बार बार बाल निकलता है तो यह आप पर पितृ दोष को दर्शाता है। यदि ऐसा आपके साथ अक्सर होता है तो इसे नजरअंदाज न करें।
बहुत बार परिवार के किसी एक ही सदस्य के साथ ऐसा होता है कि उसे परोसे गए भोजन में से बाल निकलता है, यह बाल कहां से आया इसका कुछ पता नहीं चलता। यहां तक कि वह व्यक्ति यदि कहीं बाहर भी भोजन करे, अथवा रेस्टोरेंट आदि में भी जाए तो वहां पर भी उसके ही भोजन में से बाल निकलता है और परिवार के लोग उसे ही दोषी मानते हुए उसका परिहास करते हैं। किन्तु यह पितृदोष से पीड़ित व्यक्ति का पहला लक्षण होता है।
पितृदोष से पीड़ित व्यक्ति, या जिस व्यक्ति के पूर्वज मुक्त नहीं हो पाते, उसे हमेशा अपने आसपास एक अजीब तरह की गंध, या यूं कहें कि फ्रेसनेस महसूस नहीं होती। वातावरण में एक घुटन सी लगती है। किन्तु अधिक समय तक ऐसी स्थिति को नजरअंदाज करने पर व्यक्ति इस दुर्गंध के इतने अभ्यस्त हो जाते है कि उन्हें यह दुर्गंध महसूस भी नहीं होती लेकिन बाहर के लोग उन्हें बताते हैं कि ऐसा हो रहा है। किन्तु पितृदोष से पीड़ित व्यक्ति जल्दी विश्वास भी नहीं कर पाता। और जब विश्वास ही नहीं होता तो उपाय भी नहीं कर पाता और परेशानियों से जूझता ही रहता है। पूर्वज अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु, बार बार, परिवार के अलग अलग सदस्यों के स्वप्नों में भी आते हैं। यह भी पितरों के अतृप्त होने का ही सूचक होता है। पितरों की असन्तुष्टि से व्यक्ति अपने जीवन में शुभ कार्यों को निर्विघ्न पूरा नहीं कर पाता। कभी कभी ऐसा होता है कि आप कोई त्यौहार मना रहे हैं या कोई उत्सव आपके घर पर हो रहा है ठीक उसी समय पर कुछ ना कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि जिससे रंग में भंग पड़ जाता है। ऐसी घटना घटित होती है कि प्रसन्नता का वातावरण, दुःख में बदल जाता है। अर्थात शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का एक मुख्य संकेत है। पितृदोष से ग्रस्त व्यक्ति के जीवन में अनेकों क्षेत्रों में सदैव बाधाएं उत्पन्न होती रहती हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में, या व्यापार आदि आजीविका के साधनों में पितृदोष के कारण बार बार अवरोध उत्पन्न होते ही रहते हैं। यहाँ तक की सर्वगुणसम्पन्न होने पर भी बहुत बार पितृदोष के कारण ही व्यक्ति वैवाहिक सुख से वंचित रह जाता है। यदि घर परिवार में पहले ही किसी कुंवारे व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है तो उपरोक्त स्थिति बनने के आसार बढ़ जाते हैं। इस समस्या के कारण का भी पता आसानी से नहीं चलता।
भूमि सम्बन्धी विवाद होना, या लाख कोशिश करने के बाद भी अपना घर न बना पाना भी पित्रों के अतृप्त होने के कारण ही होता है। पितृदोष के ही कारण बहुत बार नवदम्पति, मेडिकली सामान्य होने पर भी सन्तान हीन ही रह जाते हैं। इसके पीछे भी पूर्वजों द्वारा किए गए भूमि विवाद, लड़ाई झगड़े आदि, कई कारण होते हैं। ऐसी विवादित भूमि में निवास करना नए भूस्वामी को संतानहीन बना देती है।
इस प्रकार की अनेकों घटनाएं या समस्याएं आप में से बहुत से लोगों ने अपने जीवन में अनुभव की होंगी इसके निवारण के लिए लोग समय और पैसा बहुत व्यय कर देते हैं परंतु समस्या का सही समाधान नहीं हो पाता। ऐसी ही समस्याओं से यदि आप भी ग्रस्त हैं तो निसंकोच स्क्रीन पर दिए गए नम्बरों के माध्यम से हमसे संपर्क करें। यहां आपको पितृदोष से निवृत्त के लिए कुछ उपाय बता रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आप लाभ अर्जित कर सकते हैं।
सामान्य उपायों में, पितृगायत्री का जप, त्रिपिंडी श्राद्ध, षोडश पिंड दान, नागबलि पूजा, ब्राह्मण को गौ -दान, कुआं, बावड़ी, तालाब आदि बनवाना, मंदिर प्रांगण में पीपल, बड आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि कार्य अपनी शक्ति सामर्थ्य अनुसार कर सकते हैं।
यदि किसी व्यक्ति के परिवार में कोई अकालमृत्यु होने से प्रेत योनि में चला गया हो तो ऐसी जीवात्मा को प्रेतत्व से मुक्त करने के लिए श्रीमद्भागवत महापुराण का मूलपाठ एवं कथा अवश्य करवानी चाहिए। प्रेतबाधा से मुक्ति का यह सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
वेदों और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र, स्तोत्र एवं सूक्तों का वर्णन है जिसके प्रयोग से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो,वह अवश्य ही शांत हो जाती है। पितृदोष के लक्षण दिखाई देने पर पितृगायत्री का जप, गजेंद्र मोक्ष का पाठ, पितृ सूक्त का पाठ, नारायण बलि आदि करवाने से लाभ मिलता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या अर्थात पितृपक्ष में यह उपाय अधिक प्रभावशाली होते हैं। अतः शीघ्र लाभ के लिए अवश्य ही प्रयोग करने चाहिए। जन्मकुंडली के विश्लेषण से पितृदोष के प्रकार का पता करके, फिर उपाय करवाना चाहिए। साथ ही अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा, घी एवं एक रोटी गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है। पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए "हरिवंश पुराण " का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें। नवग्रहों में सूर्य पिता के कारक ग्रह हैं। अतः प्रतिदिन प्रातःकाल ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को गायत्री मंत्र का जप करते हुए तीन बार अर्घ्य देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः " मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है। अमावस्या वाले दिन अपने पूर्वजों के नाम से, दूध, चीनी, चावल, आटा, सफ़ेद कपडा, दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने द्वारा जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर अथवा शिवालय में पितृ गायत्री मंत्र का सवा लाख विधि से जाप कराएं जाप के उपरांत दशांश हवन के बाद संकल्प ले की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं, क्योंकि उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है।
किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए "गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र" का पाठ करवाना चाहिए। यदि आप भी इस तरह की समस्याओं से ग्रस्त हैं तो पितृदोष निवारण हेतु हमसे संपर्क कर सकते हैं। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार
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