नमस्कार। वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका हार्दिक अभिनंदन है। नियमित रूप से प्रातःकाल और संध्या समय में नित्य पूजन करने वाले अनेकों भक्त एक प्रश्न अक्सर करते हैं कि, हम पूजा पाठ जप प्रतिदिन नियमित रूप से करते हैं, किन्तु हमें लगता है कि हमें पूजा पाठ करने का, या जप करने का पूर्ण फल प्राप्त हो नहीं पाता। हम वर्षों तक किसी एक ही मन्त्र का जप नियमित रूप से करते हैं, या एक ही स्तोत्र का पाठ करते हैं लेकिन उसका कोई विशेष प्रभाव हमारे जीवन पर दिखाई नहीं पड़ता। किन्तु क्या कभी आपने विचार किया कि ऐसा क्यों होता है? इसका मुख्य कारण है कि हम जपमंत्र या स्तोत्रपाठ को सही विधि से सिद्ध नहीं करते। और जब मन्त्र या स्तोत्र सिद्ध ही नहीं होता तो वह अपना प्रभाव भी नहीं दिखा पाता। यहां विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि हम किसी भी मन्त्र या स्तोत्र आदि का पाठ सदैव किसी न किसी तरह की कामना की पूर्ति के लिए ही करते हैं। और जब वह कामना पूर्ण नहीं होती तो हमें मन्त्र शक्ति पर ही अविश्वास होने लगता है। हालांकि ऐसा नहीं है। मन्त्र पूर्ण फलदायक होते हैं, बस आवश्यकता होती है उन्हें सही विधि विधान द्वारा सिद्ध करने की। सिद्धि के उपरांत आप फिर चाहे नित्य पूजा करें या नैमित्तिक, आप जिस भी कार्य के लिए मन्त्र का प्रयोग करेंगे वह अवश्य ही सफल होगा। आज मन्त्र सिद्धि के विषय पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे। आप विषय को समझने हेतु वीडियो को ध्यान पूर्वक पूरा अवश्य देखें, एवं साथ ही, धर्म, कर्म, आध्यात्म, ज्योतिष, कर्मकांड के अनेकों विषयों की शास्त्रसम्मत जानकारी के लिए आपके अपने इस वैदिक ऐस्ट्रो केयर चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबाकर ऑल सेलेक्ट अवश्य करें।
मन्त्र मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं-* 1.वैदिक 2- लौकिक 3.तांत्रिक और 4.शाबर मंत्र।..पहले तो आपको यह तय करना होगा कि आप किस तरह के मंत्र को प्रयोग करने का संकल्प ले रहे हैं। साबर मंत्र बहुत जल्द सिद्ध होते हैं, तांत्रिक मंत्र में थोड़ा समय लगता है और वैदिक और लौकिक मंत्र थोड़ी देर से सिद्ध होते हैं। लेकिन जब वैदिक मंत्र सिद्ध हो जाते हैं तो उनका प्रभाव कभी समाप्त नहीं होता है। बाकी अन्य मंत्रो की सिद्धि एक निश्चित समय सीमा तक ही प्रभावी होती है।
ध्यान रखें कि मंत्र जप के भी तीन प्रकार होते हैं:- 1. वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप। वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। यह जप विधि विशेष रूप से किसी स्तोत्र या किसी पाठ में प्रयोग होती है।
मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। और उपांशु जप का अर्थ है कि जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप विधि है।
साथ ही मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उस मन्त्र की दीक्षा किसी मन्त्रज्ञाता से पहले से ही ले लेनी चाहिए। यह भी ध्यान रखें कि मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त भी रखा जाए। मन्त्र सिद्ध करने के लिए आपने जिस भी मन्त्र को ग्रहण किया है उसे नियमित रूप से प्रातः काल एवं सन्ध्या काल छः माह तक जप करें। साथ ही विशेष रूप से मन्त्र की शुद्धता, आसन, वस्त्र, माला, जप समय, और दिशा का भी ध्यान रखें। इसे ठीक से समझें। सर्वप्रथम मन्त्र का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए। अशुद्ध उच्चारण से मन्त्र का अर्थ बदल सकता है। आसन अलग अलग मन्त्रों के लिए अलग अलग हो सकते हैं। जैसे ऊनी आसन, कुशा का आसन, या तांत्रिक साधना के लिए अनेक प्रकार के चर्म के आसन आदि। आसन के रंगों का भी विशिष्ट महत्व होता है। अतः मन्त्र के देवता के अनुसार ही आसन का रंग भी निर्धारित होता है। मन्त्र साधना के समय बिना सिले हुए वस्त्र ही धारण करने चाहिए। एवं वस्त्रों का रंग भी सम्बन्धित मन्त्र के देवता के अनुसार ही होना चाहिए। सिद्धि हेतु माला का भी ध्यान रखना अनिवार्य होता है। माला मंत्रदाता गुरु की आज्ञानुसार ही प्रयोग करनी चाहिए, सामान्य रूप से रुद्राक्ष की माला से हर तरह के मन्त्रों की साधना की जा सकती है। जप का समय प्रतिदिन एक ही होना चाहिये। अर्थात यदि आप प्रातः काल 5 बजे जप प्रारंभ करते हैं तो नियमित 5 बजे ही करें। कभी 4 कभी 6 नहीं होना चाहिए। साथ ही मन्त्र के अनुसार ही दिशा का भी विशेष महत्व होता है। अतः मन्त्र जप के समय दिशा का भी ध्यान रखें। इस विधि से नियमित छः माह तक जप करने से ही साधक मन्त्र सिद्धि के लिए समर्थ हो पाता है।
ततपश्चात किसी विशिष्ट मुहूर्त में, जैसे होली, दीपावली, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण आदि अवसरों पर मन्त्र सिद्ध किया जाता है। इसमें भी सिद्ध करने की विधि पृथक पृथक हो सकती है। जैसे किसी देवनदी में नाभि तक जल में खड़े होकर, या किसी विशिष्ट देवालय में देवता के सम्मुख, या फिर किसी विशेष वृक्ष के नीचे, अथवा श्मशान आदि निर्जन स्थानों में, मन्त्र के अनुसार ही उनकी सिद्धि की जाती है। सही विधि विधान से किया गया जप शीघ्र सिद्धिदायक होता है। जप पूरा होने पर जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, और तर्पण का दशांश मार्जन अवश्य करना चाहिए। इसके उपरांत ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।
मंत्र को सिद्ध करने के लिए पवित्रता और मंत्र के नियमों का पालन करना तो आवश्यक ही है साथ ही यह समझना भी परमावश्यक है कि मंत्र को सिद्ध करने का विज्ञान क्या है। मन को एक तंत्र में लाना ही मंत्र होता है। या यूं कहें कि मन को तारने वाली विधि मन्त्र कहलाती है।
उदाहरणार्थ यदि आपके मन में एक साथ एक हजार विचार चल रहे हैं तो उन सभी को समाप्त करके मात्र एक विचार को ही स्थापित करना ही मंत्र का लक्ष्य होता है। यह लक्ष्य प्राप्त करने के बाद आपका मस्तिष्क एक आयामी और सही दिशा में गति करने वाला होगा। मन स्थिर होने पर ही मन्त्र सिद्धि सम्भव होती है।
स्थिरचित्त होकर निरन्तर मन्त्र जप का अभ्यास करते रहने से साधक के चित्त में वह मंत्र इस प्रकार जम जाता है कि फिर नींद में भी वह चलता रहता है और अंतत: एक दिन वह मंत्र अवश्य ही सिद्ध हो जाता है। दरअसल, मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। अब प्रश्न उठता है कि मंत्र सिद्ध होने पर क्या होता है।
मंत्र से किसी देवी या देवता या किसी भूत पिशाच अथवा किसी यक्षिणी और यक्ष को साधा जाता है। मंत्र जब सिद्ध हो जाता है तो सिद्ध मंत्र को मन्त्र प्रयोग विधि के अनुसार तीन बार, पांच बार, सात बार पढ़ने पर संबंधित मंत्र से जुड़े देवी, देवता या अन्य कोई आपकी सहायता के लिए तत्काल उपस्थित हो जाते हैं।
ऐसे भी कई मंत्र होते हैं जिनमें जीवन में उपस्थित प्रत्येक बाधाओं को दूर करने की क्षमता होती है। अतः ऐसे मन्त्रों के प्रयोग से समस्त बाधाएं दूर हो जाती है। यह समझ लें कि 'मंत्र साधना' भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है। यदि आपके जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या या बाधा है तो उस समस्या को मंत्र जप के माध्यम से हल किया जा सकता है।
मंत्र के द्वारा हम स्वयं के मन या मस्तिष्क को बुरे विचारों से दूर रखकर उसे नए और सकारात्मक विचारों में बदल सकते हैं। लगातार अच्छी भावना और सकारात्मक विचारों में रत रहने से जीवन में हो रही बुरी घटनाएं रुक जाती है और अच्छी घटनाएं होने लगती है। यदि आप सात्विक रूप से निश्चित समय और निश्चित स्थान पर बैठकर प्रतिदिन मंत्र का जप करते हैं तो आपके मन में आत्मविश्वास बढ़ता है साथ ही आपमें आशावादी दृष्टिकोण भी विकसित होता है जो कि जीवन के लिए परमावश्यक है। साधक को मुख्य रूप से इस बात का सदैव स्मरण रखना चाहिए कि मन्त्र सिद्ध होने पर कभी भी भूल से भी मन्त्र शक्ति का दुरुपयोग न होने पाए। साधना की अपूर्णता से साधक को अनेकों प्रकार की समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। अतः किसी भी मन्त्र आदि की साधना सदैव सद्गुरु की शरण में रहकर ही करनी चाहिए। वैदिक एस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार
https://youtu.be/RR9Krpctj9M
वर्षों तक किसी एक ही मन्त्र का जप या एक ही स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करने पर भी यदि उसका कोई विशेष प्रभाव हमारे जीवन पर दिखाई नहीं पड़ रहा है तो क्या कभी आपने विचार किया कि ऐसा क्यों होता है?
https://youtu.be/RR9Krpctj9M
https://youtu.be/RR9Krpctj9M
https://youtu.be/RR9Krpctj9M
https://youtu.be/RR9Krpctj9M
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें