गृहे सा लक्ष्मी भोगे भवानी समरे च दुर्गा प्रलये च काली ।।
एक मात्र पराशक्ति, सूक्ष्मरुप से सदा-सर्वत्र विराजमान रहती हैं, किन्तु व्यवहार काल में, नारायण के साथ लक्ष्मी, शिव के साथ भवानी, युद्ध में दुर्गा और प्रलय काल में काली रूप में ये भिन्न-भिन्न प्रतीत होती है। यूं तो शक्ति के अनेक रूप हैं, किन्तु आज हम इन्हीं पराम्बा पराशक्ति के जिस अद्भुत रूप के बारे में चर्चा करेंगे, वह इन्द्राक्षी देवी के नाम से जानी जाती हैं। शक्ति का एक बड़ा ही अद्भुत रूप हैं इन्द्राक्षी देवी। इनकी शक्ति और सामर्थ्य के बारे में कहा जाता है कि, आयुरारोग्यमैश्वर्यं वित्तं ज्ञानं यशो बलम् । यह आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, वित्त, ज्ञान, यश, और बल प्रदान करने वाली देवी हैं। शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों का मनोरथ सिद्ध करने वाली देवी इन्द्राक्षी की पूजन विधि, कवच, स्तोत्र पाठ, एवं सिद्धि के नियमों के बारे में यदि आप वीडियो के माध्यम से जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे यूट्यूब चैनल वैदिक ऐस्ट्रो केयर में आपका स्वागत है। साथ ही वैदिक ज्योतिष शास्त्र एवं सनातन धर्म की अनेकों जानकारियां प्राप्त करने के लिए वैदिक ऐस्ट्रो केयर यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब कर नए वीडियो के नोटिफिकेशन की जानकारी के लिए वैल आइकन दबा कर ऑल सेलेक्ट करना ना भूले।
इन्द्राक्षी स्तोत्र एवं कवच को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय चैत्र नवरात्र या आश्विन नवरात्र है। नवरात्रों के समय प्रतिदिन व्रत रखकर सर्वप्रथम आवाहन स्थापन विधि पूर्वक गणेशादि पंचांग पूजन करने के उपरांत सर्वतोभद्र मंडल पूजन, प्रधान कलश पूजन करना चाहिए। फिर पूर्णपात्र के ऊपर विराजित, देवी इन्द्राक्षी की धातुमयी प्रतिमा अथवा ताम्रपत्र पर अंकित इन्द्राक्षी-यंत्र का विधिवत षोडशोपचार पूजन करके विनियोग-न्यास-ध्यान सहित इन्द्राक्षी-कवच-स्तोत्र के प्रतिदिन ग्यारह आवर्ति पाठ करने चाहिये।
फिर इन्द्राक्षी देवी के मन्त्र ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं क्लूं इन्द्राक्ष्यै नमः , का १०८ रुद्राक्ष के दानों की एक माला जप करना चाहिये! दशवें दिन मूल स्तोत्र पाठ का एवं मूल मंत्र का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, और तर्पण का दशांश मार्जन अवश्य करना चाहिए। इसके उपरांत साधक को अपनी नित्य पूजा में प्रतिदिन सुबह शाम एक एक बार, इन्द्राक्षी स्तोत्र का पाठ, विनियोग न्यास एवं कवच के साथ करना चाहिए। फिर प्रतिदिन शाम के समय इस स्तोत्र के सौ पाठ करने पर यह छः माह में सिद्ध हो जाता है। सायं शतं पठेन्नित्यं षण्मासात्सिद्धिरुच्यते।
सिद्ध होने के बाद किसी भी उद्देश्य के लिए इस स्तोत्र का अनुष्ठान, किया जा सकता है। अनुष्ठान हेतु तीन दिन में एक हजार पाठ पूर्ण कर चौथे दिन हवन किया जाता है। आवर्तनसहस्रेण लभ्यते वाञ्छितं फलम् । सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, होली दीपावली आदि किसी शुभ मुहूर्त में नाभि तक के जल में खड़े होकर यदि इस दिव्य स्तोत्र का पाठ किया जाए तो देवी इन्द्राक्षी की कृपा से वाणी सिद्ध हो जाती है। नाभिमात्रे जले स्थित्वा सहस्रपरिसंख्यया। जपेत्स्तोत्रमिमं मन्त्रं वाचां सिद्धिर्भवेत्ततः ।।
इन्द्राक्षी स्तोत्र की पाठ विधि इस प्रकार है। सर्वप्रथम हाथ में, या आचमनी में जल लेकर विनियोग पढ़ें।
विनियोग- श्रीगणेशाय नमः ।। ॐ अस्य श्रीइन्द्राक्षी स्तोत्र मन्त्रस्य सहस्त्राक्षऋषिः , इन्द्राक्षी देवता अनुष्टुप् छन्दः , महालक्ष्मी बीजम् , भुवनेश्वरीति शक्तिः , भवानीति कीलकम् , ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं इति बीजानि , मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे श्रीमदिन्द्राक्षीस्तोत्रजपे विनियोगः ।। यह कहते हुए जल को भूमि पर छोड़ दें। इसके बाद करन्यास करें।
करन्यासः -
ॐ इन्द्राक्षी इत्यंगुष्ठाभ्यां नमः ।।
ॐ महालक्ष्मीरिति तर्जनीभ्यां नमः ।।
ॐ माहेश्वरीति मध्यमाभ्यां नमः ।।
ॐ अम्बुजाक्षीत्यनामिकाभ्यां नमः ।।
ॐ कात्यायनीति कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।।
ॐ कौमारीति करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।।
इसके बाद हाथ धोकर, हृदयादिन्यास करें।
हृदयादिन्यास :
ॐ इन्द्राक्षीति हृदयाय नमः ।।
ॐ महालक्ष्मीरिति शिरसे स्वाहा ।।
ॐ माहेश्वरीति शिखायै वौषट् ।।
ॐ अम्बुजाक्षीति कवचाय हुम् ।।
ॐ कात्यायनीति नेत्रत्रयाय वौषट् ।।
ॐ कौमारीत्यस्त्राय फट् ।।
इसके बाद कवच पाठ करते हुए दिग्बन्धन करें।
ॐ भूर्भुवः स्वरोम् इति दिग्बन्धनम् ।।
पूर्वस्यां पातु मां ब्राह्मी चाग्नेय्यां तु महेश्वरी ।। कौमारी पातु याम्ये वै नैऋत्यां पातु भैरवी ।।१ ।।पश्चिमे पातु वाराही वायव्ये नारसिंहिका ।। कालरात्रिरुदीच्या वा ऐशान्यां सर्वशक्तिधृक् ।।२ ।। ऊर्ध्वं मे भैरवी पातु चाधःस्थं विन्ध्यवासिनी ।। यद्यद्विषम . स्थानं तत्तद्रक्षतु चेश्वरी ।।३ ।। ||
ततपश्चात हाथ में फूल लेकर, देवी इन्द्राक्षी का ध्यान करें।
।। अथ ध्यानम् ॥
इन्द्राणी द्विभुजां देवीं पीतवस्त्रद्वयान्विताम् । वामहस्ते वज्रधरां दक्षिणेन वरप्रदाम् ।।१ ।।
इन्द्राक्षीं युवती देवी नानालंकारभूषिताम् ।
प्रसन्न वदनाम्भोजामप्सरोगणसेविताम् ।।२ ।। द्विभुजां सौम्यवदनां पाशांकुशधरां पराम् । त्रैलोक्यमोहिनी देवीमिन्द्राक्षीनामकीर्तिताम् ।।३ ।।
पुष्प चढ़ाकर, इस मूल मंत्र का उच्चारण करें।
।।अथ मंत्रः ॥
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं क्लू इन्द्राक्ष्यै नमः ।।
पाठ प्रारम्भ करें।
|| इन्द्र उवाच ।।
इन्द्राक्षी नाम सा देवी दैवतैः समुदाहृता ।
गौरी शाकंभरी देवी दुर्गानाम्नीति विश्रुता ।।४ ।। कात्यायनी महादेवी चंद्रघण्टा महातपा ।
सावित्री सा च गायत्री ब्रह्माणी ब्रह्मवादिनी ।।५ ।। नारायणी भद्रकाली रुद्राणी कृष्णपिंगला । अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रि - स्तपस्विनी।।६ ।। मेघश्यामा सहस्राक्षी मुक्तकेशी जलोदरी ।
महादेवी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।।७ ।।
अजिता भद्रदा नन्दा रोगहंत्री शिवप्रिया ।
शिवदूती कराली च प्रत्यक्षा परमेश्वरी ।।८ ।।
सदा संमोहिनी देवी सुन्दरी भुवनेश्वरी ।
इन्द्राक्षी इन्द्ररूपा च इन्द्रशक्तिः परायणा ।।९ ।। महिषासुरसंहनीं चामुण्डा गर्भदेवता ।
वाराही नारसिंही च भीमा भैरवनादिनी ।।१० ।। श्रुतिः स्मृतिधृतिर्मेधा विद्या लक्ष्मीः सरस्वती । अनन्ता विजया पूर्णा मानस्तोकाऽपराजिता ।।११ ।। भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यम्बिका शिवा । एतैर्नामशतैर्दिव्यैः स्तुता शक्रेण धीमता ।।१२ ।। आयुरारोग्यमैश्वर्यं वित्तं ज्ञानं यशो बलम् ।
नाभिमात्रे जले स्थित्वा सहस्रपरिसंख्यया ।।१३ ।।जपेत्स्तोत्रमिमं मन्त्रं वाचां सिद्धिर्भवेत्ततः ।
अनेन विधिना भक्त्या मन्त्रसिद्धिश्च जायते ।।१४ ।। संतुष्टा च भवेद्देवी प्रत्यक्षा सम्प्रजायते ।
शत - मावर्तयेद्यस्तु मुच्यते नात्र संशयः ।।१५ ।। आवर्तनसहस्रेण लभ्यते वाञ्छितं फलम् ।
सायं शतं पठेन्नित्यं षण्मासात्सिद्धिरुच्यते ।।१६ ।। चोरव्याधिभयस्थाने मनसा ह्यनुचिन्तयन् । संवत्सरमुपाश्रित्य सर्वकामार्थ सिद्धये ।।१७ ।। राजानं वश्यमाप्नोति षण्मासान्नात्र संशयः ।।१८ ।।
।। इति इन्द्राक्षी स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
यह बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है अत: अतिगोपिनीय भी है। यह स्तोत्र अनुष्ठान विधि से प्रयोग करने पर हर प्रकार के असाध्यरोग जैसे लकवा, कैंसर आदि में भी अत्यंत लाभकारी परिणाम देने वाला है। अतः जीवन में किसी भी प्रकार का संकट आने पर इस दिव्य स्तोत्र का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए। वैदिक ऐस्ट्रो केयर आपके मंगलमय जीवन हेतु कामना करता है, नमस्कार।
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